शहरी जल-संकट: स्मार्ट शहर एक समाधान

16 Jun 2020
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फोटो - Down To Earth
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छोटे एवं मध्यम आकार के शहरों में जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होती है जबकि वे अपनी जल संरचनाओं का विकास उतनी तेजी से नहीं कर पाते। इन छोटे शहरों के पास जल की बुनियादी संरचनाओं के विकास को गति देने के लिए पर्याप्त राजस्व उपलब्ध नहीं होता। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 47 प्रतिशत शहरी लोगों के पास जल के व्यक्तिगत स्रोत हैं तथा अन्य लोगों को पाइप लाइन के माध्यम से आपूर्ति होती है। शहरों को पानी स्थानीय जल इकाइयों से ना मिलकर दूरस्थ जलीय इकाइयों से पाइप लाइन द्वारा प्राप्त होता है। वर्तमान में खराब हालत वाली जल की वितरण प्रणालियों से 40 प्रतिशत से लेकर 50 प्रतिशत तक जल बेकार हो जाता है।

भारत एक बहुत बड़ा राष्ट्र है जिसकी 31 प्रतिशत आबादी शहरों में तथा 69 प्रतिशत आबादी गाँवों में निवास करती है। गाँवों में स्वास्थ्य, शिक्षा, रोज़गार एवं यातायात इत्यादि की मूलभूत सुविधा ना होने के कारण इनके विकास की गति धीमी है, जिससे ग्रामीण धीरे-धीरे शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। जिसके फलस्वरूप शहर की आबादी बढ़ती जा रही है तथा शहरों में उपलब्ध संसाधनों पर दबाव बढ़ता जा रहा है। भारत के शहर सकल घरेलू उत्पाद में 63 प्रतिशत का योगदान देते हैं। आने वाले सालों में वर्ष 2030 तक भारत की कुल आबादी का 40 प्रतिशत भाग शहरों में निवास करेगा तथा सकल घरेलू उत्पाद में 75 प्रतिशत का योगदान करेगा। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में वर्तमान में लगभग 7935 शहर हैं जिनमें लगभग 37.7 करोड़ लोग निवास करते हैं। वर्ष 2030 तक इनकी आबादी लगभग 59 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। आबादी बढ़ने से इन शहरों के बीच की सीमाएं समाप्त होने से प्राकृतिक संसाधनों तथा इनसे निकले अपशिष्ट का प्रबंधन करना एक बड़ी चुनौती होगी। इन चुनौतियों का सामना करने हेतु तथा देश एवं शहरों के विकास को गति देने के उद्देश्य से प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार ने तीन महत्वाकांक्षी योजनाओं स्मार्ट सिटी, अमृत (अटल मिशन फाॅर रिजुवनेशन एंड अर्बन ट्रांसफार्मेशन) एवं सभी के लिए आवास योजना का शुभारंभ किया। 

25 जून 2015 में आरंभ की गयी ‘‘स्मार्ट सिटी’’ योजना के प्रमुख उद्देश्य शहरी भारत के जन जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाना, स्वच्छ पर्यावरण उपलब्ध कराना, परिवहन व्यवस्था को सुधारना, झुग्गी-झोपड़ियों के स्थान पर नए वैकल्पिक आवास प्रदान करना, प्राकृतिक संसाधनों एवं बुनियादी संरचनाओं का सक्षम विकास करना इत्यादि हैं। जिससे स्मार्ट शहर अत्याधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण होकर अपना एवं स्वयं से जुड़े गाँवों को विकसित करने के साथ देश की आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रगति में साधक बन सकें। इस मिशन के लिए भारत के सौ शहरों को चुना गया है एवं इस योजना की अवधि पांच वर्ष अर्थात 2015 से लेकर वर्ष 2020 तक निर्धारित की गई है। इन एक लाख से अधिक आबादी वाले शहरों को भारत के 29 राज्यों एवं 7 केन्द्र शासित प्रदेशों से एक समान मापदंड के आधार पर चुना गया है।

