सिर पर गिरैं राज सुख पावै

26 Mar 2010
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सिर पर गिरैं राज सुख पावै। और लालट ऐस्वर्यहि आवै।।
कंठ मिलावै पिय को लाई। काँधे पड़े बिजय दरसाई।।

जुगल कान और जुगल भुजाहू। गोधा गिरे होय धन लाहू।।
हाथन ऊपर जो कहूँ गिरई, सम्पति सकल गेह में धरई।।

निश्चय पीठ परै सुख पावै। परे काँख पिय बंधु मिलावै।।
कटि के परे वस्त्र बहु रंगा। गुदा परे मिल मित्र अभंगा।।

जुगल जाँघ पर आनि जो परई। धन गन सकल मनोरथ भरई।।
परे जाँघ नर होइ निरोगी। परब परे तन जीव वियोगी।।

या विधि पल्ली सरट विचारा। कहयो भड्डरी जोतिस सारा।।


भावार्थ- छिपकली यदि सिर पर गिरे तो राजसुख मिलता है, ललाट पर गिरे तो ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, कंठ पर गिरे तो प्रियजन से भेंट होती है, कंधे पर गिरे तो विजय होती है, यदगि दोनों कानों और दोनों भुजाओं पर गिरे तो धन का लाभ होता है, यदि हाथों पर गिरे तो धन आता है, पीठ पर गिरे तो निश्चित सुख मिलता है, काँख पर पड़े तो धन आदि सभी मनोरथ पूरेत होते हैं। एक जाँघ पर पड़े तो मनुष्य निरोगी रहता है, यदि पर्व के दिन गिरे तो शरीर और जीव का वियोग होगा। इस प्रकार ज्योतिष का सार लेकर छिपकली पर भड्डरी का यहि विचार है।

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