सम-विषम से कम होगा प्रदूषण

27 Dec 2015
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दिल्ली की सड़कों पर फर्राटा भरने वाली कारें अब अपने ब्रांड से नहीं बल्कि अपने नम्बर से जानी जाएगी। अब वे आॅड और इवेन नम्बरों के आधार पर राजधानी की सड़कों पर चलेंगी। शहर को वायु प्रदूषण से मुक्त करने के लिये दिल्ली सरकार का यह महत्त्वपूर्ण निर्णय जल्द ही अमलीजामा पहनने जा रहा है। राजधानी के प्रदूषण में कुछ कमी आये और आम आदमी को परिवहन व्यवस्था में कोई परेशानी का सामना न करना पड़े, इसके लिये मुख्यमन्त्री अरविंद केजरीवाल ने एक उच्च स्तरीय बैठक कर व्यावहारिक हल खोजने की कोशिश करने में लगे हैं। इस व्यवस्था के लागू होने के बाद सम्भावित स्थिति की समीक्षा के लिये दिल्ली सचिवालय में एक उच्च स्तरीय बैठक हुई। जिसमें अरविंद केजरीवाल और उनके कैबिनेट मन्त्री, यातायात पुलिस के स्पेशल कमिश्नर, डीएमआरसी, डीटीसी, पीडब्ल्यूडी, पर्यावरण, राजस्व विभाग के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे। परिवहन मन्त्री गोपाल राय कहते हैं कि जल्द ही इस योजना का पूरा ब्लू प्रिंट जारी किया जाएगा और लोगों के हर कन्फ्यूजन को दूर किया जाएगा।

अभी तक जो योजना सामने आयी है उसके अनुसार सरकार ने निजी वाहनों के लिये सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक ही लागू रखने का फैसला किया है। यह भी तय हुआ है कि गाड़ियाँ दिन के हिसाब से नहीं, तारीख के हिसाब से चलेंगी। योजना के मुताबिक विषम संख्या वाली गाड़ियाँ 1, 3, 5, 7 और 9 जैसी तारीखों पर ही चलेंगी और सम संख्या वाली गाड़ियाँ 2, 4, 6 और 8 जैसे सम तारीख वाले दिनों में चलेंगे। रविवार को सभी नम्बर की कारें सड़कों पर चल सकेंगी। नियम तोड़ने वालों पर क्या जुर्माना लगाया जाएगा, यह अभी तय नहीं हुआ है। बाहर से आने वाली गाड़ियों के लिये अभी कोई नियम नहीं बनाया गया है। सरकारी गाड़ियों, दोपहिया और टैक्सी को इसके दायरे से बाहर किया गया है। बीमार, विकलांग और महिलाओं को रियायत देने के सम्बन्ध में सरकार जल्द ही नियम बनायेगी। दिल्ली सरकार ने शहर में बढ़ते वायु प्रदूषण को कम करने के लिये यह योजना लायी है।

यह योजना आप सरकार की कोई नई पहल नहीं है। बल्कि मजबूरी में उठाया गया कदम है। दरअसल, कुछ दिनों पहले उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली में बढ़ रहे वायु प्रदूषण को देखते हुए शहर को ‘गैस चेम्बर’ बताया था। एक याचिका की सुनवाई करते हुये दिल्ली उच्च न्यायालय ने शहर में बढ़ते प्रदूषण पर चिन्ता जताते हुये केन्द्र एवं दिल्ली सरकार से जवाब माँगा। अदालत ने दिल्ली सरकार को राजधानी में प्रदूषण कम करने के लिये तुरन्त कार्रवाई करने का आदेश भी दिया।

दिल्ली में वायु प्रदूषण कितना अधिक है। इसका अंदाजा हाल ही में हुये एक शोध से लगाया जा सकता है। शोध के मुताबिक राजधानी की हवा में सल्फर डाइआॅक्साइड और नाइट्रोजन डाइआॅक्साइड जैसी खतरनाक गैसें हीनहीं हैं, बल्कि बेन्जीन जैसी कैंसर फैलाने वाले गैस भी फैली हुई है। इसका डीएनए पर भी प्रभाव हो सकता है। दिल्ली में कई जगहों में बेन्जीन का लेवल हाई पाया गया। विशेषज्ञों के मुताबिक बेन्जीन का फैलाव पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स, सिगरेट, तम्बाकू, इंडस्ट्रियल एमिशन, डीजल गाड़ी और खाद्य पदार्थों और पानी में भी होता है। साँस के जरिये यह गैस शरीर के अंदर पहुँचती है। इसका दुष्प्रभाव तुरन्त तो नहीं दिखता है, लेकिन शरीर के अंदर पहुँच कर रक्त कोशिकाओं को यह कमजोर करना शुरू कर देती है।

