सूखा और अभाव

देश में बहुत सारे इलाके ऐसे हैं जहां हर चार-पांच साल में एक बार सूखा पड़ रहा है। राजस्थान, गुजरात और आंध्र प्रदेश में तो दो-तीन साल में सूखा पड़ता है। पश्चिमी राजस्थान तो हर ढाई साल में सूखे का शिकार होता है। भौगालिक क्षेत्र के हिसाब से कहें तो बार-बार सूखे का शिकार होने वाला भूभाग देश की कुल भूमि का 19 प्रतिशत है और कुल आबादी के 12 प्रतिशत लोग इसकी पकड़ में आते हैं। राहत की जो भी व्यवस्था की जाती है वह सिर्फ अधूरी होती है, बल्कि आधे मन से की जाती है। राजस्थान में सूखा तो एक स्थायी और अटल विपदा बन गई है। पूरे राज्य की सूखा-राहत योजना के तहत 1979 से 1982 के बीच 182 करोड़ रुपये खर्च किए गए जिनमें पशुओं और उनके चारे पर केवल 15 करोड़ ही खर्च हुए।

सूखा पड़ने का नतीजा अकाल (अनाज का अभाव) जलकाल (पानी का अभाव) तथा तिनकाल (घास-चारे का अभाव) है और लोगों को अकसर तीनों यानी त्रिकाल भी भोगना पड़ता है। 1868-69 के बीच थार मरुभूमि में जब अकाल पड़ा था तब जोधपुर और पाली के (65 वर्ग किलोमीटर के) सभी गांव निर्जन हो गए थे। 1912 से 1940 के बीच के अकाल के वर्षों में 30 से 80 प्रतिशत तक जानवर मरे। 1967-71 की अवधि में लगातार सूखा पड़ा और फलस्वरूप आव्रजन और मौत की घटनाएं बढ़ीं।

सूखा-राहत कार्यों में पहला लक्ष्य तो लोगों को बचाने का होता है। पशुओं का नंबर बाद में आता है। लेकिन चरवाहों की जीविका का प्रमुख और एकमात्र साधन जानवर ही हैं, इसलिए सूखा पड़ते ही फौरन वे अपना गांव छोड़कर जानवरों को लेकर ऐसी जगह चले जाते हैं जहां वे उन्हें ठीक से खिला-पिला सकें। इतनी तकलीफ उठाकर ये जहां पहुंचते हैं वहां के लोग अब इन्हें एक मुसीबत मानने लगे हैं।

अब तो दो भयानक सूखों के बीच का अंतराल कम होता जा रहा है। इसलिए सरकार आव्रजकों के रास्ते में कुछ स्थायी सुविधाएं तैयार रखने के बारे में भी सोचने लगी है। योजना है कि हर 20 किलोमीटर पर चारे का भंडार रखा जाए और पानी का प्रबंध किया जाए। जो भी चरवाहा अपने निजी जानवरों की संख्या के बारे में अधिकृत परिचय पत्र पेश करेगा, उसे उन केन्द्रों से प्रति जानवर छह किलो ग्राम चारा और प्रति व्यक्ति आधा किलों आटा रोज के हिसाब से निःशुल्क दिया जाएगा। इन चारा केन्द्रों में सूखे के वर्षों में चारा आरक्षित जंगलों से लाया जाएगा।

अभाव के दिनों में जब राज्य के भीतर का चारा-दाना मिलना बंद हो जाता है, तो पड़ोसी राज्यों से उन्हें मंगाने के सिवाय दूसरा उपाय नहीं रह जाता। पर इसमें ढुलाई का खर्च बहुत आता है इस तरह राज्य भर के मवेशियों के लिए जरूरी चारा जुटाना कठिन हो जाता है। पहले पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश और गुजरात के लोग राजस्थान के या और भी किसी सूखा पीड़ित इलाके के जानवरों को अपने जंगल में चरने के लिए आने देते थे। पर बाद में ये बाहर के जानवरों के आने पर प्रतिबंध लगाने लगे। इससे राजस्थान के बंजारों के लिए समस्या पैदा हो गई।

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