शर्म नहीं, शक्ति का प्रतीक है माहवारी

1 Mar 2021
0 mins read
शर्म नहीं, शक्ति का प्रतीक है माहवारी
शर्म नहीं, शक्ति का प्रतीक है माहवारी

देश में किशोरी एवं महिला स्वास्थ्य के क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में काफी सुधार आया है। केंद्र से लेकर राज्य की सरकारों द्वारा इस क्षेत्र में लगातार सकारात्मक कदम उठाने का परिणाम है कि एक तरफ जहां उनके स्वास्थ्य के स्तर में सुधार आया है, वहीं शिक्षा के क्षेत्र में भी काफी प्रगति हुई है। कई राज्यों में महिला एवं किशोरियों के कुपोषण के दर में कमी आई है दूसरी ओर साक्षरता के दर में काफी प्रगति हुई है। लेकिन अब भी कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां सुधार की अत्यधिक आवश्यकता है। विशेषकर माहवारी के मुद्दे पर सबसे अधिक काम करने की ज़रूरत है। हालांकि सरकार की तरफ से न केवल इस विषय पर लगातार जागरूकता चलाई जा रही है बल्कि अधिक से अधिक सेनेट्री नैपकिन के उपयोग को बढ़ाने के उद्देश्य से इसे 2018 में इसे जीएसटी मुक्त भी कर दिया गया है।

लेकिन इसके बावजूद सामाजिक रूप से अभी भी माहवारी को शर्म और संकुचित विषय के रूप में देखा जाता है। माहवारी और सेनेट्री नैपकिन जैसे शब्दों पर सार्वजनिक रूप से चर्चा करना आज भी गलत माना जाता है। यहां तक कि घर की चारदीवारियों के बीच भी बुज़ुर्ग महिलाएं इस पर बात करना पाप समझती हैं। यह परिस्थिती केवल ग्रामीण क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं है बल्कि देश के कई छोटे शहरों में भी बहुत हद तक यही देखने और सुनने को मिलता है। इसका सबसे अधिक नुकसान शिक्षा प्राप्त कर रही लड़कियों को उठाना पड़ता है। पीरियड्स के दिनों में उनकी शिक्षा बाधित हो जाती है, क्योंकि इस दौरान उन्हें स्कूल या कॉलेज में सैनेट्री पैड उपलब्ध नहीं हो पाता है। कई बार कक्षा के बीच में ही उन्हें माहवारी आने पर शर्मिंदगी का सामना भी करना पड़ता है। ऐसी परिस्थिती में लड़कियों के लिए शिक्षा पाना और क्लास करना बहुत मुश्किल होता है।

यह सर्वविदित है कि देश के छोटे शहरों में लड़कियां अनेक चुनौतियों को पार करके पढ़ाई करने जाती हैं। घर की दहलीज लांघकर अपने हौसले की उड़ान भरना शुरु करती हैं, मगर पीरियड्स उनके राह का रोड़ा बन जाता है। हालांकि यह एक ऐसी प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसमें लड़कियां किशोरी बनने की दहलीज पर कदम रखती हैं। हालांकि पीरियड्स को एक वरदान समझना चाहिए मगर लोगों की नज़रों में यह एक अभिशाप होता है। लोगों को लाल दाग से नफरत होती है, मगर लोग यह भूल जाते हैं कि जन्म के समय हर एक मनुष्य इसी लाल खून में रंगा होता है, जो महिला के जननांगों से रिसता है। लेकिन इसके बावजूद देश के छोटे शहरों में माहवारी और सैनेट्री नैपकिन पर बात करने की जगह चुप्पी साध ली जाती है।

उत्तर बिहार की अघोषित राजधानी के रूप में विख्यात और स्मार्ट शहर की उपाधि से सम्मानित मुज़फ़्फ़रपुर की हालत भी कुछ ऐसी ही है, यहां भी लड़कियों को पीरियड्स के समय कई प्रकार से परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हालांकि बढ़ती जनसंख्या के अनुसार हर चौक-चौराहों पर लड़कियों के लिए पैड की सुविधा होनी चाहिए ताकि मुश्किल की इस घडी में उन्हें परेशानी ना उठानी पड़े। मगर आलम यह है कि चौक-चौराहों की बात तो दूर, शहर के अधिकांश गर्ल्स स्कूल और कॉलेजों में भी सैनेट्री नैपकीन की सुविधा उपलब्ध नहीं है। हालांकि सरकार की ओर से गर्ल्स स्कूल और कॉलेजों में पैड मशीन लगाने की बात कही जा रही है, जहां बहुत ही कम क़ीमत पर लड़कियों को नैपकीन उपलब्ध हो सकता है ताकि उनकी शिक्षा में कोई रुकावट नहीं आये, मगर उन स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ने वाली छात्राओं तक को पता नहीं है कि ऐसी कोई मशीन भी उपलब्ध है। जिसमें सिक्के डालने (अमूमन पांच रुपये) पर पैड उपलब्ध हो जाते हैं।

