अँतरे खोंतरे डंडै करै।
ताल नहाय ओस माँ परै।।
दैव न मारै अपुवइ मरै।
भावार्थ- जो व्यक्ति कभी-कभी (दूसरे-चौथे) व्यायाम करता है अर्थात् नियमित नहीं करता, तालाब में स्नान करता है और ओस में सोता है, उसे भगवान या भाग्य नहीं मारता स्वयं अपनी मूर्खता से मरता है।
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