स्मार्ट शहर की प्रमुख विशेषताएँ

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के अनुसार ‘‘स्मार्ट शहर वो होते हैं जो उसमें निवास करने वाले नागरिकों की जरूरत से दो कदम आगे हों’’। प्रत्येक शहर की अपनी एक संस्कृति एवं चरित्र होता है। कई शहरों की बनावट जटिल एवं दुर्गम होती है तो कई शहरों की सहज। एक शहर स्मार्ट शहर तब बनता है जब उसमें निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं।

1. पहचान, संस्कृति एवं जन-भागीदारी- स्मार्ट शहर अपनी एक अलग पहचान रखते हैं जो इन्हें अन्य शहरों से अलग करती है। शहर की जलवायु, प्रमुख उद्योग, सांस्कृतिक विरासत एवं स्थानीय संस्कृति आदि घटक पहचान के महत्वपूर्ण पहलू हैं। स्मार्ट शहर में आम जनता की राय की अहमियत होती है। तथा शहर में चलाई जाने वाली योजनाओं में परिवर्तन उनकी राय के अनुसार किया जाता है जिससे सभी वर्गों को उन योजनाओं का पूरा लाभ मिल सके।

2. स्वास्थ्य शिक्षा एवं रोज़गार प्रबंधन- स्मार्ट शहर अपने सभी नागरिकों हेतु उत्तम, आसानी से पहुंचने योग्य एवं पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करने की योग्यता रखता है। उसके स्वास्थ्य केंद्रों में आपातकालीन स्थिति से निपटने एवं एम्बुलेंस सेवाएं पर्याप्त मात्र में होती हैं। एक स्मार्ट शहर अपने अधिकांश नागरिकों के लिए एक मजबूत एवं लचीला आर्थिक आधार एवं विकास प्रदान करता है जिससे वहां के नागरिक रोज़गार के नए अवसर पा सकें।

3. शहरी विकास एवं आवास प्रबंधन- स्मार्ट शहर सुगठित एवं सघन रूप में विकसित होते हैं। इनमें आवासीय भवन एक दूसरे से करीब स्थित होते हैं एवं ये सार्वजनिक परिवहन से पैदल की दूरी के भीतर होते हैं। स्मार्ट शहर में पर्याप्त एवं उपयोग करने योग्य खुले स्थान अथवा पार्क होते हैं जिनका वितरण इस प्रकार होता है कि शहर का प्रत्येक नागरिक आसानी से इनका प्रयोग कर सके। स्मार्ट शहर में प्रत्येक वर्ग के रहने के लिए पर्याप्त आवास होते हैं एवं ये सामाजिक समूहों के बीच एकीकरण परंपरा को बढ़ावा देते हैं। स्मार्ट शहर में विभिन्न प्रकार के भू उपयोग एक ही स्थान पर होते हैं, उदाहरणार्थ घर, दफ्तर, दुकानें इत्यादि पास-पास होते हैं।

4. यातायात प्रबंधन- स्मार्ट शहर में फुटपाथ तंत्र पूर्ण विकसित होता है एवं शहर में सड़कों का जाल समान रूप से इस प्रकार विकसित किया जाता है जिससे पदयात्रियों, साईकिल चालकों एवं वाहनों की आवाजाही सुगमता से एवं सुरक्षित रूप से हो सके।

5. सरकार एवं नागरिकों के मध्य संपर्क-प्रबंधन- स्मार्ट शहर के प्रत्येक भाग में उच्च गति के इंटरनेट की सुविधा होती है जिसे शहर का प्रत्येक नागरिक आवश्यकतानुसार उपयोग में ला सकता है। स्मार्ट शहर में सरकारी तंत्र एवं नागरिकों के बीच संपर्क को आसान एवं सक्षम बनाने की क्षमता होती है।

6. ऊर्जा प्रबंधन- स्मार्ट शहर में प्रतिदिन चौबीस घंटे विद्युत की आपूर्ति उपलब्ध रहती है एवं वे अपनी कुल ऊर्जा खपत के 10 प्रतिशत भाग का उत्पादन अक्षय ऊर्जा स्रोत जैसे सौर, पवन एवं जल द्वारा प्राप्त करने की क्षमता रखते हैं। ऐसे  शहर की सरकारी इमारतों एवं गलियों की विद्यतु व्यवस्था में अत्याधुनिक ऊर्जा क्षमता वाली प्रथाओं का प्रयोग होता है। तूफ़ान आदि में बिजली के तारों को टूटने से बचाने एवं शहर की सुन्दरता को बनाए रखने के लिए भूमिगत तारों का प्रयोग किया जाता है।

