उत्तर और दक्षिण की नदियों का संगम

22 Feb 2016
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हिमालय क्षेत्र की नदियों का विकास और दक्षिण की नदियों का विकास, राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के दो मुख्य भाग हैं। राष्ट्रीय योजना का उद्देश्य देश की विभिन्न नदियों के जलस्रोतों का अधिकतम उपयोग करना है, ताकि पानी की कमी वाले और सूखा पीड़ित क्षेत्रों को सिंचाई सुविधाएँ प्रदान की जा सकें और इन क्षेत्रों में पेयजल की आपूर्ति बढ़ाई जा सके। इस योजना का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है- अधिक जल वाली नदियों को कम जल वाली नदियों से जोड़ना। इस सम्बन्ध में जो पूर्व-व्यावहारिकता रिपोर्ट तैयार की गई है, वह अत्यन्त उत्साहवर्द्धक है। तथापि, इस विषय में सभी सम्बन्धित राज्यों का सहयोग भी समान रूप से महत्त्वपूर्ण है। देश में खाद्यान्नों, चारे, रेशों और ऊर्जा की बढ़ती हुई माँग को पूरा करने के लिये यह जरूरी है कि हमारे जल संसाधनों का इस तरह उपयोग किया जाये कि वे सदैव हमारे काम आ सकें। इस सम्बन्ध में अनेक योजनाएँ बनाई जा चुकी हैं। इस तरह की एक प्रमुख योजना है जल संसाधनों के अधिकतम उपयोग के लिये देश की विभिन्न नदी-नालों के जल संसाधन विकास को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना। इस योजना के परिणामस्वरूप न केवल जल की कमी वाले और सूखा पीड़ित क्षेत्रों को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होगी तथा उन्हें मिलने वाले पेयजल की मात्रा में भी वृद्धि होगी; बल्कि यह कल्याणकारी राज्य के आदर्शों को पूरा करने के भी साधन बनेगी। इससे सकल खपत में वृद्धि होगी, राष्ट्रीय सम्पदा का पुनर्वितरण होगा और क्षेत्रीय असन्तुलन दूर होगा। इससे न केवल राष्ट्र को आत्मनिर्भर बनने में सहायता मिलेगी बल्कि रोजगार की सम्भावनाएँ और निर्यात के अनेक अवसर भी पैदा होंगे। वर्तमान आर्थिक उदारीकरण के परिदृश्य में पनबिजली की विशाल सम्भावनाओं और अन्तर्देशीय जल मार्ग के उपयोग से उद्योगों और कृषि के विकास के लिये आधारभूत ढाँचे में बढ़ोत्तरी होगी।

इस सम्बन्ध में डॉ. के.एल. राव और कैप्टन दस्तूर द्वारा तैयार दो भव्य योजनाओं पर सावधानीपूर्वक विचार किया गया। इसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के रूप में एक अधिक व्यावहारिक योजना बनाई गई। इस योजना में न केवल बिजली उत्पादन के लिये संग्रह बाँधों के निर्माण की व्यवस्था है बल्कि इस सम्भावना को भी प्रकट किया गया है कि नदियों का फालतू पानी देश के पानी की कमी वाले इलाकों में भेजा जाये। राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना दो मुख्य भागों में विभाजित की गई है: हिमालय क्षेत्र की नदियों का विकास और दक्षिण की नदियों का विकास।

