टेक्सटाइल प्रोसेसिंग में स्वच्छ उत्पादन

24 Oct 2008
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परिचय
मेसर्स तिरूपुर अरोरा तिरूपुर स्थित टेक्सटाइल प्रोसेसिंग की निजी कंपनी है। इस इकाई में कॉटन होजरी की प्रोसेसिंग होती है। इस इकाई की प्रोसेसिंग क्षमता प्रतिवर्ष (80 फीसदी प्रिंटिंग यानी छपाई और 20 फीसदी डाई ) 2500 टन की है। इस अध्ययन में इस इकाई की स्वच्छ निर्माण प्रक्रिया को रेखांकित किया गया है।

 

प्रकिया विवरण

प्रोसेसिंग के दौरान मुख्य काम-

फ्रैब्रिक प्री-ट्रीटमेंट-
फ्रैबिक यानी कपड़े को पहले आधुनिक सॉफ्ट -फ्लो या पारंपरिक विंच मशीनों में शुद्ध किया जाता है। कपड़े से तैलीय पदार्थों नाइट्रोजन यौगिकों, मोम, प्रोटीन, प्राकृतिक रंग के तत्वों को हटाकर कपड़े को शुद्ध किया जाता है। कपड़े का ट्रीटमेंट क्षारीय द्रव से होता है। इस द्रव में कपड़ों को पूरी तरह भिगोने वाले तत्व, झागहीन केमिकल डिटर्जेंट और स्टेबिलाइज होते हैं। सबसे पहले मशीन में कपड़े डाले जाते हैं। फिर इसमें जरूरत के हिसाब से पानी भरा जाता है। फिर इसमें जरूरी रसायन (पानी को मीठा बनाने वाले तत्व, सॉफ्टनर वेटिंग एजेंट, डीफॉमर) डालकर इसे निश्चित तापमान पर लाया जाता है। अप्रत्यक्ष तरीके से वाष्प देकर इस द्रव को गर्म किया जाता है। जब तापमान 50 डिग्री सेंटीग्रेड पर पहुंच जाता है तब ब्लीचिंग रसायन (हाइड्रोजन पारासाइड और चमक लाने वाले एजेंट) डाला जाता है। फिर तापमान को बढ़ाकर 96 डिग्री सेंटीग्रेड पर किया जाता है। इस पर इसे 40 मिनट तक रखा जाता है। फिर इसे स्वच्छ पानी से अप्रत्यक्ष ढंग से ठंडा किया जाता है। ट्रीटमेंट के दौरान बचा ब्लीच धोकर निकाल दिया जाता है। फिर इस कपड़े को दो बार गर्म पानी से धोया जाता है। कपड़ों में बचे क्षारीय तत्वों को निकालने के लिए कपड़ों को ठंडे वातावरण में अम्लीय ट्रीटमेंट दिया जाता है। बचा हुआ अम्ल बहा दिया जाता है। इसके बाद सूखे कपड़ों को एक बार फिर रोल किया जाता है। रोलिंग के बाद टयूबलर कपड़े की दूसरी ओर प्रिंट किया जाता है।

