स्टील इंडस्ट्री यमुना में फेंक रही तेजाब

वजीरपुर इंडस्ट्रियल एरिया की सड़कों पर बह रहा है स्टील कंपनियों से निकलने वाला जहरीला पानी
वजीरपुर इंडस्ट्रियल एरिया की सड़कों पर बह रहा है स्टील कंपनियों से निकलने वाला जहरीला पानी
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की अनदेखी के चलते वजीरपुर इंडस्ट्रियल एरिया के स्टेनलेस स्टील कारखानों से हर रोज निकलने वाला लाखों लीटर तेजाब व जहरीला पानी न केवल यमुना को विषैला बना रहा है बल्कि इलाके के भू-जल व मिट्टी को भी दूषित कर रहा है। इन कारखानों में तेजाब व अन्य कठोर रसायनों की मदद से स्टेनलेस स्टील शीट बनाने की प्रक्रिया, जिसे 'पिकलिंग' कहते हैं, के बाद जहरीले प्रवाह को सीधे खुले नालों, बड़े हौज या सड़कों पर बहा दिया जाता है। इलाके में पहुंचते ही इसके विषैलेपन का अंदाजा इससे धीमी गति में लगातार निकल रहे जहरीले धुएं व तीखी दुर्गंध से हो जाता है।

प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए सुप्रीम कोर्ट के अनेक आदेशों व तमाम कानूनी अधिकार होने के बावजूद डीपीसीसी इन कारखानों के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं कर रहा है। यह भी जान लें कि पिकलिंग गतिविधि दिल्ली के मास्टर प्लान 2021 में उद्योगों की नकारात्मक सूची में दर्ज है, यानी इस प्रक्रिया को अपनाने वाले कारखाने दिल्ली में नहीं चल सकते। डीडीए ने जब मास्टर प्लान 2021 बनाया, शुरू में उसकी नेगेटिव लिस्ट में पिकलिंग नहीं थी। फरवरी 2007 में इसे नेगेटिव लिस्ट में शामिल किया गया। तब इन कारखानों को अपना काम बदलने या दिल्ली से बाहर शिफ्ट करने के लिए तीन साल का वक्त दिया गया। इसी बात को आधार बनाकर वजीरपुर इलाके के स्टेनलेस स्टील कारखाना कारोबारियों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां उन्हें पिछले महीने राहत दे दी गई।

डीपीसीसी को नहीं पता अपना अधिकार


2006 में डीपीसीसी ने ही इन कारखानों से भारी मात्रा में निकलने वाले विषैले प्रवाह के मद्देनजर पिकलिंग को प्रतिबंधित करने की सिफारिश की थी। लेकिन हाल ही में फैसला देने से पहले जब डीपीसीसी के वकील से अदालत ने पूछा कि मास्टर प्लान की नेगेटिव लिस्ट के अलावा किसी अन्य कानून के तहत भी इन पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है तो उन्होंने जवाब दिया कि उनके पास कोई निर्देश नहीं है। गौरतलब है कि डीपीसीसी के पास पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, जल (प्रदूषण व नियंत्रण) अधिनियम, वायु (प्रदूषण रोकथाम व नियंत्रण) अधिनियम, हेजार्डस वेस्ट (मैनेजमेंट एंड हैंडलिंग) रूल्स के तहत पर्यावरण को प्रदूषित करने वाली इकाइयों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का अधिकार है। इन कानूनों का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 1999 में ही आदेश दिया था कि यमुना में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई भी प्रदूषणकारी प्रवाह न डालना सुनिश्चित किया जाए। लेकिन डीपीसीसी की अनदेखी के चलते सुप्रीम कोर्ट की अवहेलना हो रही है। जानकारों का मानना है कि यदि डीपीसीसी अदालत के समक्ष तथ्य पेश करते तो यह स्थिति नहीं होती। ये हाल तब है जब खुद दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के पास ही पर्यावरण विभाग है।

इतनी खतरनाक है यह इंडस्ट्री


• श्रीराम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां से करीब दो करोड़ लीटर (19 एमएलडी) तेजाब युक्त जहरीला पानी रोज निकलता है। इलाके का यह प्रवाह जहां नजफगढ़ नाले में मिलता है, वहां का पीएच स्तर 1.8 यानी बहुत ज्यादा एसिडिक हो जाता है। ये कितना खतरनाक है इसका अंदाजा ऐसे लगाया जा सकता है कि यदि इसमें कोई लोहे की रोड डाल दी जाए तो कुछ ही घंटों में वह घुल जाएगी।
• वजीरपुर इंडस्ट्रियल एरिया में करीब चार हजार कारखाने हैं, जिनमें से करीब 180 कारखाने पिकलिंग की गतिविधियों में लिप्त हैं।
• पिकलिंग गतिविधि वाले कारखानों से निकलने वाले खतरनाक अपशिष्ट को ट्रीट करने के लिए 24 एमएलडी का एक ट्रीटमेंट प्लांट लगा है पर इसमें केवल एक से दो एमएलडी अपशिष्ट ही पहुंचता है, बाकी सीधा नाले में जाता है।
• केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने 64 किस्म के कारखानों की प्रदूषण इकाइयों व गतिविधियों को 'रेड कैटेगरी' में रखा है। इस सूची में 42वें नंबर पर एसिड पिकलिंग एक्टिविट/प्रक्रिया का नाम है।
• जेएनयू के पर्यावरण विज्ञानी सुतपा बोस व एके भट्टाचार्य के 2005 में ही किए गए एक अध्ययन के मुताबिक इन कारखानों से निकलने वाले वेस्ट में आयरन, जिंक, मैग्नीज, कॉपर, कैडमियम व लेड जैसे भारी तत्वों के साथ नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, कार्बन, कैल्सियम, मैग्निशियम, सोडियम व पोटेशियम शामिल हैं और वे बहुत एसिडिक हैं।
• टेरी ने अपनी एक रिपोर्ट में वजीरपुर इंडस्ट्रियल एरिया से निकलने वाले खतरनाक अपशिष्ट की वजह से इलाके के भूजल के प्रदूषित होने जिक्र किया है।

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