7. जल एवं वायु प्रबंधन- स्मार्ट शहर में राष्ट्रीय एवं वैश्विक स्वास्थ्य मानकों पर खरे उतरने वाले शुद्ध जल की आपूर्ति प्रतिदिन चौबीस घंटे उपलब्ध रहती है एवं उन्नत जल प्रबंधन  हेतु स्मार्ट जल मीटर, वर्षा जल का समुचित संचयन तथा तूफ़ान के समय आये अतिरिक्त जल के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए बुनियादी हरित ढांचे होते हैं। सतही जल एवं भूजल के जलभृतों को प्रदूषण से बचाने के लिए अपशिष्ट जल को उपचारित करने की पूर्ण क्षमता होती है। स्मार्ट शहर की वायु अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मानकों की गुणवत्ता वाली होती है। वायु की गुणवत्ता मापने के लिए शहर के विभिन्न स्थानों पर संयंत्र लगे होते हैं।

8. स्वच्छता एवं कचरा प्रबंधन- स्मार्ट शहर खुले में शौच से पूर्णर्त: मुक्त होता है। उसमें सार्वजनिक शौचालय, मोबाइल शौचालय, ई-शौचालय एवं सामुदायिक शौचालय पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं। शहर के घरेलू एवं औद्योगिक कचरे का प्रबंधन पर्यावरण एवं आर्थिक दृष्टि के अनुकूल होता है। शहर में कचरा प्रबंधन हेतु संयंत्र पर्याप्त मात्र में होते हैं।

9. नागरिक सुरक्षा प्रबंधन- स्मार्ट शहर में महिलाओं, बच्चों तथा बुजुर्गों की सार्वजनिक सुरक्षा का स्तर उच्च कोटि का होता है। इसके लिए महिला थाने, ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने की व्यवस्था, सी.सी.टी.वी. कैमरों की पर्याप्त मात्रा, पुलिस पेट्रोलिंग, स्वचालित माॅनिटरिंग तंत्र, पर्याप्त स्ट्रीट लाइट इत्यादि की समुचित सुविधा होती है।

वर्तमान में शहरों की जल समस्या

भारत ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में शहरों के पास जल संसाधनों की कमी है। आज समूचे यूरोप के 60 प्रतिशत औद्योगिक एवं शहरी केन्द्र भूजल के गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं नेपाल, फिजी, फ़िलीपीन्स, थाईलैंड आस्टेंलिया, आदि अनेक देशों में जल का संकट बढ़ रहा है। विश्व में कुल जल उपयोग का 15 प्रतिशत भाग घरेलू उद्देश्यों के लिए उपयोग में लाया जाता है, इनमें शामिल हैं पेयजल, स्नान हेतु जल, खाना पकाने हेतु जल, स्वच्छता एवं बाग़वानी हेतु जल इत्यादि। पीटर गलैक के अनुसार घरों की बुनियादी आवश्यकताओं के लिए प्रतिदिन प्रति-व्यक्ति लगभग 50 लीटर की खपत है और इस खपत में बगीचों के लिए पानी शामिल नहीं है। शहर में जल प्रणाली एक महत्वपूर्ण अंग होती है। शहरी आबादी बढ़ने के साथ-साथ कम होते जल संसाधनों ने शहरों में जल संकट को और भी बढ़ा दिया है। एक रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक विश्व के 600 करोड़ लोग शहरों में निवास करेंगे। भारत में भी 2050 तक भारत की 50 प्रतिशत आबादी शहरों में निवास करेगी जिससे पेयजल एवं घरेलू कार्य में प्रयोग होने वाले जल में और भी कमी आएगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में वर्तमान में 9.7 करोड़ शहरी क्षेत्र के लोगों के पास अभी भी पीने को साफ पानी उपलब्ध नहीं है। वर्तमान में जल की दृष्टि से शहरी क्षेत्र की प्रमुख समस्याएं निम्न हैं-

