संसाधन आधार - ऊर्जा संसाधन, खनिज संसाधन, वन संसाधन एवं कृषि उत्पाद

ऊर्जा संसाधन -


जैविक दृष्टिकोण से जिन भूमियों में उपजाऊपन कम हो गया, ऐसे रेत के टीलों और उत्खनित मिट्टी के ढेरों के ऊपरी उपजाऊपन बढ़ाने का प्रयास हो रहा है। इस सन्दर्भ में ट्रॉपिकल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट नागपुर एवं अन्य वैज्ञानिक संस्थानों में उपलब्ध अति आधुनिक तकनीक को अपनाया गया है। जिसके द्वारा विभिन्न प्रकार के पौधों के लिये उपयुक्त जैविक पोषक का उपयोग सम्भव हो सके। इसी प्रकार उत्खनित भूमि, अनुपयोगी भूमि को वृक्षारोपण या खेती के उपयुक्त बनाने के लिये “म.प्र. राज्य भूमि विकास निगम” जैसे विशेषज्ञ संस्थानों की सहायता ली जाती है। किसी देश अथवा प्रदेश के औद्योगिक विकास का एक आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण चरण ऊर्जा संसाधन का विकास है। औद्योगिक विकास के प्रमुख आधार ऊर्जा एवं खनिज संसाधन हैं। उत्पादन प्रक्रिया को गतिवर्धन हेतु ऊर्जा एक महत्त्वपूर्ण निवेश है, जिस पर क्षेत्र विशेष का आर्थिक एवं औद्योगिक विकास निर्भर है।

1. कोयला :


ऊर्जा संसाधन के रूप में कोयला एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है, यह वर्तमान औद्योगिक युग में अनेक उद्योगों हेतु मुख्य एवं आधारभूत संसाधन है। किसी देश अथवा प्रदेश के आर्थिक एवं औद्योगिक विकास के निर्धारण में कोयले का स्थान महत्त्वपूर्ण है। कोयला एक जैव निक्षेप है, जिसकी उत्पत्ति अतीत काल में भूमि में वनों के दब जाने से हुई। कोयला इन्हीं वनस्पतियों का अवशेष है। कोयले के विभिन्न गुण पौधों के अवशेषों के कार्बनीकरण पर निर्भर होते हैं। एन्थ्रेसाइट कोयला, जिसमें कार्बन की मात्रा 85 से 95 प्रतिशत तक होती है, उत्तम किस्म का कोयला होता है। बिटुमिनस कोयला, जिसका खनन तथा उपभोग सर्वाधिक होता है, में कार्बन की मात्रा 55 से 85 प्रतिशत है। लिग्नाइट निम्न कोटि का कोयला है, जिसमें कार्बन की मात्रा 50 प्रतिशत से कम होती है।

छत्तीसगढ़ में प्रचुर मात्रा में कोयले की उपलब्धता इस क्षेत्र में ताप-विद्युत संयंत्रों की स्थापना का प्रमुख आधार है। उद्योगों के विकास में कोयले की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। छत्तीसगढ़ प्रदेश के औद्योगिक विकास में कोयला सशक्त आधार प्रदान करता है। छत्तीसगढ़ प्रदेश में कोयले के विशाल भण्डार मुख्यतः उत्तर एवं उत्तर पूर्व में सोन-महानदी-घाटी में कोरिया, सरगुजा, रायगढ़, कोरबा एवं बिलासपुर जिलों के अन्तर्गत सम्मिलित है। जहाँ कोयले के 213518.6 लाख टन के संचित भण्डार हैं। अतः प्रदेश के उत्तर क्षेत्र को कोयलांचल कहा जा सकता है, जो प्रदेश के औद्योगिक विकास की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण तथा अनेक उद्योगों के प्रमुख कच्चे माल के रूप में मुख्य आधार है।

 

संसाधन आधार - छत्तीसगढ़ प्रदेश में औद्योगिक विकास और उसका पर्यावरण पर प्रभाव

1.

ऊर्जा संसाधन - कोयला

2.

खनिज संसाधन - लौह अयस्क, चूना पत्थर, बॉक्साइट, डोलोमाइट, क्वार्टजाइट, क्वार्ट्ज, फ्लुओराइट, कोरण्डम, टिन अयस्क, लेड, अभ्रक, ग्रेफाइट, फेल्सपार, तांबा अयस्क, अग्नि मृत्तिका, सोना, अलेक्जेंडराइट, हीरा।

3.

वन संसाधन - छत्तीसगढ़ प्रदेश में वन क्षेत्र, जिलेवार वन क्षेत्र, जिलेवार आरक्षित, संरक्षित तथा अवर्गीकृत वन क्षेत्रफल, वनवृत्तावारनुसार वन क्षेत्रफल, प्रमुख वन उत्पाद।

4.

कृषि उत्पाद

 

छत्तीसगढ़ प्रदेश में कोयला उत्पादक क्षेत्र


01. सरगुजा तथा कोरिया जिले के अन्तर्गत कोयाल उत्पादक क्षेत्र :-

सरगुजा जिले में कोयले के निक्षेप क्षेत्र विश्रामपुर, झिलमिली, चरचा, बानसोर, सोनहट, चिरमिरी, झागराखण्ड, लखनपुर, रामपुर तथा पंचभैया में है। सरगुजा तथा कोरिया जिले के अन्तर्गत 16000 लाख टन कोयले के संचित भण्डार है। इन क्षेत्रों में कोयले की सतह की मोटाई 50 सेमी है।

सरगुजा तथा कोरिया जिलों के अन्तर्गत प्रमुख कोयला उत्पादक क्षेत्रों का विवरण इस प्रकार है :-

क. हसदो अरंद-कोयला क्षेत्र :- इस क्षेत्र के अन्तर्गत तारा, बैगापारा, उदयपुर, हरिहरपुर, इंगेमार ग्राम सम्मिलित है। यहाँ बाराकर संस्तर में कोयले के 4320.78 मीट्रिक टन कोयले के संचित भण्डार हैं, जो B से F श्रेणी के हैं।

ख. लखनपुर कोयला क्षेत्र :- इस कोयला क्षेत्र के अन्तर्गत प्रेमनगर एवं रामानुजगंज विकासखण्ड के अन्तर्गत लखनपुर ग्राम सम्मिलित है, जहाँ 313.89 मीट्रिक टन कोयले के संचित भण्डार हैं।

ग. विश्रामपुर कोयला क्षेत्र :- इस क्षेत्र में सूरजपुर विकासखण्ड के अन्तर्गत विश्रामपुर, बड़गाँव, नवापारा, शंकरपुर, जयनगर, कुण्डा तथा सोनपुरा ग्राम सम्मिलित हैं। संचित भण्डार की दृष्टि से यहाँ 596.16 मीट्रिक टन कोयले के भण्डार हैं, जो A से D श्रेणी के हैं।

घ. झिलमिली कोयला क्षेत्र :- झिलमिली कोयला क्षेत्र में बैकुण्ठपुर विकासखण्ड के कटकोना तथा पाण्डवपारा ग्राम, भाइयाथान विकासखण्ड का ग्राम पटना तथा सूरजपुर विकासखण्ड के अन्तर्गत बसकर एवं बरसारा ग्राम सम्मिलित हैं, जहाँ 267.10 मीट्रिक टन कोयले के संचित भण्डार हैं जहाँ A से F श्रेणी का कोयला प्राप्त होता है।

ङ. सोनहट कोयला क्षेत्र :- इस कोयला क्षेत्र के अन्तर्गत सोनहट विकासखण्ड के चरचा, आनंदपुर, सोनहट, रामगढ़ तथा कटगोरी ग्राम सम्मिलित हैं, जहाँ 225.28 मीट्रिक टन कोयले के संचित भण्डार हैं। इस क्षेत्र से प्राप्त कोयले की श्रेणी A से D के मध्य है।

च. चिरमिरी कोयला क्षेत्र :- खादगाँव विकासखण्ड के अन्तर्गत ग्राम चिरमिरी, गोदरीपारा, बुरतुंगा, सोनवानी, हल्दीबाड़ी, कुरासिया, चिरमिरी कोयला क्षेत्र सम्मिलित हैं यहाँ A से D श्रेणी के कोयले के 362.16 मीट्रिक टन कोयले के संचित भण्डार हैं।

छ. सोहागपुर कोयला क्षेत्र :- इस क्षेत्र के प्रमुख कोयला उत्पादक ग्राम मनेन्द्रगढ़, कोंगापानी तथा ग्राम झिमार हैं, जो कि मनेन्द्रगढ़ विकासखण्ड में सम्मिलित हैं। इस क्षेत्र में A से D श्रेणी के कोयले के 2711.75 मीट्रिक टन कोयले के संचित भण्डार हैं।

ज. रामकोला तातापानी कोयला क्षेत्र :- इस कोयला क्षेत्र के अन्तर्गत वाड्रफनगर विकासखण्ड का ग्राम तातापानी तथा प्रतापपुर विकासखण्ड के नवाडीह तथा रामकोला ग्राम सम्मिलित हैं। यहाँ प्राप्त होने वाला कोयला C से F श्रेणी का है एवं संचित भण्डार 1141.88 मीट्रिक टन है।

उपर्युक्त सभी क्षेत्रों में बाराकर संस्तर के अन्तर्गत कोयले के निक्षेप पाये गए हैं।

2. कोरबा जिले के अन्तर्गत कोयला उत्पादक क्षेत्र :-


बिलासपुर जिले के अन्तर्गत 101292.9 लाख टन कोयले के संचित भण्डार हैं जहाँ मुख्य कोयला क्षेत्र कोरबा तथा सेन्दुरगढ़ है।

क. कोरबा कोयला क्षेत्र :- इस क्षेत्र के अन्तर्गत प्रमुख कोयला उत्पादक क्षेत्र कोरबा विकासखण्ड के अन्तर्गत कोरबा, रजगामार, मानिकपुर, कुसमुन्डा, बांकी मोगरा तथा सराईपाली एवं पाली विकासखण्ड के अन्तर्गत ग्राम-दिलवारी, बारपाली तथा सोनपुरी एवं कटघोरा विकासखण्ड का ग्राम दुरपा सम्मिलित है, जहाँ कोयले के निक्षेप गोंडवाना क्रम के बाराकर संस्तर में पाये गए हैं। यहाँ प्राप्त कोयले की श्रेणी B से G के मध्य है। कोरबा कोयला क्षेत्र में 98,500.8 लाख टन कोयले के संचित भण्डार हैं।

ख. सेन्दुरगढ़ कोयला क्षेत्र :- यह दूसरा प्रमुख कोयला उत्पादक क्षेत्र है जो सेन्दुरगढ़, पालानी, बीजाददं तथा अरसारे ग्राम में विस्तृत है। यहाँ कोयले के निक्षेप बाराकर संस्तर के अन्तर्गत B से F श्रेणी के मध्य है। संचित भण्डार की दृष्टि से इस क्षेत्र में 2792.1 लाख टन कोयले के भण्डार हैं।

ग. हसदो अरंद कोयला क्षेत्र :- इस कोयला क्षेत्र का अधिकांश भाग सरगुजा जिले में है। कोरबा जिले में इस क्षेत्र का विस्तार पाली विकासखण्ड के अन्तर्गत ग्राम मोरगा तथा पटुरिया में एवं कटघोरा तहसील के गिरमुधी एवं मदनपुर ग्राम में है। यहाँ कोयले के निक्षेप बाराकर संस्तर के अन्तर्गत B से F श्रेणी के मध्य है।

3. रायगढ़ जिले के अन्तर्गत कोयला उत्पादक क्षेत्र :-


रायगढ़ जिले के मुख्य कोयला क्षेत्र रायगढ़, धरमजयगढ़ एवं घरघोड़ा हैं, जो कि तीन कोयला क्षेत्रों, 1. उत्तरी रायगढ़ कोयला क्षेत्र 2. दक्षिणी रायगढ़ कोयला क्षेत्र तथा मांद नदी कोयला क्षेत्र में विभक्त है। यह कोयला क्षेत्र 1200 वर्ग किमी के क्षेत्र में विस्तृत है।

क. मांद रायगढ़ कोयला क्षेत्र :- इस क्षेत्र के मुख्य कोयला उत्पादक ग्राम कोमनारा, छाल, बारौद, लाथ, घरघोड़ा, जामपाली, बिजारी, कुरुमकेला, सितारा, खारगाँव गारो तथा पेलमा हैं, जहाँ बाराकर संस्तरों के अन्तर्गत C से G श्रेणी का कोयला प्राप्त होता है। संचित भण्डार की दृष्टि से यहाँ 96225.7 लाख टन कोयले के भण्डार हैं।

छत्तीसगढ़ प्रदेश में जिलेवार कोयला उत्पादन की मात्रा निम्नांकित है :-

 

तालिका 2.1 छत्तीसगढ़ प्रदेश : जिलेवार कोयला उत्पादन इकाई टन में

वर्ष

कोरबा

रायगढ़

सरगुजा

कोरिया

1900-91

23215000

-

3574500

4893800

1991-92

25312500

-

3587500

4688300

1992-93

2577500

85700

3442000

4783900

1993-94

26930000

31000

2915500

4698200

1994-95

26181700

42100

2353800

4585900

1995-96

29288200

24100

2475500

4598900

1996-97

30521000

51300

2744900

4528100

1997-98

52756800

85100

2918200

4515600

स्रोत : खनिज सांख्यिकी 1997, भौमिकी तथा खनिकर्म संचालनालय, रायपुर (छ.ग.)