कपड़ों की रंगाई
कपड़ों को शुद्ध करने के बाद उसी मशीन में इसे रंगा भी जाता है। मशीन में पहले पानी भरा जाता है। फिर इसमें साधारण नमक, सलवट रोकने वाले तत्व और डी-फॉमर मिलाया जाता है। इस घोल को 50 डिग्री सेंटीग्रेड तक गर्म किया जाता है। फिर अलग से रंगों को सांद्र बनाया जाता है। इसे घोल में 20 मिनट तक मिलाए रखा जाता है। कपड़ों की रंगाई के बाद तापमान 95 डिग्री सेंटीग्रेड तक बढ़ाया जाता है। इस तापमान को 20 मिनट तक बरकरार रखा जाता है। फिर इसे ठंडा कर 80 डिग्री सेंटीग्रेड तक लाया जाता है। इस तापमान पर सोडा-एश (रंगाई फिक्सिंग एजेंट) मिलाकर 20 मिनट तक रखा जाता है। सोडा-एश मिलाने के बाद घोल में कपड़ों को 45 मिनट तक चलाया जाता है। बचा हुआ रंग पानी के साथ बहा दिया जाता है। बचा हुआ क्षारीय तत्व निकालने के लिए कपड़े को चार बार धोया जाता है।. पहली और तीसरी धुलाई गर्म पानी में होती है। दूसरी धुलाई साबुन के गर्म घोल और आखिर में इसे तेजाब में धोया जाता है। गर्म पानी में धुलाई 70 डिग्री सेंटीग्रेड पर दस मिनट तक होती है। साबुन से धुलाई 95 डिग्री सेंटीग्रेड तक और 15 मिनट तक होती है। इन प्रक्रियाओं में धुलाई के दौरान बचा हुआ पानी बहा दिया जाता है। कपड़े को सादा करने या रंगने के बाद मशीन से उतार लिया जाता है। फिर इसे हाइड्रो एकस्ट्रेटर में ले जाया जाता है। यहां इसे खींच कर फुला कर बराबर हिस्सों में भिगो लिया जाता है। (फाइनल फिनिशिंग की जरूरत होने पर कपड़े को फिनिशिंग रसायन से मिले हुए पानी में डुबोया जाता है।) फिर इसे रोलर के बीच निचोड़ा जाता है। इस कपड़े को रिलेक्स ड्रायर में सुखाया जाता है। कपड़े को समान रूप से चौड़ा किया जाता है। क्लैडरिंग मशीन में फिर इसे तह करते हैं। क्लैडरिंग के बाद कपड़ा रोलर सेक्शन में चला जाता है। कपड़ा फिर रोल के रूप में ढाल दिया जाता है। फिर इसे प्रिंटिग (अगर जरूरत है तो) या डिस्पैच में भेज दिया जाता है।

प्रिंटिंग (छपाई)
ब्लीचिंग और रंगाई के बाद कपड़े को प्रिंट यानी छपाई के लिए ले जाया जाता है। छपाई के लिए रोटरी प्रिंटिंग मशीन का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें एक साथ आठ रंगों से प्रिटिंग हो सकती है। कलर प्रिंट के लिए पेस्ट तैयार किया जाता है। इसे पहले स्क्रीन में छोड़ा जाता है फिर इसे कपड़े में भेज दिया जाता है। छपा हुआ कपड़ा सुखाने के लिए 145 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान वाले चैंबर से गुजारा जाता है। प्रिंटेड कपड़े को सुखाने के बाद फिर से प्रक्रिया दोहराई जाती है। सूखे कपड़े को दोबारा रोल किया जाता है और टयूबलर कपड़े की दूसरी ओर इसमें प्रिंट किया जाता है।

फिनिशिंग
छपाई के बाद कपड़े को फिनिशिंग के लिए ले जाया जाता है। कपड़े को फिनिशिंग रसायन में तह कर रख दिया जाता है। फिर इसे रोलर के बीच निचोड़ा जाता है। निचोड़े हुए कपड़े को रिलेक्स ड्रायर में सुखाया जाता है। कपड़े को फिर रसायन रूप से चौड़ा किया जाता है। इसके बाद कलैंडर मशीन में डाल दिया जाता है। कलैंडर मशीन के बाद यह रोलर सेक्शन में चला जाता है। यहां तह किए गए कपड़े फिर से रोल के रूप में चले जाते हैं।

अध्ययन का केंद्र बिन्दु:
इस टेक्सटाइल इकाई ने प्रदूषण को कम करने का प्रयास किया है। इकाई ने ऐसे केमिकल का इस्तेमाल किया है जो कम प्रदूषण पैदा करते हैं।