हिमालय क्षेत्र की नदियों का विकास


हिमालय क्षेत्र की नदियों के विकास की योजना में इस बात का ध्यान रखा गया है कि भारत और नेपाल में गंगा (मुख्यधारा) और ब्रह्मपुत्र नदियों और उनकी सहायक नदियों में जल संग्रह के लिये बाँध बनाए जाएँ। इसी के साथ उनमें सम्पर्क नहरों का निर्माण किया जाये, जिससे गंगा की पूर्वी सहायक नदियों का फालतू पानी देश के पश्चिमी भागों में पहुँचाया जा सके। इसमें यह भी व्यवस्था है कि ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों को गंगा के साथ जोड़ दिया जाये और इस प्रकार उपलब्ध फालतू पानी को सम्पर्क नहरों के जरिए सुवर्णरेखा और महानदी से जोड़कर सुदूर दक्षिण में पहुँचा दिया जाये। अनुमान है अगर हिमालय क्षेत्र की नदियों के पानी के उपयोग का हिस्सा पूरा हो गया तो लगभग 2 करोड़ 20 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि को सिंचाई सुविधा मिलेगी और 30,000 मेगावाट बिजली तैयार होगी। इसके अलावा इससे गंगा और ब्रह्मपुत्र के थाले के काफी बड़े इलाके को बाढ़ से राहत मिलेगी। इससे कलकत्ता बन्दरगाह के समीप की गाद को बहाने और इस क्षेत्र की अन्तर्देशीय परिवहन व्यवस्था के लिये भी काफी पानी उपलब्ध होगा।

दक्षिण की नदियों का विकास


दक्षिण की नदियों के विकास की योजना के अन्तर्गत महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों को आपस में जोड़ दिया जाएगा। इन नदियों में उपयुक्त स्थानों पर बाँध बनाकर जल संग्रह की व्यवस्था की जाएगी। दक्षिण की नदियों के विकास की योजना में बम्बई के उत्तर में और तापी के पश्चिम में पश्चिम दिशा की ओर बहने वाली नदियों को नर्मदा परियोजना से जोड़कर महानगर बम्बई और गुजरात के कच्छ और सौराष्ट्र क्षेत्रों में पीने के पानी की सुविधा उपलब्ध कराने की भी व्यवस्था है। यह भी प्रस्ताव है कि मध्य प्रदेश के पानी की कमी वाले और पिछड़े मालवा और बुन्देलखण्ड क्षेत्रों को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने के लिये केन, बेतवा, काली सिंध और चम्बल नदियों को जोड़ दिया जाएगा। इस योजना के पूरा हो जाने के बाद उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश में 1 करोड़ 30 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि को सिंचाई सुविधा मिलने लगेगी और 4,000 मेगावाट पनबिजली का उत्पादन होने लगेगा।

विशेष अध्ययन


राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के दक्षिण की नदियों के विकास सम्बन्धी भाग के विभिन्न प्रस्तावों का वैज्ञानिक और यथार्थवादी आधार पर विस्तृत अध्ययन करने और यह सिद्ध करने के लिये राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के प्रस्ताव व्यावहारिक हैं, 1982 में जल संसाधन मंत्रालय में एक स्वायत्तशासी संगठन के रूप में राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी की स्थापना की गई थी। 1990-91 में राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी को हिमालय नदी विकास निगम के लिये व्यवहार्यता रिपोर्ट तैयार करने का काम सौंपा गया। दक्षिण की नदियों की जल क्षमता आदि के बारे में रिपोर्ट लगभग तैयार हैं। हिमालय क्षेत्र की नदियों की रिपोर्ट प्रारम्भिक चरण में हैं।

दक्षिण की नदियों के थालों और उपथालों में उपलब्ध फालतू पानी का अनुमान लगाते समय जिन महत्त्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखा गया है, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

1. जनसंख्या का हिसाब वर्ष 2025 को लेकर और पीने के पानी की आवश्यकता का हिसाब राष्ट्रीय मापदंडों के अनुसार लगाया गया है।
2. पनबिजली, उद्योगों और पशुओं के लिये पानी की आवश्यकता का हिसाब राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी की तकनीकी सलाहकार समिति द्वारा निर्धारित मानदण्डों के अनुसार लगाया गया है।
3. राज्यों की वर्तमान सिंचाई परियोजनाएँ अन्ततः सिंचाई विकास का उचित मूल्यांकन करती हैं। अतः सिंचाई की माँग का हिसाब लगाते समय उन्हें स्वीकार कर लिया गया है।
4. अगर राज्य की सिंचाई की वार्षिक योजना के अनुसार किसी फालतू पानी वाले थाले/उपथाले में सतही पानी की मात्रा खेती योग्य 60 प्रतिशत भूमि से कम है तो उसे बढ़ाकर 60 प्रतिशत कर दिया गया है।

