टिकाऊ भविष्य की ओर ले जायेगा क्या रियो+20?

11 Jun 2012
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यह सम्मेलन धरती को ताप और जलवायु परिवर्तन से बचाने के अलावा भी कई और मायनों में खास है, इसीलिये इसमें प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों के अलावा निजी क्षेत्र से लेकर सिविल सोसायटी तक के नेतागण शामिल हो रहे हैं। यहां तक कि इस सम्मेलन को सदी में एक-आध बार आने वाले अवसर की तरह भी देखा जा रहा है। भविष्य की आर्थिकी टिकाऊ कैसे बने, इस विषय पर नेतागण इसमें गहन मंथन करेंगे।

भारत जैसे देश में रियो+20 का मतलब कितने प्रतिशत लोग समझते हैं, यह तो नहीं मालूम; लेकिन इतना ज़रूर है कि 1992 में आयोजित पृथ्वी शिखर सम्मेलन के 20 साल बाद हो रहे रियो+20 सम्मेलन से जो कुछ निकलेगा, उसका प्रभाव भारत ही नहीं पूरी दुनिया के लोगों और तमाम प्राणिमात्र पर पड़ेगा। आशा और आशंका के बीच ब्राज़ील के रियो दी-जानीरो शहर में संयुक्तराष्ट्र का रियो+20 सम्मेलन 13 से 22 जून तक होने जा रहा है, हालांकि राष्ट्राध्यक्षों और प्रधानमंत्रियों की मुख्य बैठक 20 से 22 जून तक होगी। सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत दुनियाभर के 100 से ज्यादा देशों के राष्ट्राध्यक्ष और शासनाध्यक्ष तथा विभिन्न क्षेत्रों के अग्रणी लोग हिस्सा लेंगे।

संयुक्तराष्ट्र जन सूचना विभाग द्वारा उपल्ब्ध जानकारी के अनुसार इस सम्मेलन में 100 से ज्यादा देशों के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री, संयुक्तराष्ट्र महासचिव बान की-मून, इस सम्मेलन के महासचिव शा ज़ूकांग के अलावा हज़ारों की संख्या में व्यापारिक घरानों के प्रमुख, सांसद, महापौर, सिविल सोसायटी नेता, शिक्षाविद, पत्रकार, संयुक्तराष्ट्र के अधिकारीगण, और दूसरे अन्य संगठनों के प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे। कुल मिलाकर, 50 हज़ार से ज्यादा लोग इस महाकुम्भ में जुटने और जुडने वाले हैं। इस सम्मेलन के आधिकारिक कार्यक्रम रियो स्थित ‘रियोसेंत्रो कंवेंशन सेंटर’ में होंगे तो अन्य कार्यक्रम शहर के विभिन्न इलाकों में आयोजित किये जायेंगे।

रियो में ही 1992 में पृथ्वी शिखर सम्मेलन में भविष्य की सुंदर तसवीर खींची गयी थी। पृथ्वी सम्मेलन से वह सब तो हासिल नहीं हुआ, जिसकी दरकार थी पर फिर भी उसने सकारात्मक वातावरण बनाया जो आज रियो+20 के रूप में हमारे सामने है। और अब, रियो+20 सम्मेलन में विश्वनेता कई महत्वपूर्ण निर्णय लेंगे जो सकारात्मक या नकारात्मक रूप से धरती की भावी तसवीर बनायेंगे। इस वैश्विक सम्मेलन में जिन मुद्दों पर बहस और फैसले होने हैं, उनमें गरीबी और सामाजिक असमानता को कम करना खास है।

यह सम्मेलन धरती को ताप और जलवायु परिवर्तन से बचाने के अलावा भी कई और मायनों में खास है, इसीलिये इसमें प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों के अलावा निजी क्षेत्र से लेकर सिविल सोसायटी तक के नेतागण शामिल हो रहे हैं। यहां तक कि इस सम्मेलन को सदी में एक-आध बार आने वाले अवसर की तरह भी देखा जा रहा है। भविष्य की आर्थिकी टिकाऊ कैसे बने, इस विषय पर नेतागण इसमें गहन मंथन करेंगे। अर्थात, ये लोग ऐसी कोई रणनीति बनायेंगे जो टिकाऊ विकास और टिकाऊ अर्थव्यवस्था के लिये आधार-स्तम्भ का काम करेंगे। साथ ही, गरीबी से लड़ने, सामाजिक बराबरी को मज़बूत करने तथा पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित के उपाय भी करेंगे। इस लक्ष्य को हासिल करने के काम में हज़ारों लोगों की रियो में भागीदारी होनी है। इनमें सरकारों के आला प्रतिनिधियों से लेकर, निजी क्षेत्र और सिविल सोसायटी के नेता तक शामिल हैं।

