सरस्वती नदी का पुनर्प्रामाणीकरण : सार्थक प्रयास का एक तकनीकी अध्ययन (Revalidation of Saraswati river : A technical study of relevant efforts)

28 Jul 2016
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सारांश


ऋग्वेद में वर्णित सरस्वती मिथकीय नदी नहीं है। इस तथ्य का वैज्ञानिक प्रमाण हरियाणा के मुगलवाली क्षेत्र की खुदाई के दौरान इसके पानी मिलने से स्पष्ट हो गया है। प्रस्तुत तकनीकी अध्ययन में सरस्वती नदी के पौराणिक इतिहास तथा वैदिक काल में इसके महत्व को दर्शाया गया है। वर्तमान समय में इसके पुनर्जीवन के लिये किये गये वैज्ञानिक प्रयासों एवं उनकी सार्थकता पर प्रकाश डाला गया है।

Abstract


River Saraswati is not a mythical river. During excavation, finding of water channel, mentioned in Rigveda at Mughalwali, District Yamunanagar (Haryana) proves its scientific evidence. In the present technical article the author described the importance of Saraswati River in history of Vedic period. In the light of scientific efforts and their significance, the importance of the work being done for regeneration of river Saraswati has been presented.

परिचय एवं उद्गम


‘‘इयं शुष्मेमिर्विसस्व्रा इवारुजत सानुगिरीणां तविषेरूर्मिभि: पारावतध्नीमवसे सुवृक्तिभि: सरस्वतोमार्विवासेमधीतिभि:’’

सरस्वती नदी अपनी शक्तिशाली और तीव्र लगरों से पर्वत की चोटियों को ध्वस्त करती है। ठीक उसी प्रकार से जिस प्रकार कमल के तने को उखाड़ फेंका जाता है। दूर और पास की वस्तुओं पर प्रहार करने वाली उस नदी का प्रार्थनाओं से आह्वान करना चाहिये। (ऋग्वेद में वर्णित)

1. सरस्वती नदी एक पौराणिक नदी है। जिसका वर्णन सर्वप्रथम वेदों में आता है। ऋग्वेद (241, 16-18) में सरस्वती का अन्नवती तथा उद्कवती के रूप में वर्णन आया है। यह सदानीरा नदी पौराणिक वर्णन के अनुसार पंजाब में सिरमूर राज्य के पर्वतीय भाग से निकलकर अंबाला तथा कुरूक्षेत्र होती हुई कर्नाल जिला और पटियाला राज्य में प्रविष्ट होकर सिरसा जिले की दृशद्वती (कांगार) नदी में मिल गई थी।

2. के. एस वालिया की पुस्तक ‘सरस्वती द रिवर दैट डिसअपीयर्ड’ और बीपी राधाकृष्णा व एसएस मेढा की पुस्तक ‘वैदिक सरस्वती’ में कहा गया है कि मानसरोवर से निकलने वाली सरस्वती हिमालय को पार करते हुए हरियाणा, राजस्थान के रास्ते कच्छ पहुँचती थी। ऋग्वेद में सरस्वती को एक विशाल नदी के रूप में वर्णित किया है, इसीलिये ‘राय’ आदि मनीषियों का विचार था कि ऋग्वेद में सरस्वती वस्तुत: मूलरूप में सिंधु का ही अभिधान है। किंतु मेकडॉनेल्ड के अनुसार सरस्वती ऋग्वेद में कई स्थानों पर सतलुज और यमुना के बीच की छोटी नदी के रूप में वर्णित है। भूगोलविदो का विचार है कि सरसवती पूर्व काल में सतलुज की सहायक नदी अवश्य रही होगी।

3. मनु संहिता में कहा गया है कि सरसवती और दृषद्वती के बीच का भूभाग ही ब्रह्मावर्त कहलाता था।

4. क्रिश्चियन लैसन, मैक्समूलर, मार्क आरेल स्टीन, सी. एफ. ओल्ढम और जेन मैकिनटोस जैसे विद्वानों ने वैदिक नदी की पहचान घग्गर-हकरा नदी के रूप में की है। इतिहासकार माइकल डेनिनो ने कहा है कि प्राचीन काल में घग्गर-हकरा नदी घाटी में एक प्रमुख नदी बहती थी, जिसका प्रवाह कच्छ से रण तक था। वर्तमान में घग्गर-हकरा नदी पाकिस्तान के उत्तर पश्चिम में प्रवाहित होने वाली नदी है। जो 500-3000 ई. पूर्व पूरे प्रवाह के साथ बहती थी। इसरो एवं ओएनजीसी के पास उपलब्ध चित्रों से पता चलता है कि नदी के प्रवाह का बड़ा हिस्सा वर्तमान में घग्गर नदी के प्रवाह से मिलता है।