अदालत के आदेश के बाद दिल्ली सरकार ने आनन-फानन में शहर में चलने वाली गाड़ियों की संख्या सीमित करने की योजना बनायी है। इस तरह की योजना विश्व के दूसरे देशों में भी लागू हो चुकी है। मीडिया से लेकर बुद्धिजीवियों और राजनीतिक जमात इस योजना का स्वागत कर रहे हैं। लेकिन सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को दुरुस्त किये बिना जल्दबाजी में इस योजना को लागू करने की आलोचना भी हो रही है। दिल्ली के परिवहन मन्त्री गोपाल राय कहते हैं कि जल्द ही सार्वजनिक परिवहन को चुस्त-दुरुस्त किया जायेगा। डीटीसी के बेड़े में नये बसों को शामिल करने की योजना पर तेजी से काम चल रहा है। क्लस्टर योजना में एक हजार नई बसें तो आनी है। लेकिन अभी इसमें समय लगेगा। इसके पहले सरकार प्राइवेट स्कूलों में चलने वाली रजिस्टर्ड सीएनजी बसों जिनकी संख्या लगभग नौ हजार है उनकी सेवा लेने की कोशिश में है। दिल्ली सरकार ज्यादा से ज्यादा इन बसों को प्रोजेक्ट में शामिल करेगी। प्राइवेट बस मालिकों से मीटिंग करके सरकार सार्वजनिक परिवहन को सुचारु रूप से चलाने की बात कर रही है। यह योजना 1 जनवरी से शुरू होगी और पहला चरण 15 जनवरी तक चलेगा। रोजाना फीडबैक लिया जायेगा। पहले 15 दिन के अनुभव का समीक्षा करके तय होगा कि योजना आगे किस तरह चलाया जाय। यातायात में कोई व्यवधान उत्पन्न न हो इसके लिये सरकार यातायात पुलिस से भी बातचीत करके वॉलंटियर्स और सिविल डिफेंस की भर्ती करने जा रही है। जो यातायात पुलिस का सहयोग करेंगे।

दिल्ली सरकार के सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक प्रदूषण को मुक्त करने के लिये सरकार दीर्घकालिक योजना बनाने में लगी है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दिल्ली सरकार से शहर में चलने वाले डीजल जनरेटरों की सूची माँगी है। एनजीटी का दावा है कि डीजल जनरेटर प्रदूषण की प्रमुख वजह है। सरकार से उन फैक्ट्रियों और कारखानों की सूची बनाने में लगी है जहाँ पर डीजल जनरेटर दिन रात धुआँ उड़ाते रहते हैं। सरकार ने बदरपुर और राजघाट थर्मल पावर प्लांटों को एक हफ्ते में बंद करने का नोटिस जारी कर दिया है। इसके साथ ही सरकार ने तय किया है कि दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल कमिटी शहर में 200 जगहों पर एयर क्वालिटी चेक करेगी।

देश और दिल्ली में जहाँ सरकार के इस योजना की प्रशंसा हो रही है। उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने जहाँ इस योजना का यह कहते हुये स्वागत किया कि वह शहर को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिये अपने सहयोगियों के साथ पूल कार में न्यायालय आने को तैयार हैं। वहीं पर इसकी आलोचना करने वाले भी कम नहीं हैं। पूर्वी दिल्ली से भाजपा सांसद महेश गिरि ने लोकसभा में कहा कि यह योजना व्यावहारिक नहीं है। मोदी सरकार में मन्त्री मुख्तार अब्बास नकवी की भी यही राय है। कांग्रेस में इस मुद्दे पर दो राय दिख रही है। कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य प्रमोद तिवारी इस योजना से होने वाली परेशानियों को सदन में उठाया। वहीं पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं सांसद जयराम रमेश कहते हैं कि वायु प्रदूषण एक गम्भीर मामला है। और इस तरह के आइडिया को लागू करने के प्रयास में कोई हर्ज नहीं है।

आॅड और इवेन नम्बर के आधार पर गाड़ियों को सड़कों पर उतारने के खिलाफ कानूनी जंग भी शुरू हो गयी है। 1 जनवरी से अलग-अलग तारीख के हिसाब से आॅड और इवन नम्बर की प्राइवेट गाड़ियाँ चलाये जाने के सरकार के नये आदेश के खिलाफ श्वेता कपूर ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है। श्वेता कपूर ने सरकार की इस नई पॉलिसी को लागू किये जाने पर रोक लगाने का निर्देश देने की माँग की है। श्वेता कहती हैं कि इस पॉलिसी को लागू करने के पहले पब्लिक डिबेट या चर्चा नहीं की गयी। राज्य के मौजूदा हालात और तथ्यों को समझे बिना इसे लोगों पर थोप दिया गया। फिलहाल उच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी ने याचिकाकर्ता को कहा कि इस तरह जनहित याचिका के जरिये सरकार पर दबाव नहीं बनाना चाहिये। सरकार जो कर रही है उसे करने दे। जब परिणाम आयेगा तो सुनवाई होगी। अगर आप जनता का हित चाहते हैं तो 15 जनवरी के बाद आइये।

