संकट में है धन की देवी की सवारी उल्लू

7 Nov 2013
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चंबल सेंचुरी क्षेत्र में यूरेशियन आउल अथवा ग्रेट होंड आउल तथा ब्राउन फिश आउल संरक्षित घोषित हैं। इसके अलावा भी कुछ ऐसी प्रजातियाँ है जिन्हें पकड़ने पर प्रतिबंध है। चंबल सेंचुरी क्षेत्र में इनकी खासी संख्या है क्योंकि इस प्रजाति के उल्लू चंबल किनारे स्थित करारों में घोंसला बनाकर रहते हैं। इस प्रकार की करारों की सेंचुरी क्षेत्र में कमी नहीं है। अभी तक इस बात का कोई अध्ययन भी नहीं किया गया कि आखिर चंबल में उल्लुओं की वास्तविक तादत क्या है, अब इन उल्लुओं की बरामदगी के बाद इनकी गणना का काम शुरू करने बात कही जा रही हैं। धन की देवी लक्ष्मी की सवारी उल्लू पर संकट गहराता जा रहा है। अधिक संपन्न होने के चक्कर मे लोग दुर्लभ प्रजाति के उल्लुओं की बलि चढ़ाने मे जुट गए हैं यह बलि सिर्फ दीपावली की रात को ही पूजा अर्चना के दौरान दी जाती है। माना ऐसा जाता है कि उल्लू की बलि देने वाले को बेहिसाब धन मिलता है इसी कारण उल्लुओं का कत्लेआम जारी है। दीपावली सिर पर है। तंत्र साधनाओं का जोर बढ़ रहा है। दीपावली के मौके पर होने वाली तंत्र साधनाओं में उल्लूओं की बलि दी जाती है। उल्लूओं की इस बलि प्रथा के कारण चंबल के उल्लूओं पर संकट के बादल गहराने लगे हैं। दीपावली के बहुत पहले से तस्कर उल्लुओं की तलाश में चंबल का चक्कर लगा रहे हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 635 वर्ग किलो मीटर दायरे में फैली केन्द्र सरकार की महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी परियोजना उल्लुओं के लिए कब्रिस्तान साबित हुई है चंबल सेंचुरी क्षेत्र में कछुओं एवं घड़ियालों की तस्करी के बाद अब तस्करों की नजर माता लक्ष्मी की सवारी माने जाने वाले संरक्षित उल्लुओं पर पड़ चुकी है। तस्करों की नजर पड़ने से घबराए वन्य जीव विभाग के अधिकारियों के होश उड़े हुए हैं।

जानकार मानते हैं कि उल्लुओं की दीपावली के अवसर पर पूजन करने के बाद उसकी बलि दे दी जाती है। इसी लिहाज से चंबल घाटी से उल्लुओं की तस्करी का नया काम प्रचलन में आया हैं। आमतौर पर आर्थिक रूप से सुदृढ़ लोग ही पूजा में उल्लुओं का प्रयोग करते हैं क्योंकि इस प्रजाति के उल्लू आसानी से सुलभ न होने के कारण इसकी कीमत लाखों रुपए होती है, जानकारों की मानें तो दिल्ली एवं मुंबई जैसे महानगरों में बैठे बड़े-बड़े कारोबारी इन तस्करों के जरिए संरक्षित जीव की तस्करी में जुट गए हैं इतना ही नहीं तंत्रविद्या से जुडे लोगों की माने तो इस पक्षी के जरिए तमाम बड़े-बड़े काम कराने का माद्दा तांत्रिक प्रकिया से जुड़े लोग करने में सक्षम रहें हैं, अगर बंगाल का ही हम जिक्र करें तो वहां पर बिना उल्लू के किसी भी तंत्र क्रिया नहीं की जाती है, इसके अलावा काला जादू में भी उल्लुओं का व्यापक प्रयोग किया जाता है। चंबल सेंचुरी क्षेत्र के डिप्टी वन रेंजर सूर्यभान मिश्रा बताते हैं कि तस्करों की निशानदेही के लिए अपने गुप्तचरों को सक्रिय कर दिया है और अब इन गुप्तचरों के जरिए उन तस्करों पर निगरानी तो रखी ही जाएगी बल्कि उनको पकड़ने की भी कवायदें तेज कर दी गईं हैं।