 

धान के कटोरे के रूप में बहुप्रचारित छत्तीसगढ़ प्रदेश को कोयले की खनिज सम्पदा का कटोरा भी कहा जा सकता है। छत्तीसगढ़ प्रदेश में कोयले के 213,518.6 लाख टन कोयले के संचित भण्डार हैं, जिसके फलस्वरूप प्रदेश को अपने ऊर्जा उत्पादन, विद्युत सीमेंट तथा इस्पात उत्पादन के कारण आर्थिक मानचित्र में विशिष्ट स्थान प्राप्त है।

प्रदेश में कोयले की खाने कोरबा से रायगढ़ जिले तक फैली हुई है। इन खानों के फलस्वरूप ही इस क्षेत्र में रेल संचार सेवाओं, दूरसंचार तथा विद्युत ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्रों में असाधारण वृद्धि हुई है। इस क्षेत्र में सन 1890 में कोयला उत्खनन का कार्य प्रारम्भ हो चुका था, जब उमरिया (जो प्रदेश की उत्तरी पश्चिमी सीमा के पास है) की खानों से कोयला निकाला जाने लगा था। इसे विशेष प्रतिष्ठा तथा महत्त्व उस समय मिला जब सन 1956 में भारत सरकार ने एक अर्थ नीतिक प्रस्ताव पास कर सार्वजनिक क्षेत्र में राष्ट्रीय योजना विकास निगम की स्थापना की, तब से इस क्षेत्र में निगम द्वारा संचालित कोयला खदानों की प्रगति होती रही है। छत्तीसगढ़ प्रदेश में कोयला उत्खनन का कार्य साउथ ईस्टर्न कोल फील्ड्स लिमिटेड द्वारा किया जा रहा है।

साउथ ईस्टर्न कोल फील्ड्स लिमिटेड (एस ई सी एल)


भारत सरकार के कोयला मंत्रालय के अन्तर्गत साउथ ईस्टर्न कोल फील्ड्स लिमिटेड देश की सर्वोच्च कोयला कम्पनी है, जिसका कार्यक्षेत्र प्रदेश के बिलासपुर, सरगुजा, रायगढ़ तथा शहडोल (म.प्र.) जिलों के विस्तृत क्षेत्रों में फैला हुआ है।

कोल इण्डिया की प्रमुख इकाई के रूप में एस ई सी एल की खानें प्रदेश के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में है। एस.ई.सी.एल वर्ष 1986-87 में कोल इण्डिया की एक पृथक अनषंगी कम्पनी के रूप में अस्तित्व में आया। इस समय उड़ीसा की खदानें भी इसी कम्पनी के अन्तर्गत थी। वर्ष 1992-93 में उड़ीसा की खदाने ‘महानदी कोल फील्ड्स लिमिटेड’ के अन्तर्गत हो गई तथा एसईसीएल के अन्तर्गत छत्तीसगढ़ क्षेत्र की खाने रह गई जहाँ निरन्तर खनन कार्य जारी है। प्रदेश में कोयला उत्खनन के प्रमुख क्षेत्र कोरबा, रायगढ़, सरगुजा तथा कोरिया जिले हैं।

उत्पादन प्रतिरूप :


प्रदेश में एस.ई.सी.एल. के अन्तर्गत कोयले का उत्पादन निम्नानुसार रहा :-

 

तालिका 2.2 छत्तीसगढ़ प्रदेश में एस.ई.सी.एल. के अन्तर्गत वर्षवार कोयला उत्पादन (इकाई टन में)

वर्ष

उत्पादन

1990-91

31683300

1991-92

33487400

1992-93

34086600

1993-94

34574700

1994-95

33163500

1995-96

36386700

1996-97

37845300

1997-98

60275700

स्रोत : कार्यालय, एस.ई.सी.एल बिलासपुर

 

आर्थिक समृद्धि हेतु कोयला आज भी ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। इस परिप्रेक्ष्य में एसईसीएल को देश भर में सर्वाधिक कोयला उत्पादन करने का श्रेय प्राप्त है। सम्पूर्ण देश के कोयला उत्पादन का पाँचवाँ हिस्सा एसईसीएल द्वारा उत्पादित होता है।

कर्मचारियों की संख्या एवं प्रदान की गई सुविधाएँ :-


वर्तमान में एस.ई.सी.एल. में 98,156 व्यक्ति कार्यरत हैं, जिन्हें आवास, शिक्षा एवं चिकित्सा की सुविधा उपलब्ध कराई गई हैं।

लोकहित एवं सामाजिक सांस्कृतिक दायित्व :-


सामाजिक दायित्व के प्रति एस.ई.सी.एल. द्वारा खदान क्षेत्रों एवं उसके आस-पास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के जीवनस्तर को ऊपर उठाने के लिये अनेक क्षेत्रों में पहल की गई है। बिलासपुर शहर में अरपा नदी पर एक पुल कम्पनी द्वारा बनाया गया जो 6 अक्टूबर, 1995 को लोकार्पित किया गया। शिक्षा, विद्युतीकरण, पेयजल की दिशा में कार्य, खेलकूद को प्रोत्साहित करने के लिये खेल मैदानों का विकास, खेल संस्थाओं को सहयोग एवं लोक कलाकारों को प्रोत्साहित करने के लिये प्रतिवर्ष विविध कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।

उपलब्धियाँ :-


सर्वांगीण गुणवत्ता वाले व्यावसायिक दृष्टिकोण के अनुकूल वातावरण निर्मित करने के प्रयास में एस.ई.सी.एल को सफलता मिली है। उन्हीं प्रयासों के प्रतिफल के रूप में वर्ष 1993-94 के लिये ‘कोल इण्डिया उत्कृष्टता पुरस्कार’ तथा ‘सिस्टम कैपेसिटी यूटी लाइजेशन’ के क्षेत्र में एस.ई.सी.एल. को सर्वश्रेष्ठ कम्पनी के रूप में पुरस्कार हेतु चुना गया। सर्वश्रेष्ठ कोयला क्षेत्र के रूप में कोरबा क्षेत्र तथा 10 मिलियन टन से अधिक कोयला प्रेषण हेतु गेवरा क्षेत्र को भी पुरस्कृत किया गया है। इसी तारतम्य में वर्ष 1992 का “राष्ट्रीय सुरक्षा पुरस्कार” लक्ष्मण ओपन कास्ट प्रोजेक्ट को मिला तथा 1992-93 के लिये श्रेष्ठ कोयला कम्पनी का ‘कोल इण्डिया दक्षता पुरस्कार’ 30 सितम्बर, 1993 को एस.ई.सी.एल. को प्राप्त हुआ। श्रम मंत्रालय भारत सरकार द्वारा भूमिगत एवं खुलीखदान में अपनाई जा रही सुरक्षा सम्बन्धी नीति एवं उसके सफल क्रियान्वयन के लिये दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान ‘राष्ट्रीय खान सुरक्षा पुरस्कार’ वर्ष 1995 एवं 1996 के लिये एस.ई.सी.एल. को प्राप्त हुआ।

“इन्टरनेशनल ग्रीनलैण्ड सोसाइटी, हैदराबाद” द्वारा नवम्बर, 1996 में एस.ई.सी.एल. को “बेस्ट एनवायरोनमेंटल एंड इकोलॉजिकल इम्प्लीमेंटेशन गोल्ड अवार्ड” प्रदान किया गया।

पर्यावरण संरक्षण हेतु किये गए प्रयास :


एस.ई.सी.एल. की कोयला खदानें वनों से आच्छादित क्षेत्रों में अधिक है। फिर भी किसी भी परियोजना को प्रारम्भ करने से पूर्व यह प्रयास किया जाता है कि वन कम-से-कम प्रभावित हों। प्रत्येक नई परियोजना की स्वीकृति के समय ही पर्यावरण प्रबन्धन योजना भी बनाई जाती है। पुरानी परियोजनाओं विशेषकर खुली खदानों के सन्दर्भ में खुदाई पश्चात समतलीकरण एवं उन पर पुनः वृक्षारोपण की योजना प्रारम्भ की गई है। वृहद रूप से वृक्षारोपण के तहत जमीनों, खदान के आस-पास के क्षेत्रों में उद्यान निर्माण एवं वृक्षारोपण किया जा रहा है, जिसमें फलदार वृक्ष भी शामिल है। इसी कार्यक्रम के अन्तर्गत एक वृहद वृक्षारोपण योजना कोरबा कोयलांचल में हसदेव नदी के पश्चिम की ओर अमल में लाई जा रही है। वन विभागों एवं वन निगम के सहयोग से नर्सरी में पौधों को विकसित किया जा रहा है।

सर्वविदित है कि खनन कार्य की ओपनकास्ट खनन विधि से पर्यावरण को अपेक्षाकृत अधिक नुकसान होता है। सन 1986 में जब कम्पनी की स्थापना हुई तब कुल 8000 हेक्टेयर भूमि खुली खदानों के अन्तर्गत थी। कम्पनी द्वारा विस्तृत रूप से भूमि संरक्षण का कार्यक्रम निर्धारित कर 4000 हेक्टेयर भूमि जहाँ से खनन समाप्त हो चुका था, को जैविकीय एवं पर्यावरण की दृष्टि से संरक्षित करने तथा निष्कासित अधिभार के ढेरों एवं अनुपयोगी जमीन को भी पूर्णतः हरा-भरा बनाने का कार्य किया गया। खनन के पूर्व जो मूल वन थे ठीक वैसे ही वन के विकास के लिये शीशम, सीरस, गुलमोहर, यूकेलिप्टस, अमरूद और आम आदि वृक्षों का ही मूलरूप से विकास किया जा रहा है, ताकि पुराने वनों के साथ नए वनों में सामंजस्य बन सके तथा पर्यावरण में सन्तुलन आ सके। जैविक दृष्टिकोण से जिन भूमियों में उपजाऊपन कम हो गया, ऐसे रेत के टीलों और उत्खनित मिट्टी के ढेरों के ऊपरी उपजाऊपन बढ़ाने का प्रयास हो रहा है। इस सन्दर्भ में ट्रॉपिकल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट नागपुर एवं अन्य वैज्ञानिक संस्थानों में उपलब्ध अति आधुनिक तकनीक को अपनाया गया है। जिसके द्वारा विभिन्न प्रकार के पौधों के लिये उपयुक्त जैविक पोषक का उपयोग सम्भव हो सके। इसी प्रकार उत्खनित भूमि, अनुपयोगी भूमि को वृक्षारोपण या खेती के उपयुक्त बनाने के लिये “म.प्र. राज्य भूमि विकास निगम” जैसे विशेषज्ञ संस्थानों की सहायता ली जाती है। वृक्षारोपण के विशाल कार्यक्रम को “म.प्र. वन विकास निगम” के विशेषज्ञों की देख-रेख में अमल में लाया जा रहा है। कम्पनी द्वारा विभिन्न वर्षों में किये गए वृक्षारोपण की संख्या इस प्रकार है :-

 

तालिका : 2.3 एस.ई.सी.एल : वृक्षारोपण की मात्रा

वर्ष

वृक्षों की संख्या

1985-86

302270

1986-87

551356

1987-88

1124557

1988-89

1141286

1989-90

1939276

1990-91

1588079

1991-92

2445883

1992-93

1111336

1993-94

1450115

1994-95

1259506

1995-96

1861835

1996-97

2112025

1997-98

1462500

1998-99

612000

योग

18959774

स्रोत : कार्यालय, एस.ई.सी.एल., बिलासपुर

 

स्पष्ट है कम्पनी द्वारा अभी तक 1 करोड़ से अधिक पौधों का वृक्षारोपण किया जा चुका है।

एस.ई.सी.एल. के अन्तर्गत प्रदेश में कार्यरत खदानें एवं परियोजनाएँ निम्नांकित हैं :-

 

1. विश्रामपुर क्षेत्र

(1) कुमदा परियोजना




(2) जयनगर परियोजना



(3) बिश्रामपुर परियोजना

(क) कुमदा 1 एवं 2 खदान (ख) कुमदा 7 एवं 8 खदान (ग) बलरामपुर खदान


(क) जयनगर 5 एवं 6 खदान, (ख) जयनगरग 3 एवं 4 खदान


(क) बिश्रामपुर खुली खदान

(2) बटगांव क्षेत्र

(1) भटगाँव परियोजना


(2) कल्याणी/महामाया परियोजना



(3) डुग्गा परियोजना

(क) भटगाँव खदान


(क) महामाया खदान (ख) कल्याणी खदान


(क) डुग्गा खुली खदान।

उपर्युक्त खदानें सरगुजा जिले के अन्तर्गत सम्मिलित हैं।

(3) बैकुण्ठपुर क्षेत्र

(1) चरचा परियोजना


(2) चरचा पश्चिम परियोजना


(3) कटकोना परियोजना


(4) पांडवपारा परियोजना

(क) चरचा खदान


(क) चरचा पश्चिम खदान


(क) कटकोना खदान।


(क) पांडवपारा खदान, (ख) झिलमिली खदान

(4) चिरमिरी क्षेत्र

(1) चिरमिरी परियोजना



(2) डुमानहिल परियोजना



(3) कुरासिया परियोजना



(4) एनसीपीएच परियोजना



(5) पश्चिमी चिरमिरी परियोजना

(क) चिरमिरी भूमिगत खदान, (ख) चिरमिरी खुली खदान


(क) डुमान हिल खदान, (ख) उत्तरी चिरमिरी खदान


(क) सोनवानी खदान, (ख) कुरासिया भूमिगत एवं खुली खदान।


(क) एनसीपीएच (पुरानी) खदान, (ख) एनसीपीएच (नई) खदान


(क) पश्चिमी चिरमिरी खदान, (ख) कोरिया भूमिगत खदान।

(5) हसदेव क्षेत्र

(1) झागराखण्ड परियोजना

(क) दक्षिणी झागराखण्ड खदान, (ख) पश्चिमी झागराखण्ड खदान, (ग) बी सीम, (घ) पालकीमारा खदान।

