समुद्री सीमा निर्धारित हो तो मछुआरों की जिन्दगी बचे

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दोनों देशों के बीच सर क्रीक वाला सीमा विवाद भले ही ना सुलझे, लेकिन मछुआरों को इस जिल्ल्त से छुटकारा दिलाना कठिन नहीं है। एमआरडीसी यानि मेरीटाईम रिस्क रिडक्शन सेंटर की स्थापना कर इस प्रक्रिया को सरल किया जा सकता है। यदि दूसरे देश का कोई व्यक्ति किसी आपत्तिजनक वस्तुओं जैसे- हथियार, संचार उपकरण या अन्य खुफ़िया यंत्रों के बगैर मिलता है तो उसे तत्काल रिहा किया जाये। पकड़े गए लोगों की सूचना 24 घंटे में ही दूसरे देश को देना, दोनों तरफ माकूल कानूनी सहायता मुहैया करवाकर इस तनाव को दूर किया जा सकता है। पिछले महीने ही गुजरात का एक मछुआरा दरिया में तो गया था मछली पकड़ने, लेकिन लौटा तो उसके शरीर पर गोलियाँ छिदी हुई थीं। उसे पाकिस्तान की समुद्री पुलिस ने गोलियाँ मारी थीं। ‘‘इब्राहीम हैदरी (कराची) का हनीफ जब पकड़ा गया था तो महज 16 साल का था, आज जब वह 23 साल बाद घर लौटा तो पीढ़ियाँ बदल गईं, उसकी भी उमर ढल गई। इसी गाँव का हैदर अपने घर तो लौट आया, लेकिन वह अपने पिंड की जुबान ‘सिंधी’ लगभग भूल चुका है, उसकी जगह वह हिन्दी या गुजराती बोलता है। उसके अपने साथ के कई लोगों का इन्तकाल हो गया और उसके आसपास अब नाती-पोते घूम रहे हैं जो पूछते हैं कि यह इंसान कौन है।’’

उफा में हुई भारत-पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों के बीच की वार्ता के बाद दोनों देशों की जेलों में बंद मछुआरों की हो रही रिहाई के साथ ही ऐसी कई कहानियाँ सामने आ रही हैं। दोनों तरफ लगभग एक से किस्से हैं, दर्द हैं- गलती से नाव उस तरफ चली गई, उन्हें घुसपैठिया या जासूस बता दिया गया, सजा पूरी होने के बाद भी रिहाई नहीं, जेल का नारकीय जीवन, साथ के कैदियों द्वारा शक से देखना, अधूरा पेट भोजन, मछली पकड़ने से तौबा....।

पानी पर लकीरें खींचना नामुमकिन है, लेकिन कुछ लोग चाहते हैं कि हवा, पानी, भावनाएँ सब कुछ बाँट दिया जाये। एक दूसरे देश के मछुआरों को पकड़ कर वाहवाही लूटने का यह सिलसिला ना जाने कैसे सन् 1987 में शुरू हुआ और तब से तुमने मेरे इतने पकड़े तो मैं भी तुम्हारे उससे ज्यादा पकडूंगा की तर्ज पर समुद्र में इंसानों का शिकार होने लगा।

भारत और पाकिस्तान में साझा अरब सागर के किनारे रहने वाले कोई 70 लाख परिवार सदियों से समुद्र से निकलने वाली मछलियों से अपना पेट पालते आये हैं। जैसे कि मछली को पता नहीं कि वह किस मुल्क की सीमा में घुस रही है, वैसे ही भारत और पाकिस्तान की सरकारें भी तय नहीं कर पा रही हैं कि आखिर समुद्र के असीम जल पर कैसे सीमा खींची जाये।

कच्छ के रन के पास सर क्रकी विवाद सुलझने का नाम नहीं ले रहा है। असल में वहाँ पानी से हुए कटाव की ज़मीन को नापना लगभग असम्भव है क्योंकि पानी से आये रोज ज़मीन कट रही है और वहाँ का भूगोल बदल रहा है। दोनों मुल्कों के बीच की कथित सीमा कोई 60 मील यानि लगभग 100 किलोमीटर में विस्तारित है।

