तैरते हुए बम

1984 में ऑफशोर पॉवर सिस्टम नामक एक कंपनी ने 80 अरब रुपए खर्च करने के बाद किए गए करार को रद्द करते हुए इस असफल योजना को हमेशा-हमेशा के लिए बंद कर दिया था। इस तरह जो योजना अमेरिका में शुरू हुई और वहां ठप्प भी हो गई, उसे अब रूस आगे ले जा रहा है और पूरी दुनिया में उसे फैलाकर भारी लाभ कमाने की तैयारी कर रहा है। ये तैरते हुए अणुबम न जाने कितनों को डुबोएंगे!अभी तो हम जमीन पर बने-खड़े परमाणु बिजलीघरों की कई सारी समस्याओं में उलझे पड़े हैं और इधर इनको समुद्र में उतारने की तैयारी भी चल निकली है। जिस दिमाग ने जमीन पर इन्हें बनाया है और बेहद सुरक्षित बताया है, वही जुबान समुद्र में तैरने वाले परमाणु बिजलीघरों को भी एक आदर्श बिलकुल निरापद योजना बता रही है। एक बार ये बन गए तो फिर हमारे जैसे देशों में उसी ढंग से बेचे जाएंगे जैसे परमाणु ऊर्जा करार ने हमें अपने बिजलीघर टिका दिए हैं। तैरते हुए परमाणु संयंत्रों के निर्माण की एक योजना पर काम शुरू हो चुका है। इसे बना रहा है रूस। उसने इस काम के लिए अपने उत्तरी और पूर्वी तटों का विशेष रूप से चयन भी कर लिया है। योजना सफल हो गई तो वह भविष्य में इनको पूरी दुनिया को बेचने की तैयारी भी कर रहा है। रूस के राजकीय परमाणु ऊर्जा आयोग रोस्टोम के निदेशक सीरजी किरिचेंको का कहना है कि ऐसे तैरते बिजलीघर पूरी तरह से सुरक्षित हैं। आयोग ने सेंट पीटर्सबर्ग में ऐसा एक विशाल जहाज समुद्र में उतारा है, जिस पर पहला तैरता परमाणु संयंत्र लगाया जाएगा।

दुनिया में कुछ ऐसे भी वैज्ञानिक हैं जो इन सब बातों पर नजर रखते हैं। उनका एक संगठन भी हैः यूनियन ऑफ कंसर्ड साइंटिस्ट संगठन के वरिष्ठ सुरक्षा अभियंता ने तैरते परमाणु संयंत्र में दुर्घटना को जमीन पर होने वाली दुर्घटना से भी बद्तर करार दिया है। वाशिंगटन स्थित इस संगठन के परमाणु सुरक्षा परियोजना के निदेशक लोचबाम का कहना है कि परमाणु बिजलीघर में किसी दुर्घटना की स्थिति में कुछ परमाणु पदार्थ पिघल कर जमीन में उतर जाता है और वहां बना रहता है।

परंतु तैरते परमाणु संयंत्र में ऐसी दुर्घटना में सारा पिघला जहरीला पदार्थ समुद्र में गिरेगा और उससे भाप का विस्फोट होगा, जिससे बड़ी मात्रा में ऊर्जा और रेडियोधर्मी पदार्थ निकल कर पूरे वातावरण में फैल जाएंगे। यह तो अणुबम के फट जाने जैसा ही होगा। पूरे पर्यावरण में भी बड़ी मात्रा में रेडियोधर्मिता प्रवेश करेगी। रेडियोधर्मिता जहर का बड़ा आवरण बन जाएगा। यह भयानक जहर हवा, पानी, बरसात के साथ कहां-कहां जाएगा, बरसेगा फिर जमीन पर बहेगा, कहां-कहां किस-किस नदी नाले तालाब, झील में मिलेगा, कितने लोगों को चैपट करेगा-इसका तो कोई हिसाब ही नहीं है। इससे समुद्र में तो रेडियोधर्मी प्रदूषण होगा ही और उसका अंश समुद्री जीवों पर, मछलियों आदि पर भी पड़ेगा।