1. जल उपलब्धता- पृथ्वी पर स्थित कुल जल का 1 प्रतिशत भाग ही मानव के उपयोग के लिए उपलब्ध है। आजादी के समय जब भारत की आबादी 40 करोड़ थी तब प्रत्येक व्यक्ति के पास प्रतिवर्ष जल उपलब्धता 5000 घन मीटर अर्थात 50 लाख लीटर थी जैसे ही जनसंख्या 100 करोड़ पहुंची जल उपलब्धता घट कर 2000 घन मीटर अर्थात 20 लाख लीटर प्रतिवर्ष पहुंच गयी। वर्ष 2025 तक यह उपलब्धता और भी घट कर 1500 घन मीटर अर्थात 15 लाख लीटर प्रतिवर्ष तक पहुंच जाएगी। जब किसी देश की प्रति-व्यक्ति प्रतिवर्ष जल उपलब्धता 1700 घन मीटर पहुंच जाती है तो वह अल्पावधि या नियमित रूप से जल संकट कहलाता है। 1000 घन मीटर से कम जल उपलब्धता आर्थिक विकास एवं मानव स्वास्थ्य और समृद्धि में बाधा डालती ह।ै यद्यपि विकासशील देशों के लोग, विकसित देशों के लोगों से काफी कम प्रतिव्यक्ति जल खर्च करते हैं।

अधिकतर भारतीय शहर भू-जल से ही जल की मांग की पूर्ति करते हैं। भारत में 60 फीसदी सिंचाई हेतु जल और लगभग 85 फीसदी पेयजल का स्रोत भूजल ही है। भूजल के अत्यधिक दोहन के कारण शहरों में भूजल का स्तर तेजी से गिर रहा है। केंद्रीय भूजल बोर्ड के अनुसार भारत के 55 प्रतिशत कुओं में पानी का स्तर घट गया है। शहरों में कंक्रीट के बढ़ते जंगलों ने सतही अपवाह को बढ़ावा दिया है जिसके कारण वर्षा का जल भू जलभृतों में संग्रहित नहीं हो पाता।

2. जल आपूर्ति हेतु संरचनाएं- छोटे एवं मध्यम आकार के शहरों में जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होती है जबकि वे अपनी जल संरचनाओं का विकास उतनी तेजी से नहीं कर पाते। इन छोटे शहरों के पास जल की बुनियादी संरचनाओं के विकास को गति देने के लिए पर्याप्त राजस्व उपलब्ध नहीं होता। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 47 प्रतिशत शहरी लोगों के पास जल के व्यक्तिगत स्रोत हैं तथा अन्य लोगों को पाइप लाइन के माध्यम से आपूर्ति होती है। शहरों को पानी स्थानीय जल इकाइयों से ना मिलकर दूरस्थ जलीय इकाइयों से पाइप लाइन द्वारा प्राप्त होता है। वर्तमान में खराब हालत वाली जल की वितरण प्रणालियों से 40 प्रतिशत से लेकर 50 प्रतिशत तक जल बेकार हो जाता है। जल आपूर्ति की हालत इतनी खराब है कि शहरों में बसी झुग्गी झोपड़ी में तो पीने का पानी तक भी उपलब्ध नहीं है।

3. अपशिष्ट जल प्रबंधन- भारतीय शहरों में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांटों की कमी है। औद्योगिक और घरेलू अपशिष्ट जल को नदियों, तालाबों और कुओं में छोड़ दिया जाता है जिससे प्राकृतिक जल संसाधन प्रदूषित हो रहे हैं। कुछ भारतीय शहरों में अपशिष्ट जल को पुनःचक्रण द्वारा विभिन्न कार्यों हेतु उपयोग किया जाता है लेकिन पेयजल हेतु अभी भी उसे उपयोग में नहीं लाया जाता। जल का पुनप्र्रयोग भूमिगत जल के पुनर्भरण, जल चक्र को बहाल करने और प्राकृतिक पारिस्थितिक पर्यावरण की सुरक्षा में मदद करता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार भारत के पास केवल 30 प्रतिशत जल उपचारण की क्षमता है एवं उनका वितरण भी असमान है। दिल्ली एवं मुंबई जैसे बड़े महानगर कुल अपशिष्ट जल का 17 प्रतिशत भाग उत्पन्न कर रहे हैं तथा उनके पास उपचारण क्षमता देश की कुल उपचारण की क्षमता का 40 प्रतिशत भाग है।

