विलुप्त होने के कगार पर महाभारतकालीन खांडव वन क्षेत्र

5 Mar 2012
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खांडव वन को बचाने के लिए उपाय करना बहुत जरूरी है अन्यथा यह जो थोड़ा बहुत वन बचा है वह भी नष्ट हो जायेगा। इसमें होने वाले मिटटी के अवैध खनन को रोका जाये। क्षेत्र के लोगों को इसके विषय में जागरूक किया जाये। इसके चारो तरफ कटीले तार लगाये जायें जिससे अवैध खनन व पेड़ों को नुकसान होने से बचाया जा सके। मिट्टी के खनन करने से कर्इ-कर्इ फिट गहरे गड्ढे हो जाने से पेड़ों का जीवन खतरे में है। लोगों को जागरूक करने के लिए इसके महत्व को बोर्ड के माध्यम से दर्शाया जाये तो स्थानीय लोग एवं इस प्राचीन धरोहर से आने वाली पीढ़ियां भी परिचित होंगी।

मेरठ करनाल मार्ग पर फुगाना से तीन किलोमीटर सिसौली रोड पर एक महाभारतकालीन वन क्षेत्र के पास गांव है खरड। आस-पास के गांव के लोग इसे खरड की जूड़ कहते है। जूड़ क्यों कहते हैं इसका पता नहीं है। इस गांव के पास वन क्षेत्र में महाभारतकालीन तालाब एवं कदम्ब व दुर्लभ जड़ी बूटियां भी है। यह क्षेत्र खांडव वन भी कहा जाता है। यह क्षेत्र 558 बीघा जमीन पर फैला हुआ है। यहां पुराने कदम्ब के पेड़, झाड़ियां व पुराना तालाब आज भी महाभारतकालीन होना दर्शाता है। लेकिन इसको देखकर लगता है कि स्थानीय प्रशासन व क्षेत्र के लोगों को इसकी तनिक भी चिन्ता नहीं है। गांव व अन्य क्षेत्र के लोगों को इस वन की महत्ता के विषय में अधिक जानकारी न होने के कारण आज यह लुप्त होने के कगार पर है और दिन प्रति दिन इसको नष्ट करने पर तुले हुए हैं। मिट्टी का अवैध खनन इस क्षेत्र की प्रमुख समस्या है। 70.80 बीघा जमीन पर अवैध कब्जा हो चुका है। पेड़ बिल्कुल सूख चुके हैं।

सरकार ने इन दुर्लभ पेड़ों को काटकर बिजलीघर, टेलीफोन एक्सचेंज, पशु चिकित्सालय आदि बना दिये हैं। इस महाभारत कालीन वन क्षेत्र के पूर्व में माध्यमिक शिक्षा के लिए किसान इण्टर कॉलेज भी बना है। यहां एक महाभारतकालीन शिव मंदिर भी है। इसके पूर्व दिशा में एक गुफा भी बनी है जो अब बंद कर दी गयी है। इस वन के पास में प्रति वर्ष मार्इ का मेला भी लगता है। जिसमें दूर-दूर से लोग आकर मार्इ खसरा, कंठी एवं काली का प्रसाद चढ़ाते है। इस तालाब के पास प्राचीन सीढ़ियां भी बनी हुर्इ हैं। वर्तमान मे मनरेगा योजना के तहत तालाब के उत्तर दिशा में कुछ सीढ़ियां बनार्इ गई हैं। इस प्राचीन मंदिर के पास हजारों की संख्या में बंदर भी रहते है।

पहले यह वन क्षेत्र काफी बड़ा था तो बंदरों को रहने में कोर्इ समस्या नही थी लेकिन अब वन को काटकर काफी छोटा कर दिया है। इस कारण बंदर गांव में घुस जाते हैं। गांव खरड के पंडित शिव कुमार शर्मा जी बताते हैं कि एक बार इन बंदरों में से कुछ को पकड़वा दिया गया तो गांव में महामारी का प्रकोप फैल गया। इस कारण अब बंदरों को नहीं पकड़वाते हैं। गांव के डॉ. ओम सिंह जी ने बताया कि यहां महाभारतकालीन बर्तन भी प्राप्त हुए हैं। ये बर्तन अक्सर लाल रंग के होते हैं। इस पुराने महाभारतकालीन तालाब में ही दुर्योधन छिपा था। भीम ने इस तालाब से निकालकर उससे युद्ध किया था। इस खांडव वन को बचाने के लिए उपाय करना बहुत जरूरी है अन्यथा यह जो थोड़ा बहुत वन बचा है वह भी नष्ट हो जायेगा। इसमें होने वाले मिटटी के अवैध खनन को रोका जाये। क्षेत्र के लोगों को इसके विषय में जागरूक किया जाये। इसके चारो तरफ कटीले तार लगाये जायें जिससे अवैध खनन व पेड़ों को नुकसान होने से बचाया जा सके।

मिट्टी के खनन करने से कर्इ-कर्इ फिट गहरे गड्ढे हो जाने से पेड़ों का जीवन खतरे में है। लोगों को जागरूक करने के लिए इसके महत्व को बोर्ड के माध्यम से दर्शाया जाये तो स्थानीय लोग एवं इस प्राचीन धरोहर से आने वाली पीढ़ियां भी परिचित होंगी। पुराने पेड़ों के रख रखाव के लिए रेंजर या माली नियुक्त किया जाये। बंदर एवं पक्षियों के लिए समुचित सुविधा उपलब्ध हो तो इस वन में रहने वाले पक्षी भी चैन से रह सकते हैं। इस वन से गुजरने वाले वाहनों बुग्गी, टैक्टर, मोटरसार्इकिल, जुगाड़ पर प्रतिबंध लगाया जाये। पानी का प्रबंधन उचित मात्रा में हो तो यह हरा-भरा रह सकता है। भविष्य में किसी अन्य सरकारी बिल्डिंग को न बनाया जाये। जमीन को कब्जा मुक्त कराकर उस पर वृक्षारोपण किया जाये। इस प्रकार हम इस वन को बचा सकते हैं। अगर यह सम्भव नही हुआ तो धीरे-धीरे समाप्त हो जायेगा।

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