संयुक्त राष्ट्र रियो+20 पृथ्वी शिखर सम्मेलन के घोषणापत्र का मसौदा नाकाफी

28 Jun 2012
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रियो+20 शिखर सम्मेलन के घोषणापत्र का मसौदा बनाने के लिये जो समूह तय किये गये थे वे पूरी तरह से सफल नहीं रहे चूंकि विभिन्न समूहों के दबाव के आगे उनकी चली नहीं। शुरू में जो ड्राफ्ट तैयार किये गये थे, वे धीरे-धीरे बदलते रहे और अंतत: ऐसे ड्राफ्ट को स्वीकार किया गया जिसमें ज्यादा कुछ है नहीं पर कहने के लिये बहुत कुछ है। ब्राजील और उसके जैसे देशों को इतने से ही तसल्ली होगी कि उनके हाथ खाली नहीं हैं।

संयुक्त राष्ट्र के रियो+20 पृथ्वी शिखर सम्मेलन के घोषणापत्र का मसौदा राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों के विचारार्थ तैयार होने के एक दिन बाद ही 20 जून को यहां रियो द जेनेरो में आशा का कम और निराशा का माहौल ज्यादा है। आम आदमी इस दस्तावेज को नाकाफी बता रहा है। एक ओर यहां राष्ट्राध्यक्ष और शासनाध्यक्ष इस ऐतिहासिक समागम में अपनी-अपनी बात विश्व नेताओं के सम्मुख रखकर धरती के प्रति अपनी-अपनी प्रतिबद्धता का बखान कर रहे हैं तो दूसरी ओर शिखर सम्मेलन से बाहर एकत्रित समूह विश्व नेताओं की दृष्टिहीनता पर अफसोस जता रहे हैं। ज्ञातव्य है कि कल पारित दस्तावेज में कहा गया है कि गरीबी उन्मूलन धरती पर सबसे बड़ी चुनौती ही नहीं है बल्कि टिकाऊ विकास के लिये इसके उन्मूलन का लक्ष्य हासिल करना बहुत जरूरी है। इस संदर्भ में आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय पक्षों के आपसी रिश्तों को समझते हुये टिकाऊ विकास की अवधारणा की समझ भी जरूरी बताई गयी है और यह भी कि इस सबके केंद्र में मनुष्य है।

लोकतंत्र, और मानवाधिकार के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुये दस्तावेज में कहा गया है कि तमाम विषयों के साथ-साथ सामाजिक बराबरी, पर्यावरण संरक्षण, लैंगिक समानता, आर्थिक प्रगति, बाल संरक्षण, इत्यादि आवश्यक हैं। लेकिन, प्रेक्षकों का कहना है कि दस्तावेज में वर्णित विषय स्थूलता लिये हैं, और उनमें लक्ष्यभेदन क्षमता बहुत कम है। सिविल सोसायटी से लेकर पत्रकार और स्वतंत्र एक्टिविस्ट तक सब घोषणापत्र के मसौदे को नाकाफी बता रहे हैं। उनका मानना है कि समझौतावादी दृष्टिकोण के फलस्वरूप ही इस मसौदे को सबका समर्थन मिला है, हालांकि इस पर बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की छाया देखी जा सकती है। बहुत सी सरकारों के प्रतिनिधियों तक ने कहा है कि यह मसौदा अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं है, यद्यपि इसे स्वीकार किया जा सकता है। चीन सहायक विदेशमंत्री ने कहा कि इसे काफी नहीं कहा जा सकता है। ज्ञातव्य है कि पर्यावरण और विकास पर रियो घोषणापत्र के तमाम बिंदुओं को 49-पेज और 283 बिंदुओं वाले इस मसौदे में समाहित किया गया है।

ब्राजील के एक्टिविस्ट और एक संस्था के निदेशक केल्ड जैकोब्सेन का कहना है कि मेजबान देश ब्राजील ने शिखर बैठक के अध्यक्ष के नाते अपने प्रभाव का बखूबी इस्तेमाल किया है। यही वजह है कि मसौदे के अनेक बिंदुओं पर सहमति नहीं होने के बावजूद ब्राजील मसौदे को अंतिम रूप दिलाने में कामयाब रहा है। यह बात जोर-शोर से चर्चा में थी कि पारिस्थितिकी संरक्षण और पर्यावरण बचाने के काम के प्रति उभरती अर्थव्यवस्थाओं की भी उतनी ही जिम्मेदारी होनी चाहिये, जितनी कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं की, लेकिन मसौदे में ऐसा दिखाई नहीं देता है।

ब्राजील के पर्यावरण और विदेश मंत्रालयों का दबदबा भी पूरी बैठक पर स्पष्ट दिखाई देता है। कुछ प्रेक्षक इस बात को ब्रिक्स (ब्राजील, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) देशों के बढ़ते प्रभाव के सूचक के रूप में देख रहे हैं। फिनलैंड की एक्टिविस्ट हेलेना लौक्का का कहना है कि धरती को बचाने के लिये नयी राजनीतिक प्रक्रिया की स्थापना आवश्यक है।

बहरहाल, सूत्रों का कहना है कि रियो+20 शिखर सम्मेलन के घोषणापत्र का मसौदा बनाने के लिये जो समूह तय किये गये थे वे पूरी तरह से सफल नहीं रहे चूंकि विभिन्न समूहों के दबाव के आगे उनकी चली नहीं। शुरू में जो ड्राफ्ट तैयार किये गये थे, वे धीरे-धीरे बदलते रहे और अंतत: ऐसे ड्राफ्ट को स्वीकार किया गया जिसमें ज्यादा कुछ है नहीं पर कहने के लिये बहुत कुछ है। ब्राजील और उसके जैसे देशों को इतने से ही तसल्ली होगी कि उनके हाथ खाली नहीं हैं। प्रेक्षकों का कहना है कि राष्ट्राध्यक्ष और शासनाध्यक्ष इस ड्राफ्ट में ज्यादा छेड़छाड करने वाले नहीं हैं, क्योंकि उन्होंने यदि ऐसा किया तो बहुत कुछ बदलना पड़ेगा। विश्लेषण से मालूम होता है कि धरती को बचाने के लिये ईमानदार कोशिशों पर निजि स्वार्थ हावी हैं।

विभिन्न देशों से आये प्रतिनिधियों में से एक सीजीपी इंडिया के संयोजक वाई डेविड का कहना है कि नव-उदारवाद से ग्रीन इकॉनोमी की ओर जाने का संकेत तो अच्छा है लेकिन जिस शिद्दत से यह बात कही जानी चाहिये थी, वह है नहीं। इसके अलावा ग्रीन इकॉनमी को ठीक से परिभाषित भी नहीं किया गया है। उनका कहना है कि 1992 के रियो शिखर सम्मेलन ने एजेंडा-21 तो दिया पर उस पर अमल उसी भवना के साथ नहीं हुआ। अब न जाने इस दस्तावेज के साथ क्या होगा और न जाने किस रूप में राष्ट्राध्यक्ष और शासनाध्यक्ष इसे पारित करेंगे।

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