विदर्भ की ताप-बिजली परियोजनाओं की पुर्नसमीक्षा होगी

4 Jul 2011
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9 अप्रैल को चौथी दुनिया के महाराष्ट्र संस्करण के विमोचन के तीन पखवाड़े के भीतर ही अखबार की विशेष रिपोर्ट्स ने कमाल दिखाना शुरू कर दिया। विदर्भ में पानी की कमी, सिंचाई के बैकलाग और ताप-बिजली परियोजनाओं की दी जा रही मंजूरी से भविष्य में होने वाले परिणामों को लगातार अमरावती के लोग अब प्यासे मरेंगे, पानी पर अधिकार किसका-उद्योगों का या खेतों का, सरकार नहीं जानती विकास क्या है, शीर्षक के अंतर्गत प्रकाशित किया गया। चौथी दुनिया-महाराष्ट्र के प्रथम अंक में भी विदर्भः सावधान यह सुसाइड जोन है, में विदर्भ में पानी की किल्लत को लेकर प्रकाश डाला गया। डेढ़ माह के भीतर ही हलचल हुई और हाल में यवतमाल में हुई पानी परिषद में विदर्भ के कांग्रेस नेताओं ने इस क्षेत्र में ताप-बिजली घरों को अंधाधुंध स्वीकृति दिए जाने को लेकर सवाल खड़े कर दिए। इस परिषद में केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद, मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने शिरकत की। दोबारा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने माणिकराव ठाकरे ने इसका आयोजन किया था। हालांकि राजनीतिक हलकों में इस परिषद के कई अन्य मायने भी सामने लाए गए, लेकिन एक बात साफ थी कि विदर्भ में भविष्य में पानी की संभावित किल्लत पर पहली बार एक सुर में चिंता जताई गई।

चौथी दुनिया ने अपनी रिपोर्ट्स में आंकड़ों का हवाला देते हुए लगातार इस बात पर सरकार और जन प्रतिनिधियों का ध्यान आकर्षित किया कि विदर्भ में बड़ी संख्या में ताप-बिजली परियोजनाओं को मंजूरी देना गलत है। अमरावती के लोग अब प्यासे मरेंगे, शीर्षक के अंतर्गत अमरावती में पानी की उपलब्धता और उसके औद्योगिक उपयोग पर खासा ध्यान केंद्रित किया गया था। यवतमाल के पानी परिषद में कांग्रेस के स्थानीय सांसदों, मंत्रियों ने विदर्भ में स्वीकृत की गईं ताप-बिजली परियोजनाओं और सिंचाई का पानी उद्योगों को दिए जाने पर खुल कर नाराजगी व्यक्त की। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि अब नई नीति बनाते समय किसानों की आवश्यकताओं का ज्यादा ध्यान रखा जाएगा। किसी भी उद्योग की स्थापना के लिए उस क्षेत्र में संसाधनों की उपलब्धता का अध्ययन किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि भविष्य में उद्योगों की बजाय किसानों को अधिक महत्व दिया जाएगा। यह भरोसा भी दिलाया कि पहले खेतों को पानी दिया जाएगा। उसके बाद ही बिजली परियोजनाओं को जलापूर्ति की जाएगी। पानी का वितरण न्याय पद्धति और जन सुनवाई के माध्यम से किया जाएगा।

केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सलमान खुर्शीद ने भी विदर्भ के जल संसाधन के मनमानी दुरुपयोग पर टिप्पणी की और कहा कि जल्द ही नई दिल्ली में इस संबंध में चर्चा की जाएगी। खुर्शीद ने चौथी दुनिया की चिंता का भी समाधान यह कहते हुए किया कि पानी पर सबका अधिकार है। उन्होंने कहा कि वह आलाकमान को विदर्भ की सच्चाई से अवगत कराएंगे। यवतमाल जिले के पालक मंत्री नितिन राउत ने तो इस परिषद को नए आंदोलन का सूत्रपात बताते हुए कहा कि ताप-बिजली परियोजनाओं को सिंचाई व पीने के पानी का हिस्सा नहीं दिया जा सकता। राउत इस मामले में खासे उत्तेजित नजर आए। उन्होंने किसी का नाम न लेते हुए विदर्भ में अनाप-शनाप ताप-बिजली परियोजनाओं को स्वीकृति देने के पीछे जल संसाधन विभाग और ऊर्जा मंत्रालय को जिम्मेदार ठहरा दिया। अप्रत्यक्ष रूप से अमरावती के अपर वर्धा परियोजना पर नितिन राउत की टिप्पणी थी कि प्रधानमंत्री पैकेज के तहत बनी सिंचाई परियोजनाओं का पानी उद्योगों को नहीं दिया जा सकता। उनके साथ ही महाराष्ट्र के जल संसाधन राज्य मंत्री राजेंद्र मुलक ने तो कार्यक्रम के बाद मीडिया से चर्चा करते हुए कह दिया कि किसी भी क्षेत्र में ऊर्जा या ढांचागत परियोजना लगाने के पहले वहां की पर्यावरणीय निरंतरता (इन्वायरमेंटल सस्टेनेबिलिटी) पर विचार किया जाना चाहिए।

कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष माणिकराव ठाकरे ने भी अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि राज्य के कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि विदर्भ के लोगों को पानी का मतलब नहीं समझता है। सांसद दत्ताजी मेघे ने विदर्भ के सिंचाई के लिए प्रधानमंत्री पैकेज के लिए मिले 2 हजार करोड़ रुपए का हिसाब नहीं होने की बात कही। इसके लिए उन्होंने आंदोलन की चेतावनी भी दी। विधान परिषद के पूर्व सदस्य बीटी देशमुख ने पानी के लिए लगातार संघर्ष करते रहने की मंशा दोहराई। सिंचाई परियोजनाओं से ताप-बिजली घरों को पानी देने के संबंध में भी चौथी दुनिया ने चिंता व्यक्त की थी। पिछली रिपोर्ट में कहा गया था कि सोफिया का विरोध कर रहे लोगों की मांग है कि अमरावती जिले में पेयजल की व्यवस्था, संपूर्ण महाराष्ट्र की सिंचाई क्षमता और सरकारी नियमानुसार उद्योगों के लिए 10 प्रतिशत जल प्रदान करने और कृषि आधारित उद्योगों को जलप्रदाय सुनिश्चित करने के लिए अमरावती जिले में तहसीलवार पानी का ऑडिट किया जाना चाहिए। वर्तमान में अमरावती में अपर वर्धा, शहानूर, चंद्रभागा, चारगढ, पूर्णा और अन्य छोटे-मोटे तालाबों से 112.75 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी दिया जा रहा है। फिर भी गांवों में लोगों को पानी नहीं मिल पा रहा है।

जिले में 472 गांवों में पानी की किल्लत है। इनमें से 25 गांवों में तो ग्रीष्मकाल में टैंकर द्वारा पानी पहुंचाना पड़ता है। जल संसाधन विभाग की रिपोर्ट के अनुसार अब तक बनाए गए जल प्रकल्पों से जून 2009 तक पश्चिम महाराष्ट्र के कोल्हापुर में 230.22 प्रतिशत, सांगली में 107.35 प्रतिशत, पुणे में 76.99 प्रतिशत, सतारा में 82.57 प्रतिशत तथा सोलापुर में 66.88 प्रतिशत सिंचाई क्षमता निर्मित की गई है, जबकि अमरावती संभाग के किसी भी जिले में यह क्षमता 25 फीसदी का आंकड़ा भी नहीं छू सकी है। यवतमाल जिले में जरूर 35.32 फीसदी सिंचाई क्षमता विकसित करने का सरकारी दावा है। महाराष्ट्र की अनुमानित औसत सिंचाई क्षमता 56.14 फीसदी है। अमरावती जिले का सिंचाई बैकलाग वैसे भी पूरे राज्य में सबसे अधिक है। यहां जून 2009 तक की जानकारी के अनुसार 243440 हेक्टेयर में अभी भी सिंचाई की व्यवस्था नहीं है। इसके बावजूद अमरावती में सिंचाई की जगह पानी उद्योगों को देना सवालिया निशान ही खड़ा करता है।