उपर्युक्त खदानें कोरिया जिले के अन्तर्गत सम्मिलित हैं।

(6) कोरबा क्षेत्र

(1) रजगामार परियोजना



(2) सुराकछार परियोजना




(3) बांकी परियोजना



(4) ढेलवाडीह परियोजना



(5) बल्गी परियोजना


(6) मानिकपुर परियोजना

(क) रजगामार खदान, (ख) पवन खदान


(क) सुराकछार मुख्य खदान, (ख) सुराकछार 3 एवं 4 खदान, (ग) सुराकछार 5 एवं 6 खदान


(क) बांकी खदान, (ख) बांकी 9 एवं 10 खदान


(क) ढेलवाडीह खदान, (ख) सिंगहाली खदान


(क) बल्गी खदान


(क) मानिकपुर खुलीखदान

(7) कुसमुन्डा क्षेत्र

(1) कुसमुन्डा परियोजना


(2) लक्ष्मण परियोजना

(क) कुसमुन्डा खुली खदान


(क) लक्ष्मण खुली खदान

(8) गेवरा क्षेत्र

(1) गेवरा परियोजना


(2) दीपका परियोजना

(क) गेवरा खदान


(क) दीपका खदान,

उपर्युक्त खदानें कोरबा जिले के अन्तर्गत सम्मिलित हैं।

(9) रायगढ़ क्षेत्र

(1) छाल परियोजना


(2) बारौन्द परियोजना

(क) छाल खदान, (ख) धरम खदान


(क) बारौन्द खुली खदान।

उपर्युक्त खदानें रायगढ़ जिले के अन्तर्गत सम्मिलित हैं।

 

गेवरा परियोजना प्रदेश की वृहत परियोजना है, अतः गेवरा परियोजना का अध्ययन पर्यावरण प्रदूषण के दृष्टिकोण से किया गया है।

गेवरा परियोजना :- साउथ ईस्टर्न कोल फील्ड्स के अन्तर्गत संचालित गेवरा परियोजना कोरबा कोयला क्षेत्र के पश्चिमी भाग में गेवरा नामक स्थान पर स्थित है। यह एशिया की सबसे वृहद खुली खदान है, जिसका कुल क्षेत्रफल 2023 हेक्टेयर है, जिसमें उत्खनन कार्य के अन्तर्गत 780 हेक्टेयर भूमि है। गेवरा परियोजना 329.78 करोड़ रुपयों की लागत से वर्ष 1979 में भारत सरकार द्वारा अनुमोदित की गई। जनवरी 1981 में 50 लाख टन प्रतिवर्ष कोयला उत्पादन की क्षमता से यह खदान प्रारम्भ की गई, जिसके द्वारा कोरबा सुपर थर्मल पावर स्टेशन को कोयले की आपूर्ति की जाती है। वर्तमान में इसकी उत्पादन क्षमता ताप विद्युत गृह (2100 मि.यू.) की उत्पादन क्षमता में वृद्धि के साथ ही बढ़कर 180 लाख टन प्रतिवर्ष हो गई है। यहाँ उत्पादित कोयला एफ ग्रेड का है, जिसमें राख की मात्रा 35 से 40 प्रतिशत होती है। यहाँ कोयले के 6500 लाख टन के भण्डार का अनुमान लगाया गया है तथा खदान की आयु 62 वर्ष अनुमानतः निर्धारित की गई है।

भू-वैज्ञानिक संरचना :-


गेवरा भूमिखण्ड कोरबा कोयला क्षेत्र का भाग है, यहाँ ऊपरी बाराकर संस्तरों में कोयले की परतें पाई गई हैं। बाराकर संस्तरों के अन्तर्गत ऊपरी तथा निचली कुसमुण्डा की परतें कोयला प्राप्ति की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।

अपवाह तन्त्र :-


अहिरन तथा हसदो इस क्षेत्र की प्रमुख नदियाँ हैं, जो उत्तर पूर्व तथा पूर्वी भाग में प्रवाहित होती हैं। लक्ष्मण नाला इस क्षेत्र के मध्यवर्ती तथा पूर्वी भाग में प्रवाहित होता है। समुद्र तल से इस क्षेत्र की ऊँचाई 290 मीटर से 332 मीटर तक है।

परिवहन सुविधा :-


गेवरा परियोजना, चांपा-कोरबा मुख्य रेल लाइन से सम्बद्ध है, जो गेवरा रोड स्टेशन तक जाती है। यहाँ उत्पादित कोयले के अधिकांश भाग की आपूर्ति एनटीपीसी (कोरबा) को की जाती है। अतः कोयले के परिवहन के लिये एनटीपीसी द्वारा 14 किमी. लम्बी स्वतंत्र रेल लाइन का निर्माण किया गया है, जिसे मेरी-गो राउंड नाम दिया गया है।

प्रमुख कच्चे पदार्थ :-


1. विस्फोटक पदार्थ :- खदान में विस्फोटक पदार्थ की आवश्यकता प्रतिदिन 863 टन की है जिसकी आपूर्ति आई.बी.पी. कम्पनी गोपालपुर द्वारा की जाती है।

2. जल :- खदानों में प्रतिदिन औद्योगिक उपयोग हेतु 2800 किलोलीटर प्रतिदिन एवं घरेलू उपयोग हेतु 2600 किलोलीटर प्रतिदिन जल की आवश्यकता होती है जिसकी आपूर्ति कोलार नाला, मालेगाँव टैंक तथा कुसमुंडा फिल्टर प्लांट से की जाती है।

उत्पादन प्रतिरूप :-


उत्पादन की दृष्टि से कोरबा कोयला क्षेत्र में गेवरा खदान वृहद एवं महत्त्वपूर्ण है। प्रारम्भ से लेकर वर्तमान तक कुल 190.15 मिलियन टन कोयले का उत्पादन किया जा चुका है। विभिन्न वर्षों में कोयला उत्पादन की मात्रा इस प्रकार रही :

 

तालिका - 2.4 गेवरा परियोजना : कोयला उत्पादन वर्ष 1981-82 से 1999-2000

वर्ष

उत्पादन (लाख टन में)

वर्ष

उत्पादन (लाख टन में)

1981-82

4

1991-1992

132

1982-83

3

1992-1993

133

1983-84

14

1993-94

140

1984-85

32

1994-95

146.3

1985-86

42

1995-96

154

1986-87

50

1996-97

168

1987-88

64

1997-98

178.8

1988-89

82

1998-99

172.9

1989-90

97

1999-2000

180.1

1990-91

112

  

स्रोत : कार्यालय, गेवरा परियोजना, गेवरा

 

कर्मचारियों की संख्या एवं प्रदान की गई सुविधाएँ :-


गेवरा परियोजना के अन्तर्गत 2361 कर्मचारी कार्यरत हैं, जिन्हें आवासीय सुविधा के अन्तर्गत कुल 2648 आवास आवंटित किये गए हैं। परियोजना प्रबन्धन द्वारा कार्यरत कर्मचारियों हेतु अस्पताल, क्लब, कोऑपरेटिव सोसाइटी इत्यादि सुविधाएँ उपलब्ध कराई गई हैं।

पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण हेतु किये गए उपाय :-


खदानों में वायु प्रदूषण के मुख्य कारणों से विस्फोट, कोल कटिंग व खुदाई तथा कोयले का परिवहन है। जिनसे उत्पन्न प्रदूषण पर नियंत्रण हेतु किये गए उपाय इस प्रकार है :-

1. धूल कणों का दमन करने हेतु जल छिड़काव के 7 गतिशील यंत्र (Mobil van) उपयोग में लाये जा रहे हैं जिसकी क्षमता 28 किलो लीटर जल की है। खदानों के भीतरी भाग में कोयला परिवहन मार्गों पर भी जल का छिड़काव किया जाता है।
2. कोयले के लोडिंग तथा भण्डार क्षेत्र में जल का छिड़काव किया जाता है।
3. खदानों के भीतरी तथा कोयला परिवहन मार्गों के दोनों ओर कोयले की धूल को नियमित रूप से साफ किया जाता है।
4. वायु तथा ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु प्रबन्धन द्वारा वृहद रूप से वृक्षारोपण का कार्य किया जाता है। ऊपरी भार तथा आन्तरिक डम्प क्षेत्रों में सड़कों के किनारे तथा खदान के चारों ओर नियोजित वृक्षारोपण किया गया है। साथ ही, आम्रकानन नामक वाटिका का निर्माण खनन क्षेत्र के समीप किया गया है, जिसमें नियोजित रूप से वृक्षारोपण किया गया है। सन 1999 तक वृक्षारोपण की मात्रा इस प्रकार है :

 

तालिका - 2.5 गेवरा परियोजना : वृक्षारोपण की मात्रा

क्र.

स्थान

क्षेत्र

वृक्षों की संख्या

01.

ऊपरी भाग

80 हेक्टेयर

226800

02.

आन्तरिक डम्प क्षेत्र

21 हेक्टेयर

50150

03.

एवेन्यू वृक्षारोपण

348 हेक्टेयर

2497250

 

योग

449 हेक्टेयर

2774200

 

5. खदानों में कार्यरत सभी कर्मचारियों को एल.पी. गैस सुविधा दी गई है तथा घरेलू उपयोग हेतु कोयला जलाने पर प्रतिबन्ध लगाया गया है।

खदानों में जल-प्रदूषण का प्रमुख स्रोत मशीनों की धुलाई है जिससे निकलने वाले जल में मुख्यतः तेल तथा ग्रीस की उपस्थिति बनी रहती है। प्रबन्धन द्वारा मशीनों की धुलाई के लिये एच.ई.एम.एस. प्लेटफॉर्म का निर्माण किया गया है। यहाँ मशीनों की धुलाई हेतु 48 किलोमीटर जल की आवश्यकता प्रतिदिन होती है तथा 38.40 किलोलीटर जल मशीनों की धुलाई से निस्सारित होता है। मशीनों की धुलाई से निकलने वाले दूषित जल के उपचार हेतु यहाँ तीन टैंक बनाए गए हैं। सर्वप्रथम दूषित जल को प्रीसैटलिंग टैंक में एकत्र किया जाता है। जिसकी क्षमता 160 किलोलीटर जल की है। इसके पश्चात जल को आइल ट्रैप टैंक में ले जाया जाता है, जहाँ जल में मौजूद ठोस कण नीचे बैठ जाते हैं। इस टैंक की क्षमता 96 किलोलीटर जल की है। तत्पश्चात जल को पम्प द्वारा फ्लोगेलेशन टैंक में ले जाया जाता है। जहाँ प्रदूषित जल को एल्यूमिनियम सल्फेट द्वारा उपचारित किया जाता है। इससे निकलने वाले साफ जल का पुनः उपयोग मशीनों की धुलाई हेतु किया जाता है।

इसके अतिरिक्त खदान से निकलने वाले जल के लिये तीन सैटलिंग टैंक बनाए गए हैं। दूषित जल तीनों टैंकों में से होता हुआ लक्ष्मण नाले में मिल जाता है। इसके अतिरिक्त धूलकणों के दमन के लिये सम्प (Sump) (खनन कार्य के पश्चात छोड़ी गई निचली भूमि में जल भर जाने से बने हुए गड्ढे) के जल का उपयोग किया जाता है।

घरेलू बर्हिस्राव के लिये आवासीय क्षेत्र में सेप्टिक टैंक तथा सोकपिट का निर्माण किया गया है।

ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण हेतु किये गए उपाय :


01. ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारण विस्फोट है अतः सामान्यतः विस्फोट से सम्बन्धित कार्य निश्चित समय में दोपहर 12 से 4 बजे के बीच किये जाते हैं।
02. ध्वनि उत्पन्न करने वाली मशीनों का उचित रख-रखाव किया जाता है।
03. अधिक शोर के बीच कार्य करने वाले श्रमिकों को इयरप्लग उपलब्ध कराए गए हैं।
04. आवासीय क्षेत्र तथा कार्यालय के चारों ओर वृक्षारोपण किया गया है।

2. खनिज संसाधन :-


उद्योगों हेतु प्रमुख कच्चे माल के रूप में खनिज संसाधन ही प्रयुक्त होते हैं। अतः ये खनिज संसाधन क्षेत्र विशेष के विकास एवं औद्योगीकरण में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं।