मुज़फ़्फ़रपुर के मिठनपुरा स्थित महिला केंद्रित कॉलेज एमडीडीएम की हालत भी कुछ ऐसी ही है। जहां पैड की कोई सुविधा नहीं है, अगर पीरियड आ जाए तो छात्राओं को खुद ही कोई इंतजाम करने पड़ते हैं। हालांकि यह कॉलेज उत्तर बिहार के एक प्रमुख महिला कॉलेज के रूप में विख्यात है। कुछ समय पहले इस कॉलेज में छात्र संघ द्वारा पैड मशीन लगाई गई थी, मगर यहां की छात्राओं को इसकी जानकारी होनी तो दूर, उन्हें यह भी नहीं पता कि ऐसी भी कोई मशीन होती है। छात्र संघ प्रतिनिधि सुप्रिया के अनुसार एमडीडीएम कॉलेज में पैड वेंडिग मशीन 2018-19 के आसपास लगवाई गई थी, मगर उसका सही इस्तेमाल नहीं हो सका। कुछ लड़कियों की बदमाशियां भी थीं, तो कुछ कॉलेज प्रशासन की गैर ज़िम्मेदाराना हरकत भी इसके लिए ज़िम्मेदार है, क्योंकि वहां मशीन के पास कोई भी नहीं रहता था, जिससे मशीन की उचित देखभाल की जा सके। कॉलेज की सुविधाओं के लिए प्रार्चाया समेत कॉलेज के आला-अधिकारी जवाबदेह होते हैं, मगर एमडीडीएम की प्राचार्या डॉ. कानू प्रिया को ऐसी किसी मशीन के होने की जानकारी तक नहीं है।

  2021: पैड मशीन Source:चरखा फीचर फोटो

इसी कॉलेज से कुछ ही दूरी पर स्थित एक सरकारी गर्ल्स स्कूल 'चैपमैन गर्ल्स स्कूल' में भी पैड वेंडिग मशीन लगाई गई थी मगर स्कूल प्रशासन की गैर ज़िम्मेदाराना रवैये के कारण आज यह मशीन केवल दिखावे की चीज़ बन कर रह गई है। हालांकि शहर के कुछ निजी विद्यालयों ने छात्राओं की सुविधा के लिए अपने स्कूल में न केवल यह मशीन लगा राखी है बल्कि इसका सफलतापूर्वक संचालन भी किया जा रहा है। मुज़फ़्फ़रपुर शहर के बाहरी छोर शेरपुर में स्थित एक प्राइवेट स्कूल सनशाइन प्रेप-हाई स्कूल में लड़कियों के लिए पैड की उचित सुविधा है। जहां लड़कियों को पीरियड होने पर पैड की सुविधा दी जाती है। इसके अलावा मुज़फ़्फ़रपुर के मुशहरी ब्लॉक स्थित नव उत्क्रमित हाई स्कूल में छात्राओं को पीरियड्स की जानकारी के लिए एक किताब “पहेली की सहेली” उपलब्ध कराई जाती है। साथ ही सरकार द्वारा पैड खरीदने के लिए पैसे भी दिए जाते हैं। यहां सरकारी सुविधाओं को बच्चों तक बिना किसी गड़बड़ी के पहुंचाया जाता है।  ज्ञात रहे कि बिहार के सभी सरकारी स्कूलों में लड़कियों के लिए पैड के पैसे की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। इसके अतिरिक्त इन स्कूलों में लड़कियों को पीरियड्स से जुड़ी जानकारी दी जाती है।

वास्तव में पीरियड, माहवारी या मासिक- यह एक बायोलॉजिकल प्रक्रिया है, जिससे हर एक लड़की किशोरावस्था में गुजरती है। इस संबंध में पटना की वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. कल्पना सिंह बताती हैं कि दरअसल माहवारी के दौरान शरीर में रसायानिक बदलाव होने पर महिला के जननांगों से हर महीने खून का रिसाव होता है, क्योंकि शरीर में हर महीने कुछ बदलाव होते हैं, जिसमें एक महिला स्वयं को मां बनने के लिए तैयार करती है। वहीं जब निषेचण की प्रक्रिया नहीं होती है, तब वह अविकसित अंडा रक्त कोशिकाओं के साथ बाहर निकल जाता है, जिसे ही पीरियड्स की संज्ञा दी जाती है। यह पूर्ण रुप से सामान्य प्रक्रिया है, जिसके लिए हर किशोर लड़कियों को तैयार रहना चाहिए और उसके परिवार समेत समाज के लोगों को भी सही शिक्षा देने की ज़िम्मेदारी होनी चाहिए। इस दौरान उन्हें कभी भी गंदा कपड़ा नहीं इस्तेमाल करना चाहिए, क्योंकि इससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। साथ ही समय-समय पर पैड बदलते रहना चाहिए ताकि साफ-सफाई में कमी ना हो।

आज जहां एक ओर पीरियड्स पर फिल्में बनती हैं, लोग लाल रंग की बिंदी बनाकर पीरियड्स को सपोर्ट करते हैं और अनेक तरह के जागरुकता के कार्यक्रम होते हैं, ऐसे में पीरियड्स को लेकर लड़कियों की पढ़ाई में परेशानी होना निराश करने वाली घटना है। शासन-प्रशासन समेत सभी को अपने स्तर पर पीरियड्स को लेकर लड़कियों को सुविधाएं देनी चाहिए ताकि कलम मासिक धर्म के कारण ना रुके। लेकिन इसके लिए ज़रूरी है समाज को भी इस दिशा में अपने संकुचित सोंच से बाहर निकलने की, ताकि पीरियड्स शर्म का नहीं बल्कि दैनिक जीवन का विषय बन सके।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading