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Tso Moirie lake in Hindi

लद्दाख की त्सा मोइरी नामक नीले रंग के पानी की झील 4,485 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है जो एक मोती के आकार की है। इसके चारों ओर बर्फीली श्रृंखलाएं हैं। यह झील 31 कि.मी. तक फैली है और झील के अंत में कारजोक गांव में 400 साल पुराना बौद्ध मठ भी दर्शनीय है। इस झील के उत्तरी क्षेत्र में जंगली गधे पाये जाते हैं। इसके सामने नुब्रा की हरी-भरी घाटी है और सियाचीन ग्लेशियर है। खरदूंगला क्षेत्र भी यहीं है जहां 18,400 फुट तक मोटर मार्ग है।

इस पहाड़ी झील का एक नाम और है- ‘चो मो री री’। किंवदंती है कि चो मो नामक एक नन इस जमी झील को एक याक पर बैठकर पार कर रही थी। याक के एक पैर से बर्फ धंसने पर नन चिल्लाई- ‘री.....री’। री का अर्थ हुआ वापस मुड़ो, पर याक आगे बढ़ गई और दोनों झील में डूब गये।

वैसे ‘त्सो’ का लद्दाखी अर्थ ‘जल का फैलाव’ होता है। दो पर्वतों के बीच 4,485 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह खारे पानी की सुंदर झील अभी तक वर्जित क्षेत्र में थी, पर अब सरकार ने प्रतिबंध उठा लिया है। झील के पास लगभग 100 परिवार अपनी पशमीना भेड़ों के साथ रहते हैं। एक कच्ची सड़क कारजोक लेह को जोड़ती हुई झील के पश्चिमी किनारे तक बनने से अब इस झील तक पहुंचना दुर्गम नहीं रहा है। इस दो टापू वाली झील में तीन नदियां व सात झरने गिरते हैं। ‘ग्यांगवर्मा’ और ‘कारजोक फू’ दो छोटी नदियां तो पूर्वी-पश्चिमी किनारे पर कुछ दूर तक चलती हैं, पर तीसरी ‘फिरसू फू’ लगभग 60 कि.मी. लम्बी यात्रा कर त्सो मोइरी में गिर कर आगे ‘पारे चू’ में जा मिलती है, जो तिब्बत में बहती है। फिरसू नदी का निरंतर बहाव झील को काफी पानी देता है। 7 कि.मी. चौड़ी झील किनारे पर 3.5 मीटर गहरी है तो बीच में 50-70 मीटर से लेकर 146 मीटर तक गहरी है।

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संदर्भ:
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