समुद्र में तेल का जानलेवा खेल

12 Jul 2010
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इंसान की बढ़ती महत्वाकांक्षा समुद्र की गतिविधियों में ऐसा गहरा परिवर्तन ला रही है जिसकी भरपाई शायद कभी न हो पाए। इससे समुद्री खजाने का दोहन करने वाले मनुष्य पर भी इसका गंभीर असर पड़ना तय है। तेल के रिसाव, तेल टैकों के टूटने व उनकी सफाई से समुद्र का पर्यावरणीय पारिस्थितिक तंत्र बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक समुद्र को पृथ्वी का फेफड़ा माना जा सकता है क्योंकि हम सांस के जरिए जितनी ऑक्सीजन लेते हैं उसकी आधी ऑक्सीजन समुद्र हमें देता है। मनुष्य द्वारा छोड़ी कुल कार्बन डाइ ऑक्साइड का 30 फीसद भाग समुद्र अवशोषित करता है लेकिन बदलती समुद्री गतिविधियां और समुद्र में होने वाले तेल रिसाव के लिए जिम्मेदार लोगों की गलती के कारण समुद्री जीवों के अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगा है।
हाल ही की घटना ले लें तो अमेरिका के इतिहास में शायद सबसे भयानक तेल रिसाव 20 अप्रैल को मेक्सिको की खाड़ी में बीपी के तेल कुएं में आग लगने से हुआ। इसमें 11 लोग मारे गए। तेल इतनी तेजी से फैला कि इसने लुइजिआना के अलावा अलबामा और मिसीसिपी प्रांत को भी अपनी गिरफ्त में ले लिया। अमेरिकी सरकार के वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 30,000 से 65,000 बैरल तेल प्रतिदिन मेक्सिको की खाड़ी में बहा और अभी भी भारी मात्रा में तेल रिसाव हो रहा है। बहुत कोशिशें कर ली गइं, कई तरीके अपनाए गए लेकिन रिसाव नही रोका जा सका। आंकड़े बताते हैं कि 763 चिड़ियां, 353 कछुए और 41 समुद्री जीवों ने तेल रिसाव के चलते दम तोड़ दिया। पेलिकन्स के पंखों पर तेल की काली परत चढ़ गई, समुद्री जीवों को तेल से हाइपोथर्मिया हो गया और शरीर का तापमान काफी कम होने से वे मर गए। पक्षियों व जीव जंतुओं के फेफड़े और लिवर भी खराब हो गए, इनकी आंखों की रौशनी चली गई। समुद्र के ठंडे पानी से बचाने और तैरने में मदद करने वाले सी ऊटर्स के एअर बबल्स के तेल के प्रभाव में आने से सैकड़ों सी ऊटर्स मर गए। किलर व्हेल के शरीर में पाया जाने वाला सांस लेने में मददगार ब्लोहोल में तेल भर जाने से और तेल में डूबी मछलियां खाने से किलर व्हेल मर गइं। समुद्र चीत्कार कर रहा है, वनस्पतियां, जीवजंतु और समुद्र का पानी, सभी तो इंसानी लालच का शिकार हो गए।
आखिरकार तेल कंपनी ब्रिटिश पेट्रालियम दबाव के चलते 20 बिलियन डॉलर मुआवजा देने को तैयार हो गई, लेकिन उसका घिनौना चेहरा तब सामने आया जब पशु कल्याण समूहों ने उस पर यह आरोप लगाकर मुकदमा लगा दिया कि बीपी ने दुर्लभ प्रजाति के समद्री कछुए जिंदा जला दिए। दुनिया में पाई जाने वाली सात समुद्री कछुओं की प्रजातियों में से पांच प्रजातियां लेदरबैक, हॉक्सबिल, ग्रीन, लॉगरहैड और कैम्पस रिडले मेक्सिको की खाड़ी में पाई जाती हैं। इंसानी विकास की दुहाई देते यह समुद्री धरोहर अपनी जान गंवा बैठी। इनकी अगली पीढ़ी को बचाने की कोशिश में इनके 70,000 अंडे दूसरी जगह ले जाने की कोशिश शुरू गई ताकि नई जिंदगियां जहरीले पानी से दूर स्वस्थ जीवन जी सकें।


