समन्वित जल मिशन

जरूरी होगा कि हमारा मिशन हो जिसमें नदियों को आपस में जोड़ने, जल संचयन, पानी के पुनर्प्रयोग और कुछ क्षेत्रों में सौरऊर्जा की सहायता से समुद्र के खारे पानी को पीने लायक बनाने की बातों को शामिल किया जाए।जल प्रबन्धन और खासतौर से जल संरक्षण तथा जलस्रोतों के विकास एवं प्रबन्धन का मुद्दा बहुत महत्त्वपूर्ण है। हम अपने सभी नागरिकों को सिंचाई और अच्छी गुणवत्ता का पीने का पानी उपलब्ध कराने को लालायित हैं। पर्यावरण विज्ञान, मानव बस्तियों का विस्थापन जैसे अन्य सरोकार भी हैं, अतः 'समन्वित जल मिशन' आज के मेरे सम्बोधन का विषय है।

हमारे बीच कुछ लोग हैं जो नदियों को जोड़ने की परियोजना से बहुत उम्मीदें लगाए हैं। कई ऐसे लोग भी हैं जो सवाल उठा रहे हैं कि क्या यह कार्यक्रम देश के लिए वरदान सिद्ध होगा। इस सम्बन्ध में मैं चार पहलुओं पर चर्चा करूँगा :

1. पीने, सफाई, सिंचाई और औद्योगिक प्रयोग के लिए हमें कुल कितने पानी की जरूरत है और हमें मौसमी साधनों (बारिस और बर्फ पिघलने) से कितना पानी मिल जाता है?
2. हमारी आबादी का एक तिहाई हिस्सा हर साल बाढ़ या सूखे का सामना करता है।
3. भिन्न-भिन्न क्षेत्रों और अलग-अलग मौसम में पानी की प्रति व्यक्ति उपलब्धता 10 किलोमीटर और 50 किलोमीटर के बीच होती है।
4. एक अनुमानित जनसंख्या वृद्धि दर पर सारी आबादी की पानी की न्यूनतम आवश्यकता कैसे पूरी की जा सकती है? हमें ध्यान रखना है कि सन् 2020 तक हमें 40 करोड़ टन अनाज की पैदावार का लक्ष्य प्राप्त करना है और जनसंख्या वृद्धि के कारण पानी की जरूरत भी बढ़ जाएगी।

जल सन्तुलन


भारत में सभी प्राकृतिक स्रोतों से हर वर्ष लगभग 4,000 अरब घन मीटर (अघमी) पानी प्राप्त होता है। इसमें से 700 अघमी पानी भाप बनकर उड़ जाता है और 700 अघमी जल जमीन सोख लेती है तथा इसका काफी बड़ा भाग 1,500 अघमी समुद्र में बह जाता है। इस प्रकार सिर्फ 1,100 अघमी पानी ही बचता है। इसमें से प्रतिवर्ष 430 अघमी भूजल की भरपाई में चला जाता है और 370 अघमी भूजल का ही इस्तेमाल हो पाता है। शेष रहता है 300 अघमी जल जिसका संचयन सम्भव है।

बाढ़ और सूखे की स्थिति


अक्सर आने वाले बाढ़ और सूखे पर भी मेरा ध्यान गया है। सामान्यतः देश भर में 4 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में फैली 8 प्रमुख नदी घाटियों में बाढ़ आती रहती है और 26 करोड़ लोग इसकी चपेट में आते हैं। इसी तरह से 14 राज्यों के कुल 116 जिलों के 8.6 करोड़ लोग सूखे की मार झेलते हैं।

