विकास के बराबर साझेदार

31 Jan 2017
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भारत में अमेरिका के सहयोग से स्वच्छ ऊर्जा के लिये सौर ऊर्जा संयंत्र लगाए जा रहे हैं। विकास के दृष्टिकोण से स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने, शिक्षा के अवसरों को बढ़ाने और गरीबी के निराकरण में हाल में जो योगदान भारत ने किया, वह महत्त्वपूर्ण है। जब नवप्रवर्तन और डिजिटल तकनीक की बात आती है तो यह विश्व का अगुआ कहा जाता है। भारत अमेरिका के साथ अन्य मोर्चों पर महत्त्वपूर्ण सहयोगी बनकर उभरा है

दस देशों में 13 पदों पर 32 साल तक कार्य करने के बाद मैं जल्दी ही दिल्ली में अपने विदेश सेवा करियर से सेवानिवृत्त हो जाऊँगा। अपने कार्यकाल में मैंने अधिकांश समय यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डवलपमेंट (यूएसएआईडी) अधिकारी के रूप में कार्य किया है। मेरे लिये यह विशेष रूप से सन्तोष प्रदान करने वाला होगा कि मैंने अपने अन्तिम कार्यकाल भारत में यूएसएआईडी मिशन डायरेक्टर के रूप में कार्य किया है, जो एशिया और विकास दोनों में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

विकास के दृष्टिकोण से स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने, शिक्षा के अवसरों को बढ़ाने और गरीबी के निराकरण में हाल ही में जो योगदान भारत ने किया, वह अविश्वसनीय रूप से महत्त्वपूर्ण है। जब नवप्रवर्तन और डिजिटल तकनीक की बात आती है तो यह विश्व का अगुआ है। भारत केवल विकास ही नहीं, कई अन्य मोर्चों पर महत्त्वपूर्ण सहयोगी बनकर उभरा है। चाहे सुरक्षा हो, आर्थिक विकास हो, सांस्कृतिक आदान-प्रदान या कूटनीति सम्बन्धी मुद्दे हों, भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका आगे आने वाले वर्षों में निस्सन्देह रूप से बढ़ेगी।

यूएसएआईडी भारत के साथ अमेरिका की महत्त्वपूर्ण भागीदारी का हिस्सा है, आज विश्व समुदाय जिन सबसे महत्त्वपूर्ण समस्याओं का सामना कर रहा है उनमें कुछ सबसे महत्त्वपूर्ण समस्याओं का समाधान दोनों देशों की शक्तियों पर निर्भर है। यूएसएआईडी ने तीसरे देशों के साथ अपने अनुभव साझा करने के प्रति प्रतिबद्ध स्थानीय भारतीय संस्थानों के साथ पहले से कहीं अधिक कार्य किया है। उदाहरण के लिये हैदराबाद और जयपुर में भारतीय प्रशिक्षण संस्थानों में यूएसएआईडी के भागीदार भारत के अनुभव से सीखने के लिये अफ्रीकी कृषि विशेषज्ञों को ला रहा है। इसी प्रकार सेल्फ-एम्प्लॉयड वूमेन एसोसिएशन (एसईडब्ल्यूए) के साथ, जिसका मुख्यालय गुजरात में है, यूएसएआईडी की भागीदारी दोनों के लाभ के लिये यह सुनिश्चित करती है कि अफगान महिलाएँ, महिला सशक्तिकरण और व्यापार विकास सम्बन्धी मुद्दों पर भारतीय महिलाओं के साथ कार्य कर रही हैं।

भारत, अमेरिका और तीसरे देशों की सम्मिलित अद्भुत ‘त्रिकोणीय’ भागीदारी की आशा मूल रूप से स्वतंत्रता के तीन वर्ष बाद ही 1950 में भारत और अमेरिका के बीच हस्ताक्षरित ‘प्वाइंट 4’ विकास सहयोग समझौते में की गई थी। अन्य बातों के साथ इस समझौते में कहा गया है कि दोनों देश ‘तकनीकी ज्ञान और कौशल के आपसी आदान-प्रदान में अन्य देशों के साथ सहयोग करेंगे।’ आज दशकों पुराना दूरदर्शिता का अनुभव पहले से ज्यादा किया जा रहा है, जब अमेरिका और भारत वैश्विक मंच पर महत्त्वपूर्ण ढंग से कार्य कर रहे हैं, जिसमें अन्य देश भी शामिल हैं। वास्तव में हम दोनों ने एक-दूसरे से सीखा है और एक-दूसरे के पूरक हैं।

इस आखिरी कार्यकाल के दौरान सिक्किम से गोवा तक, राजस्थान से नागालैंड तक, लद्दाख से केरल तक पूरे भारत की यात्राओं ने भारत की गतिशील विविधता के साथ-साथ अत्यधिक आशावादी प्रकृति की जारी भागीदारी का गहराई से परिचय कराया है, जिसने मुझे कई सार्वजनिक अवसरों पर यह कहने के लिये प्रेरित किया कि, ‘जब अमेरिका और भारत अच्छी स्थिति में हैं, तब हम दुनिया को अच्छी जगह बनाने में मिलकर सहायता कर सकते हैं।’ यूएसएआईडी के वर्तमान पद के पश्चात हमारे करियर में शिक्षण और लेखन भी शामिल हो सकता है, मुझे विश्वास है कि हमारे हाल के भारतीय अनुभव आगे आने वाले वर्षों में प्रेरित करते रहेंगे, क्योंकि मैं दोनों देशों के बीच सम्बन्धों को मजबूत बनाने के मार्ग तलाश करता रहूँगा। अब एक नागरिक की तरह न कि एक राजनयिक या एआईडी कार्यकर्ता की तरह। यूएसएआईडी के पद पर रहते हुए भारतीय उपमहाद्वीप में बिताए अपने समय के आभार और प्रशंसा में मीर तकी मीर और फैज अहमद फैज के दो शेर याद आते हैं।

आगरा में पैदा हुए अठारहवीं सदी के महान उर्दू शायर मीर तकी मीर कहते हैं-

कहें क्या जो पूछे कोई हमसे मीर,
जहाँ में तुम आए थे क्या कर चले।


बीसवीं सदी के महान उर्दू शायर फैज़ अहमद फैज़ का शेर है-

मिले कुछ ऐसे जुदा यूँ हुए कि फैज़
अबके जो दिल पे नक्श बनेगा
वो गुल है दाग नहीं।


जैसे कि मैं भारत में अपने विदेश सेवा करियर सम्पन्न कर रहा हूँ, दोनों शेर मेरी भावनाओं को अलग-अलग ढंग से व्यक्त करते हैं। एक तरफ यहाँ बिताया समय विशेष, मूल्यवान और जीवन के अनुभव व अवसर प्रदान करने वाला रहा है, जिसकी हमने पहले कल्पना नहीं की थी, वहीं दूसरी ओर देश के सभी भागों से सभी जातीय और धार्मिक समुदायों, सभी क्षेत्रों के भारतीयों से जो गहरा प्रेम और प्रशंसा प्राप्त हुई है। उसकी यादें हमारे हृदय में सदैव स्थापित रहेंगी।

(लेखक यूएसएआईडी मिशन के डायरेक्टर हैं। हाल ही में इनकी ‘द डस्ट ऑफ कंधार: डिप्लोमैट अमोंग वारियर्स इन अफगानिस्तान’ नामक नई पुस्तक प्रकाशित हुई है)

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