5. कुछ विद्वानों का मत है कि वैदिक काल में सतलुज और यमुना की कुछ धाराएं सरस्वती नदी में आकर मिलती थी। इसके अतिरिक्त दो अन्य लुप्त हुई नदियाँ दृष्टावती और हिरण्यवती भी सरस्वती की सहायक नदियाँ थी।

6. महाभारत के अनुसार सरस्वती नदी का मैदानी क्षेत्रों में प्रवेश आदिबद्री से होता है। भवानीपुर और बल छप्पर गाँव से होते हुए यह नदी बालू क्षेत्र में लुप्त हो जाती है। फिर थोड़ी दूर पर कर्नाल से बहती है घग्गर नदी का उद्गम इसी क्षेत्र से है जो 175 किमी दूर रसूला के निकट इसमें मिल जाती है। यह बीकानेर से पहले हनुमानगढ़ के पास बालूकामय राशि में लुप्त हो जाती है। आज भी बीकानेर से करीब 10 किमी दूर रेतीले क्षेत्र को सरस्वती कहकर पुकारा जाता है।

7. भारतीय पुरातत्व परिषद के अनुसार सरस्वती का उद्गम उत्तरांचल के रूपण नामक हिमनद से होता है। नैतवार में आकर यह हिमनद जल में परिवर्तित हो जाता था, फिर जलधार के रूप में आदिब्रदी तक सरस्वती बहकर आती थी।

8. 19वीं शताब्दी में इटली के निवासी मनुची ने प्रयाग के किले की चट्टान से नीले पानी की नदी को निकलते देखा था यह नदी, गंगा और यमुना संगम में मिल जाती है।

9. यूनानी लेखकों ने अलक्षेद्र के समय सरस्वती का राज्य सक्खर रोरी (सिंधु, पाकिस्तान) में लिखा है।

सरस्वती नदी का इतिहास एवं महत्व


हॉपकिंस का मत है कि ऋग्वेद का अधिकांश भाग सरस्वती के तट पर रचित है। ऋग्वेद की ऋचायें (661, 795) और 696 में सरस्वती नदी को स्तवन समर्पित किये गये हैं। ऋग्वेद के ‘नदी सूक्त’ में सरस्वती का उल्लेख इस प्रकार किया है-

इंम में गंगे यमुने सरस्वती शुतुद्रि स्तोमं सचता परुष्ण्या असिकन्या मरुद्वधे वितस्तयार्जीकीये श्रृणुहया सुषोमया

ऋग्वेद के मंत्र 7.9.52 तथा अन्य जैसे 8.21.18 में सरस्वती नदी को ‘दूध और घी’ से परिपूर्ण बताया है। यजुर्वेद की वाजस्नेयी संहिता 3.4.11 में कहा गया है कि पाँच नदियाँ अपने पूरे प्रवाह के साथ सरस्वती नदी में प्रविष्ट होती है वीएस वाकणकर के अनुसार ये पाँचों नदियाँ सतलुज, रावी, व्यास चेनाव और दृष्टावती हो सकती है। इन पाँचो नदियों के संगम के सूखे अवशेष राजस्थान के बाड़मेर या जैसलमेर के निकट पंचभद्र तीर्थ पर देखे जा सकते हैं। वाल्मीकि रामायण में भी सरस्वती नदी का वर्णन आता है-

‘सरस्वतीं च गंगा च युग्मेन प्रतिपद्य च, उत्तरान् वीरमत्स्यानां भारुण्डं प्राविशद् वनम्।।


महाभारत काल में भी सरस्वती नदी के तीर्थ तट पर तीर्थस्थानों का वर्णन आया है। वर्तमान में इन स्थानों की खुदाई के दौरान मुख्यत: कालीबंगा, लोथल में यज्ञकुंडों के अवशेष मिले हैं।

विलुप्त सरस्वती का बहाव क्षेत्र


नदी के खोजे गये अब तक के चैनल मैप यह बताते हैं कि यह नदी करीब 1500 किमी लंबी थी, तीन से 25 किमी चौड़ी थी औसतन इसकी गहराई 5 मीटर थी। यह नदी संभवत: मौजूदा राज्यों हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान से होकर अरब सागर में मिल जाती थी।

सरस्वती नदी का मैप

विलुप्ति के कारण


सिंधु घाटी सभ्यता का नाम यद्यपि सिंधु नदी के नाम पर पड़ा परंतु इसको सरस्वती संस्कृति, सरस्वती सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है।