हमें बाढ़ और सूखे के प्रकोप से बचना है तो हमें इस 1,500 अघमी बारिश के पानी का संरक्षण करके सूखे वाले इलाकों को पहुँचाना है। हम उपयुक्त संचयन व्यवस्था विकसित करके एक हिस्से को वर्षा ऋतु में इकट्ठा कर सकते हैं और बाद में इसका उपयोग कर सकते हैं।यह बाढ़ कैसे आती है? यह बाढ़ 1.500 अघमी उस पानी के कारण आती है जो हर साल वर्षा ऋतु में बहता है। अगर हमें बाढ़ और सूखे के प्रकोप से बचना है तो हमें इस 1,500 अघमी बारिश के पानी का संरक्षण करके सूखे वाले इलाकों को पहुँचाना है। हम उपयुक्त संचयन व्यवस्था विकसित करके एक हिस्से को वर्षा ऋतु में इकट्ठा कर सकते हैं और बाद में इसका उपयोग कर सकते हैं। अगर हम ऐसा करने में कामयाब हुए तो हर साल फसलों, सम्पत्तियों और लोगों की रक्षा ही नहीं करेंगे बल्कि इन प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान से भी बच सकेंगे और इस प्रकार 2,400 करोड़ रुपए तक की हानि से देश को बचा सकेंगे। साथ ही, 1,200 करोड़ रुपए के इस आवर्ती व्यय से भी बच सकेंगे जो सरकार लघु अवधि राहत कार्यों पर खर्च करती है।

सवाल यह उठता है कि बाढ़ के पानी का संचयन कैसे किया जाए? साथ ही, बाढ़ के पानी के बहाव को कैसे नियन्त्रित किया जाए ताकि इसे समुद्र में बह जाने से रोक कर मानव मात्र के लाभ के लिए इस्तेमाल किया जा सके?

जल संचयन


हमारा उद्देश्य यह होना चाहिए कि हम बाढ़ के 1,500 अघमी पानी को इस प्रकार नियन्त्रित करें कि इसका इस्तेमाल सूखाग्रस्त क्षेत्रों तथा देश के अन्य इलाकों को पर्याप्त जल मौसम में उपलब्ध कराने में कर सकें। इसके लिए हमें नदियों को जोड़ने एवं पानी के समुचित भण्डारण और वितरण के उपाय करने होंगे।

इसके लिए बनाई जाने वाली योजनाओं में हमें यह भी ध्यान में रखना होगा कि इस समय 50 प्रतिशत से अधिक भारतीय मकानों में सफाई सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। बढ़ती हुई आबादी के लिए जल संचय और वितरण की परियोजनाएँ बनाते समय नियोजकों को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए। राष्ट्र की पानी की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए नदियों को जोड़ने की परियोजना में भी हमें इस बात का ध्यान रखना होगा और मिली-जुली स्कीम बनानी होगी जिनके जरिए हर साल 1,500 अघमी बाढ़ के पानी के अलावा 300 अघमी अतिरिक्त पानी का संरक्षण किया जा सके।

बाढ़ नियन्त्रण


बाढ़ नियन्त्रण करने और सूखे से निपटने में अतिरिक्त पानी के उपयोग का दीर्घावधि समाधान खोजे जाने की सख्त जरूरत है। मैं तो चाहूँगा कि गंगा के मैदान में कोसी नदी के प्रवेश क्षेत्र में विशेष प्रकार के (परतदार) कुओं का निर्माण किया जाए। आमतौर पर बाढ़ के पानी के प्रवाह में खास तरह की गतिशीलता होती है। इन विशेष प्रकार के (परतदार कुओं में पानी भरने के कारण इस गतिशीलता को धीरे-धीरे घटाने में सहायता मिलेगी। इस प्रकार जो पानी संचित किया जाएगा वह कमी के वक्त काम आएगा। पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए भी इसी तरह के समाधान खोजे जा सकते हैं। मैं सिफारिश करता हूँ कि नदियों को जोड़ने के कार्यक्रम में इसे भी शामिल कर लिया जाए।

यही नहीं, जो भी स्कीम बनाई जाए उसमें पानी को समुद्र में बह जाने से रोकने और बढ़ती आबादी के लिए अतिरिक्त पानी की लगातार उपलब्धता बनाए रखने की व्यवस्था भी होनी चाहिए।

अब मैं कुछ उन मुद्दों की चर्चा करूँगा जो इस मिशन से सम्बद्ध हैं। मुख्य मुद्दे कुछ लोगों के पुनर्वास और पर्यावरण सुधार से जुड़े हैं।

