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उर्वरकों की उपयोग क्षमता बढ़ाए- भरपूर लाभ पाएं

सौरभ पाण्डेय
उर्वरकों का सही समय व सही तरीके से उपयोग निश्चित ही इसकी उपयोग क्षमता बढ़ाता हैं। परिस्थिति अनुसार व फसल अनुसार उर्वरक देने से उपज मे भारी वृद्धि होती हैं। फसल की आवश्यकता के तत्वों को फसल में देने का अलग - अलग समय निम्नानुसार हैं।

नाइट्रोजन :-


पौधों को नाइट्रोजन की आवश्यकता वृद्धि के आरम्भ मे कम वृद्धि के समय अधिक व वृद्धिकाल व परिपक्वता के समय के बीच कम होती। अत: नाइट्रोजन के उर्वरक की कुछ मात्रा बुआई के समय व शेष मात्रा वृद्धिकाल तक देते हैं। जो फसलें 4-5 महीने में पकती हैं उनको नाइट्रोजन की कुल मात्रा दो बार में, जो 9 - 12 महीने में पकती है 3-4 बार में और जो इससे अधिक समय खेत मे खड़ी रहती है जैसे गन्ने की अधसाली फसल, नाइट्रोजन की कुल मात्रा 4-5 बार में देते है। रेतीली मृदाओं मे नाइट्रोजन की मात्रा को कई बार में देना आवश्यक है।

फास्फोरस :-


पौधों में फास्फोरस की आवश्यकता प्रारम्भ में ही जड़ों की वृद्धि के लिये होती हैं। जब पौधे अपने कुल शुष्क भार का 1/3 हिस्सा तैयार कर लेते हैं। उस समय तक फास्फोरस की कुल आवश्यकता का 2/3 भाग मृदा से ग्रहण करते हैं। अत: फास्फोरस की कुल मात्रा फसल की बुआई के समय ही खेत मे देनी चाहिए।

पोटाश :-


यद्यपि पोटाश, यदि मृदा में उपलब्ध अवस्था में हैं तो, जब तक फसल की वृद्धि होती हैं। उसे ग्रहण करते रहते हैं। उपलब्ध पोटाश को फसलें आवश्यकता से अधिक ग्रहण कर लेती हैं। अधिक मात्रा जो पौधों द्वारा ग्रहण की जाती हैं। उससे पौधों की वृद्धि नहीं होती, अत: पोटाश को भी खेत में फसलों की बुआई के समय दे देना चाहिए।

जैबिक खाद :-


कम्पोस्ट व गोबर की खाद को फसल बोने से एक माह पूर्व ही खेत में डालते हैं। इन खादों को इसलिए पहले खेतों में डालते हैं, जिससे कि फसल के अंकुरण के समय तक इन खादों में उपस्थित पोषक तत्व उपलब्ध अवस्था में परिवर्तित हो जाये।

सूक्ष्म तत्व :-


विभिन्न सूक्ष्म तत्व जैसे लोहा, तांबा व जस्ता आदि को हमे पहले ही ज्ञात हैं। कि मृदा में इन तत्वों की कमी हैं, तो बुआई के समय, खेत में डाल देते हैं। या फिर जैसे ही फसलों में किसी तत्व विशेष की कमी के लक्षण दिखाई दें, इन तत्वों को खेत में छिड़क देते हैं।

खाद की मात्रा को निर्धारित करने वाले कारक



शस्य चक्र :-


फसल चक्र में यदि हरी खाद उगा रहें हैं या दलहनी फसल उगा रहें है, तो इसके बाद बाली फसलों को नाइट्रोजन के खादों की कम आवश्यकता हैं।

फसल की किस्म :-


अलग-अलग फसलों कि पोषक तत्व संबंधी आवश्यकता अलग-अलग होती हैं। उदाहरण के लियें दलहनी फसलों की नाइट्रोजन की आवश्यकता गेहूं या गन्नों की फसल की तुलना में कम होती हैं।

मृदा उर्वरता व गठन :- जो मृदाएं कमजोर अथवा कम उर्वरा होती हैं उन में अधिक खाद की आवश्यकता होती हैं। जैसे बलुई भूमियों में दोमट मृदाओं की अपेक्षा एक ही फसल को अधिक खाद देना पड़ता हैं। खरपतवार का प्रकोप :- यदि खेत में खरपतवारों का प्रकोप अधिक हैं, तो फसल की खाद संबंधी आवश्यकता बढ़ जाती हैं।मृदा में नमी की मात्रा :- मृदा में नमी की मात्रा कम है और सिंचाई के साधन भी उपलब्ध नहीं हैं तो भूमि में खाद की मात्रा भी कम दी जाती है। खाद की किस्म :- एक ही तत्व को खेत में देने के लिये, बाजार में कई एक उर्वरक उपलब्ध होते हैं। जिन खादों में तत्व की प्रतिशतता अधिक होती हैं। उनकी मात्रा कम करते हैं। मौसम :- शुष्क मौसम होने पर खेत में उर्वरक की कम मात्रा प्रयोग की जाती है। अधिक वर्षा वालें क्षेत्र में खाद तत्व उद्वीपन से या अपधावन द्वारा अधिक नष्ट होते हैं। खाद देने की विधि:- खाद देने की विधि भी खाद की मात्रा को कम या अधिक करती है। उदाहरण के लिए हम खेत में नाइट्रोजन देने के लिए यूरिया उर्वरक के घोल का छिड़काव करें, तो फसल की आवश्यकता पूर्ति के लिए कम खाद की आवश्यकता होगी और यदि खाद ठोस रूप में मृदा में बिखेर दी जाये तो इसकी अधिक मात्रा की आवश्यकता होगी। यूरिया को हलकी नम मिट्टी के साथ रात भर मिला कर रखें तथा दूसरे दिन मिट्टी का छिड़काव करें।

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