4. पानी की गुणवत्ता- पानी की मात्रा की तरह, पानी की गुणवत्ता भी जल की एक प्रमुख समस्या रही है। मजबूत विनियमन की अनुपस्थिति में, औद्योगिक और घरेलू अपशिष्ट जल को नदियों, नहरों और भूमिगत जल स्रोतों में बहा दिया जाता है। सुधाकर एम. राव के अनुसार भारत में लगभग 70 प्रतिशत भूमिगत और सतही जल संसाधन दूषित हो चुके हैं। उद्योग के कारण जल के प्रदूषण के कुछ उदाहरण, कानपुर शहर में चमड़ा उद्योग, गुजरात राज्य के जेतपुर और राजकोट में छपाई और रंगाई इकाइयां, तमिलनाडु के उत्तरी आर्कोट जिले में टेनरी उद्योग एवं हरियाणा राज्य में पानीपत और सोनीपत में छपाई और डाईंग इकाइयां इत्यादि उद्यागे के कारण जल प्रदूषण इस समस्या के जीते जागते उदाहरण हैं।

5. जल आपूर्ति के लिए बुि नयादी ढांचों का वित्तपोषण- शहरी पानी की आपूर्ति व्यवस्था में वित्त की कमी शहरी जल आपूर्ति व्यवस्था में सबसे बड़ी चुनौती है। भारत में अधिकांश शहरी स्थानीय निकायों नगर पालिकाओं को जल आपूर्ति व्यवस्था हेतु राज्य सरकार पर निर्भर रहना पड़ता है। इनके पास जल आपूर्ति के बुनियादी ढांचे को बनाए रखने के लिए राजस्व उत्पादन के पर्याप्त स्रोत नहीं हैं।

स्मार्ट शहर एक समाधान

शहरीकरण के लिए जल के क्षेत्र में शुद्ध पेय जल एवं व्यर्थ जल की उचित निकासी दो प्रमुख चुनौतियाँ हैं। स्मार्ट शहरों में पानी के संसाधनों की उपलब्धता और बेहतर प्रबंधन को बढ़ाने के लिए कई तकनीकें अपनाई जा रही हैं जैसे भूमिगत जल रिचार्ज के लिए वर्षा जल का संग्रहण, उचित उपचार के बाद अपशिष्ट जल से प्राप्त पानी का पुनः विभिन्न रूप में उपयोग जैसे फ्लशिंग, कपड़ा धोने, पौधों की सिंचाई, कृषि और पीने के लिए किया जाएगा। स्मार्ट शहर में जल के स्मार्ट उपयागे हेतु निम्न प्रबंधन किए जाएंगे।

