उपभोक्तावाद की तानाशाही

24 Jun 2014
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उपभोक्तावाद की गहराती जड़ों के चलते पश्चिमी देश अपनी इस्तेमाल करो और फेंको की संस्कृति को दिनोंदिन पुख्ता करते जा रहे हैं। सस्ते उत्पादों की कीमत की भरपाई तीसरी दुनिया के देशों को अपने नागरिकों की जान व पर्यावरण विनाश के माध्यम से देना पड़ रही है। सस्ते के फेर में हम अपनी पूरी पृथ्वी को नष्ट करने के कगार पर पहुंच गए हैं। आवश्यकता इस बात की है कि हम खरीदे गए उत्पाद का अधिकतम प्रयोग करने के बाद ही उसे फेंके। अंतरराष्ट्रीय श्रम दिवस पर बेहतर कार्य स्थितियों और वेतन को लेकर विश्वभर में प्रदर्शन हुए। एक मई के बाद लगभग सभी प्रदर्शनकारी निर्बाध उपभोक्तावादी मनस्थिति में लौट आए, जो कि कमोबेश या सिद्ध करती है कि सभी उपभोक्ता सामग्रियां डिस्पोजेबल (शीघ्र उपयोग के बाद फेंक देने हेतु या प्रयोज्य) हैं और यह ऐसे अंतरराष्ट्रीय निगमों की मददगार हैं जो कि कामगारों का शोषण करते हैं और पर्यावरण को जहरीला बनाते हैं। वस्त्र उद्योग आधुनिक समय के उपभोक्तावाद का सबसे ज्वलंत उदाहरण है।

एक जर्मन युवती बेल्ला अपने शहर में स्थित आयरलैंड के खुदरा कपड़े बेचने वाले स्टोर “प्रिमार्क“ की नियमित ग्राहक है, जो कि अपनी आक्रामक विपणन शैली की वजह से यूरोप का अग्रणी बन चुका है। बेल्ली का कहना है कि “मैं जो भी पहनती हूं वह प्रिमार्क से ही लाती हूं।“ अपने शरीर की ओर इशारा करते हुए वे कहती हैं, चूंकि प्रिमार्क इतना सस्ता है कि मुझे 50 यूरो (प्रति यूरो 100रु.) में स्कर्ट, ब्लाउज, धूप का चश्मा, आंतरिक वस्त्र, स्टाकिंग और जूते मिल जाते हैं, ऐसे में मुझे उन्हें धोने तक की आवश्यकता नहीं पड़ती। मैं इनमें से प्रत्येक को केवल एक बार पहनती हूं और उसके बाद फेंक देती हूं।”

यह पूछने पर कि उसके इस व्यवहार के मनुष्यों और पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ते हैं, उनका कहना था “मुझे नहीं पता कि प्रिमार्क इन कपड़ों को कहां और कैसे तैयार करता है।

बांग्लादेश के राना प्लाजा में हुआ विनाश उपभोक्ताओं के इसी व्यवहार का नतीजा है। यह वही भवन है जिसमें अप्रैल 2013 में 1,134 वस्त्र कर्मचारियों की मृत्यु हुई थी, जिसमें से अधिकांश महिलाएं थीं। इस घटना में 2500 व्यक्ति घायल हुए थे। विध्वंस के बाद वहां अनेक अंतरराष्ट्रीय फैशन ब्रांडों के कपड़े मिले थे। इस दुर्घटना के एक वर्ष पश्चात प्रिमार्क ने औपचारिक रूप से स्वीकार किया था कि उसका एक आपूर्तिकर्ता न्यू वेब बाटम्स राना प्लाजा भवन से व्यवसाय करता था। राना प्लाजा में स्थित वस्त्र कारखानों में काम करने वाले को 38 यूरो (3800रु.) प्रति माह से कम वेतन मिलता है। यहां पर कार्य करने की स्थितियां अत्यंत दयनीय हैं एवं श्रमिकों को सप्ताह के सातों दिन बारह घंटे कार्य करना पड़ता है।

इस भवन के धराशायी होने पर पोप फ्रांसिस ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा था, “यह गुलाम श्रम है। इन्हें ठीक से भुगतान नहीं किया जाता क्योंकि तुम लोग केवल बेलेंस शीट और लाभ कमाने की ओर देखते हो।“ संभव है बेल्ला ने प्रिमार्क से जो कपड़े खरीदे हों वो बांग्लादेशी लड़की रेहना खातून ने तैयार किए हों जो कि राना प्लाजा की एक इकाई में काम करती थी और उस दुर्घटना के बाद अपंग हो अपने काम से हाथ धो बैठी है।

राना प्लाजा इमारत का गिरना वस्त्र उद्योग की अब तक की सबसे बड़ी व दर्दनाक दुर्घटना है। गौरतलब है कि इस भवन में कार्यरत बैंकों व अन्य व्यापारिक संस्थानों से इसकी खतरनाक स्थिति को देखते हुए इसकी निचली दो मंजिलें खाली कर दी थीं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने दुर्घटना के बाद मृत व घायल कामगारों की सहायता हेतु 4 करोड़ अमेरिकी डॉलर एकत्र करने का बीड़ा उठाया था।

