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Sheshnag lake in Hindi

पहलगाम से 24 कि.मी. दूर अमरनाथ मार्ग पर चंदनवाड़ी में पन्ने के रंग वाली हिमानी झील है। यह झील मई के अंत तक जमी रहती है, जून में पिघलकर झील का रूप धारण करती है। इस झील का जल इतना निर्मल है कि ऐसा लगता है कि मानो हरा रंग घोल दिया गया हो। हंसों को इसमें कल्लोल करते देखा जा सकता है। छोटे-छोटे श्वेत धवल हिमखंड मोहक लगते हैं।

इसके ऊपर पर्वतों के सात शिखर इस तरह से स्थित हैं कि वे शेषनाग के सात शिखरों के समान लगते हैं।

अन्य स्रोतों से:

'मुसाफिर हूँ यारों' ब्लॉग से


धर्मबीर
अमरनाथ यात्रा में शेषनाग झील का बहुत महत्त्व है। यह पहलगाम से लगभग 32 किलोमीटर दूर है, और चन्दनवाडी से लगभग 16 किलोमीटर। तो इस प्रकार सोलह किलोमीटर की पैदल यात्रा करके इस झील तक पहुंचा जा सकता है। यह झील सर्दियों में पूरी तरह जम जाती है। यात्रा आते-आते पिघलती है। कभी-कभी तो यात्रा के सीजन में भी नहीं पिघलती। इसके चारों ओर चौदह-पन्द्रह हजार फीट ऊंचे पर्वत हैं।

कहते हैं कि जब शिवजी माता पार्वती को अमरकथा सुनाने अमरनाथ ले जा रहे थे, तो उनका इरादा था कि इस कथा को कोई ना सुने। अगर कोई दूसरा इसे सुन लेगा, तो वो भी अमर हो जायेगा और सृष्टि का मूल सिद्धान्त गडबड हो जायेगा। सभी इसे सुनकर अमर होने लगेंगे। इसी सिलसिले में उन्होनें अपने असंख्य सांपों-नागों को अनन्तनाग में, बैल नन्दी को पहलगाम में, चन्द्रमा को चन्दनवाडी में छोड दिया था। लेकिन अभी भी उनके साथ शेषनाग था जिसे उन्होनें इस झील में छोड दिया। शंकर जी ने शेषनाग को आदेश दिया था कि इस स्थान से आगे कोई ना जाने पाये। यह भी कहा जाता है कि कभी-कभी झील के पानी में शेषनाग दिखाई भी देता है। मेरे ख्याल से ऐसा हो सकता है कि झील में बहुत सी नदियां आकर मिलती हैं, फिर यहां कडाके की ठण्ड भी पडती है। पानी जम भी जाता है। इन सब घटनाओं के कारण ही कभी-कभी शेषनाग जैसी आकृति बन जाती होगी।

इस झील के चारों ओर कई ग्लेशियर हैं। यही से लिद्दर नदी निकलती है, जो पहलगाम की सुन्दरता में दस चांद लगा देती है। इसी के किनारे पर एक तम्बू नगरी भी लग जाती है। सुबह पहलगाम से चले यात्री शाम तक ही यहां पहुंच पाते हैं। यहां पर यात्री रात्रि-विश्राम करते हैं। कुछ यात्री इसमें स्नान भी करते हैं। स्नान करने वालों में दो तरह के लोग होते हैं: एक, धर्मभीरू जो सोचते हैं कि अगर इसमें स्नान ना किया तो शंकर जी नाराज हो जायेंगे। दूसरे, अति दुस्साहसी जो ज्यादातर दिखावे के कारण नहाते हैं कि हमें देखो, हममें है हिम्मत इस झील में नहाने की। मेरे अन्दर उपरोक्त दोनों ही गुणों का अभाव है। इसलिये इस बर्फीली झील में नहीं नहाया।





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बाहरी कड़ियाँ:

विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia):

शेषनाग झील


पहलगाम जम्मू से ३१५ किलोमीटर की दूरी पर है। यह विख्यात पर्यटन स्थल भी है और यहाँ का नैसर्गिक सौंदर्य देखते ही बनता है। पहलगाम तक जाने के लिए जम्मू-कश्मीर पर्यटन केंद्र से सरकारी बस उपलब्ध रहती है। पहलगाम में गैर सरकारी संस्थाओं की ओर से लंगर की व्यवस्था की जाती है। तीर्थयात्रियों की पैदल यात्रा यहीं से आरंभ होती है।

पहलगाम के बाद पहला पड़ाव चंदनबाड़ी है, जो पहलगाम से आठ किलोमीटर की दूरी पर है। पहली रात तीर्थयात्री यहीं बिताते हैं। यहाँ रात्रि निवास के लिए कैंप लगाए जाते हैं। इसके ठीक दूसरे दिन पिस्सु घाटी की चढ़ाई शुरू होती है। कहा जाता है कि पिस्सु घाटी पर देवताओं और राक्षसों के बीच घमासान लड़ाई हुई जिसमें राक्षसों की हार हुई। लिद्दर नदी के किनारे-किनारे पहले चरण की यह यात्रा ज्यादा कठिन नहीं है। चंदनबाड़ी से आगे इसी नदी पर बर्फ का यह पुल सलामत रहता है।

चंदनबाड़ी से १४ किलोमीटर दूर शेषनाग में अगला पड़ाव है। यह मार्ग खड़ी चढ़ाई वाला और खतरनाक है। यहीं पर पिस्सू घाटी के दर्शन होते हैं। अमरनाथ यात्रा में पिस्सू घाटी काफी जोखिम भरा स्थल है। पिस्सू घाटी समुद्रतल से ११,१२० फुट की ऊँचाई पर है। यात्री शेषनाग पहुँच कर ताजादम होते हैं। यहाँ पर्वतमालाओं के बीच नीले पानी की खूबसूरत झील है। इस झील में झांककर यह भ्रम हो उठता है कि कहीं आसमान तो इस झील में नहीं उतर आया। यह झील करीब डेढ़ किलोमीटर लम्बाई में फैली है। किंवदंतियों के मुताबिक शेषनाग झील में शेषनाग का वास है और चौबीस घंटों के अंदर शेषनाग एक बार झील के बाहर दर्शन देते हैं, लेकिन यह दर्शन खुशनसीबों को ही नसीब होते हैं। तीर्थयात्री यहाँ रात्रि विश्राम करते हैं और यहीं से तीसरे दिन की यात्रा शुरू करते हैं।

संदर्भ: