उत्तराखंड के लिए गम्भीर खतरा हैं जल विद्युत परियोजनाएं

21 Feb 2011
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देश के पहाड़ी राज्यों, खासकर उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में आजकल जल विद्युत परियोजनाओं की जैसे भरमार हो गई है।
जल विद्युत परियोजनाजल विद्युत परियोजनाइस समय केवल उत्तराखंड में पांच सौ से अधिक राष्ट्रीय एवं बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की परियोजनाओं पर कार्य चल रहा है। इन सभी परियोजनाओं को उत्तराखंड सरकार की पूर्ण मंजूरी के बाद ही चलाया जा रहा है। पर शायद सरकार अभी तक इन परियोजनाओं से उत्तराखंड के ग्रामीणों के समक्ष होने वाले संकट को नहीं समझ पा रही है।

इन सभी परियोजनाओं से सीधे तौर पर यहां की आम गरीब जनता को नुकसान हो रहा है। साथ ही पर्यावरण को जो नुकसान हो रहा है वह तो अभी अलग ही है। जबकि इन परियोजनाओं को अंजाम देने वाली कम्पनियों और संस्थाओं को केवल अपने लाभ से मतलब है, चाहे वे इसके लिए किसी का घर उजाड़ दें, या डायनामाइट लगाकर कई गांवों के मकानों में दरारें पैदा कर दें। एक आम इंसान जब घर बनाता है तो उसकी कितनी मेहनत और जीवन भर की कमाई उसमें लग जाती है, इसका अंदाजा उसको ही पूर्ण रूप से होता है। पर यदि उसका बनाया हुआ घर एक साल में ही जगह-जगह दरार प्रभावित हो जाए तो उस पर क्या बीतेगी? इसका अनुमान उत्तराखंड सरकार को नहीं हो पा रहा है।

अगर यह किसी की कही बात होती तो शायद हम यकीन नहीं कर पाते, पर हमने खुद जाकर देखा है कि इन इलाकों में कैसे एक साल पुराने मकानों में भी दरारें आ चुकी हैं। कारण सिर्फ और सिर्फ एक है- टनल बनाने के लिए चटटनों में जो डायनामाइट से विस्फोट किया जाता है वही इन मकानों को खतरनाक हालात की तरफ धकेल रहा है। साथ ही इस कार्य से खेती, जंगल, पीने के पानी तथा आम लोगों की आजीविका को जो नुकसान हो रहा है वह तो अलग है। परंतु सरकार है कि चुप्पी तोड़ने को तैयार नहीं।

पिछले दिनों मंदाकिनी नदी को बचाने के लिए आंदोलन कर रहे लगभग 70 ग्रामीणों पर गलत मुकदमें दर्ज करके सरकार ने सभी को जेल में डाल दिया। यह घटना सभी को आश्चर्य में डाल सकती है क्योंकि एक तरफ जहां सरकार पर्यावरण सुरक्षा का राग अलापती है और गंगा को बचाने के लिए उसे 'राष्ट्रीय नदी' घोषित करती है, वहीं दूसरी तरफ उसकी सहायक नदी- मंदाकिनी को बचाने को अपराध मानती है और इस सोच के तहत, नदी बचाव के लिए आंदोलन करने वाली ग्रामीण महिला सुशीला भंडारी एवं जगमोहन सहित 70 ग्रामीणों को अपराधी घोषित करती है। ये वे लोग हैं जो पिछले पांच वर्षों से मंदाकिनी नदी और क्षेत्र में पर्यावरण का स्वास्थ्य बचाने के लिए कार्यरत हैं।

आज के समय में उत्तराखंड के अधिकतर गांवों की प्राकृतिक सुंदरता खत्म होती जा रही है। इंसान की हर मूल जरूरत की व्यवस्था जैसे पानी, जंगल, फल, कृषि इत्यादि का लगभग अंत होता जा रहा है। और इन सभी का कारण सरकार द्वारा विकसित की जा रही परियोजनाएं हैं। इस समय उत्तराखंड की कोई भी छोटी या बड़ी नदी ऐसी नहीं है जिस पर कोई परियोजना न चल रही हो। जिस आम इंसान की मदद से नेतागण अपनी सरकार बनाते हैं उसी के लिए सरकारें इतनी लाचार क्यों हो जाती हैं, यह बात उत्तराखंड की आम जनता अभी तक नहीं समझ पा रही है।

सरकार बनाते वक्त नेतागण पर्यावरण को बचाने के लिए तमाम तरह की प्रतिबद्धताएं दर्शाते हैं; पर उनको व्यवहार में लाने के समय सारी प्रतिबद्धताएं भूल जाते हैं। अब तो उत्तराखंड की जनता को अपनी कृषि और खेतों को बचाने के लिए भी जबरदस्त मेहनत करनी पड़ रही है, क्योंकि दिन प्रति दिन प्राकृतिक जंगलों में कमी की वजह से जंगली जानवर जैसे- सुअर, बंदर, तथा और भी कई प्रकार के जंगली जानवर अपना पेट भरने के लिए किसानों के खेतों में चले आते हैं। पहले वे प्राकृतिक संसाधनों से अपना काम चला लेते थे पर अब ऐसा नहीं रह गया है। इस समस्या से भी निपटना भी इस समय उत्तराखंड के किसानों के लिए एक चुनौती बन गया है। इन सभी के बीच नुकसान केवल आम इंसान का हो रहा है और अब सरकार को इस पर गम्भीर होने की सख्त आवश्यकता है।
 

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