5. इसी प्रकार अगर राज्य की सिंचाई की वार्षिक योजना के अनुसार पानी की कमी वाले थाले/उपथाले में सतही पानी की मात्रा खेती योग्य भूमि के 30 प्रतिशत से कम है तो उसे बढ़ाकर 30 प्रतिशत कर दिया गया है।

6. वर्तमान और चल रही परियोजनाओं की जल आवश्यकताएँ वही रह गई हैं जबकि भावी परियोजनाओं का जल अनुमान तर्कसंगत फसलों के क्रम के साथ मौसम सम्बन्धी दृष्टिकोण पर आधारित है।
7. भावी बड़ी, मझोली और गौण सतही सिंचाई परियोजनाओं की फसलों की सघनता क्रमशः 150 प्रतिशत, 125 प्रतिशत और 100 प्रतिशत रखी गई है।
8. अधिक तीव्रीकरण के लिये भूमिगत जल और सतही जल का संयुक्त उपयोग करना वांछनीय होगा ताकि इसे जारी रखना सुनिश्चित हो सके और जलाक्रांति और खारापन से होने वाला नुकसान न हो।

जल की उपलब्धता के बारे में महानदी, गोदावरी, कृष्णा, पेनार और कावेरी उपथालों के जो अध्ययन किये गए हैं, उनसे पता चलता है कि महानदी और गोदावरी थाले में जल की वर्तमान चल रही और प्रस्तावित माँग को पूरा करने के बाद काफी जल उपलब्ध है। अध्ययन से यह भी पता चलता है कि कृष्णा, पेनार, पल्लर और कावेरी थालों में उनकी वर्तमान में चल रही और प्रस्तावित माँगों को देखते हुए जल की कमी है। इन नदियों में जल की कमी को पूरा करने का एक मात्र तरीका यह है कि फालतू जल वाली नदियों को कम जल वाली नदियों से जोड़ दिया जाये। नदियों को आपस में जोड़ने के प्रस्ताव में यह व्यवस्था है कि महानदी- गोदावरी को, गोदावरी-कृष्णा को, कृष्णा-पेनार को और पेनार-कावेरी को आपस में जोड़ दिया जाये।