आधिकारिक तौर पर बताया गया कि इस भंवन के माध्यम से अपने अंतरराष्ट्रीय ब्रांड चला रहे उद्योगों में से केवल आधे उद्योगों ने अभी तक केवल 1.6 करोड़ डॉलर ही दिया है। इस दुर्घटना के करीब एक वर्ष पश्चात प्रिमार्क ने घोषणा की कि वह यह उसके हेतु कार्यरत 580 कर्मचारियों या उन पर आश्रितों की दीर्घकालिक सहायता करेगा और इस हेतु 90 लाख डॉलर का भुगतान करेगा। वहीं एक गैर सरकारी संगठन “क्लीन क्लोथ केम्पेन” जो कि बेहतर कार्य स्थितियों की वकालत करता है का कहना है अनेक अंतरराष्ट्रीय ब्रांड जैसे एडलर मोडेमार्केट, ग्राबालोक (21 स्टोर) मेनीफेक्टुअरा कोरोन, एमकेडी बेनेट्टोन, केरीफोट, एयसजी, काटो, फेशन्स आदि ने अपने वादे पूरे नहीं किए हैं। श्रम विशेषज्ञों एवं समाज विज्ञानियों का कहना है कि विश्व भर के उपभोक्ता अपनी “फैशन की लत” के नैतिक परिणामों की अनदेखी करते हैं अन्यथा मुआवजे और सुरक्षा प्रावधानों का प्रश्न ही नहीं उठता। जर्मन ट्रेड यूनियन नेता ह्युबेरट्स थिरमेयर का कहना है, “जब आप दो यूरो (200रु.) से कम की टी-शर्ट खरीदते हैं तो आप जानिए की विश्व में कहीं और कोई आपके बदले अपने श्रम का बड़ा हिस्सा और पर्यावरण लागत चुका रहा है, जिसे आप वहन नहीं करना चाहते हैं।

उपभोक्तावाद की तानाशाही


जर्मनी के समाज विज्ञानी हेराल्ड वेल्झर का कहना है कि विश्वभर में उपभोक्तावाद की तानाशाही स्थापित हो चुकी है, जिसका उद्देश्य कुल मिलाकर नैतिक दायित्वों से छुटकारा पाना है। वेल्झर ने स्वीडन की महाकाय फर्नीचर कंपनी को ध्यान में रखते हुए एक शब्द “आईकेईएकरण“ गढ़ा है। उनका कहना है कि आज स्थायी उपभोक्ता सामग्री जिसमें वस्त्र से लेकर इलेक्ट्रानिक्स तक सभी शामिल हैं को डिस्पोजेबल बनाने को औद्योगिक प्रवृत्ति बना दिया गया है।

वेल्झेर एकदम ठीक कह रहे हैं और यह प्रवृत्ति बनी रहेगी। इसकी वजह उपकरण का टूटना नहीं है, बल्कि कारपोरेशनों द्वारा रोज नई तकनीक विकसित करना है जो उपभोक्ताओं को हमेशा “अप टू डेट“ रहने को बाध्य करती है। पिछले एक दशक में पश्चिमी देशों के नागरिकों ने दुगने कपड़े खरीदना प्रारंभ कर दिया है। विश्व में आईकेईएकरण बहुत तेजी से घुसपैठ कर रहा है और ऐसे में उपभोक्ताओं को खुद पर शर्म आनी चाहिए। लेकिन लोग शर्मिंदा नहीं हैं।

राना प्लाजा के ध्वंस के एक वर्ष पश्चात प्रिमार्क जैसे ब्रांड तरक्की के घोड़े पर सवार हैं। यूरोप के फैशन जगत पर फतह के बाद अब वह अमेरिका के बोस्टन में सन् 2015 में अपना पहला स्टोर खोल रहा है। राना प्लाजा हादसे के ठीक एक वर्ष पश्चात एक पारंपरिक उपभोक्ता की सामान्य प्रतिक्रिया थी, “हम प्रिमार्क के अपने यहां आने से अभिभूत हैं। अब हमें 13 डॉलर में स्नीकर्स, 3 डॉलर में धूप का चश्मा और बीस डॉलर में स्विम सूट मिल जाएंगे। इस तरह के व्यवहार से रेहाना खातून और उसके जैसे अनेक कामगारों को कितनी चोट पहुंचेगी उसकी किसी को परवाह नहीं है।

इसके बावजूद अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन जोर दे रहा है कि “राना प्लाजा विश्व से बेहतर कार्यस्थितियों हेतु वैश्विक कार्यवाही की मांग कर रहा है।” इसके डायरेक्टर जनरल गाय रायडर ने बांग्लादेश हादसे के बाद कोपनहेगन में डेनमार्क सरकार द्वारा आयोजित “भविष्य की सोच“ कार्यक्रम में कहा था, “हम विश्व के कारखानों और कार्यस्थलों को कार्य हेतु सुरक्षित एवं सम्मानजनक बनाने हेतु भविष्य में होने वाले अन्य हादसों का इंतजार नहीं कर सकते।“ वास्तव में इस समस्या से तभी निपटा जा सकता है, जबकि उपभोक्ता उपरोक्त बातों का ध्यान रखें।

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