कई बार तूफान आ जाते हैं तो कई बार मछुआरों को अन्दाज नहीं रहता कि वे किस दिशा में जा रहे हैं, परिणामस्वरूप वे एक दूसरे के सीमाई बलों द्वारा पकड़े जाते हैं। कई बार तो इनकी मौत भी हो जाती है व घर तक उसकी खबर नहीं पहुँचती।

जब से शहरी बन्दरगाहों पर जहाज़ों की आवाजाही बढ़ी है तब से गोदी के कई-कई किलोमीटर तक तेल रिसने, शहरी सीवर डालने व अन्य प्रदूषणों के कारण समुद्री जीवों का जीवन खतरे में पड़ गया है। अब मछुआरों को मछली पकड़ने के लिये बस्तियों, आबादियों और बन्दरगाहों से काफी दूर निकलना पड़ता है।

जो खुले समुद्र में आये तो वहाँ सीमाओं को तलाशना लगभग असम्भव होता है और वहीं दोनों देशों के बीच के कटु सम्बन्ध, शक और साजिशों की सम्भावनाओं के शिकार मछुआरे हो जाते हैं। जब उन्हें पकड़ा जाता है तो सबसे पहले सीमा की पहरेदारी करने वाला तटरक्षक बल अपने तरीके से पूछताछ व जामा तलाशी करता है। चूँकि इस तरह पकड़ लिये गए लोगों को वापिस भेजना सरल नहीं है, सो इन्हें स्थानीय पुलिस को सौंप दिया जाता है।

इन गरीब मछुआरों के पास पैसा-कौड़ी तो होता नहीं, सो ये ‘गुड वर्क’ के निवाले बन जाते हैं। घुसपैठिए, जासूस, खबरी जैसे मुकदमें उन पर होते हैं। वे दूसरे तरफ की बोली-भाषा भी नहीं जानते, अदालत में क्या हो रहा है, उससे बेखबर होते हैं। कई बार इसी का फायदा उठा कर प्रोसिक्यूशन उनसे जज के सामने हाँ कहलवा देता है और वे अनजाने में ही देशद्रोह जैसे अरोप में पदोश बन जाते हैं।

कई-कई सालों बाद उनके खत अपनों के पास पहुँचते हैं। फिर लिखा-पढ़ी का दौर चलता है। सालों-दशकों बीत जाते हैं और जब दोनों देशों की सरकारें एक-दूसरे के प्रति कुछ सदेच्छा दिखाना चाहती हैं तो कुछ मछुआरों को रिही कर दिया जाता है। पदों महीने पहले रिहा हुए पाकिस्तान के मछुआरों के एक समूह में एक आठ साल का बच्चा अपने बाप के साथ रिहा नहीं हो पाया क्योंकि उसके कागज पूरे नहीं थे।

वह बच्चा आज भी जामनगर की बच्चा जेल में है। ऐसे ही हाल ही में पाकिस्तान द्वारा रिहा किये गए 163 भारतीय मछुआरों के दल में एक दस साल का बच्चा भी है जिसने सौगंध खा ली कि वह भूखा मर जाएगा, लेकिन मछली पकड़ने को अपना व्यवसाय नहीं बनाएगा।

यहाँ जानना जरूरी है कि दोनों देशों के बीच सर क्रीक वाला सीमा विवाद भले ही ना सुलझे, लेकिन मछुआरों को इस जिल्ल्त से छुटकारा दिलाना कठिन नहीं है। एमआरडीसी यानि मेरीटाईम रिस्क रिडक्शन सेंटर की स्थापना कर इस प्रक्रिया को सरल किया जा सकता है। यदि दूसरे देश का कोई व्यक्ति किसी आपत्तिजनक वस्तुओं जैसे- हथियार, संचार उपकरण या अन्य खुफ़िया यंत्रों के बगैर मिलता है तो उसे तत्काल रिहा किया जाये।

पकड़े गए लोगों की सूचना 24 घंटे में ही दूसरे देश को देना, दोनों तरफ माकूल कानूनी सहायता मुहैया करवाकर इस तनाव को दूर किया जा सकता है। वैसे संयुक्त राष्ट्र के समुद्री सीमाई विवाद के कानूनों यूएनसीएलओ में वे सभी प्रावधान मौजूद हैं जिनसे मछुआरों के जीवन को नारकीय होने से बचाया जा सकता है। जरूरत तो बस उनके दिल से पालन करने की है।

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