संकट से निपटने को जल संरक्षण प्रबंधन अनिवार्य

विश्व बैंक भारत सरकार द्वारा मध्य हिमालय जलागम परियोजना, राज्यों के भू-संरक्षण विभाग इस क्षेत्र में कारगर उपाय लेकर हमारे सामने हैं, परंतु जनसहयोग के बिना इन परियोजनाओं के आशातीत परिणाम ले पाना कठिन है…

भारतीय संस्कृति में जल को अमृत तथा जीवन कहा गया है। जल के बिना जीवन की संभावना भी नहीं है। प्रत्यक्ष रूप से तो जल की मानवीय आवश्यकता सीमित है, परंतु परोक्ष आवश्यकताओं पर नजर डालें, तो दैनिक जीवन की आवश्यकताएं जैसे अन्न, फल, सब्जी, दूध से लेकर हमारे पहरावे, आवास तक सब जल से जुड़े हैं। जल का जरा भी संतुलन बिगड़ जाए, तो जीवन यापन कष्टप्रद होने में देर नहीं। प्रकृति का जो असंतुलन पिछले दो-तीन दशकों से देखा जा रहा है, इसके परिणामस्वरूप विश्व भर के वैज्ञानिक जल संसाधनों व जल संरक्षण की ओर जनमानस को सचेत व सजग कर रहे हैं। नदियां, नाले, झरने, कुएं, बावडि़यां, बोर वेल प्रमुख जल संसाधन हैं।

इन संसाधनों का स्रोत हिमपात और वर्षा है। बढ़ते वैश्विक तापमान के फलस्वरूप अतिवृष्टि, अनावृष्टि, अल्पवृष्टि और असामयिक वृष्टि हम प्रतिवर्ष देख रहे हैं, जिसका प्रभाव हमारे जल संसाधनों पर पड़ता दिखाई दे रहा है। कुओं व बावडि़यों का मिटता अस्तित्व, नदी-नालों का घटता पानी, भू-गर्भ जल का गिरता स्तर चिंता की परिधि से निकलकर खतरे की घंटी बनता जा रहा है। विश्व भर में सीमेंट के अंधाधुंध प्रयोग ने धरातल के सहज अवशोषण क्षेत्र को घटाया है तथा जल बहाव, भूमि कटाव व बाढ़ों में वृद्धि की है। ऐसी स्थिति में जल संरक्षण का दायित्व मात्र वैज्ञानिकों व सरकारों तक सीमित न रहकर प्रत्येक उपभोक्ता के कंधों पर आ जाता है। इसी दायित्व के निर्वहन के लिए हमारे पास दो विकल्प सामने आते हैं। वैयक्तिक प्रयासों के अंतर्गत हर परिवार नहाने-धोने तथा अन्य रसोई उपयोग के उपरांत बेकार जाने वाले जल को पुनः उपयोगी बनाने का उपाय कर उसे उपयोग में लाए।

पारिवारिक स्तर पर वर्षा जल को संग्रहित कर उसका उपयोग करे। ये दोनों ही प्रयास ग्रामीण क्षेत्रों में तो सरलता से अपनाए जा सकते हैं, परंतु शहरी क्षेत्रों में वेस्ट वाटर मैनेजमेंट की बड़ी परियोजनाएं बनाकर ही पानी को रिसाइकिल किया जा सकता है। भू-गर्भ अधिकाधिक जल अवशोषित होकर जाए, इसके लिए मैदानी भागों में नियोजित ढंग से बडे़-बड़े पोखर बनाकर तथा पहाड़ी क्षेत्रों में नालों-खड्डों में मिट्टी, पत्थर, आरसीसी के बड़े-छोटे डैम लगाकर जल बहाव रोक, भू-संरक्षण बचाव व जल भंडारण और धरातल जल शोषण क्षेत्र बढ़ाया जा सकता है। विश्व बैंक भारत सरकार द्वारा मध्य हिमालय जलागम परियोजना, राज्यों के भू-संरक्षण विभाग इस क्षेत्र में कारगर उपाय लेकर हमारे सामने हैं, परंतु जनसहयोग के बिना इन परियोजनाओं के आशातीत परिणाम ले पाना कठिन है। वृक्षारोपण इस संपूर्ण जल चक्र को बल देने वाला कारक है। वन विभाग को रोपित पौधों के कागजी आंकड़ों की सीमा से ऊपर उठकर एक वर्ष बाद सरवाइवल रेट अवश्य आंकना चाहिए। जल के प्रति चेतना जागृत न हुई, तो अवश्य ही अगले विश्व युद्ध का कारण जल ही होगा।

(कैलाश चंद भार्गव,लेखक, डुमैहर, अर्की, जिला सोलन से पुरस्कृत प्रगतिशील कृषक हैं)
 

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