पुनर्वास


इतने बड़े पैमाने पर जब स्कीमें लागू की जाएँगी तो कुछ लोगों के विस्थापित होने की नौबत भी आएगी। हमें इस तरह के विस्थापन को न्यूनतम स्तर पर लाना है। हमें यह भी ध्यान रखना है कि इनसे लोगों को क्या लाभ होने हैं और उन पर क्या असर पड़ने वाला है। इन योजनाओं से करीब 34 करोड़ वे लोग लाभान्वित होंगे जो लगातार बाढ़ और सूखे की मार झेलते रहे हैं। योजनाओं में विस्थापित होने वाले परिवारों की पुनर्वास योजना के लिए जरूरी जमीन और खेती कुटीर उद्योग, औद्योगिक गतिविधियों के लिए स्थान का ध्यान रखना होगा। जल संसाधनों को जोड़ने के मिशन के परिव्यय में इसके लिए जरूरी निधियों की भी व्यवस्था करनी होगी। अतीत की समस्याओं से सबक लेते हुए विस्थापित होने वाले लोगों को जरूरी सुविधाएँ देने के लिए समय से पहले ही ऐसी सुविधाएँ जुटाने पर ध्यान देना होगा। प्रौद्योगिकी, परियोजना प्रबन्धन, वित्त आदि की ही तरह इस सन्दर्भ में सुशासन के मुद्दे भी समान महत्त्व के होंगे। स्वीकृति से पहले परियोजना रिपोर्ट में यह बाते शामिल करनी होंगी।

पर्यावणर सुधार


पर्यावरणशास्त्री इस बात को लेकर आशंकित हैं कि पानी के मार्ग और भू-भाग में बड़े पैमाने पर परिवर्तन से भूगर्भीय और पर्यावरण सन्तुलन प्रभावित हो सकता है और खतरे में पड़ सकता है। इसलिए उनके सरोकारों का हल भी ढूँढ़ना पड़ेगा और नदियों को जोड़ने के मिशन में समुचित व्यवस्था करनी होगी। उदाहरण के लिए मौजूदा वन क्षेत्र की तुलना में वनारोपन क्षेत्र 10 से 15 प्रतिशत बढ़ा दी जाए और नदी प्रवाह प्रबन्धन का डिजाइन तैयार कर लिया जाए। इसलिए सरकार द्वारा नियोजित समग्र मिशन विभिन्न विभागों द्वारा संचित परिव्यय को शामिल करना होगा और इस पर नजदीक से निगरानी रखनी होगी क्योंकि राज्य और केन्द्र सरकारों के कई मन्त्रालयों के विकास कार्यक्रमों के हर क्षेत्र पर इसका प्रभाव पड़ेगा।

जल संसाधन मानचित्र एवं मार्ग नियोजन


ऐसे मिशनों के कार्यान्वयन में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी निश्चित रूप से मददगार होगी। भारत का अपना खुद का दूरसंवेदी उपग्रह है और वह विभिन्न मौसम में सहायक सिद्ध होगा। उपग्रह और आकाशीय चित्रों के सहारे जलमार्गों और पर्यावरण विवरणों का मानचित्रण किया जा सकता है। जल संसाधनों और सूखे के चित्र अब कार्टोसेट-वन से मिल सकेंगे। इन्हें जल मिशन का एक अंग बना लिया जाना चाहिए।

स्थानीय नदी थालों का राज्यवार सम्पर्क


आन्ध्र प्रदेश विधानसभा में अपने सम्बोधन के दौरान मैंने सुझाव दिया था कि बाढ़ के मौसम में गोदावरी का 2,500 टीएमसी और सामान्य दिनों में 750 टीएमसी पानी समुद्र में बह जाता है। इसे बाँध, नहरें, झीलें और जलाशय बना कर रोका जाना चाहिए और गोदावरी के आसपास के क्षेत्र में सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इससे थालो में सिंचित क्षेत्र 30 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ जाएगा। आन्ध्र प्रदेश सरकार यह स्कीम क्रियान्वयन करने पर सहमत हो गई है। इसके अलावा मुझे गोवा के मुख्यमन्त्री ने सूचित किया था कि गोवा सरकार ने पम्प और अन्य साधनों के सहारे मांडोवी थाले में जुआरी नदी को कलय नदी से जोड़ दिया है। ऐसा इस इलाके में पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से किया गया। हर राज्य को गोवा की तर्ज पर अपनी नदियों को जोड़ने की समग्र योजना में राज्य जल संसाधन सम्बद्धता को शामिल कर लेना चाहिए।