खनिज सम्पदा के दृष्टिकोण से छत्तीसगढ़ अद्वितीय खनिज सम्पन्न क्षेत्र है। यहाँ के प्रमुख खनिजों में लौह-अयस्क, चूना पत्थर, डोलोमाइट, बाक्साइट हैं। खनिज संसाधनों की उपलब्धता परम्परागत रूप से धान का कटोरा कहलाने वाले प्रदेश में भिलाई इस्पात संयंत्र, बैलाडीला लौह अयस्क परियोजना तथा सीमेंट एवं इस्पात उद्योगों की स्थापना में सहायक सिद्ध हुई है। प्रदेश के प्रमुख खनिजों का विवरण इस प्रकार है :-

1. लौह अयस्क :- प्रदेश में लौह-अयस्क के 23012.6 लाख टन के संचित भण्डार हैं। लौह अयस्क के भण्डार मुख्यतः बस्तर, दुर्ग, राजनांदगाँव तथा रायपुर जिले में पाये गए हैं।

क. बस्तर जिले के अन्तर्गत लौह-अयस्क भण्डार के क्षेत्र :- बस्तर जिले में लौह अयस्क के 19392.6 लाख टन के भण्डार पाये गए हैं। लौह अयस्क के अधिकांश निक्षेप बैलाडीला तथा रावघाट क्षेत्र में है। इनके अतिरिक्त कुछ मात्रा में चारगाँव, छोटाडोंगर, मेटाबोड़ली तथा हहलाडीह क्षेत्र में भी लौह अयस्क के निक्षेप प्राप्त हुए है।

1. बैलाडीला क्षेत्र :- बैलाडीला क्षेत्र में 10741.89 लाख टन के संचित भण्डार हैं। बैलाडीला की पहाड़ियाँ उत्तर दक्षिण दिशा में 35 किमी. लम्बी तथा पूर्व पश्चिम दिशा में 9 किमी. की चौड़ाई में फैली हुई है।

2. रावघाट क्षेत्र :- यह क्षेत्र नारायणपुर से 9 किमी. उत्तर उत्तर पश्चिम में स्थित है। यहाँ लौह अयस्क के 9030 लाख टन के संचित भण्डार हैं इस क्षेत्र में लौह अयस्क के 6 निक्षेप पाये गए हैं जो इस प्रकार हैं :-

 

निक्षेप क्रमांक

संचित भण्डार (लाख टन में)

ग्रेड% Fe

A

2300 (Proved)

60-66

B

  

C

  

D

88 (In Ferred)

61-68

E

  

F

5850 (Proved)

60-68

 

निक्षेप क्रमांक A से E लम्बाई 17 किमी. तथा चौड़ाई 250 मीटर है। निक्षेप क्रमांक E सबसे वृहद है जिसकी लम्बाई 13 किमी तथा चौड़ाई 500 मीटर है।

1. छोटा डोंगर क्षेत्र :- इस क्षेत्र में 353.1 लाख टन लौह अयस्क के भण्डार हैं, जो छोटा डोंगर क्षेत्र में 45 किमी. के क्षेत्र में फैले हुए हैं। यह क्षेत्र सड़क मार्ग द्वारा नारायणपुर से सम्बद्ध है।

इस क्षेत्र में उपलब्ध लौह अयस्क निक्षेपों को 5 विभिन्न खण्डों में बाँटा गया है, जो इस प्रकार है :-

 

निक्षेप क्रमांक

संचित भण्डार (लाख टन में)

ग्रेड % Fe

1.

4.9

64

2.

21.8

65

3.

254.4

64 से 66

4.

57.6

64 से 66

5.

14.4

65

 

1. चारागाँव क्षेत्र :- चारागाँव ग्राम से 3.2 किमी. पश्चिम की ओर लौह अयस्क के 218 लाख टन के संचित भण्डार पाये गए हैं, जिन्हें 2 खण्डों में विभक्त किया गया है जो इस प्रकार है:-

 

निक्षेप क्रमांक

संचित भण्डार (लाख टन में)

ग्रेड % Fe

1. (वृहद)

183.6

60

2. (लघु)

34.4

60

 

2. मेटाबोडली क्षेत्र :- इस क्षेत्र में 156 लाख टन लौह अयस्क के अनुमानित संचित भण्डार हैं। भौमिकी तथा खनिकर्म संचालनालय द्वारा मेटाबोड़ली क्षेत्र में उच्च कोटि लौह अयस्क के 2 क्षेत्रों का पता लगाया गया है, जो कि मेटाबोड़ली पठार से 30 किमी. की दूरी पर नारायणपुर तहसील में अन्तागढ़ के पश्चिम में स्थित है। इस क्षेत्र के निक्षेप में लोहे की मात्रा 65 प्रतिशत है। दूसरा क्षेत्र दक्षिण पश्चिम दिशा में 200 मीटर लम्बा तथा 40 मीटर चौड़ा है। जिसके निक्षेप में लोहे की मात्रा 64 प्रतिशत है।

3. हहालाड़ी क्षेत्र :- हहालाड़ी एक पहाड़ी क्षेत्र है जो 40 किमी लम्बी तथा 0.6 किमी. चौड़ा क्षेत्र है। यहाँ 123.2 लाख टन लौह अयस्क के संचित भण्डार हैं।

ख. दुर्ग जिले के अन्तर्गत लौह अयस्क के भण्डार क्षेत्र :-


दुर्ग जिले में 1640 लाख टन लौह अयस्क के सुरक्षित भण्डार पाये गए हैं। जो कि मुख्यतः दल्ली राजहरा क्षेत्र में अवस्थित है। यह क्षेत्र दुर्ग से 85 किमी. दक्षिण में दुर्ग डौंडी मार्ग पर स्थित है। यहाँ मुख्यतः हेमेटाइट अयस्क उपलब्ध है जिनमें लोहे की मात्रा 66.3 से 68.57% है। दल्ली राजहरा की खदानें 2 भागों में विभक्त है पूर्व दिशा में स्थित पहाड़ को राजहरा तथा पश्चिम में फैले पहाड़ को दल्ली के नाम से जाना जाता है। दल्ली राजहरा के अन्तर्गत प्रमुख क्षेत्र, (जहाँ भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा खनन कार्य किया जा रहा है।) राजहरा हिल्स, पंड़री हिल्स (720 हेक्टेयर), राजहरा हिल्स डुल्की (2565.29 हेक्टेयर) महामाया (3761 हेक्टेयर) नारंगसुर मतरावाली, दल्ली (605 हेक्टेयर) हैं। दल्ली राजहरा खनन क्षेत्र के अन्तर्गत प्रमुख 7 खदानें हैं दल्ली (कोडेकरना), राजहरा, झरनदल्ली, कोंकन, महामाया, मयूरपानी (दल्ली) तथा अरीडोंगरी खदान। राजहरा खदान में उत्पादन 1960 तथा दल्ली खदान में सितम्बर 1965 में उत्पादन प्रारम्भ हुआ। दल्ली राजहरा खदान क्षेत्र में वर्षवार उत्पादन की मात्रा निम्नानुसार है :-

 

तालिका - 2.6 दल्लीराजहरा खदान क्षेत्र : लौह अयस्क उत्पादन (मात्रा हजार टन में)

वर्ष

राजहरा खदान

दल्ली खदान

योग

1990-91

3442993

2901939

6344932

1991-92

3463532

3060391

6523923

1992-93

3351870

3087713

6439583

1993-94

3512343

3292942

6805285

1994-95

3500857

3790084

7290941

1995-96

3552553

4359551

7912104

1996-97

3871380

4186770

8058150

1997-98

4172814

5114263

9287077

स्रोत : प्रचालन सांख्यिकी 1992-93 से 1997-98, भिलाई इस्पात संयंत्र।

 

ग. राजनांदगाँव जिले के अन्तर्गत लौह अयस्क भण्डार क्षेत्र :-


राजनांदगाँव जिले में 50 लाख टन उच्च श्रेणी के लौह अयस्क के भण्डार पाये गए हैं। लौह अयस्क के ये निक्षेप बोरिया टिब्बू ग्राम से 7 किमी. पूर्व में स्थित है। बोरिया टिब्बू ग्राम मानपुर मार्ग पर दल्लीराजहरा से 30 किमी. की दूरी पर स्थित है। यह निक्षेप क्षेत्र दुर्ग, राजनांदगाँव तथा बस्तर तीनों के संधि स्थल पर स्थित है। यद्यपि यह क्षेत्र दल्लीराजहरा महामाया खदान का ही एक भाग है। खनिकर्म संचालनालय द्वारा जपडोंगरी, कन्नीडोंगरी तथा कुकरेलडोंगरी क्षेत्र में लौह अयस्क निक्षेप का पता लगाया गया है। इन निक्षेपों के नमूनों के विश्लेषण से ज्ञात हुआ है कि इनमें लौह की मात्रा 63% से 68% सिलिका की मात्रा .08% से 5.18% है।

घ. रायपुर जिले के अन्तर्गत लौह अयस्क भण्डार क्षेत्र :-


रायपुर जिले में न्यून मात्रा में लौह अयस्क के भण्डार पाये गए हैं। बिन्द्रानवागढ़ के अन्तर्गत देवभोग तहसील के मुचुआबहल क्षेत्र में लौह-अयस्क के भण्डार प्राप्त हुए हैं। यह क्षेत्र रायपुर से 120 किमी. दक्षिण पूर्व में तथा धमतरी से 40 किमी. पूर्व में स्थित है। प्रदेश के बस्तर जिले में लौह अयस्क का खनन कार्य राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) द्वारा किया जा रहा है। देश में लौह उत्पादन का 21 प्रतिशत प्रदेश में उत्पादित होता है तथा यह बिहार-झारखण्ड के बाद दूसरे स्थान पर है।

राष्ट्रीय खनिज विकास निगम :-


राष्ट्रीय खनिज विकास निगम द्वारा बस्तर के भीतरी आदिवासी इलाके बैलाडीला में लौह अयस्क खनन कार्य विकसित किया गया है। बस्तर जिले में लौह अयस्क के 19342.6 लाख टन के संचित भण्डार हैं। जिले में लौह अयस्क के प्रमुख क्षेत्र बैलाडीला तथा रावघाट है।

बैलाडीला के लौह-अयस्क के संचय 1940 के पूर्व से ज्ञात है तथा 1968 में प्रथम खदान बैलाडीला 14 आरम्भ हुई है। बैलाडीला समूह की खदानें राष्ट्र की वृहद लौह अयस्क खनन उद्योगों में से एक है ये खदानें (निक्षेप क्रमांक 14 तथा 5) पहाड़ी वन्य भूमि में कुल 1079.89 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हुई है। निक्षेप क्रमांक 5, जनवरी 1977 में प्रारम्भ हुई।

बैलाडीला समूह की पहाड़ियाँ उत्तर दक्षिण दिशा में 35 किमी. लम्बी तथा पूर्व पश्चिम दिशा में 9 किमी. चौड़ी है। समुद्र सतह से क्षेत्र की ऊँचाई 1000 से 1230 मीटर है। यहाँ प्राप्त लौह अयस्क निक्षेपों को 14 वर्गों में विभाजित किया गया है। जो निम्नांकित है :-

 

निक्षेप क्रमांक

संचित भण्डार (लाख टन में)

ग्रेड % % Fe

1.

1380

60

2. और 3.

610

68

4.

1074.5

64

5.

1272

68

6. तथा 7

N.E.

65

8.

300

64

9.

N.E.

65

10.

2090

68

11/अ

170

68

11/ब

1040

68

11/स

998.7

68

12.

N.E.

65

13.

1500

64

14.

301.69

61

Note : N.E. (Not estimated)

 

बैलाडीला के उपरोक्त निक्षेप वर्गों में कुल 9462.39 लाख टन लौह अयस्क के संचित भण्डार है जो विश्व में सर्वोत्तम कोटि के लौह अयस्क में से एक है। निक्षेप क्रमांक 5, 10, 14, 11A तथा 11C में राष्ट्रीय खनिज विकास निगम द्वारा खनन कार्य किया जा रहा है। उपरोक्त निक्षेप बैलाडीला के ग्राम किरन्दुल तहसील दन्तेवाड़ा में स्थित है। यहाँ पाया जाने वाला लौह अयस्क हेमेटाइट लौह अयस्क है। वर्ष 1998-99 निक्षेप क्रमांक 5 में 2022624.02 टन लौह पिंड अयस्त तथा 2514837.23 टन लौह चूर्ण अयस्क उत्पादित हुआ।

बैलाडीला में उत्पादित लौह अयस्क का निर्यात जापान को किया जाता है। इसके अतिरिक्त विशाखापट्टनम इस्पात संयंत्र, जिसकी उत्पादन क्षमता 20 लाख टन वार्षिक इस्पात उत्पादन की है, को लौह अयस्क की आपूर्ति भी इन्हीं खदानों से होती है। एस्सार लिमिटेड तथा सनप्लैग वाइजैग को भी यहाँ से लौह अयस्क का निर्यात किया जाता है। इसके अतिरिक्त एन एम डी सी द्वारा कोरिया तथा चीन को भी निर्यात किया जाता है।

3. चूना पत्थर :-


प्रदेश में चूना पत्थर के 36015.6 लाख टन के संचित भण्डार हैं। चूना पत्थर प्रदेश का एक प्रमुख खनिज संसाधन है जो इस क्षेत्र में सीमेंट उद्योगों के स्थानीयकरण का प्रमुख कारण है।

प्रदेश के प्रमुख चूना पत्थर भण्डार क्षेत्र इस प्रकार है :-

क. रायपुर जिले के अन्तर्गत चूना पत्थर भण्डार क्षेत्र :-


रायपुर जिले में चूना पत्थर के 8390 लाख टन के भण्डार पाये गए हैं। जिले के प्रमुख चूना पत्थर भण्डार के क्षेत्र निम्नांकित है :-

1. मांढर क्षेत्र :- हावड़ा-मुम्बई मार्ग पर स्थित मांढर रेलवे स्टेशन से 2 से 5 किमी पूर्व में चूना पत्थर के भण्डार मांढर, दोंदकला, मटिया तथा लालपुर ग्राम में पाये गए हैं। इन क्षेत्रों में 320 लाख टन चूना पत्थर के संचित भण्डार हैं।

2. सिलयारी क्षेत्र :- सिलयारी रेलवे स्टेशन से 3 किमी दक्षिण में सिलयारी, तर्रा, पथरिया तथा खुड़मुड़ी ग्रामों में 480 लाख टन सीमेंट ग्रेड चूना पत्थर के भण्डार पाये गए हैं।

3. तिल्दा क्षेत्र :- तिल्दा रेलवे स्टेशन से 5 किमी दक्षिण पूर्व में बहेसर, कुंदरू तथा टंडवा ग्रामों के मध्य 380 लाख टन चूना पत्थर के निक्षेप पाये गए हैं। इसी आधार पर यहाँ 1975 में 12 टन वार्षिक उत्पादन क्षमता वाला सीमेंट कारखाना बैकुण्ठ में स्थापित किया गया है।

4. रावन क्षेत्र :- भाटापारा रेलवे स्टेशन से 16 किमी पूर्व में ग्राम रावन, पौसरी तथा कुकुरड़ी ग्राम में 1390 लाख टन चूना पत्थर के भण्डार हैं।

5. सोनाडीह क्षेत्र :- निपनिया रेलवे स्टेशन से 23 किमी दक्षिण में सोनाडीह, रिसदा/रिसदी तथा खपरी ग्राम में चूना पत्थर में 1600 लाख टन के निक्षेप पाये गए हैं।

6. माल्दी मोपार क्षेत्र :- भाटापार से 16 किमी दक्षिण-पूर्व में माल्दीमोपार क्षेत्र में 3050 लाख टन चूना पत्थर के भण्डार अवस्थित हैं।

7. जिपान क्षेत्र :- हथबंद से 18 किमी पूर्व में जिपान, रावन तथा अमेरी पंड्री ग्रामों में 1000 लाख टन चूना पत्थर के भण्डार उपलब्ध हैं।

8. हिरमी क्षेत्र :- तिल्दा से 18 किमी पूर्व में हिरमी, सकलोर तथा परसवानी ग्राम में 1600 लाख टन चूने के पत्थर के भण्डार हैं।

9. चांदी क्षेत्र :- हथबंद से 22 किमी पूर्व में 800 लाख टन चूनापत्थर के भण्डार चांदी क्षेत्र में पाये गए हैं।

10. गैतरा क्षेत्र :- यह क्षेत्र भाटापारा से 20 किमी पूर्व में स्थित है तथा रावन क्षेत्र का पूर्वी विस्तार है, जहाँ 1190 लाख टन चूना पत्थर के भण्डार पाये गए हैं। इस निक्षेप क्षेत्र के अधिकांश भाग कृषिगत सिंचित क्षेत्र है।

11. फरहाड़ा क्षेत्र :- भाटापारा से 10 किमी दक्षिण में स्थित फरहाड़ा क्षेत्र में 60 लाख टन चूना पत्थर के निक्षेप पाये गए हैं।

12. चिचपोल बिटकुली क्षेत्र :- निपनिया से 5 किमी दक्षिण पूर्व में स्थित चिचपोल बिटकुली क्षेत्र में 110 लाख टन चूने पत्थर के भण्डार हैं।

13. सेमराडीह मोहरा क्षेत्र :- यह क्षेत्र खरोरा के निकट स्थित है जहाँ 1024 लाख टन चूना पत्थर के भण्डार उपलब्ध हैं। यहाँ उपलब्ध अधिकांश चूना पत्थर का उपयोग एल एण्ड टी सीमेंट संयंत्र द्वारा किया जाता है।

14. भटबेहरा - अमेरी-बेसिन क्षेत्र :- अमेरी पेण्ड्री बेसिन क्षेत्र में कुल 221.3 लाख टन चूना पत्थर के भण्डार का अनुमान लगाया गया है जो लघु सीमेंट को चूना पत्थर आपूर्ति हेतु पर्याप्त होगा।

15. सुकेलाभाटा क्षेत्र :- भाटापारा से 25 किमी पूर्व में सुकेलाभाटा तथा परसाभादर गाँव में 1750 लाख टन चूना पत्थर के भण्डार पाये गए हैं।

ख. बिलासपुर जिले के अन्तर्गत चूना पत्थर भण्डार क्षेत्र :-


बिलासपुर जिले में 15410 लाख टन चूना पत्थर के भण्डार उपलब्ध है। चूना पत्थर निक्षेप के प्रमुख क्षेत्र अकलतरा, अरसमेटा, चिलहटी, बारगाँव, पामगढ़ तथा तेंदुआ हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है -

1. अकलतरा क्षेत्र :- इस क्षेत्र में चूना पत्थर के निक्षेप अकलतरा रेलवे स्टेशन से 4 किमी दक्षिण में स्थित हैं, जहाँ 440 लाख टन चूना पत्थर के भण्डार पाये गए हैं जिसके आधार पर यहाँ सीमेंट कारपोरेशन ऑफ इण्डिया द्वारा 4 लाख टन वार्षिक उत्पादन क्षमता का सीमेंट संयंत्र स्थापित किया गया है।

2. अरसमेटा क्षेत्र :- अरसमेटा क्षेत्र अकलतरा से 12 किमी दक्षिण पूर्व में स्थित है जहाँ 1000 लाख टन चूना पत्थर के संचित भण्डार हैं। इस निक्षेप के आधार पर यहाँ रेमण्ड सीमेंट वर्क्स स्थापित हुआ है जिसकी उत्पादन क्षमता 22.40 लाख टन वार्षिक है।

3. चिलहटी क्षेत्र :- मुम्बई हावड़ा रेलमार्ग पर जयराम नगर से 45 किमी दक्षिण में शिवनाथ तथा लीलागर नदियों के बीच चिलहटी ग्राम के चारों ओर उत्तम कोटि के 4850 लाख टन चूना पत्थर के भण्डार पाये गए हैं।

4. बारगाँव क्षेत्र :- अकलतरा से 12 किमी. दक्षिण में बारगाँव क्षेत्र में 300 लाख टन चूना पत्थर के भण्डार पाये गए हैं।

5. पामगढ़ क्षेत्र :- अकलतरा से 30 किमी दक्षिण में पामगढ़ क्षेत्र में 500 लाख टन चूना पत्थर के भण्डार पाये गए है।

6. तेन्दुआ क्षेत्र :- बिलासपुर कटनी रेलमार्ग पर करगी रोड रेलवे स्टेशन से 18 किमी पश्चिम में तेन्दुआ क्षेत्र में स्थित है, जहाँ 120 लाख टन चूना पत्थर के भण्डार पाये गए हैं।

स. दुर्ग जिले के अन्तर्गत चूना पत्थर भण्डार क्षेत्र :-


दुर्ग जिले में 8810 लाख टन चूना पत्थर के संचित भण्डार हैं। चूना पत्थर निक्षेप के महत्त्वपूर्ण क्षेत्र नंदनी, पथरिया, सेमरिया, मेरेसरा, मतरागोटा तथा गोटवानी हैं। पथरिया चूना पत्थर निक्षेप के आधार पर ए.सी.सी. लिमिटेड द्वारा इस क्षेत्र में एक सीमेंट संयंत्र स्थापित किया गया है। जिसकी उत्पादन क्षमता 15.80 लाख टन वार्षिक है। नंदिनी क्षेत्र का बी.एफ. ग्रेड का चूना पत्थर भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा उपयोग में लाया जाता है। सेमरिया, अछोली तथा मतरागोटा क्षेत्र के निक्षेप सीमेंट ग्रेड के हैं, जो वृहद सीमेंट संयंत्रों हेतु उपयुक्त हो सकते हैं।

1. नंदनी क्षेत्र :- दुर्ग से 20 किमी दूर दुर्ग बेमेतरा मार्ग पर नंदिनी चूना पत्थर क्षेत्र स्थित है, जहाँ 1980 लाख टन चूना पत्थर के भण्डार उपलब्ध हैं।

2. मेरेसरा क्षेत्र :- यह क्षेत्र दुर्ग से 25 किमी उत्तर में दुर्ग-धमधा मार्ग पर स्थित है जहाँ 351.7 लाख टन सीमेंट रोड चूना पत्थर उपलब्ध हैं।

3. सेमरिया क्षेत्र :- दुर्ग से 30 किमी उत्तर, उत्तर पूर्व में दुर्ग बेरला मार्ग पर सेमरिया क्षेत्र में 800 लाख टन सीमेंट चूना पत्थर के भण्डार उपलब्ध हैं।

4. अछोली क्षेत्र :- अछोली क्षेत्र दुर्ग से 55 किमी उत्तर में दुर्ग-धमधा-गंडई मार्ग पर स्थित है, जहाँ 800 लाख टन सीमेंट ग्रेड चूना पत्थर के संचित भण्डार हैं।

5. गोटवानी क्षेत्र :- अछोली से 5 किमी पूर्व में गोटवानी ग्राम में 210.4 टन सीमेंट ग्रेड चूना पत्थर के भण्डार उपलब्ध हैं।

6. मतरागोटा क्षेत्र :- दुर्ग से 45 किमी उत्तर पूर्व में दुर्ग-बेरला मार्ग पर मतरागोटा ग्राम में 874.6 लाख टन सीमेंट ग्रेड चूना पत्थर के भण्डार हैं।

घ. राजनांदगाँव जिले के अन्तर्गत चूनापत्थर भण्डार क्षेत्र :-


राजनांदगाँव जिले में 250 लाख टन सीमेंट ग्रेड चूना पत्थर के भण्डार पाये गए हैं जहाँ चूना पत्थर के मुख्य क्षेत्र खैरा, मटगाँव तथा चारभाटा है। इस क्षेत्रों के अतिरिक्त निम्न कोटि के चूनापत्थर के क्षेत्र अर्जुनी, मुसरा, ढेलकाडीह तथा चंदेली हैं।

ङ. बस्तर जिले के अन्तर्गत चूना पत्थर भण्डार क्षेत्र :-


बस्तर जिले में 2985.6 लाख टन चूना पत्थर के संचित भण्डार हैं। महत्त्वपूर्ण निक्षेप क्षेत्र मांझीडोंगरी, रायकोट, चिटपुर तथा छापरा भानपुरी क्षेत्र में है। भोपालपट्टनम में चूना पत्थर के निम्नकोटि के निक्षेप पाये गए हैं।

1. मांझीडोंगरी क्षेत्र :- मांझीडोगरी क्षेत्र कांगेर नदी के दाहिने तट पर 18050 उत्तरी अक्षांश से 18055 उत्तरी अक्षांश से 81050 से 82000 पूर्वी देशान्तर तक विस्तृत है तथा जगदलपुर से 30 किमी जगदलपुर कोन्टा मार्ग पर स्थित है। यहाँ 1200 लाख टन सीमेंट ग्रेड चूना पत्थर के भण्डार उपलब्ध हैं।

2. देवरापाल क्षेत्र :- इस क्षेत्र में चूना पत्थर के निक्षेप जगदलपुर मुख्यालय से 22 किमी की दूरी पर है, जहाँ 190 लाख टन चूना पत्थर के संचित भण्डार हैं जिस आधार पर यहाँ दो लघु सीमेंट संयंत्रों की स्थापना की गई है।

3. पोटनार बरांजी क्षेत्र :- जगदलपुर चित्रकूट मार्ग पर 19 किमी पश्चिम में पोटनार तथा बरांजी क्षेत्र में 220 लाख टन सीमेंट ग्रेड चूना पत्थर के भण्डार उपलब्ध हैं।

4. जूनागुड़ा क्षेत्र :- जूनागुड़ा क्षेत्र जगदलपुर जिला मुख्यालय से 17 किमी की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 43 पर स्थित है। यह क्षेत्र इन्द्रावती बेसिन का क्षेत्र है जहाँ 3 वर्ग किमी. क्षेत्र पर 24 मीटर की मोटाई में सीमेंट ग्रेड चूना पत्थर के 1215.6 लाख टन के भण्डार उपलब्ध हैं।

5. रायकोट क्षेत्र :- जगदलपुर से 25 किमी पश्चिम में जगदलपुर गीदम मार्ग पर रायकोट क्षेत्र के अन्तर्गत 160 लाख टन चूना पत्थर के भण्डार पाये गए हैं।