स्वयंसेवी संगठनों की भूमिका इस सम्मेलन में खासी रहेगी। इसलिये भी कि 1992 के पृथ्वी सम्मेलन के शुरू से ही महसूस किया गया था कि टिकाऊ विकास के लक्ष्यों को अकेले सरकारें हासिल नहीं कर सकती है। लिहाज़ा यह हासिल करने के लिये सभी वर्गों और सभी तरह के लोगों यथा उपभोक्ताओं, कामगारों, किसानों, छात्रों और समाज के वंचित वर्गों से लेकर व्यापारियों, उद्योगपतियों, अध्यापकों, शोधार्थियों और अन्य वर्गों की भागीदारी जरूरी है।

इसे देखते हुये ब्राज़ील सरकार की पहल पर संयुक्तराष्ट्र के इस रियो+20 सम्मेलन का तानाबाना कुछ इस प्रकार बुना गया है कि इसमें स्वयंसेवी संगठनों की महत्वपूर्ण भूमिका स्पष्ट तौर पर दिखायी देती है। इस सम्मेलन के दौरान 16 से 19 जून तक स्वयंसेवी संगठनों की खास बैठकें होनी है, जिनके अहम निर्णयों को सरकारों के प्रमुखों तक पहुंचाया जायेगा। इन प्रमुखों की बैठकें 20 से 22 जून तक होनी हैं। अनेक प्रेक्षकों का मानना है कि यदि रियो+20 सम्मेलन से सकारात्मक निर्णय नहीं निकलते है तो धरती का भविष्य अंधकारमय है।

इस प्रकार के सैकडों मुद्दे हैं, जिनके समाधान विश्व नेताओं को खोजने होंगे। पारिस्थितिकी अनुकूल नौकरियां, विज्ञान और नवीन प्रयोगों के बेहतर इस्तेमाल के उपाय, विभिन्न देशों के बीच नयी-पुरानी प्रौद्योगिकी के कारण भेद, कार्पोरट सेक्टर में टिकाऊ विकास की अवधारणा का प्रतिपादन तथा वैश्विक सहयोग जैसे अनेक विषय हैं, जिनके बारे में इन नेताओं को निर्णय लेने हैं। ये निर्णय आने वाले समय और मानवता सहित सम्पूर्ण प्राणिमात्र को प्रभावित करेंगे।

संयुक्त राष्ट्र जन सूचना विभाग के अनुसार सदस्य देशों ने अब तक की चर्चाओं से 26 प्राथमिकता वाले विषय चुने हैं, जिन पर रियो+20 सम्मेलन में गम्भीर चर्चायें होनी हैं। अकेले टिकाऊ विकास से जुडे 10 विषय हैं, यथा: (1) खाद्य एवं पोषण सुरक्षा, (2) वन सम्पदा, (3) गरीबी से निपटने के लिये टिकाऊ विकास की अनिवार्यता, (4) जल, (5) बेरोज़गारी, सम्मानजनक नौकरी और पलायन से जुड़े विषय, (6) उत्पादन और उपभोग के टिकाऊ तौर-तरीकों समेत टिकाऊ विकास की आर्थिकी, (7) शहरों को चरमराने से बचाने अर्थात उनके लिये टिकाऊ रणनीति और नये-नये प्रयोगों की सम्भावनाओं के लिये पर्याप्त अवसर, (8) सागर संरक्षण, (9) सबके लिये टिकाऊ ऊर्जा की व्यवस्था, और (10) आर्थिक एवं वित्तीय संकटों से जूझने के लिये टिकाऊ विकास नीति। इन्हीं के परिप्रेक्ष्य में सदस्य देश खाद्य सुरक्षा, पानी और ऊर्जा से जुडे विषयों को लेकर कुछ ठोस और लागू किये जा सकने वाले निर्णय लेने पर ध्यान लगाना चाहते हैं।