जल प्रबन्धन


इसके साथ ही, हमें भूजल और सतही पानी के जरिए 800 अघमी उपलब्धता, जल संचयन पुनरोपयोग और पर्यावरण सुधार के मिशन भी शुरू करने होंगे। मैं यहाँ अध्ययन के उद्देश्य से विभिन्न क्षेत्रों में कार्यान्वित किए गए कुछ उदाहरण दे रहा हूँ।

जल संचयन


जल संचयन और इसके पुनः प्रयोग को सभी राज्यों में कानूनी तौर पर अनिवार्य बना दिया जाना चाहिए। जल स्तर में सुधार के लिए हमें चेक बाँध बनाने, जलाशय, नदियों और जल विभाजकों के विकास, तालाबों में पानी के आने-जाने के रास्ते को खुला रखने और कुओं के पानी की भरपाई की व्यवस्था करना चाहिए। अगर ग्रामीण क्षेत्रों में जलाशयों को साफ और चालू रखा जाए तो कुओं के पानी की भरपाई अपने-आप होती रहेगी। इन गतिविधियों से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। तमिलनाडु सरकार ने इस दिशा में अग्रणी कदम उठाए हैं और गाँवों सहित सभी परिवारों के लिए जल संचयन को कानूनी तौर पर अनिवार्य बना दिया है। अध्ययनों से पता चलता है कि इसके कारण मौजूदा मौसम में वहाँ भूजल स्तर में पर्याप्त सुधार हुआ है। हाल ही में सुनामी प्रभावित लोगों के लिए बनाई जा रही स्थाई बस्तियों में जल संचयन की व्यवस्था शामिल की गई है। कई राज्यों ने अपने विभिन्न प्रकार के लाखों जलाशयों के पुनरुद्धार के लिए काम शुरू किया है। उन्होंने सूखे की आशंका वाले क्षेत्रों में जल स्तर में सुधार और वर्षा के पानी को सिंचाई के लिए इस्तेमाल करने के उद्देश्य से अनेक लघु और अति लघु पनविभाजक सिंचाई परियोजनाएँ शुरू की हैं।

पानी का पुनः प्रयोग


जल संचयन के अलावा होटलों, सार्वजनिक संस्थानों और उद्योगों जैसे बड़े उपभोक्ताओं के लिए पानी को साफ करके उसका पुनः प्रयोग करना अति आवश्यक है। फिर से साफ किए पानी का इस्तेमाल पीने के अलावा खेती सहित हर क्षेत्र में किया जाना चाहिए। इससे पानी की प्रति व्यक्ति आवश्यकता मौजूदा खपत की तुलना में 25 प्रतिशत कम हो जाएगी। साथ ही जनसंख्या के काफी बड़े हिस्से को पानी और सफाई के लिए काफी पानी मिलने लगेगा।

पर्यावरण सुधार के लिए साहचर्य मिशन


पर्यावरण स्वच्छता की स्थिति किसी राष्ट्र के विकास का द्योतक होती है। एक राष्ट्र के रूप में हमें अपने पूजा-स्थलों और नदियों सहित समूचे पर्यावरण को साफ रखना है। मुझे काली वेन नदी के बारे में जो जानकारी मिली है उससे बहुत खुशी हुई है। इसी नदी के तट पर गुरुनानकदेव जी को आत्मज्ञान प्राप्त हुआ था। पिछले कुछ वर्षों में यह नदी सिवार भरे नाले में तब्दील हो गई थी। हाल ही में पंजाब सरकार के सहयोग और बाबा बलबीर सिंह सीचेवाला की कोशिशों से इस नदी की सफाई की गई। बातचीत करने पर मुझे मालूम हुआ कि लोगों से कारसेवा संगठित करके इस नदीं में गिरने वाले गन्दे नालों को रोका और रोजाना 300 कार सेवकों की मदद लेकर पिछले साढ़े तीन वर्षों में 160 किलोमीटर लम्बी इस नदी को साफ कर दिया गया। सरकार ने एक साल पहले तर्किना बाँध से इसमें पानी छोड़ा और यह फिर से ताजे पानी से प्रवाहित नदी बन गई है। इस नदी के फिर से प्रवाहित होने से भूजल स्तर बढ़ गया है और आसपास के हैण्डपम्प, जो सूख गए थे, अब फिर पानी देने लगे हैं।

