सम्पन्नता की बूँदों का हो चतुर इस्तेमाल

2 Jul 2018
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rainwater harvesting
rainwater harvesting

बारिश की सबसे अच्छी बात यह है कि यह सभी की जिन्दगी में सम्पन्नता लेकर आती है, लेकिन प्रबन्धन की कमी के चलते इसका प्रभाव अधिक समय तक नहीं टिकता। अध्ययन बताते हैं कि मानसूनी बारिश के दिन भले ही 100 हों, लेकिन 400-600 मिमी होने वाली बारिश का अधिकांश हिस्सा सिर्फ 100 घण्टे से कम में ही बरसता है। लिहाजा हर किसान, ग्राम पंचायत, शहर और कस्बे के वासियों और शहरी सोसायटियों के लोगों को सक्रियता और विवेक से सही प्रबन्धन करना चाहिए। जल संरक्षण के सही प्रबन्धों के बिना भारत साल-दर-साल अपने मानसून को बर्बाद करता जाएगा और हर साल पानी की कमी को लकेर रोता रहेगा।

बारिश के पानी का सबसे अधिक उपयोग करने और सबसे ज्यादा फायदा पाने वाले क्षेत्र कृषि का है। अगर धान के खेतों की मेड़ उठाकर उन्हें पुनर्भरण जलकुंड बना दिया जाय तो सिंचाई के लिये पानी बचेगा, इससे एक्वीफर्स रिचार्ज हो जाएँगे और करपतवार भी नष्ट होंगे। सभी ताल-तलैया, जोहड़, टंकियों और खड़ीन में से गाद हटा देने से उनकी पानी एकत्र करने की क्षमता कई गुना बढ़ जाएगी। बाँधों और बैराज को ठीक तरीके से संचालन करने से जल विभाग का काम आसान हो जाएगा।

मानसून में यहाँ पर्याप्त पानी एकत्र हो जाएगा और ज्यादा होने पर उसे छोड़ा जा सकेगा। बदकिस्मती से भारत में प्रति व्यक्ति जल संरक्षण की संख्या अन्य देशों की तुलना में बेहद कम हैं। इसे बढ़ाये जाने की जरूरत है। बारिश के पानी को संरक्षित करने के लिये बड़ी नहरें और नालियाँ इस्तेमाल में लाई जा सकती हैं। जल का सबसे अच्छा भण्डारण और संचयन तब होता है जब उसे प्राकृतिक या कृत्रिम तरीके से धरती के गर्भ में डाल दिया जाता है। मानसून की शुरूआत से पहले ही सभी लोगों और समुदायों को अपने पुनर्भरण स्रोतों को जाँचकर उनकी मरम्मत करा लेनी चाहिए जिससे बारिश के दिनों में अधिक-से-अधिक जल को धरती के गर्भ तक पहुँचाया जा सके।

पुनर्भरण संरचनाओं को तैयार करने के लिये खाली पड़े कुँए और ट्यूबवेल सबसे अच्छी संरचनाएँ होती है। ठीक इसी तरह से गाँवों के तालाबों को भी आसानी से और कम खर्च में पुनर्भरण तालाबों में बदला जा सकता है। इंटरनेशनल वॉटर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट के मुताबिक उत्तर प्रदेश के रामगंगा क्षेत्र में एक सही प्रकार का डिजाइन किया गया रिचार्ज तालाब बारिश के दिनों में रोजाना 5563 घन मीटर पानी का पुनर्भरण कर सकता है। ऐसे में यह अन्दाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि अगर गाँवों के सभी तालाबों को आधुनिक पुनर्भरण संरचनाओं से लैस कर दिया जाएगा तो इससे जल की आपूर्ति होगी और बाढ़ पर भी नियंत्रण रखा जा सकेगा।

शहरों और कस्बों में रहने वाले लोगों को ध्यान रखना चाहिए कि छत से बहने वाला सारा पानी कहीं एकत्र किया जा सके। स्कूल, मॉल, रेलवे लाइन, सड़कों और जमीन की सतह से बहने वाले बारिश के पानी को सही माध्यम से जलीय स्रोतों तक लाना होगा। इसके लिये युवाओं को सबसे आगे आना चाहिए। जल बचाने, एकत्र करने और जलीय स्रोतों से प्रदूषण कम करने के लिये जल संरक्षण ही एक मात्र विकल्प है। संरक्षित पानी को विवेकपूर्ण रूप से बूँद-बूँद करके खेतों और शहरों की लीक-प्रूफ पेयजल प्रणाली में इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इसके लिये देश के सेलिब्रिटी लोगों को आगे आना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी हर साल मानसून से पहले एक मन की बात प्रोग्राम जल संरक्षण के लिये रखना चाहिए।

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