रियो+20 सम्मेलन में विश्व नेतागण कुल मिलाकर अगले 20 साल के लिये टिकाऊ विकास का एजेंडा तय करने की मंशा रखते हैं, पर इसमें वे कितने सफल होंगे, यह अगले कुछ दिनों में पता चल जायेगा। हमारे सामने जो अहम चुनौतियां हैं उनके समाधान खोजने भी ज़रूरी हैं। अभी दुनिया की बड़ी आबादी साफ पेयजल और ऊर्जा के आसान स्रोतों से महरूम है, भोजन सुरक्षा की कोई व्यवस्था उसके पास नहीं और सिर के ऊपर छत भी नहीं है। सागर से लेकर नदियों की स्थिति खराब है और सबसे बढ़कर सामाजिक असमानता लगातार बढ़ती जा रही है। गांवों और कस्बों में रोज़गार के पुख्ता साधन नहीं होने से शहरों पर बराबर दबाव बढ़ रहा है। इस प्रकार के सैकडों मुद्दे हैं, जिनके समाधान विश्व नेताओं को खोजने होंगे। पारिस्थितिकी अनुकूल नौकरियां, विज्ञान और नवीन प्रयोगों के बेहतर इस्तेमाल के उपाय, विभिन्न देशों के बीच नयी-पुरानी प्रौद्योगिकी के कारण भेद, कार्पोरट सेक्टर में टिकाऊ विकास की अवधारणा का प्रतिपादन तथा वैश्विक सहयोग जैसे अनेक विषय हैं, जिनके बारे में इन नेताओं को निर्णय लेने हैं। ये निर्णय आने वाले समय और मानवता सहित सम्पूर्ण प्राणिमात्र को प्रभावित करेंगे।

पूरी दुनिया में इसीलिये चिंता है कि हो न हो रियो+20 सम्मेलन से अंतिम और सार्थक निर्णय न निकलें। वैसे भी अब तक सामूहिक निर्णयों तक पहुंचने का इतिहास कठिन प्रक्रिया के तौर पर जाना जाता है। इसके अलावा यह बात भी सच है कि सदस्य देश इस सम्मेलन के लिये अब तक वार्ता के लिये सभी पैकेजों को मूर्त रूप नहीं दे पाये हैं।

इस सब के बावजूद, संयुक्तराष्ट्र महासचिव का कहना है कि सदस्य देश वार्ता के लिये बढ़िया और आने वाले समय के लिये ठोस पैकेज लाना चाहते हैं। उनका कहना है कि यह अत्यंत उत्साहवर्धक है। उनके अनुसार इस पूरे प्रकरण में खासी प्रगति हुयी है लेकिन यह बात भी तय है कि कुछ मुद्दों पर जब तक पूरी सहमति नहीं बन जाती, तब तक कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया जा सकता है। साथ ही कुछ ऐसे विषय होते हैं जिन पर वार्ताकार अपनी-अपनी सरकारों से हरी झंडी के बाद ही निर्णय ले पाते हैं। ऐसे विषयों को ‘एड रेफेरेंस’ कहा जाता है। महासचिव का कहना है कि रियो+20 सम्मेलन में ‘एड रेफेरेंस’ वाले अनेक मुद्दे हैं। अर्थात, इस सम्मेलन में कुछ न कुछ अडचनें आने ही वाली हैं। इस सब के बावजूद चीज़ें आगे बढ़ रही हैं। संयुक्तराष्ट्र महासचिव ने हाल ही में न्यूयार्क में प्रेस कांफ्रेंस में यह उजागर किया था।

संयुक्तराष्ट्र महासचिव को यह भी उम्मीद है कि विश्व को ज्यादा बराबरी वाला बनाने के लिये रियो+20 सम्मेलन प्रेरणा देने का काम करेगा। ऐसी दुनिया बनाने के लिये जहां ज्यादा खुशहाली हो, जहां सबको साथ लेकर चलने की परम्परा हो, और जहां धरती को बचाये रखने की इच्छाशक्ति के साथ पारिस्थितिकी अनुकूल विकास का मॉडल हो। संयुक्तराष्ट्र महासचिव को विश्वास है कि नेतागण ठोस नेतृत्व का परिचय देंगे। उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन को वह आमूल परिवर्तन के लिये आंदोलन से कम आंकने को तैयार नहीं है। साथ ही उन्होंने चेताया कि यह सब पाने के लिये अभी काम बहुत करना है।