अब जब कि मैं यह सोच रहा था कि नदियों और धार्मिक स्थानों के माहौल में कैसे सुधार लाया जाए, मुझे लगता है कि हमारे प्रबुद्ध नागरिकों ने पहल की है और दिखा दिया है कि उत्साही व्यक्ति समाज की समस्याएँ सुलझा सकते हैं। मेरी कामना है कि यह सामाजिक आदर्श सभी दैवी पूज-स्थलों तक फैले और श्रद्धालुओं को हवा-पानी का माहौल साफ करने की प्रेरणा दे। स्थानीय स्तर की ऐसी हजारों पहल भारत को हरा-भरा बना देंगी।

परियोजना सिरूतली– फिर लहलहाया एक जलाशय


यह एक ऐसी पहल थी जिसकी शुरुआत कोयंबतूर के निवासियों ने कोयंबतूर के लिए की। यह एक पर्यावरण सम्बन्धी परियोजना थी जिसका उद्देश्य था कोयंबतूर के प्राचीन गौरव और समृद्ध विरासत को पुनः जीवित करना। इस परियोजना में जनजीवन के हर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व था। इसे व्यावसायिक ढंग से संगठित किया गया। इस परियोजना में प्रमुख जोर बड़े पैमाने पर जल संचयन, वानिकी, जल-मल निकासी और परिशोधन तथा ठोस कचरे के प्रबन्धन पर था। बड़े पैमाने पर वर्षा जल संचयन के लिए उन्होंने कोयंबतूर के 9 में से 5 प्रमुख जलाशयों को मानक रूप दे दिया है। जलाशयों की गाद निकाल कर उनके तटबँधों पर 600 पौधे लगाए गए हैं और उनकी देखरेख की जा रही है। 2005 के अन्त तक उन्होंने 15 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखा है जिसमें बराबर प्रगति हो रही है। अध्ययन से पता चला है कि वहाँ शहर से रोजाना एक करोड़ लीटर जल-मल की निकासी होती है। जल-मल परिशोधन के लिए 1 करोड़ लीटर प्रतिदिन की क्षमता वाला संयन्त्र आजमाइशी परियोजना के तौर पर लगाया जा रहा है। इससे साफ किया गया पानी किसानों और उद्योगों को दिया जाएगा जिससे राजस्व मिलेगा। नगर के एक बड़े जलाशय से 2,600 घनमीटर कचरा और मलवा निकाला जा चुका है। इस उदाहरण का अनुसरण देश भर में किया जा सकता है।

पेरियार पुरा- गाँवों का कायाकल्प


हाल ही में मैं पेरियार मणिअम्मइ महिला प्रौद्योगिकी महाविद्यालय गया था जहाँ मैंने पुरा (ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी सुविधाएँ प्रदान करना) परिसर का उद्घाटन किया। इसके अन्तर्गत तमिलनाडु के तंजौर जिले में वल्लभ के पास के 65 से ज्यादा गाँवों का कायाकल्प करके उन्हें पुरा समूह का रूप दे दिया गया है। वहाँ एक मुद्रिका मार्ग बनाया गया है। प्रमुख गाँवों को जोड़ने वाली अन्य सड़कों का निर्माण किया गया है और उन पर बस परिवहन की व्यवस्था की गई है।