  • 1. स्मार्ट जल अवसंरचनाएं- जल का जीवन चक्र कई स्रोतों जैसे वर्षा, भूमिगत जलभृत, नदियों तथा हिम के पिघलने से आरम्भ होता है। स्रोत से निकल कर उपचारण से लेकर नल तक जल विभिन्न बुनियादी ढांचे से होकर गुजरता है। इस मार्ग में होने वाली जल की हानि को रोकने के लिए स्मार्ट शहरों में आधुनिक तकनीक जैसे संवेदक तकनीक, स्वचालन एवं नियंत्रक उपकरण, जल के आंकड़ों को विश्लेषित करने वाले साफ्टवेयर प्रयोग किए जाते हैं। जल की एक-एक बूंद का प्रयोग हो सके इस हेतु रिसाव वाले स्थानों का पता लगाना, जल आपूर्ति के समुचित भुगतान के लिए घरों में स्मार्ट मीटर एवं प्रदूषण को रोकने हेतु जल की इकाइयों के सर्वेक्षण एवं आकलन में अत्याधुनिक तकनीक का प्रयोग किया जाएगा। स्मार्ट शहर में जल संग्रहण की पुरानी अवसंरचनाओं के उन्नयन का प्रावधान भी है। जल वितरण प्रणाली में सुधार एवं घरेलू उपयोगों जैसे शौचालय हेतु जल का उपयोग कम करने हेतु कम फ्लश, दोहरे-फ्लश या वैक्यूम फ्लश शौचालय आदि तकनीक का प्रयोग किया जा सकता है।
  • 2. स्मार्ट जल संग्रहण- चेन्नई ने वर्ष 2003-2004 में गंभीर सूखे की स्थिति का सामना किया जिसके परिणामस्वरूप शहरी क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति की कमी हुई, इसके बाद वहां जल संचयन अनिवार्य किया गया था जिसके कारण जो जल लगभग 9 प्रतिशत ही भूमिगत जल के रूप में संग्रहित होता था तथा शेष समुद्र में विलय हो जाता था अब उस वर्षा जल का 27 प्रतिशत भाग संग्रहित किया जाता है। स्मार्ट शहरों में सभी पुराने जल के टैंकों और तालाबों को पुनर्जीवित करके सामुदायिक स्तर पर बारिश का पानी संग्रहित किया जाएगा। जिसका इस्तेमाल केवल घरेलू आवश्यकताओं हेतु जल के रूप में ही नहीं किया जाएगा अपितु गगनचुंबी इमारतों के निर्माण में भी हो सकेगा। इसके अलावा, घर के तहखाने में निर्मित टैंक में पानी जमा कर आवश्यकतानुसार उपचारित कर पीने के लिए किया जा सकेगा। विश्व के कई देश जैसे चीन, आस्ट्रेलिया, ब्राजील इत्यादि में इस तकनीक को अपनाया गया है। वर्षा जल संचयन उन क्षेत्रों में जहां लोगों को पीने योग्य पानी की आपूर्ति की कमी की समस्या का सामना करना पड़ रहा है एवं विद्यमान जल आपूिर्त व्यवस्था अपर्याप्त है वहां भूमिगत और सतही जल संसाधनों की उपलब्धता को बढा़ ने और पूरा करने का एक कुशल, आशाजनक और टिकाऊ तरीका है। भारत, मानसून जलवायु के क्षेत्र में स्थित है जहां वर्षा भिन्नता स्थान के अनुरूप तथा वर्ष के विभिन्न महीनों में उपलब्ध होने के साथ जलवायु परिवर्तन के कारण असंतुलित भी है। भारतीय उपमहाद्वीप में अधिकांश वर्षा मानसून के महीनों में होती है। वर्षा जल का संग्रह कृषि के लिए पानी, भूमिगत जल रिचार्ज और गैर पीने योग्य जल के उपयोग के लिए एक महत्वपूर्ण तकनीक है। देश की राजधानी दिल्ली, चेन्नई और हरियाणा राज्य के कुछ हिस्सों में, स्थानीय प्राधिकरण ने तो निर्माण योजना में प्रयोग करने हेतु वर्षा जल संचयन प्रणाली को अनिवार्य कर दिया है।
  • 3. अपशिष्ट जल प्रबंधन- वर्तमान में, औद्योगिक क्षेत्र, जो पानी के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से एक है, को पीने योग्य पानी प्रदान किया जाता है जबकि वे माध्यमिक स्तर तक अपशिष्ट जल का उपयोग आसानी से कर सकते हैं। एक शोध के अनुसार यदि एक शहर में 1,000 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) की आपूर्ति की जाए तो, लगभग 800 एमएलडी सीवेज के रूप में वापस आ जाती है। इसमें से लगभग 500 एमएलडी जल को उपचारित किया जा सकता है एवं उससे वाणिज्यिक परिसरों, उद्योगों, तापीय बिजली स्टेशनों और शहर के पार्कों के लिए आपूर्ति की जा सकती है। यह लगभग हर शहर में पानी की कमी की समस्याओं को हल कर सकता है। स्मार्ट शहरों में जल की आपूर्ति की समस्या को दूर करने के लिए, पुनःचक्रण द्वारा प्राप्त जल एक प्रमुख विश्वसनीय वैकल्पिक जल स्रोत बनेगा। जल का पुनर्नवीनीकरण जल संसाधन और पर्यावरण प्रबंधन नीतियों का एक महत्वपूर्ण पहलू है जो पर्यावरणीय प्रदूषण को कम करने में भी मदद करता है और विशेष रूप से शहरी इलाकों में स्थाई विकास को प्राप्त करने में सहायता करता है।
  • 4. स्मार्ट जल प्रणाली- वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार केवल 32.7 प्रतिशत शहरी भारतीय ही पाइप सीवेज  तंत्र से जुड़े हैं। अधिकतर घरों में अपने सेप्टिक टैंक हैं जो प्रभावी ढंग से निर्मित ना होने के कारण भूजल को दूषित करते हैं। इसके लिए स्मार्ट शहरों में सीवेज लाइन का प्रावधान किया जाएगा जिससे इस प्रकार के भूजल प्रदूषण से बचाव हो सकेगा। शहरों में वर्षा जल के उचित प्रबंधन हेतु जल निकासी तंत्र मजबूत किए जाएंगे जिससे वर्षा काल में आने वाली शहरी बाढ़ का निदान हो सकेगा साथ ही साथ यह वर्षा जल उपचारित होकर भविष्य के प्रयोग हेतु जलीय इकाइयों में एकत्र हो सकेगा। यह प्रणाली भूजल का स्तर बढ़ाने में भी सहायक होगी। शहरी क्षेत्रों में स्थित जलीय इकाइयों जैसे झीलों तालाबों एवं वैटलैंड आदि को महत्वपूर्ण प्राकृतिक अवसंरचनाओं के रूप में संरक्षित किया जाएगा। जिससे जल को दूषित होेने से बचाया जा सके।

