सुरक्षा कवच को चाहिए सुरक्षा

6 Oct 2009
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Global warming
Global warming

1980 में ओज़ोन का छेद 3.27 मीलियन स्कवेयर किमी में फैला था, जो 2007 में बढ़कर 25.02 मीलियन स्कवेयर किमी हो गया। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर इसी तेज़ी से ओज़ोन नष्ट होती रही, तो 2054 तक धरती के आस-पास से ओज़ोन का सुरक्षा कवच समाप्त हो जाएगा..

हम अपने कई कामों से वातावरण को कितना नुक़सान पहुंचा देते हैं, इस बात का अंदाज़ा शायद हमें ख़ुद को भी नहीं है। पर क्या आप जानते हैं कि हमारी यह लापरवाही हमें कितनी महंगी पड़ सकती है! हमारे सिर पर छत का काम करने वाली और हमें सूर्य की ख़तरनाक किरणों से बचाने वाली ओज़ोन लेयर लगातार पतली होती जा रही है। और तो और इसमें कई जगह छेद भी हो चुके हैं। आपको इसी ओज़ोन लेयर की अहमियत बताने और इसकी हिफ़ाज़त का याद दिलाने के लिए यूनाइटेड नेशन जनरल असैंबली की तरफ़ से हर साल 16 सितंबर को ओज़ोन-डे मनाया जाता है। आइए, हम भी इस लेयर से जुड़ी कुछ ख़ास बातें जानें और इसे बचाने की अपनी तरफ़ से कम-से-कम एक कोशिश करें—

क्या है ओज़ोन लेयर
ओज़ोन लेयर मोलीक्यूल्स से बनी है। इसके हर मोलीक्यूल में ऑक्सीजन के 3 एटम होते हैं। तभी तो इसका साइंटिफिक फॉमरूला 03 है। इसका रंग नीला होता है और इसमें बहुत तेज़ गंध आती है। सांस लेने के लिए हम जिस ऑक्सीजन का इस्तेमाल करते हैं, उसमें ऑक्सीजन के 2 एटम होते हैं। ओज़ोन से अलग आम ऑक्सीजन में न तो रंग होता है और न ही गंध। ओज़ोन आम ऑक्सीजन के मुक़ाबले दुर्लभ है। 10 मिलीयन हवा के मोलीक्यूल्स में लगभग 2 मिलीयन मोलीक्यूल्स आम ऑक्सीजन के होते हैं और केवल 3 ओज़ोन के। आप इसी से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि ओज़ोन कितनी क़ीमती और ज़रूरी है।

कहां से शुरू होती है
धरती के वातावरण को कई लेयर्स में बांटा जाता है। सबसे निचली लेयर को ट्रोपोस्फेयर कहा जाता है। यह ज़मीन से 10 किलोमीटर की ऊंचाई तक फैली है। ज़मीन का सबसे ऊंचा पहाड़ माऊंट एवरेस्ट भी ऊंचाई में केवल 9 किलोमीटर ही है। इंसानी जीवन के •यादातर काम इसी लेयर में होते हैं। इसके बाद दूसरी लेयर स्ट्रोटोस्फेयर कहलाती है। यह लेयर 10 किमी से 50 किमी तक फैली है। ओज़ोन लेयर भी इसी लेयर में होती है। ओज़ोन लेयर ज़मीन से लगभग 15-30 किमी की ऊंचाई पर होती है।

क्या हैं फ़ायदे
ओज़ोन लेयर सूर्य से आने वाले रेडिएशन को सोख लेती है और उसे ज़मीन पर पहुंचने ही नहीं देती। यह सूर्य से आने वाली अल्ट्रा-वायलेट किरण, यूवीबी को सोख लेती है। यूवीबी किरणों इंसानी शरीर और वातावरण को कई तरह के नुक़सान पहुंचाती हैं। इनके कारण विभिन्न तरह के स्किन कैंसर, महाजलप्रताप, फसलों और पदार्थो को नुक़सान और समुद्री जीवन को हानी होती है।

किससे पहुंचता है नुक़सान
ओज़ोन लेयर को नुक़सान पहुंचाने में सबसे बड़ा योगदान ‘क्लोरोफ्लोरोकार्बन’ या सीएफएस नाम की गैस का होता है। इस गैस के बढ़ते इस्तेमाल के कारण ओज़ोन को नुक़सान पहुंच रहा है। इस गैस का इस्तेमाल रैफ्रीजरेटर, झाग बनाने वाले एजेंट्स और कई दूसरे एप्लीकेशन्स में किया जाता है। इसके अलावा जो कंपाउंड्स टूटने पर क्लोरीन और ब्रोमीन बनाते हैं, वे भी ओज़ोन के लिए ख़तरा हैं। पर इसमें सबसे ज्यादा ख़तरनाक सीएफएस ही हैं, क्योंकि ये न तो पानी में मिलते हैं और न ही ख़त्म होते हैं।

सीएफएस एजेंट्स इतने शक्तिशाली होते हैं कि केवल स्ट्रॉन्ग यूवी रेडिएशन के संपर्क में आने पर ही टूटते हैं। जब ऐसा होता है, तो इनसे अटोमिक क्लोरीन रिलीज़ होती है। यह कितना हानिकारक है, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक क्लोरीन एटम 1 लाख ओज़ोन मोलीक्यूल्स को तबाह कर देता है। नष्ट होने के मुक़ाबले इनका बनने की समयावधि बहुत ज्यादा है। एक नया अध्ययन यह भी बताता है कि नाइट्रस ऑक्साइड, जिसे हम लाफिंग गैस के नाम से जानते हैं, भी ओज़ोन लेयर के लिए बड़ा ख़तरा है।

हम क्या कर सकते हैं
उन प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करिए, जो ‘ओज़ोन-फ्रैंडली’ हों।
अपने फ्रिज और एसी की समय-समय पर जांच करवाते रहिए। एसी या फ्रिज पुराना होने पर उसे री-साइकिल करें।
पौधे लगाइए। इससे ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन पैदा होगी।
जहां तक हो सके, कार का इस्तेमाल कम करें। इससे प्रदूषण कम करने में मदद मिलेगी।
गर्मियों में ख़ुद को ठंडा रखने के लिए हल्के कपड़े पहनें। जितना हो सके, एसी का इस्तेमाल कम करें।
अगर लाइट की ज़रूरत न हो, तो उसे बंद रखें। सजावटी रोशनियों से परहेज़ करें।

Tags- Ozone layer in Hindi

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