संकट में उल्लूचंबल सेंचुरी क्षेत्र में यूरेशियन आउल अथवा ग्रेट होंड आउल तथा ब्राउन फिश आउल संरक्षित घोषित हैं। इसके अलावा भी कुछ ऐसी प्रजातियाँ है जिन्हें पकड़ने पर प्रतिबंध है। चंबल सेंचुरी क्षेत्र में इनकी खासी संख्या है क्योंकि इस प्रजाति के उल्लू चंबल किनारे स्थित करारों में घोंसला बनाकर रहते हैं। इस प्रकार की करारों की सेंचुरी क्षेत्र में कमी नहीं है। अभी तक इस बात का कोई अध्ययन भी नहीं किया गया कि आखिर चंबल में उल्लुओं की वास्तविक तादत क्या है, अब इन उल्लुओं की बरामदगी के बाद इनकी गणना का काम शुरू करने बात कही जा रही हैं। अभी तक चंबल से मछलियों एवं कछुओं की तस्करी के अलावा किसी और जीव की तस्करी की कोई खबर नहीं हुआ करती थी, लेकिन इस तस्करी ने वन्य जीव विभाग को अब सोचने पर मजबूर कर दिया है कि चंबल घाटी में किस तरह के तस्कर सक्रिय हो चले हैं यहां यह कहने में कोई संकोच नहीं हैं कि बिना स्थानीय मददगार के कोई बाहरी सक्रिय हो ही नहीं सकता, कहीं ना कहीं कोई स्थानीय मददगार है तभी तो चंबल से उल्लुओं की तस्करी शुरू की गई है।

उल्लुओं के बारे में जानकारी रखने वाले बताते हैं कि आसानी से सुलभ न होने के कारण अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में इसकी कीमत पचास हजार रुपए से लेकर कई-कई लाख रुपए तक पहुंच जाती है। वन्य जीवों के संरक्षण के लिए काम कर रही पर्यावरणीय संस्था सोसायटी फॉर कंजरवेशन आफ नेचर के सचिव डॉ.राजीव चौहान बताते हैं कि चंबल घाटी से लगातार उल्लुओं की तस्करी का मामले उजागर हो रहे है, इसको लेकर हम सभी सर्तक हैं, वे बताते हैं कि तंत्रविद्या के अलावा इनका असल इस्तेमाल आयुर्वेदिक पद्धति में भी किया जाना बताया जाता है। यह वाइल्ड लाइफ अधिनियम के अंतर्गत प्रतिबंधित जीव है और इसका शिकार करना अथवा पकड़ना कानूनन अपराध है।

संकट में उल्लूइटावा वाइल्ड लाइफ विभाग के वनक्षेत्राधिकारी गुरमीत सिंह का कहना है कि उल्लू भारतीय वन्य जीव अधिनियम,1972 की अनूसूची-1 के तहत संरक्षित है, ये विलुप्त प्राय जीवों की श्रेणी में दर्ज है, इनके शिकार या तस्करी करने पर कम से कम 3 वर्ष या उससे अधिक सजा का प्रावधान है, चंबल सेंचुरी क्षेत्र में यूरेशियन आउल अथवा ग्रेट होंड आउल तथा ब्राउन फिश आउल प्रतिबंधित हैं,इसके अलावा भी कुछ ऐसी प्रजातियाँ हैं जिन पर प्रतिबंध है, सेंचुरी क्षेत्र में इनकी खासी संख्या हैं क्योंकि इस प्रजाति के उल्लू चंबल के किनारे करारों में घोसला बनाकर रहते हैं इस प्रकार के करारों की सेचुंरी क्षेत्र में कमी नहीं हैं अभी तक चंबल में उल्लुओं को लेकर कोई अध्ययन नहीं किया गया है कि चंबल में उल्लुओं की वास्तविक स्थिति है क्या,अब इन उल्लुओ की बरामदगी के बाद उल्लुओ की गणना की बात कही जा रही हैं।