महानदी-कावेरी सम्पर्क


महानदी-गोदावरी सम्पर्क के पूर्व-व्यवहार्यता स्तर के अध्ययनों से पता चलता है कि महानदी में 75 प्रतिशत निर्भरता पर 11,6000 घन मीटर और 50 प्रतिशत निर्भरता पर 2,57,000 घन मीटर फालतू जल है। प्रस्ताव है कि इस फालतू जल में से 80,000 घन मीटर जल महानदी थाले से गोदावरी में मिला दिया जाये। यह जल सम्पर्क नदी द्वारा मार्ग में रूसीकुल्य तक उड़ीसा क्षेत्र की आवश्यकता पूरी करेगा। मणिभद्र में प्रस्तावित बाँध में 1,50,000 घन मीटर जल एकत्र करने की योजना है। यह जल महानदी के निचले थाले और गोदावरी थाले की आवश्यकता पूरी करेगा और रास्ते में सिंचाई करेगा। अनुमान है कि महानदी गोदावरी सम्पर्क से महानदी और रूसीकुल्य के बीच 3.5 लाख हेक्टेयर भूमि की ओर रूसीकुल्य से आगे एक लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होगी जिसमें प्रतिवर्ष कुल मिलाकर 38,500 घन मीटर जल का उपयोग होगा मणिभद्र सरोवर से 74.0 मीटर एफएसएल पर शुरू होने वाली यह सम्पर्क नहर लगभग 77 किलोमीटर तक दक्षिण-पूर्व दिशा की ओर मुड़ती है और फिर दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर मुड़ जाती है और लगभग समुद्र तट के समानान्तर बढ़ती है। यह दोलेश्वरम बाँध पर गोदावरी में गिरती है। महानदी और गोदावरी के बीच इस नहर की कुल लम्बाई 932 किलोमीटर है। इसमें पाँच किलोमीटर लम्बी सुरंग शामिल है। इस नहर को पूरी लम्बाई तक सीमेंट कंकरीट से पक्का किया जाएगा। इसकी चौड़ाई शुरू में 57 मीटर होगी जो अन्त में घटकर 37 मीटर रह जाएगी। इसकी गहराई सर्वत्र 7 मीटर होगी। यह नहर उड़ीसा के पुरी और गंजाम जिलों में होकर और आन्ध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम, विजयनगर, विशाखापट्टनम और पूर्व गोदावरी जिलों में होकर आगे बढ़ती है। यह नहर अनेक नदियों और नालों को पार करती है जो पूर्वी घाट के पानी को बंगाल की खाड़ी में पहुँचाते हैं। इस नहर के रास्ते में पड़ने वाली प्रमुख नदियाँ हैं: रूसीकुल्य, बहुदा, वंशधारा, नागवली, चम्पावटी, गोस्थनी, शारदा, वाराह, तांडव और एलेरू। क्योंकि इन नदियों में जल का प्रवाह अपर्याप्त है अथवा केवल इन नदियों के थालों की आवश्यकता पूरी कर सकता है। प्रस्ताव है कि इन नदियों से सम्पर्क नहर में कोई पानी न लिया जाये। इस नहर के मार्ग में 82 सड़क पुल, आठ रेलवे पुल और 24 प्रमुख जल निकासी नाले पड़ते हैं। अनुमान है कि इस सम्पर्क परियोजना पर लगभग 3,600 करोड़ रुपए (1990 के मूल्यों पर) लागत आएगी जैसे कि नीचे निर्दिष्ट किया गया है:

बाँध और सम्बद्ध कार्य- 783 करोड़ रु.
सम्पर्क नहर और इमारतें- 2673 करोड़ रु.
सिंचित क्षेत्र में विकास कार्य- 160 करोड़ रु.

परियोजना लाभ


प्रस्तावित महानदी-गोदावरी सम्पर्क नहर से रूसीकुल्य और महानदी के मध्य महानदी, रूसीकुल्य और अन्य नदियों के निचले इलाकों में प्रतिवर्ष 10.6 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होगी।

परियोजना के निर्माण से पूर्व और बाद की ओर उस लगाए गए धन आदि पर विचार करने के बाद इससे प्रतिवर्ष कृषि क्षेत्र में 678 करोड़ रुपए की आय होगी। सिंचाई सुविधाओं के लाभ के अलावा जिनका काफी विस्तार हो जाएगा। इस परियोजना के परिणामस्वरूप काफी अतिरिक्त पनबिजली का उत्पादन होगा, व्यापक क्षेत्र का बाढ़ से बचाव होगा और अन्तर्देशीय जल परिवहन सुविधाओं में वृद्धि होगी। प्रस्तावित सम्पर्क से होने वाले अन्य लाभों में शामिल हैं- कृषि आधारित उद्योगों का विकास, रोजगार के अतिरिक्त अवसर और महानदी से गोदावरी तक की समस्त तटीय पट्टी का सामाजिक-आर्थिक विकास। इस प्रस्ताव के परिणामस्वरूप गोदावरी के थाले में लगभग 65,000 घन मीटर जल पहुँचेगा। इस जल को गोदावरी के फालतू पानी के साथ कृष्णा, पेनार और कावेरी के जल की कमी वाले थालों में पहुँचाया जा सकता है। 10 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से अनुमानित लागत पर लाभ लागत का अनुपात 1.64 निकलता है जो 11.3 प्रतिशत आन्तरिक लाभ दर के बराबर है। जैसा कि स्पष्ट है महानदी-गोदावरी सम्पर्क राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के भाग के रूप में प्रायद्वीपीय नदी विकास का महत्त्वपूर्ण अंग है। इससे महानदी का जल गोदावरी और फिर कृष्णा और पेनार थालों में होकर कावेरी में पहुँचेगा। इसी तरह के तकनीकी-आर्थिक अध्ययन अन्य नदी सम्पर्कों के लिये किये गए हैं।

