स्वच्छ ऊर्जा और भारत

18 Apr 2016
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केन्द्र सरकार ने राज्यों और विभिन्न सरकारी संस्थाओं के सहयोग से खेतों में सिंचाई के लिये सोलर पम्पिंग कार्यक्रम को लागू किया है। नवीनीकृत ऊर्जा मंत्रालय इस कार्यक्रम को लागू करने के लिये 30 फीसद पूँजीगत छूट भी दे रहा है। शुरुआती दौर में ऊर्जा मंत्री पवन गोयल ने कारपोरेट जगत को इस क्षेत्र में निवेश के लिये आमंत्रण दिया। लगभग 213 कम्पनियों ने अगले पाँच सालों में नवीनीकृत ऊर्जा स्रोतों के जरिए 266 गीगावाट बिजली उत्पादन करने की प्रतिबद्धता दिखाई। संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरणीय कार्यक्रम ने हाल में ऊर्जा के नवीनीकृत स्रोतों में निवेश के वैश्विक रूझानों की पड़ताल करने वाली एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें भारत के लिये एक अच्छी खबर आई। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में साल 2015 में सौर और पवन ऊर्जा जैसे गैर-परम्परागत साधनों पर निवेश करने वाले दुनिया के दस शीर्ष देशों में एक रहा। उसने बीते साल इन ऊर्जा के स्रोतों में निवेश की अपनी प्रतिबद्धता से 22 फीसद आगे जाकर लगभग 10.2 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश किया। जाहिर तौर पर इस उपलब्धि के मायने उस पूरे वैश्विक माहौल में खास हो जाते हैं, जब दुनिया का हर देश पेरिस जलवायु परिवर्तन सम्मेलन की पृष्ठभूमि में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नियंत्रित करने की कोशिश में है।

खास बात ये है कि साल 2015 में भारत के यूटिलिटी सोलर स्केल परियोजनाओं के निवेश में ज्यादा उछाल आया है। यूटिलिटी सोलर स्केल परियोजनाओं के जरिए ही गर्मियों के महीने में बिजली आपूर्ति को दुरुस्त रखा जा सकता है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार ने साल 2022 तक गैर-परम्परागत ऊर्जा साधनों से 175 गीगाबाइट उत्पादन का महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया था। खुद संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट में 2015 में भारत के गैर-परम्परागत ऊर्जा स्रोतों में निवेश में बढ़ोत्तरी का श्रेय मोदी सरकार की नीतियों को दिया गया है।

यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि भारत में नवीनीकृत ऊर्जा के स्रोतों के भविष्य पर चल रही बहस केन्द्र सरकार की प्राथमिकता का नतीजा है। प्रधानमंत्री बनने से पहले स्वयं मोदी ने सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के जरिये क्रान्तिकारी बदलाव की बात अपनी चुनावी रैलियों में की थी। सत्ता में आने के बाद उनके नेतृत्व में केन्द्र सरकार ने समावेशी ऊर्जा नीति अपनाकर इस वादे को पूरा करने की दिशा में कई ठोस पहल किया।

केन्द्र सरकार ने राज्यों और विभिन्न सरकारी संस्थाओं के सहयोग से खेतों में सिंचाई के लिये सोलर पम्पिंग कार्यक्रम को लागू किया है। नवीनीकृत ऊर्जा मंत्रालय इस कार्यक्रम को लागू करने के लिये 30 फीसद पूँजीगत छूट भी दे रहा है। शुरुआती दौर में ऊर्जा मंत्री पवन गोयल ने कारपोरेट जगत को इस क्षेत्र में निवेश के लिये आमंत्रण दिया।

लगभग 213 कम्पनियों ने अगले पाँच सालों में नवीनीकृत ऊर्जा स्रोतों के जरिए 266 गीगावाट बिजली उत्पादन करने की प्रतिबद्धता दिखाई। हालांकि इन कम्पनियों में सार्वजनिक क्षेत्र की एनटीपीसी लिमिटेड भी शामिल थी, लेकिन इसके बावजूद अमेरिकी कम्पनी सन एडिसन और रिन्यू पावर वेंचर्स लिमिटेड ने भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन के बड़े वायदे किये।

यह भारत के प्रति वैश्विक कम्पनियों के नजरिए में आ रहे बदलावों का सुखद संकेत था। सरकार ने इसी तरह पाँच सौ मेगावाट और उससे अधिक क्षमता के 25 सौर पार्क और अल्ट्रा मेगा सौर विद्युत परियोजनाएँ स्थापित करने की घोषणा की। एक महत्त्वपूर्ण पहल राज्यों की नवीनीकरण ऊर्जा एजेंसियों का संघ बनाकर की गई। इसका मकसद वैकल्पिक ऊर्जा कार्यक्रमों को लागू करने वाली एजेंसियों के बीच संवाद बढ़ाना था।