तांत्रिक बताते हैं कि उल्लुओं की पूजा सिद्ध करने के लिए उसे 45 दिन पहले से मदिरा एवं मांस खिलाया जाता है। प्रायः उल्लुओं में यह प्रवृत्ति पाई जाती है कि तोता की भांति इंसानी भाषा में बात कर सकता है। दिन में सुनी हुई बातों को रात में वह बोलता है। तांत्रिकों के मुताबिक उल्लू की पूजा के लिहाज से इसका पैर धन अथवा गोलक में रखने से समृद्धि आती है। इसका कलेजा वशीभूत करने के काम में प्रयुक्त होता है। आंखों के बारे में माना जाता है कि यह सम्मोहित करने में सक्षम होता है तथा इसके पंखों को भोजपत्र के ऊपर यंत्र बनाकर सिद्ध करने के काम में आता है तथा चोंच इंसान की मारण क्रिया में काम आती है। इसके बारे में यह भी भ्रांति है कि यदि इसे हम किसी प्रकार का कंकड़ मारें और यह अपनी चोंच में दबाकर उड़ जाए और किसी नदी अथवा तालाब में डाल दे तो जिस प्रकार से वह कंकड़ घुलेगा उसी प्रकार कंकड़ मारने वाले का शरीर भी घुलने लगता है।

संकट में उल्लूउल्लुओं के बारे में यहां तक चर्चा है कि रात में कम से कम किसी के नाम का प्रयोग किया जाना चाहिए क्योंकि यदि यह उस नाम को रटने लगे तो नाम वाले व्यक्ति के जीवन पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उल्लू द्वारा किसी का नाम लिया जाना अशुभ माना जाता है। आमतौर पर उल्लू को मूर्ख अथवा बेवकूफ जीव माना जाता है परंतु विशेषज्ञ इससे इत्तेफ़ाक नहीं रखता है बल्कि वह उसे काफी चतुर मानते हैं। उल्लू में पाई जाने वाली आभासी ताकत किसी अन्य जीव की अपेक्षाकृत सर्वाधिक पाई जाती है और इसीलिए रात में इसका शिकार करने का कोई सानी नहीं होता है। चंबल से जुड़े इटावा रेलवे स्टेशन पर राजकीय रेलवे पुलिस ने एक उल्लू को बिजनौर ले जाते समय दो लोगो को पकड़ने का दावा किया गया है। इनमे एक का नाम ईश्वर सिंह और दूसरे का नाम रामपाल सिंह है। पहले इन दोनों ने झोले मे रखे उल्लू को मुर्गा बताकर पुलिस जवानों को गुमराह करने की कोशिश की लेकिन कड़ी पूछताछ मे दोनों ने असलियत बता दी कि इस उल्लू को कन्नौज से पकड़कर ले जा रहे थे। तस्कर रेलवे के जरिए भी इन उल्लुओं को बड़े महानगरों में ले जाने में लगे हुए हैं। इसलिये रेलवे अधिकारी खास निगाह रखे हुए हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में चंबल के उल्लुओं की कई दुर्लभ प्रजातियों की ज़बरदस्त माँग है। यही वजह है कि चंबल के बीहड़ी इलाकों में उल्लू तस्करों का निशाना बन रहे हैं और इन्हें तस्करी कर दिल्ली, मुंबई से लेकर जापान, अरब और यूरोपीय देशों में भेजा जा रहा है।

पूरी दुनिया में उल्लू की लगभग 225 प्रजातियाँ हैं। हालांकि कई संस्कृतियों के लोकाचार में उल्लू को अशुभ माना जाता है, लेकिन साथ ही संपन्नता और बुद्धि का प्रतीक भी। यूनानी मान्यताओं में उल्लू का संबंध कला और कौशल की देवी एथेना से माना गया है और जापान में भी इसे देवताओं का संदेशवाहक समझा जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार धन की देवी लक्ष्मी उल्लू पर विराजती हैं और भारत में यही मान्यता इस पक्षी की जान की दुश्मन बन गई है। यही वजह है कि दीपावली के ठीक पहले के कुछ महीनों में उल्लू की तस्करी काफी बढ़ जाती है। हर साल भारत के विभिन्न हिस्सों में दीपावली की पूर्व संध्या पर उल्लू की बलि चढ़ाने के सैकड़ों मामले सामने आते हैं।

संकट में उल्लू

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