6. सुकमा क्षेत्र :- जगदलपुर से 108 किमी की दूरी पर जगदलपुर - कोन्टा मार्ग पर स्थित सुकमा ग्राम में 16 किमी उत्तर में 8 किमी चौड़ी पट्टिका में चूना पत्थर के 60 लाख टन के भण्डार पाये गए हैं।

च. सरगुजा जिले के अन्तर्गत चूना पत्थर भण्डार क्षेत्र :-


सरगुजा जिले में आर्कियन समूह की चट्टानों में चूना पत्थर के निक्षेप पाये गए हैं। सूरजपुर तहसील के अन्तर्गत कुबेरपुर, कुदार, भोदना, अमेरा तथा भोरखो ग्राम में चूना पत्थर के निक्षेप उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त ग्राम पटना, ओकरा, बोबगा, तुलबुल, नवाडीह, मुन्डीझरिया, सैनदा केसौरी, मुरकिल तथा कमराजी में भी चूना पत्थर के निक्षेप उपलब्ध हैं।

छ. रायगढ़ जिले के अन्तर्गत चूना पत्थर भण्डार क्षेत्र :-


रायगढ़ जिले में 1370 लाख टन चूना पत्थर के संचित भण्डार हैं। खरसिया क्षेत्र के अन्तर्गत बानीपाथेर, छोड़ा, बरमकेला, सहजपाली ग्राम तथा सारंगढ़ क्षेत्र के अन्तर्गत तिमारलेगा, गुरेली तथा धौरभाटा ग्राम में चूना पत्थर के निक्षेप उपलब्ध हैं। इनमें खरसिया क्षेत्र के अन्तर्गत 140 लाख टन तथा सारंग गढ़ क्षेत्र के अन्तर्गत 1230 लाख टन चूना पत्थर के संचित भण्डार हैं।

4. बाक्साइट :-


बाक्साइट प्रदेश का एक महत्त्वपूर्ण धातु खनिज है। छत्तीसगढ़ में बाक्साइट के 4138.2 लाख टन के भण्डार उपलब्ध है, जो मुख्यतः सरगुजा, बिलासपुर, रायगढ़, राजनांदगाँव तथा बस्तर जिलों में फैले हुए हैं।

क. सरगुजा जिले के अन्तर्गत बाक्साइट भण्डार क्षेत्र :-


सरगुजा जिले में बाक्साइट के 3900 लाख टन के संचित भण्डार हैं। बाक्साइट निक्षेप के महत्त्वपूर्ण क्षेत्र मैनपाट, सामरीपाट, जमीरापाट, जोकापाट तथा छुटाईपाट है। उपरोक्त सभी क्षेत्र जिले के पूर्वी तथा दक्षिण पूर्वी क्षेत्र में स्थित हैं।

1. मैनपाट क्षेत्र :- मैनपाट क्षेत्र में 271.2 लाख टन बाक्साइट के संचित भण्डार का अनुमान लगाया गया है। यह क्षेत्र अम्बिकापुर से 30 किमी दक्षिण में स्थित है। यहाँ बाक्साइट के भण्डार सपनादन्द, नगरदन्द, कुडरीडीह, केसरा, धानकेसोरा, परपाटिया, ललया, नर्मदापुर (बारिमा), खैर कन्दराजा तथा सरभंजा क्षेत्र के निकट पाये गए हैं। इनमें कंदराजा तथा नर्मदापुर में 124 लाख टन बाक्साइट के निक्षेप उपलब्ध हैं।

2. जमीरापाट सामरीपाट क्षेत्र :- इस क्षेत्र में 356.2 लाख टन बाक्साइट के अनुमानित भण्डार हैं, जहाँ छुटई, सेरांगदंग, तातीजहरिया, सामरी, चारघाट, जमीरापाट, बीरहारपाट, कुटीपाट तथा गौपाटो में बाक्साइट निक्षेप उपलब्ध हैं।

3. अन्य क्षेत्र :- बारपाट, असानपानी, जोका, गरहडील तथा सतपथारिकार क्षेत्रों में भी न्यून मात्रा में बाक्साइट के भण्डार पाये गए हैं।

उपरोक्त सभी क्षेत्रों में इयोसीन क्रम की चट्टानों में बाक्साइट के निक्षेप पाये गए हैं।

ख. बिलासपुर जिले के अन्तर्गत बाक्साइट भण्डार क्षेत्र :-


बिलासपुर जिले के अन्तर्गत दक्कन ट्रैप संस्तर में बाक्साइट के 37 लाख टन के संचित भण्डार हैं। बाक्साइट निक्षेप के महत्त्वपूर्ण क्षेत्र छुटकापहाड़, पौनाखैरा पहाड़ केरेलापहाड़, रानीखेत पहाड़ तथा रजगामार पहाड़ इत्यादि है। बाक्साइट निक्षेप के इन भण्डारों के आधार पर ही कोरबा में एल्युमिनियम उद्योग की स्थापना हुई है।

ग. रायगढ़ जिले के अन्तर्गत बाक्साइट भण्डार क्षेत्र :-


रायगढ़ जिले में दक्कन ट्रैप संस्तरों में 47 लाख टन बाक्साइट के अनुमानित भण्डार है। बाक्साइट निक्षेप के क्षेत्र खुरिया, मरोल, सन्ना, दातौनपानी तथा पेन्ड्रापाट हैं। इसके अतिरिक्त भीयुमैला, मर्रादीपा, सरजुला, पटिया, दोव, सरडीह, चांपा तथा धोरापाट में भी बाक्साइट निक्षेप पाये गए हैं।

घ. राजनांदगाँव जिले के अन्तर्गत बाक्साइट भण्डार क्षेत्र :-


राजनांदगाँव जिले में मेटलग्रेड बाक्साइट के 64.2 लाख टन बाक्साइट भण्डार उपलब्ध हैं। प्रमुख सेमसेटा में 95 लाख टन, रबदा में 5.1 लाख टन, केसमरधा में 16.8 लाख टन दलदली में 18.9 लाख टन तथा बोदई में 23.9 लाख टन बाक्साइट के भण्डार उपलब्ध हैं।

ङ. बस्तर जिले के अन्तर्गत बाक्साइट भण्डार क्षेत्र :-


बस्तर जिले में 90 लाख टन बाक्साइट के संचित भण्डार हैं। प्रमुख क्षेत्र इस प्रकार है -

1. तारेलीमेट्टा क्षेत्र :- बाक्साइट निक्षेप मुख्यतः बैलाडीला श्रेणी में पाये गए हैं, जिसकी कुछ मात्रा तारेलीमेट्टा पहाड़ी में पाई गई है। यहाँ 8.3 लाख टन बाक्साइट भण्डार का अनुमान लगाया गया है।

2. केसकाल क्षेत्र :- केसकाल क्षेत्र में उत्तम कोटि के बाक्साइट भण्डार उपलब्ध हैं। यह क्षेत्र जगदलपुर से 130 किमी की दूरी पर जगदलपुर-रायपुर राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 43 पर स्थित है। यहाँ बाक्साइट निक्षेप के प्रमुख क्षेत्र बंधनपारा, कुआ, कुन्दरवाही, छेरबेरा तथा बुधियारमरी है। छेराबेरा में 1,89,470 टन तथा कुन्दरवाही में 6,30,870 टन बाक्साइट के भण्डार पाये गए हैं।

3. करीतगौन क्षेत्र :- यह क्षेत्र जगदलपुर जिला मुख्यालय से 17 किमी की दूरी पर स्थित है, जहाँ बाक्साइट निक्षेप के 50 मीट्रिक टन के भण्डार 2 वर्ग किमी क्षेत्र में 20 मीटर की मोटाई में उपलब्ध हैं।

1. डोलोमाइट :-


प्रदेश में डोलोमाइट के 5930.06 लाख टन के संचित भण्डार उपलब्ध हैं। डोलोमाइट निक्षेप मुख्यतः रायपुर, बिलासपुर तथा बस्तर जिलों में उपलब्ध हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है :-

क. रायपुर जिले के अन्तर्गत डोलोमाइट भण्डार क्षेत्र :-


रायपुर जिले में 50.06 लाख टन डोलोमाइट के भण्डार हैं। प्रमुख निक्षेप क्षेत्र निम्नांकित है -

1. भाटापारा पटपार क्षेत्र :- भाटापारा रेलवे स्टेशन से .8 किमी की दूरी पर स्थित इस क्षेत्र में 1.32 लाख टन डोलोमाइट के संचित भण्डार पाये गए हैं।

2. गंडाडीह क्षेत्र :- गंडाडीह ग्राम के उत्तर-पूर्व में न्यूनमात्रा में डोलोमाइट के निक्षेप पाये गए हैं।

3. टिकुलिया क्षेत्र :- टिकुलिया ग्राम के समीप डोलोमाइट के निक्षेप न्यून मात्रा में उपलब्ध हैं।

ख. बिलासपुर जिले के अन्तर्गत डोलोमाइट भण्डार क्षेत्र :-


बिलासपुर जिले में डोलोमाइट के 5080 लाख टन के भण्डार उपलब्ध हैं। जहाँ रायपुर सुपर ग्रुप संस्तर में डोलोमाइट के निक्षेप पाये गए हैं। मुख्य क्षेत्र हिर्री, बाराद्वार तथा बेलपान धुमा है।

1. हिर्री क्षेत्र :- हिर्री क्षेत्र में 410 लाख टन डोलोमाइट के भण्डार का अनुमान लगाया गया है। यह निक्षेप क्षेत्र बिलासपुर से 14 किमी की दूरी पर दक्षिण-पश्चिम में बिलासपुर बिल्हा मार्ग पर स्थित है।

2. बाराद्वार क्षेत्र :- इस क्षेत्र में उच्चकोटि के 2500 लाख टन डोलोमाइट के भण्डार पाये गए हैं। यहाँ प्रमुख डोलोमाइट निक्षेप के क्षेत्र डुमरापारा, बाराद्वार, छपोरा, दरबा, घौघरी, सकरेली तथा चीतापंड़रिया है।

3. बेलपान धुमा क्षेत्र :- इस क्षेत्र में 118.5 लाख टन उच्चकोटि के डोलोमाइट भण्डार पाये गए हैं। यह निक्षेप क्षेत्र हिर्री क्षेत्र का ही पश्चिमी विस्तारित क्षेत्र है। पोंगरिया में 65.59 लाख टन तथा बेलपान में 52.93 लाख टन डोलोमाइट के संचित भण्डार हैं।

ग. दुर्ग जिले के अन्तर्गत डोलोमाइट भण्डार क्षेत्र :-


दुर्ग जिले में 280 लाख टन डोलोमाइट के भण्डार मोहभाटा तथा कोदवा क्षेत्र में पाये गए हैं। यह क्षेत्र दुर्ग से 60 किमी की दूरी पर दुर्ग-बेमेतरा मार्ग पर स्थित है, जहाँ ग्रे-डोलोमाइट के निक्षेप छत्तीसगढ़ सुपर ग्रुप की रायपुर ग्रुप संस्तर की चट्टानों में पाये गए हैं।

घ. बस्तर जिले के अन्तर्गत डोलोमाइट भण्डार क्षेत्र :-


बस्तर जिले में डोलोमाइट के निक्षेप तिरिया-मचकोट क्षेत्र में इन्द्रावती ग्रुप संस्तरों में पाये गए हैं। यह निक्षेप क्षेत्र जगदलपुर से 24 किमी की दूरी पर पूर्व दक्षिण पूर्व में स्थित है। जहाँ 520 लाख टन डोलोमाइट के भण्डार उपलब्ध हैं। प्रदेश में पाये जाने वाले अन्य खनिजों में क्वार्टजाइट, क्वार्टज, फ्लुओराइट, कोरण्डम, टिन अयस्क, लेड, मीका, ग्रेफाइट, फेल्डस्पार, तांबा अयस्क, सोना, अलेक्जेडराइट तथा हीरा है। जिनका विवरण इस प्रकार है :-

1. क्वार्टजाइट :- प्रदेश में क्वार्टजाइट मुख्यतः दुर्ग, राजनांदगाँव तथा रायगढ़ जिलों में पाया गया है।

दुर्ग जिले में 200 लाख टन क्वार्टजाइट के संचित भण्डार हैं। प्रमुख निक्षेप क्षेत्र दानीटोला है। यह क्षेत्र दुर्ग से 60 किमी की दूरी पर दुर्ग डौण्डी मार्ग पर स्थित है।

राजनांदगाँव में क्वार्टजाइट के भण्डार पीपला-कछार ग्राम में पाये गए हैं। यह क्षेत्र खैरगढ़ से 15 किमी की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है।

रायगढ़ में क्वार्टजाइट के निक्षेप छत्तीसगढ़ सुपर ग्रुप की चंद्रपुर संस्तर के अन्तर्गत उरदाना, भूपदेवपुर तथा चिराईपानी ग्राम में पाये गए हैं।

2. क्वार्टज :- प्रदेश में क्वार्टज के 240 लाख टन के संचित भण्डार पाये गए हैं, जो कि मुख्यतः राजनांदगाँव तथा बस्तर में उपलब्ध हैं।

राजनांदगाँव जिले में क्वार्टज के 190 लाख टन के अनुमानित संचित भण्डार डोंगरगढ़ विकासखण्ड के अन्तर्गत बोरतलाव तथा पनियाजोब ग्राम में पाये गए हैं।

