सिर्फ 15 दिन का पानी


चित्तौड़गढ़। चित्तौड़गढ़ शहर का मुख्य पेयजल स्त्रोत भैरड़ा माइंस में नाममात्र का पानी बचा है। मानसून की बेरूखी क चलते शहर के साथ जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के अधिकारियों के होश भी फाख्ता है। यही स्थिति रही तो माह के अन्त तक भीषण पेयजल संकट खड़ा हो सकता है। संभावित संकट को देखते हुए विभाग अब आपात योजना तैयार कर रहा है।

भैरड़ा माइंस मे नाम मात्र का पानी शेष्ा है। माइंस में केवल पन्द्रह दिन का पानी बचा है। मानसून की खेंच को लेकर विभागीय अधिकारी संभावित हालात को भांपते हुए आनन-फानन में आपात योजना तैयार करने में जुट गए हैं। शहर की जनंसख्या करीब 1 लाख 15 हजार हैं। यहां करीब साढ़े बारह हजार कनेक्शन हैं।

जनसंख्या के अनुसार शहर में प्रतिदिन एक सौ पन्द्रह लाख लीटर पानी की मांग है जबकि इसके मुकाबले 60 लाख लीटर पांतरे दिया जा रहा है। विभाग की मानें तो भैरड़ा माइंस से अब भी प्रतिदिन 25 लाख लीटर पानी दिया जा रहा है जबकि अप्रेल में प्रशासन ने इस पर पूरी तरह रोक लगा दी थी लेकिन सख्ती नहीं बरती गई। इसका यह नतीजा रहा कि माइसं का जल स्तर गिरता रहा। शहरी क्षेत्र में विभाग की ओर से 68 टैंकरों से जलापूर्ति की जा रही है। इसमें से 40 टैंकर से सेंती स्थित टंकी को भरा जा रहा है। 28 टैंकरों से शहर की बस्तियो में जलापूर्ति की जा रही है।

माइंस से प्रतिदिन 45 लाख लीटर, हिन्दुस्तान जिंक से 5 लाख तथा शहर के नलकूपों से 10 लाख लीटर पानी जुटाया जा रहा है। शहरी क्षेत्र में कुल 99 नलकूप हैं। इनमें से अधिकांश सूख चुके है या सूखने के कगार पर है। विभाग के पास शहर तथा आसपास के गांवों के निजी नलकूपों के अधिग्रहण के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है। घोसुण्डा बांध से भी पानी लेने की बात कही जा रही है लेकिन वहां पानी नहीं है।

बांध के आसपास जिंक के नलकूपों से पानी लिया जा सकता है। इसके लिए विभाग योजना बना रहा है। वर्तमान में 500 मिलीयन लीटर पानी है। इसमें से विभाग 200 मिलीयन लीटर पानी का ही उपयोग कर सकता है। 300 मिलीयन लीटर पानी का उपयोग संभव नहीं है।
 
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