हिमालय क्षेत्र की नदियों के जल का पूरा उपयोग


अगर ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियों को गंगा नदी से जोड़ दिया जाये और गंगा का फालतू पानी दामोदर, सुवर्णरेखा के जरिए महानदी में मिला दिया जाये तो महानदी से दक्षिण क्षेत्र को पहुँचाए जाने वाले जल की मात्रा में काफी वृद्धि की जा सकती है। इस सम्बन्ध में अध्ययन पहले ही किये जा चुके हैं। महानदी में उपलब्ध फालतू जल की मात्रा बढ़ाए जाने पर महानदी से गोदावरी और गोदावरी से कावेरी तक की सम्पूर्ण तटीय पट्टी को पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध कराया जा सकता है। इस प्रकार जब हिमालय क्षेत्र की नदियों को प्रस्तावित सम्पर्क नहरों के जरिए दक्षिण क्षेत्र की नदियों से मिला दिया जाएगा, समस्त पूर्वी क्षेत्र में हरित क्रान्ति का युग शुरू होगा और इस क्षेत्र से अभाव और गरीबी का निष्कासन हो जाएगा।

निष्कर्ष


राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी द्वारा दक्षिण की नदियों पर किये गए अध्ययनों से पता चलता है कि जहाँ महानदी और गोदावरी नदियों में सिंचाई इत्यादि की व्यवस्था के बाद पर्याप्त पानी बचता है, कृष्णा, पेनार, कावेरी, बेगई और पूर्व की ओर बहने वाली कई छोटी नदियों में आवश्यकता से कम पानी है। इनमें से कुछ नदियों के जल का इस समय पूरा उपयोग किया जा रहा है फिर भी इन थालों की 60 प्रतिशत से अधिक कृषि भूमि को सिंचाई की सुविधा प्राप्त नहीं है। भविष्य में इस स्थिति के और बिगड़ने की आशंका है, क्योंकि पेयजल के साथ विभिन्न प्रयोजनों के लिये जल की माँग में वृद्धि की पूरी सम्भावना है।

गोदावरी तथा महानदी और अन्ततः गंगा और ब्रह्मपुत्र के थाले से, जहाँ आवश्यकता से अधिक जल है, फालतू जल को दक्षिण क्षेत्र से पानी की कमी वाले क्षेत्रों में पहुँचाकर उनकी जल की भावी माँग पूरी की जा सकती है। विभिन्न जल सम्पर्कों के पूर्व व्यवहार्यता अध्ययन से पता चलता है कि ये प्रस्ताव न केवल तकनीकी-आर्थिक दृष्टि से लाभप्रद हैं बल्कि इनसे बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर पैदा होंगे, सामाजिक न्याय का मार्ग प्रशस्त होगा और ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति में सुधार होगा। जल की उपलब्धता से उड़ीसा से तमिलनाडु तक के सम्पूर्ण पूर्वी क्षेत्र में हरित क्रान्ति शुरू होगी। जब दक्षिण के पूर्वी तट के जल की कमी से पीड़ित क्षेत्रों को पर्याप्त जल मिलेगा, इन क्षेत्रों के ऊपरी जल ग्रहण क्षेत्र अधिक जल का उपयोग कर सकेंगे। इस तरह न केवल नदियों के निचले और ऊपरी क्षेत्रों को बल्कि सम्पूर्ण क्षेत्र को विकास के लाभ प्राप्त होंगे। अतः सभी सम्बद्ध राज्यों को राष्ट्र की प्रगति और समृद्धि के इस प्रयास में सहयोग करना चाहिए।

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