संयुक्तराष्ट्र महासचिव ने कहा, “हम चाहते हैं कि विश्व नेतागण रियो+20 सम्मेलन में तमाम अहम मुद्दों पर टेबल पर बातचीत को अपनी-अपनी प्राथमिकता में रखें। इसके अलावा कुछ भी कारगर नहीं हो पायेगा।” उन्होंने यह भी कहा कि आज पूरी दुनिया के लोग आर्थिक अनिश्चतता, निरंतर बढ़ रही गैर-बराबरी और पारिस्थितिक ह्रास के इर्द-गिर्द रहने को मज़बूर हैं। लिहाज़ा, वह उम्मीद करते हैं कि रियो+20 सम्मेलनरियो+20 सम्मेलन से ठोस नतीजे निकलेंगे, ऐसे ठोस नतीजे जो दुनियाभर के लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में सक्षम होंगे।

संयुक्तराष्ट्र महासचिव बान की-मून ने वास्तव में दुनिया को ज्यादा बराबरी, खुशहाली और सबको साथ लेकर चलने वाला तथा पर्यावरण अनुकूल विकास प्रक्रिया से चलने वाला बनाने के लिये छह-सूत्री कार्यक्रम भी रखा है। उनके कार्यक्रम के सूत्र हैं: (1) वैश्विक स्तर पर सहयोग, निवेश और प्रौद्योगिकी के आदान-प्रदान से लोगों को गरीबी से बाहर निकालने और धरती का पर्यावरण बचाये रखने के लिये इंक्लूसिव ग्रीन एकॉनॉमी अर्थात सबको साथ लेकर पारिस्थितिकी अनुकूल आर्थिकी का रास्ता तय करने पर सहमति बनाने की आवश्यकता, (2) हासिल किये जा सकने वाले टिकाऊ विकास के लक्ष्यों को परिभाषित करने पर सहमति बनाने की आवश्यकता, (3) टिकाऊ विकास के लिये संस्थागत ढांचा बनाने पर निर्णय लेने की आवश्यकता, (4) 1.4 अरब लोगों की पहुंच ऊर्जा के विकल्पों तक न होने के परिप्रेक्ष्य में विभिन्न क्षेत्रों यथा खाद्य सुरक्षा और टिकाऊ कृषि, सागर संरक्षण, लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण, सबके लिये शिक्षा और टिकाऊ ऊर्जा जैसे विषयों पर काम करने सम्बंधी निर्णय लेने की आवश्यकता, (5) तमाम क्षेत्रों यथा - व्यापार, वित्त, प्रौद्यौगिकी हस्तांतरण और क्षमतावर्धन - में क्रियान्वयन में प्रगति की आवश्यकता; और (6) सिविल सोसायटी और निजीक्षेत्र के साथ अधिक भागीदारी और रणनीतिक गठबंधन की आवश्यकता ताकि वैश्विक स्तर पर जनसमर्थन हासिल हो और परिवर्तन सम्भव हो।

इसके अलावा, संयुक्तराष्ट्र महासचिव को यह भी उम्मीद है कि विश्व नेतागण रोज़गार के नये अवसरों की तलाश से लेकर सामाजिक सुरक्षा, ऊर्जा, परिवहन और खाद्य सुरक्षा जैसे चुनौतीपूर्ण विषयों पर नयी पहल करेंगे या अपनी प्रतिबद्धता का परिचय देंगे। उनका ठीक ही कहना है कि रियो+20 का आकलन अंतत: इस बात पर निर्भर करेगा कि इससे निकलता क्या है। महासचिव का कहना है कि हमें नये मॉडल की स्थापना करनी ही होगी। ऐसा मॉडल जो सम्पूर्ण समाज को साथ लेकर चले और प्रगति की ओर बढ़े। ऐसा मॉडल जो धरती के सीमित संसाधनों के प्रति संवेदनशील हो। उनका यह भी मानना है कि टिकाऊ विकास ऐसा विचार है जिस पर आज अमल करने का समय आ गया है। टिकाऊ विकास पर आधारित भविष्य ही हमें चाहिये।

संयुक्तराष्ट्र ने सह्स्त्राब्दि विकास लक्ष्यों (एमडीजी) के तहत मात्र आठ विषय तय किये हैं, लेकिन रियो+20 सम्मेलन ने ऐसे 26 विषय चुने हैं, जिन पर सदस्य देशों को चर्चा करनी है। इन 26 विषयों में ऊर्जा से जुडे विषय सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण जान पड़ते हैं। शिक्षा, भोजन, पानी, टिकाऊ आवास व्यवस्था जैसे प्रश्न भी महत्वपूर्ण हैं। सदस्य देशों को इन विषयों पर गम्भीर विचार-विमर्श करना ही होगा। इसके अलावा कोई विकल्प दिखाई नहीं देता है।

