स्वच्छ पानी के लिए तरस रहा बिहार, 37 जिलों में दूषित पानी की सप्लाई

14 Jan 2020
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स्वच्छ पानी के लिए तरस रहा बिहार, 37 जिलों में दूषित पानी की सप्लाई
स्वच्छ पानी के लिए तरस रहा बिहार, 37 जिलों में दूषित पानी की सप्लाई

गौतम बुद्ध की स्थली कहा जाने वाला बिहार स्वच्छ पेयजल के लिए तरस रहा है। शासन और प्रशासन की कार्यप्रणाली का आलम ये है कि बिहार के 37 जिलों का पानी पीने लायक नहीं है। नौ जिलों के 6580 टोलों का भूजल प्रदूषण फैलने से संक्रमित हो गया है। जल में आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन की मात्रा बढ़ने से लोग विभिन्न प्रकार की बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। इस बात की जानकारी बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने इंडियन वाटर वर्क्स एसोसिएशन के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए दी। उन्होंने कहा कि राज्य के 37 जिलों के 31 हजार वार्डों में जल संक्रमित हो गया।

उप मुख्यमंत्री के अनुसार स्वच्छ जल उपलब्ध कराने के लिए सरकार द्वारा लगातार प्रयास किया जा रहा है, लेकिन 31 हजार वार्डों में गुणवत्तापरक पेयजल की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। आलम ये है कि संक्रमित पेयजल वाले जिलों की संख्या 28 से बढ़कर 31 हो गई है। वर्ष 2009 की भूजल गुणवत्ता स्थिति की रिपोर्ट पर नजर डालें तो, रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 13 जिलों के पानी में आर्सेनिक, 11 में फ्लोराइड और नौ जिलों में आयरन की मात्रा अधिकतम सीमा से भी ज्यादा है। इनमें 18 हजार 673 टोलों में आयरन का संक्रमण, 4 हजार 157 टोलों में फ्लोराइड का संक्रमण तथा 1 हजार 590 टोलें ऐसे हैं, जहां पेयजल आर्सेनिक से संक्रमित है। तो वहीं 28 जिलें ऐसे हैं, जिनमें दो दो प्रकार का संक्रमण है। रिपोर्ट के अनुसार बीते दस वर्षों में 9 जनपदों और 6580 टोलों में भूजल में संक्रमण फैला है। 

वास्तव में उप मुख्यमंत्री द्वारा भाषण में दिया गया ये भयावह आंकड़ा धरातल पर पेयजल सप्लाई के कार्यों की पोल खोलता है। इससे ऐसा भी प्रतीत होता है, मानों मार्च 2020 तक इन टोलों में स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति करना केवल सरकारी फाइलों तक ही सीमित न रह जाए। जिसका खामियाजा जनता फ्लोरोसिस और कैंसर जैसी भयावह बीमारियों के रूप में भुगत रही है। दक्षिण बिहार में तो सैंकड़ों लोगों को फ्लोरोसिस है, जिससे उनकी हड्डियां टेढ़ी हो गई है, जबकि आर्सेनिक के कारण कई लोगों को कैंसर और त्वचा रोग की बीमारियों ने घेर लिया है। जिसका समाधान सरकार, प्रशासन और जनता के साझे प्रयास से ही खोजा जा सकता है, लेकिन सर्वप्रथम दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत है, जिसमें कथनी और करनी में भिन्नता नहीं होनी चाहिए। क्योंकि जल है तो कल है। 

 

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