1. गिओसेन ने अपने अध्ययन ‘फ्लुविअल लैंडस्केप्स आफ द हड़प्पन सिविलाइजेशन’ में कहा है कि घग्गर-हकरा नदी प्रवाह तंत्र हिमालयी ग्लेशियर से निकलने वाली नदी का विसतृत रूप नहीं था यह केवल मानसूनी नदी प्रवाह तंत्र था इसी से दूसरी ईसा पूर्व में यह प्रवाह तंत्र सूख गया।

2. कुछ अन्य वैज्ञानिकों का मानना है कि भूगर्भीय कारणों से नीचे के पहाड़ ऊपर की ओर सरक गये और सरस्वती का जल पीछे चला गया। वैदिक काल में एक और नदी दृष्वती का वर्णन आता है। यह सरस्वती की सहायक नदी थी यह भी हरियाणा से होकर बहती थी, कालांतर में भूकम्प आने से हरियाणा और राजस्थान की धरती के पहाड़ ऊपर उठे तो नदियों के बहाव की दिशा बदल गई। दृषवती नदी उत्तर और पूर्व की ओर बहने लगी, सरस्वती नदी पश्चिम की ओर विस्थापित हो गई।

3. भूगभर्गीय प्लेटों के खिसकने के कारण सतलुज नदी सिंधु की ओर उन्मुख हो गई और यमुना नदी गंगा की ओर उन्मुख हो गई जिसके कारण यह नदी थार रेगिस्तान में सूख गई। कुछ विद्वानों के मतानुसार सरसवती का जल यमुना के साथ प्रयाग में गंगा में मिला तो वह त्रिवेणी कहलाई।

4. महाभारत में वर्णन आता है कि सरस्वती नदी मरूस्थल में विनाशन नामक स्थान पर लुप्त हो जाती है एवं अन्य स्थान पर प्रकट होती है।

5. महाभारत में यह भी वर्णन आया है कि ऋषि वशिष्ठ सतलुज में आत्महत्या का प्रयास करते हैं। जिससे नदी 100 धाराओं में टूट जाती है। यह तथ्य सतलुज के अपने पुराने मार्ग को बदलने की घटना को प्रमाणित करता है।

पुन: खोज के प्रयास


सर्वप्रथम अमेरिकी सेटेलाइट लैंडसेट द्वारा भेजी गई डिजिटल तस्वीरों ने वैज्ञानिकों को हतप्रभ कर दिया इनमें जैसलमेर इलाके में एक निश्चित पैटर्न में भूजल के साक्ष्य मिले इसके बाद वैज्ञानिक अनुमान लगाने लगे कि यह कोई प्राचीन बड़े जल का चैनल है जो किसी बड़ी नदी का हिस्सा है। इसरों की रिमोट सेसिंग तस्वीरों और ‘जियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया’ ने भी कुछ स्थानों पर इन चैनलों के विषय में साक्ष्य दिये थे, सभी अरावली पर्वतमाला के पश्चिम में थे। उसके पश्चात ‘जिओलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया’ ने टानोत और लोंगेवाला क्षेत्र में किये अपने अध्ययन में बताया कि 30 से 60 मीटर की गहराई में ऐसी बजरी मिलती है जो नदी की धाराओं में मिलती है, जिससे नदी के अस्तित्व को बल मिला।

वर्ष 2002 में भारत सरकार ने विलुप्त हुई सरस्वती नदी की खोज निकालने की परिकल्पना की एवं तत्कालीन संस्कृति मंत्री जगमोहन के नेतृत्व में विशेषज्ञों का एक पैनल गठित किया गया। जिसके सदस्य अहमदाबाद इसरों के बलदेव साहनी, पुरातत्वविद एस. कल्याण रमन, ग्लेशियरविद वाईके पुरी और जल सलाहकार माधव चितले थे। हरियाणा में आदिबद्री से लेकर भगवान पुरा तक पहले चरण की खुदाई इन विशेषज्ञों की देख रेख में होनी थी, इसके बाद दूसरे चरण के तहत भगवानपुरा से लेकर राजस्थान सीमा पर स्थित कालीबंगन की खुदाई होनी थी। भारत सरकार के इन प्रयासों को राजस्थान ग्राउंडवाटर डिपार्टमेंट द्वारा किये गये 1996 के प्रयासों से भारी मदद मिली। इस परियोजना में केंद्रीय भूजल बोर्ड, इसरो, ‘भाभा एटामिक रिसर्च सेंटर’ और ‘नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी रिसर्च सेंटर’ सहयोग कर रही थी। जब राजस्थान ग्राउंडवाटर डिपार्टमेंट इन जल के पुरातन चैनल वाले स्थानों की जाँच कर रही थी तब केंद्रीय भूजल बोर्ड ड्रिलिंग करके जल और मृदा नमूने एकत्र कर रहा था। कार्बन-14 डेटिंग तकनीक से भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर जल और मिट्टी के नमूनों की आयु का आंकलन कर रहा था।

