ट्रिब्यूनल ने लिया सरदार सरोवर व अन्य बांधों के विस्थापितों का जायजा

ट्रिब्यूनल के सदस्य बुधवार को निमाड़ के गांवों में गए जहां कागजी पुनर्वास की कहानियां मिलीं। धर्मपुरी तहसील के पठानिया और राजपुर तहसील के मंडल में नहर प्रभावित गांवों का भी दौरा हुआ। यहां एक ओर बेहद उपजाऊ और सिंचित भूमि है और दूसरी ओर गहरी खुदाई करके कृषि भूमि बर्बाद की जा रही है। गांव वालों ने बताया कि किस तरह मप्र सरकार के नौकरशाहों ने भूमि अधिग्रहण में ‘सहमति पत्र’ पर उनसे जबरिया दस्तखत कराए।दिल्ली व मुंबई उच्च न्यायालय के पूर्व जस्टिस एपी शाह, कृषि नीति विशेषज्ञ डा. देविंदर शर्मा और पुणे के इंडियन लॉ सोसाइटी, लॉ कालेज की प्रोफेसर जया सागडे के निष्पक्ष जन ट्रिब्यूनल (इंडिपेंडेंट पीपुल्स ट्रिब्यूनल) ने नर्मदा घाटी की अपनी दो दिन की यात्रा में सरदार सरोवर परियोजना से प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया और जन सुनवाई की।

इस जन सुनवाई में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात से आए हजार से ज्यादा लोगों ने भाग लिया। इन्होंने सरदार सरोवर बांध परियोजना से विस्थापित हुए दो लाख लोगों का प्रतिनिधित्व किया इस जन-सुनवाई में लोगों ने जो व्यथा-गाथा पेश की, वह सप्रमाण थी। ट्रिब्यूनल ने आश्चर्य जताया कि नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण और नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण फिर किस आधार पर यह दावा करते हैं कि अब किसी भी परिवार का पुनर्वास नहीं होना है।

नर्मदा घाटी में बुधवार और गुरुवार को हुई इस जन-सुनवाई का घाटी के नागरिकों ने स्वागत किया। इंडिपेंडेंट पीपुल्स ट्रिब्यूनल ऑन एनवायरमेंट एंड ह्यूमन राइट्स एक बड़ी राष्ट्रीय संस्था है। इसमें पांच सौ से ज्यादा न्यायाधीश, वकील, मानव अधिकार कार्यकर्ता और जन संगठन से जुड़े हुए हैं। सामाजिक व आर्थिक तौर पर कमजोर समुदायों के मानवाधिकारों के हनन और पर्यावरण नियम-कानूनों को नजरअंदाज करने के मामलों की छानबीन यह संस्था करती है। इसकी रपट का राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय मंच पर खासा महत्व है।

नर्मदा घाटी के दौरे और जन सुनवाई पर यह ट्रिब्यूनल 22 और 23 जून को अपनी रपट भोपाल में जारी करने को है। ट्रिब्यूनल के मुख्य कार्य क्षेत्र में अन्य मुद्दों के अलावा संबंधित प्रभावित लोगों, राज्य, नर्मदा आंदोलन की सुनवाई के साथ ही अपना नजरिया इस पहलू पर भी देना है कि सरदार सरोवर परियोजना के बांध की मौजूदा ऊंचाई 122 मीटर कानून, नीति और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के तहत है। जबकि पुनर्वास, पर्यावरण संबंधी वैकल्पिक व्यवस्था और परियोजना की लागत व लाभ संबंधी पूरा परिदृश्य ही उलझा हुआ है। ट्रिब्यूनल इस पहलू पर भी गौर करने को है कि इंदिरा सागर और ओंकारेश्वर के नहरों के जाल का इस तरह आकलन हो कि नदी किनारे के गांवों को छोड़ कम से कम विस्थापन, अच्छी कृषि भूमि का संरक्षण करते हुए भूमि अधिग्रहण और नहरों की योजना पर बिना किसी समेकित योजना पूरे आंकड़ों और सभी को पुनर्वास की गारंटी मिले।

