संरक्षण की गुहार लगाता जंगल का राजा


भारतीय संस्कृति में जीव-जंतुओं को सदैव सम्मान मिला है। इस देश में विभिन्न जीव-जंतुओं का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्त्व रहा है। शेर हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहे हैं। भारत में सिक्कों पर शेरों की आकृति के अंकन का सबसे प्राचीन प्रमाण चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय का है। शेर के नाम पर भारतीय ज्योतिषशास्त्र में शेर राशि का नामकरण किया गया है। भारत के राष्ट्रीय चिन्ह में शेर का निशान अंकित है।

शेर यानी सिंह सदैव हमारे आकर्षण का विषय रहा है। यह बिल्ली परिवार का शक्तिशाली जीव है। हालाँकि हमारे देश में अनेक लोग शेर, बाघ, तेंदुए और चीते को एक ही जीव समझते हैं। लेकिन ये सभी जीव अलग-अलग हैं। बिल्ली परिवार का सबसे तेज रफ्तार वाला जीव चीता तो हमारे देश से कुछ सालों पहले ही विलुप्त हो चुका है। यह अच्छी बात है कि शेर और बाघ अभी भी हमारे देश में पाए जाते हैं। वैसे बाघ को शेर की अपेक्षा अधिक चालाक समझा जाता है, इसीलिये बाघ को “जंगल का चाणक्य” भी कहा जाता है। लेकिन जंगल का राजा तो शेर ही होता है। यह आकार में विडाल यानी बिल्ली परिवार का दूसरा सबसे बड़ा सदस्य है। वैसे कुछ लोगों को यह बात ठीक न लगे लेकिन यह सही है। देखने में शेर अपने परिवार के अन्य जीवों जैसे बाघ से इसीलिये बड़ा लगता है, क्योंकि उसकी गर्दन पर बालों का गुच्छा होता है। अब आप लोगों को समझ में आ गया होगा कि बिल्ली परिवार के जीवों में बाघ ही सबसे बड़ा जीव होता है। वैसे यह बात सही है कि बिल्ली परिवार में शेर का सिर सबसे बड़ा होता है।

शेर की गर्दन के बालों को अयाल कहा जाता है। अफ्रीका शेर प्रजाति के अयाल घने और लंबे होते हैं। वैसे शेर का वजन लगभग 180 से 225 किलोग्राम हो सकता है। शेर की लंबाई ढाई से तीन मीटर होती है। इसकी रफ्तार भी गजब की होती है। शेर लगभग 40 किलोमीटर प्रति घंटे की तेज गति से दौड़ सकता है। यह करीबन 12 फुट ऊँची छलांग लगा सकता है। इसके अलावा यह 40 फुट लंबी छलांग लगा सकता है।

बिल्ली वंश के सदस्यों में सबसे अधिक शोर मचाने वाला जीव शेर ही है। शेर की दहाड़ का संबंध इसके गले में स्थित कंठिका अस्थि से होता है। इसकी दहाड़ से पूरा जंगल कांप उठता है। शेर के तीन प्रकार के दाँत होते हैं जो अपने शिकार का काम तमाम करने में मददगार होते हैं। वैसे इसके मुँह में दाँतों की संख्या लगभग 26 होती हैं। शेर की जीभ नुकीली काँटो जैसी होती है। शेरों की नाखून की बनावट भी तीखी होती है, जिससे यह शिकार पर आसानी से पकड़ बना लेता है। शेर के पदतली की छाल गोलाकार होती है जबकि शेरनी की पदतली दीर्घवृत्ताकार होती है। वयस्क शेर के पद चिन्ह की आर-पार औसत नाप 21 सेंटीमीटर होती है।