दरअसल हरित और नवीनीकृत ऊर्जा स्रोतों के प्रति सरकार की प्राथमिकता के कारण बीते सालों में भारत के आयात बिल में होने वाली बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई। कालान्तर में सरकारों ने इसे नियंत्रित करने की आवश्यकता महसूस नहीं की जबकि साल 2030 तक भारत के आयात बिल की रकम 300 अरब डॉलर तक पहुँच जाने की उम्मीद है। आयात बिल में बढ़ोत्तरी का सबसे बड़ा कारण भारत के कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस पर निर्भरता है। इस समय भारत 80 फीसद कच्चा तेल आयातित करता है।

कहने की आवश्यकता नहीं है कि यही स्थिति नवीनीकृत ऊर्जा स्रोतों के विकास के लिये एक अवसर भी मुहैया कराती है। जानकारों ने ध्यान दिलाया है कि भारत आज धीरे-धीरे उस स्थिति में पहुँच गया है जहाँ सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के जरिए पैदा होने वाली बिजली की लागत परम्परागत ऊर्जा स्रोतों से पैदा होने वाली बिजली के लागत के लगभग बराबर हो गई है।

भारत के कई राज्यों जैसे तमिलनाडु में तो पवन ऊर्जा से पैदा होने वाली बिजली का लागत कोल आधारित थर्मल पावर संयंत्रों से पैदा होने वाली बिजली की लागत के बराबर है। वहीं औद्योगिक और व्यावसायिक उद्देश्यों के लिये सौर ऊर्जा का विकास टैरिफ आधारित नीलामी प्रक्रिया के जरिए हो रहा है, जिससे सौर ऊर्जा का उत्पादन सस्ती लागत में हो रही है। वास्तव में, ऊर्जा सुरक्षा और हरित ऊर्जा के प्रति केन्द्र सरकार की सक्रियता का बड़ा कारण पेरिस जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के इर्द-गिर्द बन रहा माहौल था।

इस माहौल के बाद जैसी वैश्विक स्थितियाँ बनी हैं, उसमें भारत के सामने बड़ी चुनौतियाँ हैं। सरकार के सामने देश की बड़ी आबादी को साफ बिजली और पानी देने की चुनौतियाँ तो हैं ही, साथ में उसे जलवायु परिवर्तन से सम्बन्धित वैश्विक प्रतिबद्धताओं को भी पूरा करना है।

ऊर्जा के परम्परागत साधनों जैसे जीवाश्म ईंधन आदि पर निर्भरता को धीरे-धीरे कम कर ही इन दोनों लक्ष्यों को पूरा किया जा सकता है। वैश्विक रुझान यही है कि लगातार उन्नत हो रही तकनीक, सरकारी सहयोग, वैकल्पिक ऊर्जा तकनीकों के लगातार सस्ता होने और औद्योगिक जगत के आकर्षण के चलते नवीनीकृत ऊर्जा के स्रोत धीरे-धीरे परम्परागत स्रोतों को विस्थापित कर रहे हैं।

केन्द्र सरकार ने अपने अब तक के कार्यकाल में ग्लोबल वार्मिंग के प्रति अपना नीतिगत रुख भी साफ कर दिया है। उसने ऐसे सख्त कदम उठाने से भी परहेज नहीं किया है जिसका तात्कालिक तौर पर उसे राजनीतिक नुकसान उठाना पड़े। तेल पर मिलने वाली सब्सिडी को खत्म करने का निर्णय ऐसा ही निर्णय रहा है।

पेट्रोलियम उत्पादों पर भी सरकार ने टैक्स बढ़ाकर स्पष्ट सन्देश दिया है कि इससे कार्बन टैक्सेशन की अवधारणा साकार होगी। हालांकि इससे उद्योग जगत के एक हिस्से में बेचैनी और नाराजगी का माहौल है, जबकि बाकी ने इसे समय की माँग समझते हुए इसका स्वागत किया है। यहाँ यह बात भी नहीं भूलनी चाहिए कि भारत दुनिया का पहला ऐसा देश है जिसने कार्बन टैक्स को लागू किया है।

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाले कोयले पर अधिभार को 100 रुपए प्रति टन से बढ़ाकर 200 रुपए प्रति टन करने की घोषणा की थी। भारत में नवीनीकृत ऊर्जा स्रोतों के विकास के लिए भी वैश्विक सहयोग भी इसीलिए मिल पा रहा है, क्योंकि यहाँ धीरे-धीरे ऐसी विनियामक व्यवस्था और मॉडल आकार ले रहा है जो नवीनीकृत ऊर्जा स्रोतों के विकास के लिये बहुत अनुकूल है।

यही कारण है कि अपने शासन के शुरुआती कार्यकाल में ही केन्द्र सरकार को फ्रांस की एक एजेंसी से नवीनीकरण ऊर्जा सक्षम परियोजनाओं के वित्त पोषण के लिये सौ मिलियन यूरो का कर्ज मिल पाया। ठीक इसी तरह भारतीय नवीकरण ऊर्जा विकास एजेंसी लिमिटेड और जापान अन्तरराष्ट्रीय सहयोग एजेंसी के बीच तीस वर्षों के लिये 30 अरब डॉलर का समझौता हो सका।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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