द टाइम्स ऑफ लंदन के अनुसार जो देश इन संयंत्रों को खरीदने में रुचि दिखा रहे हैं उनमें चीन, इंडोनेशिया, मलेशिया, अल्जीरिया और अर्जेंटीना शामिल हैं। वर्ल्ड न्यूक्लीयर न्यूज ने अपने लेख में इस सूची में नामीबिया और केप बेरडे को भी जोड़ दिया है।सोवियत रूस की परमाणु संचालित पनडुब्बी के पूर्व मुख्य अभियंता और रक्षा मंत्रालय के परमाणु और रेडिएशन सुरक्षा निरीक्षण के पूर्व वरिष्ठ इंस्पेक्टर अलेक्जेंडर निटकिन का कहना है कि यह निश्चित ही एक जोखिम भरी योजना है। वे अब एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण संगठन बेल्लाना फाउंडेशन की सेंट पीटर्सबर्ग स्थित शाखा के प्रमुख हैं। वे बताते हैं कि असंतोष वाले क्षेत्रों में तैरते हुए परमाणु संयंत्रों की बिक्री के माध्यम से लाभ कमाने की लालच में सुरक्षा को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।

इन तैरते परमाणु संयंत्रों में भूमि पर बने संयंत्रों की तुलना में और भी अधिक खतरनाक ईंधन जैसे युद्धक श्रेणी का यूरेनियम 235 इस्तेमाल किया जाएगा। इसमें 40 प्रतिशत यूरेनियम होता है। भूमि पर बने ऐसे बिजलीघरों में यू-235 का संवर्धन स्तर 3 प्रतिशत होता है।

30 जून को पीटर्सबर्ग में फुटबाल के मैदान के आकार के एक बड़े जहाज के लोकार्पण के दौरान प्रेस विज्ञप्ति में रोस्टोम ने कहा था कि बहुत से देश जिसमें विकासशील देश भी शामिल हैं, इन परमाणु संयंत्रों में रुचि दिखा रहे हैं। द टाइम्स ऑफ लंदन के अनुसार जो देश इन संयंत्रों को खरीदने में रुचि दिखा रहे हैं उनमें चीन, इंडोनेशिया, मलेशिया, अल्जीरिया और अर्जेंटीना शामिल हैं। वर्ल्ड न्यूक्लीयर न्यूज ने अपने लेख में इस सूची में नामीबिया और केप बेरडे को भी जोड़ दिया है।

इस तैरते परमाणु संयंत्र के विचार पर रूस में जन्मे एक व्यक्ति ने अमेरिका में काफी काम किया था। लेकिन वहां इसे अत्यधिक लागत, सार्वजनिक विरोध और ऊर्जा जरुरतों की कमी को देखते हुए पूरा बढ़ावा नहीं मिल पाया था। अमेरिका की एक कंपनी ने अपने दस्तावेज में जिक्र किया था कि 1969 में यह विचार पहली बार न्यूजर्सी स्थित पब्लिक सर्विस इलेक्ट्रिक एंड गैस कंपनी के उपाध्यक्ष रिचर्ड इकर्ट के मन में आया था। उनका कहना था कि जमीन पर बने परमाणु संयंत्रों को ठंडा रखने के लिए बहुत ज्यादा मात्रा में पानी की जरूरत पड़ती है। तब क्यों न हम ऐसे बिजली घर पानी के बीच में ही बना लें।

फिर इस कंपनी ने अपना यह विचार वेस्टिंग हाउस इलेक्ट्रिक कंपनी को बताया। वह इस तरह के संयंत्र बनाने के लिए तैयार हो गई थी। सन् 1970 में वेस्टिंग हाउस और रेन्नेको ने फ्लोरिडा के ब्लाउट आइलैंड पर इस तरह की सुविधा को बनाने हेतु एक संयंत्र भी स्थापित कर लिया था। इस तरह के पहले चार संयंत्रों को सर्वप्रथम न्यूजर्सी के लिटिल एग हार्बर और शहर से 11 किलोमीटर पर समुद्र के बीच बांधना था। इस बीच कीमतें आसमान पर पहुंच गईं और फिर बढ़े हुए खर्च के अलावा इन दोनों शहरों के साथ ही साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी योजना का बड़े पैमाने पर विरोध हुआ। सन् 1973 में आए तेल संकट ने पीएसई एंड जी की अधिक ऊर्जा संरक्षण की आवश्यकताओं को भी कम कर दिया। 1984 में ऑफशोर पॉवर सिस्टम नामक एक कंपनी ने 80 अरब रुपए खर्च करने के बाद किए गए करार को रद्द करते हुए इस असफल योजना को हमेशा-हमेशा के लिए बंद कर दिया था। इस तरह जो योजना अमेरिका में शुरू हुई और वहां ठप भी हो गई, उसे अब रूस आगे ले जा रहा है और पूरी दुनिया में उसे फैलाकर भारी लाभ कमाने की तैयारी कर रहा है। ये तैरते हुए अणुबम न जाने कितनों को डुबोएंगे!

सर्वोदय प्रेस सर्विस से साभार

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