बस्तर जिले में 50 लाख टन क्वार्टज के संचित भण्डार जगदलपुर से 47 किमी दक्षिण में जगदलपुर सुकमा मार्ग पर झिराम क्षेत्र के अन्तर्गत पुलुटोंगु डोंगरी तथा गोजिया डोंगरी में पाये गए हैं।

3. फ्लुओराइट :- फ्लुओराइट निक्षेप प्रदेश के रायपुर तथा राजनांदगाँव जिले में पाये गए हैं फ्लुओराइट सामान्यतः Pneumatolitie तथा Pegmatitic निक्षेपों में पाया जाता है, जिसका उपयोग अधिकांशतः धातु उद्योग, रसायन उद्योग, कांच तथा सिरेमिक उद्योग में किया जाता है।

रायपुर जिले में 4300 टन फ्लुओराइट के संचित भण्डार है, जो जिले के सरायपाली क्षेत्र के छुराकुटा, मकरमुता तथा घाटकछार ग्राम में पाये गए हैं।

राजनांदगाँव जिले में .65 लाख टन फ्लुओराइट के भण्डार हैं जो राजनांदगाँव से 19 किमी पश्चिम में चांदी डोंगरी क्षेत्र में पाये गए हैं।

4. कोरण्डम :- कोरण्डम प्राकृतिक ऑक्साइट का एक बहुत ही कठोर खनिज है, इसके पारदर्शक रूप पुखराज, नीलम तथा अन्य बहुमूल्य पत्थर हैं। प्रदेश में 24 टन कोरण्डम के संचित भण्डार हैं जो कि मुख्यतः बस्तर जिले में उपलब्ध हैं। बस्तर में कोरण्डम भोपालपट्टनम के समीप उत्तरी कछनुर तथा उत्तरी छिकुड़ापाली में पाया गया है।

1. टिन अयस्क :- प्रदेश में टिन अयस्क के 6773.59 टन के संचित भण्डार हैं, जो मुख्यतः बस्तर जिले में पाये गए हैं। यहाँ टिन अयस्क के निक्षेप तोंगापाल, कातेकल्याण तथा पाधापुर क्षेत्र में पाये गए हैं। तोंगापाल क्षेत्र के मुंड़वाल, चितलनार, गोविंदपाल, कछीरास तथा छिपुरवारा ग्राम एवं किकिरपाल, बोदवारा, लिटिरास ग्राम में 2091.93 टन टिन अयस्क के भण्डार हैं।

कातेकल्याण क्षेत्र के कातेकल्याण, लकरास, कोरापाल तथा मारजुन ग्राम में 4181.66 टन टिन अयस्क के अनुमानित संचित भण्डार हैं।

जगदलपुर से 120 किमी की दूरी पर जगदलपुर-बैलाडीला मार्ग पर पाधापुर ग्राम में 500 टन टिन अयस्क के भण्डार उपलब्ध है।

2. लेड :- लेड खनिज मुख्यतः सरगुजा जिले में लुण्ड्रा क्षेत्र के ग्राम भेलाई, वाइलांगी, धौरपुर तथा करमाटोला में आर्कियन क्रम की चट्टानों में पाया गया है।

3. अभ्रक :- अभ्रक खनिज प्रदेश के सरगुजा एवं बस्तर जिले पाया गया है। सरगुजा जिले में अभ्रक निक्षेप सूरजपुर क्षेत्र के अन्तर्गत कालिकापुर, हरिवारपुर, पहाड़करवान, पेन्ड्री, कानजिया तथा गया दान ग्राम में आर्कियन क्रम की चट्टानों में मिलते हैं।

बस्तर में अभ्रक के निक्षेप बोदीनार, कनकापाल, जुनजाने कोंटा तहसील के मटिया तथा झिराम नदी के समीपवर्ती क्षेत्रों में पाये गए हैं। साथ ही जगदलपुर-दंतेवाड़ा मार्ग के बीच तीरताम तथा बस्तावीर क्षेत्र में भी अभ्रक खनिज के उपस्थिति पाई गई है।

4. ग्रेफाइट :- ग्रेफाइट प्रदेश के एक मात्र सरगुजा जिले में पाया गया है, यहाँ मुख्यतः गिरवानी, सुरसा, केन्नापारा, तोलकीपारा, कोबी तथा मानिकपुर ग्राम में आर्कियन क्रम की चट्टानों में ग्रेफाइट के निक्षेप प्राप्त हुए हैं।

5. फेल्सपार :- फेल्सपार खनिज के निक्षेप बस्तर जिले में जगदलपुर-सुकमा मार्ग पर 48 किमी की दूरी पर झिराम क्षेत्र में पाये गए हैं। यहाँ 3 मीटर की मोटाई में .7 लाख टन फेल्सपार के भण्डार पाये गए हैं।

6. तांबा अयस्क :- प्रदेश में तांबा अयस्क के भण्डार बस्तर जिले के इतेपाल, गिलगिचा, तथा मोदेनार क्षेत्र में आर्कियन क्रम की चट्टानों में पाये गए हैं।

 

तालिका : 2.7 छत्तीसगढ़ प्रदेश : मुख्य खनिजों का जिलेवार उत्पादन (मात्रा लाख टन में)

क्रम

खनिज/जिला

1990-91

991-92

1992-93

1993-94

1994-95

1995-96

1996-97

1997-98

1.

लौह अयस्क

        
 

दुर्ग

54.17

66.0

65.19

55.28

70.7

68.81

68.58

72.64

 

बस्तर

-

100.97

89.72

104.18

99.13

108.85

  

2.

चूना पत्थर

        
 

बिलासपुर

21.70

23.80

21.90

22.37

20.66

18.13

16.54

21.91

 

दुर्ग

20.88

26.40

27.53

27.19

20.02

17.59

18.85

19.46

 

रायपुर

26.35

28.07

27.64

43.18

43.77

61.76

70.08

71.13

 

रायगढ़

28.30

40.89

40.00

32.98

0.04

0.04

0.3

0.02

 

राजनांदगाँव

-

0.13

27.64

43.18

-

-0.88

-

-

 

बस्तर

-

 

0.69

0.65

0.75

 

0.67

-

3.

डोलोमाइट

        
 

रायपुर

-

      

0.02

 

बिलासपुर

3.82

2.92

40.39

3.62

3.91

5.64

6.78

6.34

 

दुर्ग

5.357

4.99

6.17

16.30

4.37

4.06

3.13

3.4

4.

बाक्साइट

        
 

बस्तर

-

 

2.44

1.30

-

 

-

0.1

 

बिलासपुर

1.05

7.19

8.38

7.40

0.68

0.73

0.76

0.57

 

सरगुजा

    

1.10

1.56

1.90

2.76

स्रोत : खनिज सांख्यिकी विभाग, संचालनालय भौमिकी तथा खनिकर्म, रायपुर

 

6. अग्नि मृत्तिका :- प्रदेश में अग्नि मृत्तिका के भण्डार बिलासपुर, सरगुजा तथा रायगढ़ जिले में पाये गए हैं।बिलासपुर जिले में अग्निमृत्तिका के निक्षेप गरीपरवा, गोपालपुर, दिसानपुर तथा थाड़पथरा क्षेत्र में पाये गए हैं। साथ ही पाली, बंधखुर तथा खुटा क्षेत्र में बाराकर संस्तर में अग्निमृत्तिका के निक्षेप लघुमात्रा में पाये गए हैं।

सरगुजा जिले के बामपुरा, नवापारा तथा विश्रामपुर क्षेत्र में बाराकर संस्तर में अग्निमृत्तिका के निक्षेप न्यून मात्रा में उपलब्ध हैं।

रायगढ़ जिले के डोमनारा, बरौद, भांजीखोल, उर्बा तथा चिंतापानी क्षेत्र में 70 लाख टन अग्नि मृत्तिका के भण्डार बाराकर संस्तर में पाये गए हैं।

7. सोना :- सोना एक बहुमूल्य खनिज है। प्रदेश में सोने के 2804 किग्रा सोने के संचित भण्डार उपलब्ध है। प्रदेश के रायपुर, रायगढ़ एवं बस्तर जिले में सोने के निक्षेप पाये गए हैं।

रायपुर जिले में कसडोल क्षेत्र के अन्तर्गत सोनाखान तथा बागमारा क्षेत्र में सोने के 2780 किग्रा के भण्डार पाये गए हैं। यह क्षेत्र रायपुर से 123 किमी की दूरी पर उत्तर पूर्व में स्थित है।

रायगढ़ जिले का पूर्वी भाग सोना निक्षेप की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। यहाँ इब, मैनी तथा मांद नदियों के क्षेत्र में सोना पाया गया है। सोना निक्षेप के मुख्य क्षेत्र परसाबहार, टुब धौरा सेन्ड मेनदर बहार, कन्दई बहार, माथगड़ा, बरजोर देवरी तथा दोकरा है जो कि 500 वर्ग किमी क्षेत्र में विस्तृत है तथा यहाँ 25 किग्रा सोने के भण्डार उपलब्ध हैं।

8. अलेक्जेंडराइट :- अलेक्जेंडराइट एक दुर्लभ खनिज पदार्थ है जो विश्व के कुछ ही देशों में पाया जाता है। प्रदेश के रायपुर जिले में अलेक्जेडराइट खनिज देवभोग से 8 किमी दक्षिण पूर्व में लाटापारा तथा सेदमुड़ा ग्राम में सन 1982 में पाया गया है।

9. हीरा :- प्रदेश में रायपुर जिले के दक्षिण-पूर्वी भाग में हीरे के भण्डार क्षेत्र है। यह क्षेत्र बिन्द्रानवागढ़ के मैनपुर से 20 किमी दक्षिण में बोहराडीह तथा 40 किमी दक्षिण पूर्व में पयालीखण्ड है।

प्रमुख खनिजों का जिलेवार उत्पादन तालिका 2.5 में दृष्टव्य है।

3. वनसंसाधन :-


देश के आर्थिक एवं औद्योगिक विकास में प्राकृतिक संसाधनों का योगदान अमूल्य होता है। प्राकृतिक सासंधनों के अन्तर्गत वन राष्ट्र के महत्त्वपूर्ण संसाधन है जिनका देश के सर्वांगीण विकास में बहुमूल्य योगदान है।

इस पृथ्वी पर मानव के पदार्पण के पूर्व सम्पूर्ण पारिस्थितिकीय तंत्र पूर्णतः वनों से सम्बद्ध था। जीवन प्रक्रिया में अन्तर्भूत बुनियादी सिद्धान्त जैसे अजैव पदार्थों का जैव पदार्थों में रूपान्तरण, सजीव प्राणियों द्वारा ऑक्सीजन का अन्तः श्वसन और उनके द्वारा उच्छवसित कार्बन डाइऑक्साइड का प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया द्वारा ऑक्सीजन में रूपान्तरण वनों से सम्बद्ध है। वन विकसित होती हुई मानव संस्कृति के संवर्धन गृह रहे है तथा मनुष्य के भोजन, आश्रय एवं ऊर्जा की विविध आवश्यकताओं की पूर्ति भी करते रहे हैं। वन घरेलू तथा औद्योगिक प्रयोजनों के लिये ऊर्जा का प्रधान स्रोत है। कोयला तथा खनिज तेलों के भण्डारों के धीरे-धीरे कम होने के कारण, वन ऊर्जा के नवकरणीय स्रोतों में से एक प्रमुख स्रोत के रूप में अधिक महत्त्वपूर्ण हो गए हैं।

वन न केवल आर्थिक दृष्टि से वरन पर्यावरण संरक्षण एवं सन्तुलन की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। वन वृक्षों का समूह मात्र नहीं अपितु स्वयं में एक पारिस्थितिकीयमय प्रणाली है। मानव के क्रिया कलापों के विस्तार के साथ पर्यावरणीय प्रदूषण स्वाभाविक है। वन, पर्यावरण एवं प्राकृतिक सन्तुलन को कायम रखने में सहायक होते है।1 (तृतीय पर्यावरणीय वस्तुस्थिति प्रतिवेदन, 1996, 110)

छत्तीसगढ़ प्रदेश में वन क्षेत्र :-


खनिज संसाधन से सम्पन्न छत्तीसगढ़ वन संसाधन में भी समृद्ध माना जाता है। प्रदेश की कुल 59,285.26 वर्ग किमी अर्थात 43.85 प्रतिशत भूमि पर वन फैले हुए हैं। प्रदेश को 6 वन वृत्तों में विभाजित किया गया है। ये वन वृत्त है - बिलासपुर, रायपुर, सरगुजा, दुर्ग, कांकेर तथा जगदलपुर। प्रदेश में जिलेवार तथा वन वृत्तवार वनों का क्षेत्रफल इस प्रकार है :-

 

तालिका 2.8 छत्तीसगढ़ प्रदेश : जिलेवार वन क्षेत्रफल (वर्ग किमी) वर्ष 1997-98

क्रम

जिले का नाम

कुल भौगोलिक क्षेत्रफल

कुल वन क्षेत्र

कुल वन क्षेत्र का प्रतिशत

01

बिलासपुर

19897

7913

39.77

02

रायगढ़

12924

6081.61

47.06

03

दुर्ग

8537

1723.64

20.19

04

राजनांदगाँव

11127

2936.81

26.39

05

सरगुजा

22337

11903.92

53.29

06

रायपुर

21258

7200.21

33.87

07

बस्तर

39114

21525.79

55.03

 