वर्ष 2005 में रिमोट सेंसिग और धरातलीय अध्ययन के माध्यम से ओएनजीसी के भूगर्भीय वैज्ञानिक एवं अधिशाषी निदेशक पद से सेवानिवृत्त डा. एमआर राव ने नदी के रूट की सेटेलाइट मैपिंग की और फिर हिमाचल प्रदेश में सिरमौर जिले के काला अंब के पास ‘सरस्वती टियर फाल्ट’ का बारीक अध्ययन किया। अवशेषीय अध्ययन के बाद ओएनजीसी ने राजस्थान के जैसलमेर से सात किलोमीटर दूर जमीन में करीब 500 मीटर तक ड्रिल किया। वहाँ 7600 लीटर प्रति घंटे की दर से साफ पानी निकला। 6 मई 2015 मंगलवार उद्गम स्थल आदिबद्री से पाँच किमी दूर यमुनानगर के मुगलवाली में जल की धारा फूटने से सरस्वती नदी की प्रमाणिकता सिद्ध हो गई। कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के भू-विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डा. एआर चौधरी ने विलासपुर के गाँव मुगलवाली में निकले जल के विषय में बताया कि सरस्वती के पेलियो चैनल इस क्षेत्र से निकलते हैं यद्यपि अभी डेटिंग का कार्य शेष है। परंतु यह कहा जा सकता है कि यहाँ से बहने वाली धारा आगे चलकर सरस्वती में मिलती होगी।

निष्कर्ष


सरसवती नदी पर किये गये शोधों से ज्ञात होता है कि जमीन के 60 मीटर भीतर इन चैनलों का सूत्र सरस्वती से जुड़ता है, यदि इन चैनलों को फिर से खोज लिया जाये तो उन कड़ियों को जोड़कर नदी के बहाव को बनाया जा सकता है। इसकेलिए सिद्धांत यह है कि ये चैनल मानसून के दिनों में हरियाणा और पंजाब से भारी मात्रा में पानी ला सकेंगे और भविष्य के प्रयोग के लिये पानी जमा किया जा सकेगा। यद्यपि यह एक सरल कार्य नहीं है परंतु भूगर्भशास्त्री एवं वैज्ञानिक इस पवित्र एवं विशाल नदी के पुनर्जीवन के लिये विशद अध्ययन एवं अथक प्रयास कर रहे हैं।

संदर्भ
1. ऋग्वेद 10.75.5।2. बाकणकर, बीएस एवं परचुरी, सीएन (1994) द लॉस्ट सरस्वती रिवर, मैसूर।
3. बाल्मिकी रामायण, अयो., 71, 5।
4. लाल, बीबी ‘‘फ्रन्टियर आफ इन्ड्स सिविलाइजेशन’’।
5. महाभारत 3.82.111, 3.130.3, 6.7.47।
6. यशपाल (एसपी गुप्ता में) (1995) मु.पृ. 175।
7. ओएनजीसी (मई 9, 2006) ‘‘टु एक्सप्लोर रूट ऑफ रिवर सरस्वती’’।
8. रिवाइविंग सरस्वती, आर. जी. डब्ल्यू डी. रिपोर्ट, 29.09.1999।
9. महापात्रा, रिर्चड (नवम्बर 15, 2002) ‘‘सरस्वती अंडरग्राउंड’’।
10. राव, एम. आर., जीजीएम ओएनजीसी (2009) ‘‘वैदिक रिवर सरस्वती एंड हिंदू सिविलाइजेशन’’, कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय, कान्फ्रेंस पेपर, मु. पृ. 20-22।
11. इसरो (मार्च 28, 2013) ‘‘प्रिपेयर पेलियो चैनल मैप ऑफ रिवर सरस्वती’’।
12. कुमार, चेलाप्पन (13.05.2015) ‘‘रिवर सरस्वती; हिस्टोरिकल फैक्ट’’, साइंटिफिक प्रूफ।

अलका शर्मा
असिस्टेंट प्रोफेसर, भौतिकी विज्ञान विभाग, श्री जेएन पीजी कॉलेज, स्टेशन रोड, चारबाग, लखनऊ-226001, यूपी, भारत, Alkasharma.bhu@gmail.com

Alka Sharma
Assistant Professor, Department of Physics, S.J.N. P.G. College, Lucknow-226001, U.P., Lucknow, Alkasharma.bhu@gmail.com

प्राप्त तिथि- 24.06.2015, स्वीकृत तिथि- 16.08.2015

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