उन्होंने सभी गाँवों के लोगों को पीने और सिंचाई के लिए पानी देने की नई तरह की जल प्रबन्धन स्कीमें बनाई हैं। सभी 65 पेरियार पुरा गाँवों में सिंचाई के लिए बारिश से मिलने वाले पानी का ही इस्तेमाल किया जा रहा है। उस इलाके में बारिश कम होने के कारण लोगों को सिंचाई के लिए ही नहीं, बल्कि पीने के लिए भी पानी की किल्लत का सामना करना हड़ता था। इसे ध्यान में रखते हुए पेरियार पुरा जलाशयों और 5 चेक बाँधों का निर्माण कराया जाएगा। इनमें हर वर्ष 2.7 लाख घनमीटर वर्षा जल संग्रहित किया जा सकेगा। इस पानी से इलाके के कुओं के जल स्तर को बनाए रख कर 300 एकड़ जमीन की सिंचाई में सहायता मिलती है। इसी से लोगों को पीने का पानी भी सप्लाई किया जाता है। पेरियार पुरा योजना ने कंटूर भूमि, जल संरक्षण भूमि, जल संरक्षण के लिए प्राकृतिक जलधाराओं पर बाँध बनाने के जरिए सिंचाई का आदर्श उपस्थित किया है। इस कार्यक्रम से 5,000 से ज्यादा किसान लाभान्वित हुए हैं। पुरा परिसरों में जल प्रबन्धन के लिए यह एक उपयोगी उदाहरण सिद्ध होगा।

निष्कर्ष


अगले कुछ दशकों बाद हमारी धरती पर पानी की जबर्दस्त किल्लत महसूस की जाएगी। भारत में अभी से कार्योंन्मुख योजनाएँ बनाई जानी चाहिए जिनके जरिए स्थिति बिगड़ने से पहले ही समाधान की दिशा में काम किया जाए। हमारे लिए जरूरी होगा कि हमारा जल मिशन हो जिसमें नदियों को आपस में जोड़ने, जल संचयन, पानी के पुनर्प्रयोग और कुछ क्षेत्रों में सौरऊर्जा की सहायता से समुद्र के खारे पानी को पीने लायक बनाने की बातों को शामिल किया जाए।

मैं इस सम्मेलन के लिए निम्नलिखित बातों वाली एक सात-सूत्री कार्य-योजना का सुझाव दे रहा हूँ :

(क) ऐसी योजना की सिफारिश करें जिसमें देश के हर नागरिक के लिए 25 किलोमीटर पानी प्रतिवर्ष उपलब्ध कराने की व्यवस्था हो।
(ख) इन स्कीमों में 2020 तक हर वर्ष 40 करोड़ टन अनाज पैदा करने के लिए जरूरी सिंचाई के लिए पानी भी उपलब्ध कराने पर मुद्दा शामिल किया जाए। साथ ही, यह भी सुझाव है कि कृषि वैज्ञानिक इक्रीसैट जैसे बीजों वाली उन्नत फसलों का विकास करें जिनमें पानी की जरूरत कम से कम हो।
(ग) जो स्कीमें अपनाई जाएँ उनमें यह सुनिश्चित किया जाए कि कोई राज्य बाढ़ या सूखे का प्रकोप झेलने को मजबूर न हो।
(घ) जल संचयन हर इमारत के लिए अनिवार्य बना दिया जाए। इसके बारे में जरूरी कानूनी व्यवस्थाएँ की जाएँ।
(ङ) सभी इमारतों, खासतौर से होटलों और ज्यादा पानी की खपत वाले उद्योगों के लिए गन्दे पानी को साफ करने को अनिवार्य बनाने के लिए उपयुक्त कानूनी उपायों की सिफारिश करें।
(च) जल संसाधनों को एक दूसरे से जोड़ने के मिशन में पुनर्वास और पर्यावरण सुधार पर आने वाले खर्च को योजना का अंग माना जाए। साथ ही प्रभावित लोगों की सहायता के लिए जनहितैषी सुशासन व्यवस्था लाई जाए।
(छ) नदियों को जोड़ने की अनेक स्कीमें हैं। जल संसाधन मन्त्रालय को इन सबके लिए उत्तम पक्षों को समेकित करके एक उपयुक्त लागत प्रभावी परियोजना रिपोर्ट तैयार करना चाहिए। कुल मिलकर, नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजना को एक मिशन का रूप दिया जाना चाहिए।

(राष्ट्रीय जल सम्मेलन में 11 मई, 2005 को डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के उद्घाटन भाषण के सम्पादित अंश)

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