ट्रिब्यूनल के सदस्य बुधवार को निमाड़ के गांवों में गए जहां कागजी पुनर्वास की कहानियां मिलीं। धर्मपुरी तहसील के पठानिया और राजपुर तहसील के मंडल में नहर प्रभावित गांवों का भी दौरा हुआ। यहां एक ओर बेहद उपजाऊ और सिंचित भूमि है और दूसरी ओर गहरी खुदाई करके कृषि भूमि बर्बाद की जा रही है। गांव वालों ने बताया कि किस तरह मप्र सरकार के नौकरशाहों ने भूमि अधिग्रहण में ‘सहमति पत्र’ पर उनसे जबरिया दस्तखत कराए।

जांच टीम ने सरदार सरोवर की डूब में आए पिपरी के गांवों को भी देखा जहां अभी भी जनजीवन है। कुछ एक परिवार जो राहत व पुनर्वास में गए वे लौटने को मजबूर हैं क्योंकि वहां मूलभूत सुविधाएं भी नहीं हैं। पिपरी निवासियों ने एक सुर में कहा कि वे जल समाधि ले लेंगे लेकिन गांव नहीं छोड़ेगें। पिछोड़ी गांव के आदिवासी लोगों ने जस्टिस शाह और उनकी टीम को बताया कि कैसे उनके साथ शासन ने बार-बार खिलवाड़ किया। उन्हें उपयुक्त कृषि भूमि, घर और काम नहीं मिल सका। प्रकृति और कृषि के जरिए गुजर-बसर करने वालों को कुल नब्बे मीटर भूमि में बांध दिया गया है।

चिकदा गांव में जांच टीम जब पहुंची तो मशालों से उसका स्वागत किया गया। यहां के लोगों ने बताया कि राहत व पुनर्वास के नाम पर दो हजार जाली रजिस्ट्री की गई और करोड़ों रुपए नौकरशाहों ने डकार लिया। चिकदा के अलावा खापरखेड़ा, कदमल, निसारपुर जैसे कई गांवों में यह खेल हुआ। लोगों का कहना था कि मप्र शासन बिना भूमि दिए लोगों को जल में डुबोने पर आमादा है।

नब्बे के दशक की शुरुआत में ही प्रभावित अलीदाजपुर व पादल के लोगों ने भी आपबीती सुनाई। उन्हें आज तक न मुआवजा और न पुनर्वास और न चाकरी मिली है। इनकी आजीविका का जरिया सिर्फ नदी है।

इन्होंने ट्रिब्यूनल में अपनी बात कही ट्रिब्यूनल अवार्ड, पुनर्वास नीति और अदालत के फैसले भी अमल में नहीं आए। अलीदाजपुर जिले में जोबट परियोजना से प्रभावित लोगों ने नीति के तहत पुनर्वास की मांग की।

विभिन्न संगठनों ने भी ट्रिब्यूनल को अपना नजरिया बताया। कल्पवृक्ष से रोहन, मंथन अध्ययन केंद्र से रहमत और माटू जनसंगठन से विमल भाई ने बताया कि पर्यावरण के संरक्षण की बजाए केंद्र व राज्य सरकारों ने अनदेखी ही की है।

ट्रिब्यूनल के बार-बार अनुरोध पर भी नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण और नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के अधिकारी गैर हाजिर ही रहे। जन सुनवाई कराने में एडवोकेट शुभ्रा और एडवोकेट मोहसिन ने खासा सहयोग दिया। नर्मदा घाटी में पुनर्वास की वास्तविकता, व्यवस्थाएं और वायदे के साथ ही नर्मदा ट्रिब्यूनल अवार्ड, पुनर्वास नीति, हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के फैसले और सुझाव को मद्देनजर ट्रिब्यूनल अपनी रपट देने को है।

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