शेर की केवल दो प्रजातियाँ - एक भारतीय शेर और दूसरी अफ्रीकी शेर पायी जाती हैं। इनमें से अफ्रीकी शेर अधिक बलशाली होता है। अफ्रीका प्रजाति का शेर अधिक लंबा होता है। भार के मामले में भी यह प्रजाति भारतीय शेरों से आगे होती है। शेरों की लगभग 8 उपजातियां पाई जाती हैं। इनमें से एशियाई शेरों की दो और अफ्रीकी शेरों की छह उपप्रजातियां पाई जाती हैं। भारतीय शेर को प्राणिशास्त्र में पांतेरा लेओ गूजरातेन्सिस नाम से जाना जाता है। भारतीय शेर प्रजाति की दुम लंबी होती है। अफ्रीका शेर प्रजाति के पूँछ के सिरों पर बालों का गुच्छा अधिक स्पष्ट होता है। पूर्वी अफ्रीका में मिलने वाली अफ्रीकी उपप्रजाति को मसाई शेर के नाम से जाना जाता है। पश्चिमी अफ्रीका में मिलने वाली अफ्रीकी उपप्रजाति सेनेगाली शेर है। क्रुगेर राष्ट्रीय पार्क में ट्रांसवाल शेर नामक अफ्रीकी उपप्रजाति मिलती है। अफ्रीकी उपप्रजाति बर्बर शेर को प्राणिशास्त्र में पांतेरा लेओ नाम से जाना जाता है। अफ्रीकी उपप्रजाति केप शेर को प्राणिशास्त्र में पांतेरा लेओ मेलानोकाइता नाम से जाना जाता है।

गिर वन में पाए जाने वाले भारतीय शेर की युवावस्था में औसत लंबाई लगभग 2.70 मीटर होती है। भारतीय शेर के अयाल की अधिकतम लंबाई 45 सेंटीमीटर दर्ज की गयी है। युवा शेर का रंग लाली लिये हुए पीला होता है। गुजराती में शेर को ऊंटिया बाघ और सावज नामों से भी जाना जाता है।

शेरों का पारिवारिक जीवन


शेरों में पारिवारिक जीवन की प्रबल भावना होती है। एक झुंड में सामान्यतया 20 से 22 शेर रहते हैं। शेरों के एक झुंड में प्रायः एक या दो नर होते हैं। शेर का प्रजनन काल अक्टूबर से नवंबर के दौरान होता है। मादा शेर की गर्भधारण अवधि लगभग 105 से 115 दिन की होती है। जन्म के समय शावक का वजन लगभग आधा किलो और लंबाई लगभग तीस सेंटीमीटर होती है। शेरों के एक समूह में एक शेरनी के बच्चों को दूसरी शेरनी का दूध पीते देखा गया है। औसतन दो ब्यातों के बीच का अंतर लगभग ढाई से तीन साल होता है। शेर शावक शिकार करने की कला शेरनी से सीखते हैं। शेर शावकों के दूध के दाँत तीन सप्ताह की उम्र में झड़ जाते हैं। एक साल की उम्र में शेरों में स्थायी दाँत निकल आते हैं। शेर शावकों को स्थायी दाँत निकलने के दौरान मुख से लहू बहता है एवं नाक गरम रहती है, इससे उन्हें अत्यंत पीड़ा सहनी होती है। शेर का जीवनकाल लगभग 20 वर्षों का होता है।

कमाल के शिकारी


शेर कमाल का शिकारी होता है। शेर पीछे से या छिपकर शिकार करता है। यह पानी में भी तैर सकता है। वैसे शिकार करने की कला में मादा शेर नर से एक कदम आगे होती है। यह बात और है कि नर शेर ही सबसे पहले शिकार की दावत का मजा लेता है। शेर पेड़ पर भी चढ़ सकते हैं। इसके पसंदीदा शिकारों में नीलगाय, जंगली सूअर, हिरण आदि शामिल हैं।