यह कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं। सबसे पहला तेल रिसाव द्वितीय विश्व युद्ध के समय (1939-45) के जनवरी से जून के बीच 1942 में हुआ। इससे 5,90,000 टन तेल समुद्र में बह गया। पहला प्रमुख व्यापारिक तेल रिसाव 18 मार्च, 1967 में हुआ और 8,30,000 बैरल (119,000 टन) कुवैती तेल समुद्र में बहा। तीन जून, 1979 में गल्फ ऑफ मेक्सिको के बे ऑफ कैम्पस में सिडको 135-एफ प्लेटफॉर्म के कुएं से रिसाव हुआ। इस हादसे के बाद हर दिन 30,000 बैरल तेल का रिसाव होता था। सबसे भयंकर तेल रिसाव अमेरिका के अलास्का में 23 मार्च 1989 में प्रिंस विलियम साउंड टेंकर से हुआ था। इसका असर छह माह तक रहा। इस 1300 मील में फैले तेल रिसाव को साफ करने में चार गमर्यिों का मौसम बीत गया और इसके लिए 10000 कर्मचारी, 1000 बोट, 100 हवाईजहाज, नौसेना, थलसेना और वायुसेना को जुटना पड़ा। इसके लिए कंपनी को 2.1 बिलियन डॉलर खर्च करना पड़ा। इस दौरान यहां 2,50,000 पक्षी, 10000 ओस्टर शेलफिश, 2800 सी ऊटर और 15 व्हेल मछली मरी मिलीं। लेकिन यह रिसाव 25 जनवरी, 1991 में खाड़ी युद्ध के दौरान इराक में सदूदाम हुसैन द्वारा समुद्र में छोड़े 1.5 मिलियन टन तेल से कम था। यह तेल इसलिए समुद्र में डाल दिया था कि कहीं अमेरिका के हाथ न लग जाए। अमेरिका द्वारा इराकी तेल टेंकरों पर की गई बमबारी से 110 लाख बैरल तेल समुद्री सतह पर फैला। अक्टूबर 1994 में आर्कटिक के कोमी क्षेत्र में 286,000 टन, 1983 में पर्शिया की खाड़ी में नोरोज तेल क्षेत्र में 6,000,000 टन, 1983 में ही दक्षिण अफ्रीका के कैस्टिलो द बेल्युअर में 2,50,000 टन व 1988 में मोनोंगाहिला नदी में भंडारण टेंक से 3,800,000 टन तेल रिसाव हुआ। गुजरात में आए भूकम्प के बाद कांडला बंदरगाह पर 2000 मीट्रिक टन हानिकारक रसायन इकोनाइटिल एसीएन फैल जाने से क्षेत्रवासियों का जीवन संकट में पड़ गया था। मुंबई हाई से लगभग 1600 मीट्रिक टन तेल का रिसाव हुआ। बंगाल की खाड़ी में क्षतिग्रस्त टैंकर से फैले तेल ने निकोबार द्वीप समूह में तबाही मचाई, जिससे यहां रहने वाली जनजातियों और समुद्री जीवन को भारी हानि हुई। रूस में बेलाय नदी के किनारे तेल पाइप लाइन से 150 मीट्रिक टन के रिसाव ने यूराल पर्वत पर बसे ग्रामवासियों को पानी संकट से रूबरू करा दिया। चिंता की बात तो है। मेक्सिको के तेल रिसाव पर दुनियाभर के नेता चिंतित हैं। कठोर कानून बनाने की बात हो रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का कहना है कि हम अपने इतिहास की सबसे बड़ी पर्यावरणीय त्रासदी का सामना कर रहे हैं। ग्यारह सितंबर की घटना ने जिस तरह सुरक्षा और खतरों के बारे में हमारी सोच को बदल दिया उसी तरह यह घटना पर्यावरण और ऊर्जा के बारे में आने वाले वषोर्ं में हमारी सोच को बदलने वाली है। नियमकों ने कई बार सुरक्षित उपाय अपनाने के तेल कंपनियों के वादे पर भरोसा करके ही कई बार तेल के कुँए खोदने की अनुमति दे दी।

वैसे तो वर्ष 1990 में अमेरिकी कांग्रेस ने तेल रिसाव संबंधी आपातकालीन कानून बनाया था जिसके अनुसार तेल टेंकरों के मालिकों को पहले से ही योजना बनाकर तैयार रखनी होगी कि यदि रिसाव होता है तो उन्हें क्या करना है।
अमेरिका के सभी जहाजों में 2015 से डबल हल होंगे। कानून में यह भी लिखा है कि तेल रिसाव होने पर तेल टेंकर के मालिक को 1200 डॉलर प्रति टन के हिसाब से भुगतान करना होगा। साथ ही तेल रिसाव की सफाई का जिम्मा उठाना होगा। तटरक्षक बलों को यह जानना जरूरी होगा कि बिना किसी रिसाव के तेल टेंकर काम कर सकें। नियम तो बनते हैं पर उनपर कितना अमल किया जाता है यह तो सबसे सामने आ ही गया। विशेषज्ञों का भी मानना है कि इस तेल रिसाव को रोकने का कोई तरीका नहीं ढूंढा जा सका तो पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और राजनीति पर इसके गंभीर परिणाम होंगे। वैसे भी अमेरिका में तूफानों का मौसम भी ज्यादा दूर नहीं है और उसके पहले ये रसाव बंद नहीं हुआ तो डर है कि और तेल तटवर्ती इलाकों तक फैल जाएगा। इसका पर्यावरण, समुद्री जीव जंतुओं और लोगों की जिंदगी पर काफी गंभीर असर हो सकता है। ‘नेशनल सेंटर ऑफ एटमोस्फेरिक रिसर्च’ के शोधकर्ताओं के अनुसार तेल 'गल्फ स्ट्रीम’ नाम की समुद्री तरंग के सहारे खाड़ी से निकलकर खुले अटलांटिक महासागर में फैल सकता है। ये कैसा विकास जिसमें लाभ पाने की ललक में इंसान भूल जाता है कि कितनी जिंदगियां दांव पर लगी हैं। इंसानी महत्वाकांक्षा के आगे सारे नियम धरे रह जाते हैं। विकास की कहानी गढ़ता मनुष्य आगे बढ़ता जाता है और पीछे छोड़ जाता है पर्यावरण की बर्बादी के निशान। क्या पर्यावरण को नुकसान पहुंचाकर, समुद्री विरासतों की जान लेकर और चंद मुआवजा देकर बिगड़ते पर्यावरण और समुद्री जीवन की कीमत चुकाई जा सकती है। इंसानी जरूरतें इस हद तक बढ़ गइं कि इसे पूरा करने के पीछे हम उस बर्बादी को दावत दे रहे हैं जिसकी भरपाई करना शायद नामुमकिन होगा। खतरा बरकरार है। सोचना ही होगा क्या यही है इंसान के विकास की सीढ़ी।

लेखिका 'डेली न्यूज एक्टिविस्ट 'में डिप्टी चीफ सब एडिटर हैं
 
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