योग

1,35,194

59,285.26

43.85

स्रोत : कार्यालय, मुख्य वन संरक्षक, भोपाल।

 

स्पष्ट है प्रदेश में वन क्षेत्र का सर्वाधिक विस्तार बस्तर तथा सरगुजा जिले में क्रमशः 55.03% तथा 53.29% है। ये क्षेत्र मुख्यतः पहाड़ी तथा पठारी क्षेत्र है। अन्य जिलों की अपेक्षा दुर्ग में वन क्षेत्र का प्रतिशत (20.19%) कम रहा।

 

तालिका 2.9 छत्तीसगढ़ प्रदेश : जिलेवार आरक्षित, संरक्षित तथा अवर्गीकृत वन क्षेत्रफल (वर्ग किमी)

क्रम

जिला का नाम

आरक्षित वन

संरक्षित वन

अवर्गीकृत वन

योग

01

बिलासपुर

1,432.00

6481.28

-

7913.28

02

रायगढ़

2818.62

2364.99

698

6081.61

03

दुर्ग

482.54

1241.10

-

1723.64

04

राजनांदगाँव

1473.40

1463.41

-

2936.81

05

सरगुजा

3938.06

7965.86

-

11903.21

06

रायपुर

4005.92

2973.29

221

7200.21

07

बस्तर

9815.91

8616.88

3093

21525.79

 

योग

23966.45

31106.81

4212

59285.26

 

प्रदेश में संरक्षित वनों का क्षेत्रफल 31106.81 वर्ग किमी अर्थात 52.46% है। आरक्षित एवं अवर्गीकृत वनों का प्रतिशत क्रमशः 40.42% एवं 7.10% रहा।

विभिन्न वन वृत्तों के अन्तर्गत वनों का क्षेत्रफल इस प्रकार है :-

 

तालिका 2.10 छत्तीसगढ़ प्रदेश : वनवृत्तानुसार वन क्षेत्रफल (वर्ग किमी) 1997-98

क्रम

वनवृत्त का नाम

कुल भौगोलिक क्षेत्रफल

कुल वन क्षेत्र

आरक्षित वन

संरक्षित वन

अवर्गीकृत वन

कुल भौगोलिक क्षेत्रफल में कुल वनक्षेत्र का प्रतिशत

01

बिलासपुर

32,821

13994.89

4250.62

8846.27

898

42.64

02

रायपुर

21,258

7200.21

4005.92

2973.29

221

33.87

03

सरगुजा

22337

4660.45

1955.94

2704.51

-

23.70

04

दुर्ग

19664

4660.45

1955.94

2704.51

-

23.70

05

कांकेर

18614

9789.11

3863.87

3210.14

2805.1

52.59

06

जगदलपुर

20500

11736.68

5952.05

5496.74

287.89

57.25

स्रोत : कार्यालय, मुख्य वन संरक्षक, भोपाल

 

वन वृत्तानुसार वनों का क्षेत्रफल जगदलपुर वनवृत्त में सर्वाधिक 57.25% तत्पश्चात सरगुजा वनवृत्त में 53.29% है।

वन प्राणियों की दृष्टि से भी छत्तीसगढ़ प्रदेश का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यहाँ वर्तमान में तीन राष्ट्रीय उद्यान संजय राष्ट्रीय उद्यान (सरगुजा), इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान (बस्तर) तथा कांगेर-घाटी राष्ट्रीय उद्यान (बस्तर) है। इनमें संजय राष्ट्रीय उद्यान का मुख्यालय सीधी जिले में है। प्रदेश में 10 अभयारण्य, बादल खोल (रायगढ़) वारनवापारा (रायपुर), सीतानदी (रायपुर), अचानकमार (बिलासपुर), सेमरसोत (सरगुजा), तमोरपिंगला (सरगुजा), भैरमगढ़ (बस्तर), पामेड़ वन भैंसा अभयारण्य (बस्तर), उदन्ती वन भैसा अभयारण्य (रायपुर) तथा गोमरदा अभयारण्य (रायगढ़) है। इन अभयारण्यों में बाघ, तेंदुआ, चीतल, सांभर, वनभैसा, भालू, गौर, नीलगाय आदि जानवर पाये जाते हैं। उपरोक्त राष्ट्रीय उद्यान तथा अभयारण्यों में 227 बाघ तथा 834 तेंदुआ मौजूद है। (वर्ष 1997 के अनुसार)

प्रदेश के छः वनवृत्तों में 1997 की गणनानुसार बिलासपुर वृत्त में 34 बाघ एवं 166 तेंदुआ, दुर्ग वृत्त में 12 बाघ एवं 68 तेंदुआ, जगदलपुर वृत्त में 73 बाघ एवं 93 तेंदुआ, कांकेर में 33 बाघ एवं 141 तेंदुआ, रायपुर में 57 बाघ एवं 262 तेंदुआ और सरगुजा वृत्त में 18 बाघ एवं 104 तेंदुआ होने की पुष्टि की गई है।

वनउत्पाद :- छत्तीसगढ़ के वनों में साल एवं सागौन के वृक्ष प्रमुख हैं। प्रमुख वनोपजों में काष्ठ एवं जलाऊ चट्टा तथा लघु वनोपजों के अन्तर्गत बांस, तेंदूपत्ता, हर्रा, सालबीज, गोंद सम्मिलित है।

वर्ष 1997-98 में काष्ठ की मात्रा 114662 घनमीटर, जलाऊ चट्टा की संख्या 130217 बाँस का उत्पादन 77248 मीट्रिक टन तथा साल बीज का उत्पादन 292927.60 क्विंटल रहा। काष्ठ तथा जलाऊ चट्टा का सर्वाधिक उत्पादन रायपुर वनवृत्त में क्रमशः 50951 तथा 36464 घनमीटर रहा। वहीं बाँस का सर्वाधिक उत्पादन 39046 मीट्रिक टन दुर्ग वन वृत्त में रहा। तेंदूपत्ता का उत्पादन 4.58 लाख बोरा बिलासपुर वन वृत्त में रहा जो अन्य वनवृत्तों की तुलना में अधिक है। प्रदेश में सालबीज का उत्पादन बिलासपुर वनवृत्त में 1,24,559.15 क्विंटल रहा तथा हर्रा का सर्वाधिक उत्पादन 19839.82 क्विंटल कांकेर वनवृत्त के अन्तर्गत रहा। प्रदेश में गोंद का कुल उत्पादन 2308.22 क्विंटल रहा। बिलासपुर वनवृत्त में गोंद का उत्पादन 1413.12 क्विंटल अन्य वनवृत्तों की अपेक्षा अधिक रहा। (तालिका 2.11)

4. कृषि उत्पाद :-


भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्त्व सर्वोपरि है। राष्ट्रीय आर्थिक विकास को गति प्रदान करने के साथ-साथ खाद्य पदार्थ, कच्चा माल तथा रोजगार के क्षेत्र में कृषि एक निर्णायक भूमिका का वहन करती है। भारतीय कृषि इस दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण है कि यह प्रमुख उद्योगों जैसे कपास, जूट वस्त्र, चीनी, चाय तथा खाद्य उत्पाद के कच्चे मालों की आपूर्ति का प्रमुख स्रोत है। साथ ही लघु एवं कुटीर उद्योग भी कच्चे माल के लिये कृषि पर आश्रित है। आर्थिक विकास के लिये कृषि तथा उद्योग के परस्पर सम्बन्ध महत्त्वपूर्ण है। इन उद्योगों से जहाँ रोजगार तथा आय में वृद्धि होती है वहीं दूसरी ओर कृषि क्षेत्र के लिये आवश्यक औद्योगिक वस्तुएँ जैसे कृषि यंत्रों, उर्वरकों तथा कीटनाशक दवाओं के माध्यम से कृषि उत्पादन में वृद्धि होती है।

संयुक्त राष्टसंघ के प्रतिवेदन के अनुसार “औद्योगिक क्षेत्र का असन्तुलित एवं तीव्र विकास, यदि कृषि जगत में भी पूरक परिवर्तन नहीं होते, दीर्घकाल में ऐसे कारण पैदा कर देता है कि जिससे आर्थिक विकास अवरुद्ध हो जाता है।”2 (शर्मा, 28)

कृषि पर आधारित उद्योग स्थानीय संसाधनों पर आधारित होने के साथ-ही-साथ श्रम प्रधान होते हैं तथा इनमें कम पूँजी विनियोग की आवश्यकता होती है।

छत्तीसगढ़ प्रदेश मूलतः कृषि प्रधान क्षेत्र है। प्रदेश क्षेत्र है। प्रदेश में कृषि क्षेत्रों का विस्तार समतल मैदानी भू-भागों में अधिक है। खाद्यान्नों में चावल का स्थान प्रमुख है। अन्य खाद्यान्न फसलें गेहूँ, ज्वार, बाजरा कोदो कुटकी मक्का इत्यादि है।

 

तालिका : 2.11 छत्तीसगढ़ प्रदेश : वन वृत्तावार कूपों में विभिन्न वन उत्पादों की मात्रा (वर्ष 1997-98)

वृत्त का नाम

काष्ठ (घनमीटर में)

जलाऊ चट्टा (संख्या)

बाँस (मी. टन में)

तेंदुपत्ता (लाख बोरों में)

साल बीज (क्विंटल में)

हर्रा (क्विंटल में)

गोंद (क्विंटल में)

बिलासपुर

33731

26738

6050

4.58

124559.15

431.97

1413.12

दुर्ग

23531

35893

39046

2.07

163.21

252.82

457

जगदलपुर

1098

-

4504

0.69

40019.58

245.93

-

कांकेर

2241

573

25970

3.41

49883.13

19839.82

98.1

रायपुर

36436

50951

1384

3.31

7371.53

2436.41

340

सरगुजा

17597

16062

294

3.62

70931

708.22

-

योग

114662

130217

77248

17.68

292927.60

23915.18

2308.22

स्रोत : कार्यालय, मुख्य वन संरक्षक (उत्पादन) भोपाल

 

प्रदेश में चावल का औसत उत्पादन 4186.34 मीट्रिक टन तथा तत्पश्चात मक्का का उत्पादन 124.9 मीट्रिक टन है। रायपुर सम्भाग के अन्तर्गत चावल का उत्पादन 2088.67 मीट्रिक टन अन्य क्षेत्र की तुलना में अधिक है। वहीं बिलासपुर सम्भाग में गेहूँ उत्पादन की मात्रा 42.07 मीट्रिक टन तथा रायपुर एवं बस्तर सम्भाग में क्रमशः 41.14 तथा 2.3 मीट्रिक टन है। रायपुर सम्भाग में चना उत्पादन की मात्रा 74.24 मीट्रिक टन तथा बिलासपुर सम्भाग में 22.67 मीट्रिक टन रही, वहीं बस्तर सम्भाग में यह मात्रा 1.06 मीट्रिक टन रही। कोदो कुटकी का उत्पादन बस्तर सम्भाग में अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक (23.23 मीट्रिक टन) रहा। (तालिका 2.12)

 

तालिका : 2.12 छत्तीसगढ़ प्रदेश : विभिन्न फसलों का औसत उत्पादन (हजार मीट्रिक टन में)

क्रम

जिला/संभाग

चावल

ज्वार

मक्का

कोदो कुटकी

तुअर

गेहूँ

चना

मूँगफली

तिल

अलसी

राई सरसों

सोयाबीन

1.

रायपुर

1143.23

0.74

0.77

2.17

2.6

16.54

11.5

7.17

1.00

3.4

0.94

0.70

2.

दुर्ग

607.84

0.14

0.14

3.94

3.4

11.00

34.74

0.97

0.2

6.14

0.17

5.34

3.

राजनांदगाँव

337.60

0.03

4.17

18.7

7.4

13.60

28.00

0.1

0.44

10.00

1.00

28.34

 

रायपुर सम्भाग

2088.67

0.94

5.06

22.14

13.4

41.14

74.24

8.24

1.64

19.54

2.1

34.36

 

बस्तर जिला/सम्भाग

564.37

5.07

38.14

23.23

2.74

2.30

1.06

0.1

0.64

1.3

6.50

0.26

1.

बिलासपुर

771.44

0.8

14.4

6.5

5.0

13.27

18.87

4.57

0.47

3.17

2.34

3.9

2.

सरगुजा

334.27

2.9

56.8

5.5

11.94

25.37

2.3

6.37

1.27

2.27

13.94

0.1

3.

रायगढ़

427.6

0.17

10.5

5.4

3.1

3.44

1.5

10.94

0.54

0.40

3.30

-

 

बिलासपुर सम्भाग

1533.30

3.87

81.7

17.4

20.03

42.07

22.67

21.87

2.27

5.84

19.57

3.94

 

कुल औसत उत्पादन

4186.34

9.87

124.9

62.77

36.17

85.5

97.97

30.20

4.54

26.67

28.17

38.57

स्रोत : मध्य प्रदेश का आधार भूत कृषि सांख्यिकी, 1993-94 से 1997-98।

 

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