उद्योगों के कचरा से बेंगलुरु का पानी दूषित

तेजी से बढ़ रही हैं औद्योगिक इकाइयां लेकिन नहीं हो रही जलशोधन की व्यवस्था पानी में उद्योागों के कचरा और भारी धातुओं के मिलने से पास की नदी हो गई है प्रदूषित…
आम तौर पर माना जा रहा है कि बेंगलुरु जैसे पहाड़ी शहर में स्वच्छता और सफाई अन्य शहरों के मुकाबले बेहतर है। अगर आपने ऐसी धारणा बना रखी है तो बदल दीजिए। बेंगलुरु और आस-पास के इलाकों के प्राकृतिक जल स्रोतों में तेजी से गिरावट आई है और वहां प्रदूषण की स्थिति खतरनाक रूप धारण कर ली है।

एशिया के सबसे बड़े कबाड़ बाजार माने जाने वाले बेंगलुरु के पीन्या क्षेत्र में तो हाल यह है कि यहां के छोटे, मंझोले और बड़े औद्योगिक प्रतिष्ठानों का कचरा और दूषित जल खुलेआम नालों में बहता रहता है। 2008 में प्रदूषण नियंत्रण में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार यहां पर करीब 3000 छोटे और मंझोले उद्योग लगे थे जबकि 1000 से अधिक बड़े औद्योगिक प्रतिष्ठान थे। इनकी संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है। यहां बता दें कि इस क्षेत्र में विनिर्माण, इंजीनियरिंग, फैब्रिकेशन, सिले-सिलाए वस्त्र और कपड़ा उत्पादन की बहुत सी इकाइयां चलती हैं। इस समस्या पर काम कर रही बेंगलुरु की संस्था अशोका ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड एनवायरमेंट के अनुसार, दुर्भाग्य से यहां के कचरा पानी के निस्तारण की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। जो की गई है वह भी ना-काफी है।

नियमों के मुताबिक, ऐसी बड़ी औद्योगिक इकाइयों को अपना अपशिष्ट जलशोधन प्लांट लगाना होता है। मंझोले और छोटे इकाइयों को इस बात की छूट है कि वे या तो अपना प्लांट लगाएं या सामूहिक रूप से जलशोधन प्लांट की व्यवस्था कर सकते हैं। लेकिन यहां कुछ मंझोली और छोटी इकाइयों ने तो सामूहिक जलशोधन प्लांट लगा लिया है जबकि कितनों के पास यह व्यवस्था नहीं है। कई औद्योगिक इकाइयां टैंकरों के माध्यम से सार्वजनिक जलशोधन प्लांट में अपना कचरा पानी में भेजती हैं। लेकिन इसकी मात्रा नाम मात्र की है। इसका परिणाम है कि इन इकाइयों का बेकार पानी खुले में नाले से होकर बगल की वृषभावती नदी में गिर रहा है। इन नालों से आनेवाले अपशिष्ट पानी के कारण वृषभावती नदी का रूप बदलकर नाले का हो गया है। आज यह स्थिति है कि कभी बेंगलुरु शहर को पेयजल उपलब्ध कराने वाली वृषभावती को लोग आज कचरे नाले के रूप में जानते हैं। सबसे खौफनाक बात यह है कि इस पानी में भारी खतरनाक धातुओं की उपस्थिति बड़ी मात्रा में है।

कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड है लेकिन यह भी कोई बहुत प्रभावी उपाय नहीं कर पा रहा है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन डॉ. वामन आचार्य से पूछने पर बताया कि पीन्या में इलेक्ट्रो प्लेटिंग उद्योग प्रमुख रूप से है। लेकिन इन सभी उद्योगों का परीक्षण करने के बाद प्रदूषण पाए जाने पर बोर्ड इन्हें बंद कर रहा है। उन्होंने बताया कि उद्योगपति चोरी चुपके बीच रास्ते पर ही कचरा को फेंक जाते हैं। यह काम वे रात को करते हैं। यही बाद में जमीन के अंदर जाकर पेयजल को प्रदूषित करता है। अब बोर्ड ने उद्योगों को सख्त निर्देश दिया है कि इसकी धारा प्वाइंट 5 से अधिक नहीं होनी चाहिए। इसी तरह दिशा-निर्देश जारी कर उन्हें धारा में एक बूंद भी कचरा पानी न छोड़ने, एसिड आदि को फिल्टर करने, जलशोधन टैंकों का निर्माण करने और इन टैकों को भूमिगत की जगह सतह पर बनाने का आदेश दिया है। यह पूछने पर कि इतनी सख्ती है तो फिर गंदा पानी कहां से आ रहा है। डॉ. आचार्य ने बताया कि उद्योग चोरी छिपे लगाते हैं। लेकिन अब तक बोर्ड ने ऐसे 32 उद्योगों को बंद कर दिया है। बांकी पर भी कानूनी शिकंजा कसा जा रहा है। अब रात को पानी कोई नाले में न छोड़ पाए, इसकी व्यवस्था की जा रही है।

बेंगलुरु में पीन्या के उद्योगों का पानी पास के नाले से होते हुए व़ृषभावती में बदस्तूर गिर रहा है और भू-जल को प्रदूषित कर रहा है। इस पर अब तक कोई कारगर कार्रवाई नहीं हो पाई है।

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