संयुक्तराष्ट्र महासचिव के अनुसार इस सबके लिये मज़बूत राजनीतिक सोच और इच्छाशक्ति के साथ-साथ राजनीतिक साहस भी चाहिये। ऐसा होगा तो पर्यावरण, आर्थिक, और सामाजिक स्तरों पर टिकाऊ विकास का रास्ता भी दिखाई देगा। उनकी स्पष्ट सोच है कि टिकाऊ विकास की परिकल्पना के लिये मध्य और दूरगामी लक्ष्य तय करने ज़रूरी हैं।

उनका दावा भी है कि सदस्य देशों ने 1992 के पृथ्वी शिखर सम्मेलन में जो तय किया था, उससे पीछे नहीं हट रहे हैं। बकौल महासचिव सदस्यदेशों ने एजेंडा-21 अंगीकार किया था, लेकिन पृथ्वी के सीमित संसाधनों की परवाह किये बिना विकास के नाम पर काम होता रहा। हम धरती के साथ बुरा व्यवहार करते रहे, जबकि वह हमारे साथ अच्छा व्यवहार ही करती रही। आज यह स्प्ष्ट है कि पृथ्वी या प्रकृति हमारे लिये रुकने वाली नहीं है। हमें व्यावहारिक होकर निर्णय लेने ही होंगे।

रियो में 20 साल पहले आयोजित पृथ्वी शिखर सम्मेलन भी तब के हिसाब से ऐतिहासिक और अभूतपूर्व था। दुनियाभर से आये विभिन्न वर्गों के हज़ारों लोगों की इसमें शिरकत हुयी थी। इसका यह संदेश पूरी दुनिया में गया था कि बदलाव के लिये हमें अपने दृष्टिकोण और व्यवहार में आमूल परिवर्तन करना होगा। अर्थात, गरीबी और ज़रूरत से कहीं ज्यादा उपभोग दोनों ही खराब हैं, और धरती की पारिस्थितिकी और पर्यावरण के लिये घातक हैं।

सरकारों ने भी इन बातों का खूब संज्ञान लिया था, और उन्होंने आवश्यक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय योजनायें भी बनायीं। 1992 का पृथ्वी शिखर सम्मेलन वास्तव में उस प्रक्रिया का चरमोत्कर्ष था जो दिसम्बर 1989 में संयुक्तराष्ट्र के तत्वावधान में विभिन्न बिंदुओं पर शुरू हुयी थी। पृथ्वी शिखर सम्मेलन ने बाद के तमाम अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों को प्रभावित किया और इसके सकारात्मक परिणाम भी दिखाई दिये पर रास्ता अभी भी लम्बा है। एजेंडा-21 कमज़ोर नहीं पडता तो राह थोडा आसान रहती। इसके बावज़ूद, एजेंडा-21 आज भी सबसे मज़बूत और कारगर हथियार है, बशर्ते इसका ठीक से इस्तेमाल किया जाय। पृथ्वी शिखर सम्मेलन ने दुनिया को नया रास्ता भी दिखाया, अर्थात सोचने-समझने के लिये नया परिप्रेक्ष्य दिया। इसे नये युग के सूत्रपात के तौर पर देखा गया। रियो+20 सम्मेलन के बाद हमें और आगे चलकर देखने की आवश्यकता है। रियो के एजेंडा-21 के 20 साल बाद आज सरकारों को आर्थिक विकास को लेकर नये सिरे से सोचने की ज़रूरत है ताकि प्राकृतिक विरासत का विनाश रोका जा सके। आगे की सोचना ही रियो+20 है।

संयुक्तराष्ट्र महासचिव के शब्दों में ही कहें तो रियो+20 सम्मेलन के रूप में सदियों में आये इस अद्भुत अवसर को हमें चूकना नहीं चाहिये। यदि चूक गये तो लम्बा इंतज़ार करना पडेगा और न जाने तब क्य परिस्थिति होगी। कुल मिलाकर कहना यह है कि जिस प्रकार विश्व के नेताओं ने 1992 में रियो पृथ्वी शिखर सम्मेलन में एजेंडा-21 और 2000 में सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्य तय किये थे, ठीक उसी प्रकार अब रियो+20 सम्मेलन में टिकाऊ विकास के लक्ष्य तय करेंगे। क्योंकि यह धरती और धरती पर रहने वाले तमाम प्राणियों का अस्तित्व बचाये रखने का प्रश्न है।

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