विदर्भ में जल भंडारण की परियोजनाओं और अन्य स्रोतों से कोयला आधारित उद्योगों के साथ ही उद्योगों को मिलियन क्यूबिक मीटर पानी दिया जाता है। उद्योगों को पानी गोसीखुर्द, अपर वर्धा, निम्न वर्धा, निम्न वेणा, दिंडोरा बैरेज, चारगांव प्रकल्प, पेंच प्रकल्प, कोची बैरेज, धापेवाड़ा चरण, बेंबला जलाशय, निम्न पैनगंगा परियोजना और वर्धा, वैनगंगा, हुमन, कन्हान, धाम, वेणा नदी के तट से दिया जाता है। पेयजल की समस्या विकट है। अब बात प्रदूषण की, छत्तीसगढ़ के कोरबा, अमरावती के नजदीक चंद्रपुर में ताप विद्युत परियोजनाओं का अनुभव अच्छा नहीं है। यहां चिमनियों से उड़ती राख पूरे क्षेत्र को ही अपनी आगोश में ले लेती है। यही कारण है कि कोरबा, चंद्रपुर जैसे शहर देश के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है।

 

 

सोफिया फिर निशाने पर


परिषद के बाद सांसद विलास मुत्तेमवार ने चौथी दुनिया से चर्चा करते हुए कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री को अपनी भावनाओं और विदर्भ के जल संसाधन की हो रही मनमानी से अवगत कराया। मुख्यमंत्री ने भी अपने भाषण में इस ओर ध्यान देने की इच्छा जताई। अमरावती जिले की अपर वर्धा सिंचाई परियोजना का पानी उद्योगों को दिए जाने पर भी मुत्तेमवार ने सवाल खड़े किए। मुत्तेमवार ने साफ कहा कि विदर्भ में पानी की कमी को देखते हुए प्रधानमंत्री पैकेज से सिंचाई परियोजना पूरी हुई और जो पानी मिला, उसे भी उद्योगों को दे दिया गया।

विदर्भ के राख के ढेर पर होने के सवाल पर मुत्तेमवार ने कहा कि ताप-बिजली परियोजना के चलते विदर्भ का चंद्रपुर शहर पहले प्रदूषण के मामले में देश में चौथे नंबर पर था। अब इसका प्रमोशन हो गया है और वह पहले नंबर पर आ गया है। पहले विदर्भ में ताप-बिजली परियोजनाएं इसलिए आईं कि यहां कोयले का भंडार है। अब जो परियोजनाएं आ रही हैं उनके लिए कोयला बाहर से लिया जाएगा। पहले कोयला भी हमारा था। अब पानी हमारा, जमीन हमारी और प्रदूषण भी हमारा होगा। बता दें कि अमरावती के औद्योगिक क्षेत्र में निर्माणाधीन सोफिया पावर कंपनी को इसी अपर वर्धा डैम से पानी दिया जा रहा है। मुख्यमंत्री ने भी जल परिषद में आश्वासन दिया कि सिंचाई परियोजनाओं का पानी ताप-बिजली घरों को दिए जाने का विरोध हो रहा है। इस कारण अब यह सुनिश्चित किया जाएगा कि इस प्रकार की परियोजनाओं को एक ही क्षेत्र विशेष में अनुमति न दी जाए।

 

 

 

 

चौथी दुनिया के मुद्दे उठाए थे


• बिजली की कमी का रोना ठीक है। बिजली मिल जाएगी, परंतु सरकार पानी कहां से लाएगी।
• उद्योगों को पानी देने के लिए पूरे राज्य में पानी का ऑडिट होना चाहिए।
• विदर्भ में पानी की कमी है। सरप्लस बिजली का उत्पादन होता है। फिर यहां पानी पर आधारित बिजली परियोजनाओं को मंजूरी क्यों दी जा रही है।
• पानी वितरण का अधिकार किसे होना चाहिए?
• पानी वितरण के तरीके क्या होने चाहिए?
• पानी पर पहला अधिकार किसका है?
• जब महाराष्ट्र जल प्राधिकरण की स्थापना कर दी गई तो उच्चाधिकार समिति को पानी वितरण का अधिकार क्यों दिया गया?
• कृषि जरूरी है या उद्योगों की स्थापना?
• संतुलित और सतत विकास की यह कौन सी परिभाषा है?
• पानी पर जन भागीदारी की अवधारणा का क्या हुआ?
• सिंचाई योजनाएं क्यों पूरी नहीं हो पा रही हैं?
• सिंचाई के पानी की वैकल्पिक व्यवस्था क्या है?

 

 

 

 

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