दिल्ली के गृह मन्त्री सतेंद्र जैन श्वेता कपूर द्वारा उठाये गये आशंका को निराधार बताया है। वे कहते हैं कि सरकार राजधानी के सार्वजनिक परिवहन को बेहतर करने के लिये सभी सम्भावित कदम उठा रही है। सरकार ने डीटीसी से बात की है और 20 प्रतिशत गाड़ी बढ़ाने के लिये कहा है। इसी प्रकार डीएमआरसी से बात करके मेट्रो-ट्रिप बढ़ाने को कहा जा रहा है। परिवहन मन्त्रालय के अधिकारियों का कहना है कि पुख्ता योजना तैयार कर लिया गया है। इस योजना को लेकर दिल्ली पुलिस के सहयोग पर सत्येंद्र जैन का कहना है कि पुलिस का काम इनकार करना नहीं है।

दिल्ली को प्रदूषण मुक्त करने की इस योजना पर विभिन्न समुदायों की राय अलग-अलग है। कुछ व्यापारियों में ग्राहक संख्या कम होने का गम तो कुछ में जाम हटने की खुशी है। व्यापारियों का कहना है इससे बाजारों में ग्राहकों की संख्या घटेगी और आॅनलाइन शॉपिंग का जोर बढ़ेगा। कैट के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने कहा “इस योजना से स्थानीय स्तर पर व्यापार बुरी तरह प्रभावित होगा। अगर सरकार गाड़ियों की संख्या 50 प्रतिशत घटने का अनुमान जता रही है तो इसे व्यापारिक नजरिये से इस रूप में देखा जा सकता है कि अपने वाहन से शॉपिंग के लिये आने वालों की तादाद भी आधी घट जायेगी। हम प्रदूषण कम करने के सरकारी योजना के साथ हैं, लेकिन योजनाएँ व्यवहारिक होनी चाहिये।”

 

कई देशों में लागू है यह व्यवस्था


विश्व स्वास्थ्य संगठन की पिछले साल दिसम्बर में आयी रिपोर्ट में दिल्ली को दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में बताया गया है। रिपोर्ट की मानें तो दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में भारत के 13 शहर शामिल हैं। हवा में मौजूद नाइट्रोजन डाइआॅक्साइड, कार्बन मोनोआॅक्साइड और सल्फर डाइआॅक्साइड जैसी खतरनाक गैसों की मात्रा अधिक होने को इस रिपोर्ट का आधार बनाया गया था। इन गैसों की जितनी मौजूदगी को सेफ माना जाता है, दिल्ली की हवा उससे कई गुना अधिक खतरनाक है। गैसों के अलावा हवा में अन्य हानिकारक कणों की मौजूदगी को भी रिपोर्ट का पैमाना बनाया गया था।

दिल्ली सरकार के आॅड और इवेन नम्बर के आधार पर कारों के चलाने की योजना को कुछ लोग हास्यास्पद तो कुछ इसे तालिबानी फरमान बताने में लगे हैं। जबकि ऐसी परिवहन व्यवस्था विश्व के कई देशों में दशकों पहले से चल रही है। चक्रीय आधार पर परिवहन व्यवस्था का सबसे पहला प्रमाण 45 ईसा पूर्व रोम में मिलता है। जब जूलियस सीजर ने शहर में बैलगाड़ियों के आने का समय निश्चित किया था। ब्राजील के चर्चित महानगर साओ पाउलो में एक दशक पहले से गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन नम्बर के आधार पर परिवहन व्यवस्था चल रही है। लातिन अमेरिका के कई देशों में भी यह व्यवस्था दशकों से लागू है। एथेंस में 1982, चिली 1986, मैक्सिको सिटी 1989, मेट्रो मनीला 1995, बोगाटा कोलम्बिया 1998, बोलविया 2003 और क्योटो इक्वाडोर में 2010 में यह व्यवस्था लागू की गयी थी। 2008 में ओलंपिक में चक्रीय परविहन व्यवस्था के सफलता पूर्वक परीक्षण के बाद बीजिंग में इसे नम्बर के आधार पर लागू किया गया। इस व्यवस्था के लागू होने के बाद हुये एक अध्ययन में पाया गया कि गैस उत्सर्जन में 40 फीसदी की कमी आयी है। इसके साथ ईंधन की बचत और सड़क दुर्घटनाओं में कमी देखी गयी। अध्ययन में यह दावा किया गया है कि बीजिंग की 95 फीसदी जनता इस व्यवस्था के समर्थन में है।

 

 

 

 

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