भारतीय संस्कृति में शेर


भारतीय संस्कृति में जीव-जंतुओं को सदैव सम्मान मिला है। इस देश में विभिन्न जीव-जंतुओं का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्त्व रहा है। शेर हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहे हैं। भारत में सिक्कों पर शेरों की आकृति के अंकन का सबसे प्राचीन प्रमाण चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय का है। शेर के नाम पर भारतीय ज्योतिषशास्त्र में शेर राशि का नामकरण किया गया है। भारत के राष्ट्रीय चिन्ह में शेर का निशान अंकित है। स्वतंत्रता पूर्व जूनागढ़ रियासत में डाक टिकटों पर शेर का चित्र छापा जाता था। भारतीय पौराणिक दंत कथाओं के अनुसार शेर को देवी दुर्गा का वाहन माना जाता है। भारतीय पौराणिक दंत कथाओं के अनुसार शेर शक्ति और धर्म के गुणों का द्योतक है। डाक-तार विभाग ने 1964 में तिलिया नामक प्रसिद्ध शेर की फोटो को डाक टिकट पर छापा था। ‘‘वनराजों का राजा’’ नाम से प्रसिद्ध ‘तिलिया’ नामक शेर की मृत्यु 18 मार्च, 1965 में हुई थी।

ऐसा माना जाता है कि लगभग छह हजार साल पूर्व भारत में शेरों का आगमन हुआ। भारत में शेरों के समूह को लेहड़ा नाम से भी जाना जाता है। एक समय लगभग पूरे उत्तर भारत में फैले शेरों का दायरा सन 1984 तक कठियावाड़ प्रायद्वीप तक ही सीमित रह गया था। एक किवदंती के अनुसार गिर वन में शेरों को अफ्रीका से लाया गया था। सन 1972 तक भारत का राष्ट्रीय पशु शेर ही था। बाद में यह पदवी बाघ को दी गयी।

सन 1936 में जूनागढ़ रियासत की गणना के अनुसार गिर वनों में शेरों की संख्या 287 थी। गुजरात वन विभाग की गणना के अनुसार सन 1963 में गिर वनों में शेरों की संख्या 285 थी। इस समय भारत में शेरों का आश्रय गुजरात के गिर वन हैं जो लगभग 1412 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए हैं। यह क्षेत्र सन 1965 से संरक्षित है। अप्रैल, 2010 में हुई गणना के अनुसार शेर की संख्या लगभग 411 थी जो 2005 की गणना से लगभग 52 अधिक थी। 2010 की गणना में नर शेर 97, शेरनी 162 और शावकों की संख्या 152 थी। कुछ वर्षों पहले सरकार ने गिर के कुछ सिंहों को मध्यप्रदेश के एक राष्ट्रीय उद्यान में पनाह देने की भी बात की। असल में शेरों की बढ़ती संख्या को देखते हुए गिर का क्षेत्र उनके लिये छोटा पड़ रहा है इसीलिये उनको दूसरी जगह बसाना अच्छा कदम हो सकता है।

हालांकि इसके लिये अनेक पहलूओं पर ध्यान देना होगा। खैर जो भी हो वर्ष 2015 में शेरों की संख्या में मामूली बढ़त को देखकर जीवप्रेमी प्रसन्न हैं। वर्तमान में गिर में शेरों की कुल संख्या 523 हो गयी है। इस प्रकार पिछले छह सालों में शेरों की संख्या 112 बढ़ी है। इस समय हुई गणना के अनुसार गिर में नर शेर 109, शेरनियां 201 एवं शावकों की संख्या 213 देखी गयी है। असल में इस समय शावकों की स्थिति काफी अच्छी है लेकिन हमें इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि अनेक बार एक दल के शेर दूसरे दल के शावकों को मार देते हैं। ऐसा असल में वह अपने प्रभुत्व को कायम करने के लिये करते हैं। इसलिये गिर प्रशासन को इन शावकों का विशेष ध्यान रखना होगा और इनकी सतत निगरानी करनी होगी। असल में वैज्ञानिक, आर्थिक, सौन्दर्यपरक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिकी महत्त्व का जीव होने के कारण शेर का संरक्षण आवश्यक है।

सम्पर्क


नवनीत कुमार गुप्ता
परियोजना अधिकारी, विज्ञान प्रसार, सी-24, कुतूब संस्थानिक क्षेत्र, नई दिल्ली-110016


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