इस अध्ययन के नतीजे इस प्रकार हैं:-
अध्ययन में ऑक्सीजन की अधिकता पर नजर रखकर दहन प्रक्रिया का विश्लेषण किया गया। खासकर यह ध्यान रखा गया कि दहन की प्रक्रिया सक्षम तरीके से हो ताकि प्रदूषण कम हो। इसके साथ ही इनपुट और अवशिष्ट आउटपुट का भी विश्लेषण किया गया। इस बात का विश्लेषण किय गया कि निर्माण प्रक्रिया के दौरान संसाधनों का कितना अपव्यय हुआ है। वैकल्पिक रसायन इस्तेमाल करने के संबंध में भी सर्वे हुए। दहन प्रक्रिया के बारे में विश्लेषण के बाद इस्तेमाल किए जाने वाली सर्वाधिक सक्षम दहन प्रक्रिया का चयन किया गया।

(1) सॉफ्ट फ्लो के लिए एसिड की मात्रा 1.5 किलोग्राम से घटा कर 1.2 किलोग्राम कर दिया गया। विंच मशीन में भी एसिड की मात्रा 2.0 किलोग्राम से घटा कर 1.5 कर दी गई। एसिड की खपत घटाने से हर वर्ष 13 टन एसिड की बचत हुई। साथ ही हर साल 5,50,000 रूपये की बचत हुई।
(2) रंगाई में इस्तेमाल होने वाले नमक के इस्तेमाल में 15 फीसदी की कमी आई। इससे 70 टन प्रति वर्ष के हिसाब से नमक की बचत हुई। इस हिसाब से एक साल में 2,10,000 लाख रू. की बचत की गई।
(3) पहली मशीन के गर्म पानी का इस्तेमाल दूसरी मशीन के गर्म पानी के तौर पर किया गया। पानी की बचत से हर साल 75,000 रूपये की बचत हुई। (पानी की दर 30 रूपये प्रति घन मीटर)
(4) आखिरी बार कपड़े को निचोड़ने से निकले पानी को द्रव तैयार करने में इस्तेमाल किया गया। इस तरह पानी की खपत कम हुई। साथ ही गंदे पानी को ट्रीट करने का खर्च भी कम हुआ है। इससे एक लाख चालीस हजार रूपए की बचत हुई।
(5) गाढ़े रंग के कपड़ों में ब्लीचिंग एजेंट का इस्तेमाल नहीं किया गया या कम किया गया। इसके अलावा घरेलू इस्तेमाल के लिए कुछ चीजों में परिवर्तन किया गया या उनमें सुधार किया गया। ये इस प्रकार हैं:-
- हर डिसचार्ज के बाद हर कपड़े को निकालने के लिए पांच मिनट का अतिरिक्त समय दिया गया,
- कंबलों को धोने के लिए पुराने पानी का ही इस्तेमाल किया गया,
- किसी भी गलत प्रक्रिया को रोकने के उपाय तय किए गए और उनका पूरा इस्तेमाल भी हुआ,
- कपड़े को धोने से पहले पिस्टन जैसे साधारण उपकरण से प्रिंटिंग पेस्ट को निकाला गया,
- ईंधन के इस्तेमाल के तरीके में सुधार किया गया। बॉयलर में ईंधन इस्तेमाल के दौरान सूझबूझ से काम लिया गया। इससे ईंधन की खपत में कमी आईं। नीचे तालिका में उन उपलब्धियों की सूची दी गई है, जिसे सुधरी तकनीक के जरिये हासिल किया गया।

 

 

 

 

क्रम संख्या

पैमाना

दहन प्रक्रिया से पहले (प्रति वर्ष)

दहन प्रक्रिया के बाद ( प्रति वर्ष)

फीसदी परिवर्तन

 

एसिड खपत

57.5 टन

49 टन

-15

 

नमक खपत

440 टन

370 टन

-16

 

पानी का इस्तेमाल

1,88,180 m3

1,85,600 m3

-2

 

 

 

 

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