योजना की वर्तमान स्थिति

इस योजना के तहत वर्ष 2022 तक 100 शहरों को स्मार्ट शहर बनाया जाएगा। वर्तमान में इनमें से 98 शहरों को सूचीबद्ध किया गया है। जिसमें 20 शहरों यथा भुवनेश्वर पुणे, जयपुर, सूरत, अहमदाबाद (गुजरात), कोच्चि (केरल), भोपाल, जबलपुर, इंदौर (मध्य प्रदेश), विशाखापट्टनम, काकीनाड़ा (आंध्र प्रदेश), शोलापुर (महाराष्ट्र), धवनगिरि, बेलागांव (कर्नाटक), न्यू दिल्ली म्यूनिसिपल काउंसिल (दिल्ली), चेन्नई, कोयंबटूर (तमिलनाडु), जयपुर, उदयपुर (राजस्थान), गुवाहाटी (असम) और लुधियाना (पंजाब) शामिल हैं। इनके लिए वित्त का आबंटन कर दिया गया है। 23 जून 2017 को 30 और स्मार्ट शहरों के चयन की घोषणा की गयी है इनमें तिरूवन्नतपुरम, नया रायपुर, राजकोट, अमरावती, पटना, करीमनगर, मुजफ्फरपुर, पुन्दुचेरी, गांधीनगर, श्रीनगर, सागर, कसाल, सतना, बंगलुरू, शिमला, देहरादून, तिरूपुर, पिंपरी चिंचवाड़, विलासपुर, पासीघाट, जम्मू, दाहोद, तिरूनेलवेली, थुथुकुडी, झांसी, आजाल, इलाहाबाद, अलीगढ़, एवं गंगटोक इत्यादि शामिल किए गए हैं।

भविष्य की राह

जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण एवं जनसंख्या वृद्धि के कारण आए जल संकट से निपटने के लिए जल की एक-एक बूंद का उपयोग आधुनिक परिवेश की मांग है। जिसमें ‘‘स्मार्ट शहर’’ मिशन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। स्मार्ट मीटर जहां एक ओर उचित राजस्व एकत्र करने में सहायता करेंगे वहीं दूसरी ओर पानी का पुनः उपयोग पानी की उपलब्धता में वृद्धि करेगा और जल की स्वच्छ निकासी के माध्यम से पर्यावरण प्रदूषण को भी रोकेगा। शहरों के प्राकृतिक जलाशयों को फिर से भरने के उपायों को अपनाकर तथा जला-पूर्ति को स्थानीय निकायों के माध्यम से करने पर जल वितरण में होने वाली हानि कम होने के साथ जल परिवहन में आई लागत भी कम होगी। पानी की आपूर्ति क्षमता में सुधार, नए भौतिक बुनियादी ढांचे के प्रावधान, उचित जल कर से राजस्व संग्रह, रिसाव में कमी और पानी की चोरी पर कुशल निगरानी अपनाकर बने स्मार्ट शहर जल की दृष्टि से एक सुनहरे भविष्य की राह होंगे।

 

लेखिका अंजू चौधरी, राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, रुड़की में कार्यरत हैं।

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