विश्व बैंक का गंगा विचार

27 Aug 2016
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जाने माने इकोलॉजिस्ट अनुब्रतो कुमार राय, जिन्हें लोग दूनू राय के नाम से जानते हैं, ने विश्व बैंक पर गम्भीर आरोप लगाए हैं। राय के आरोपों से साफ संकेत मिलता है कि विश्व बैंक गंगा को समाप्त करने की साजिश में सीधे तौर पर शामिल है।

सभी जानते हैं कि विश्व बैंक सदस्य देशों में बन रही बड़ी परियोजनाओं को धन मुहैया कराता है और उनकी निगरानी भी करता है। अब हुआ यूँ कि उत्तराखण्ड के चमोली जिले के जोशीमठ में विष्णुगाड-पीपलकोटी परियोजना बन रही थी। 444 मेगावाट की इस परियोजना का निर्माण टिहरी हाइड्रो पावर डवलपमेंट कॉरपोरेशन यानी टीएचपीडीसी कर रहा है। 2011-12 में स्थानीय नागरिकों और पर्यावरण प्रेमियों द्वारा इस परियोजना का भीषण विरोध हुआ। नर्मदा आंदोलन के चेहरे विमल भाई इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे। आंदोलनकारियों पर उस दौरान लाठियाँ भी भांजी गई लेकिन बात सरकार के हाथ से निकल कर विश्व बैंक तक पहुँच गई। विश्व बैंक ने इन शिकायतों की जाँच के लिये अपनी जाँच समिति को कहा।

इस जाँच के लिये बने पैनल में दूनू राय को भी विशेषज्ञ के तौर पर शामिल किया गया। जाँच दल ने पाया कि स्थानीय लोगों की ज्यादातर चिंताएं वास्तविक है। चमोली-रुद्रप्रयाग क्षेत्र में भूस्खलन की घटनाएँ आम हैं और ये क्षेत्र प्रस्तावित परियोजना की ठीक नीचे की ओर यानी डाउनस्ट्रीम में है। विष्णुगाड-पीपलकोटी के ऊपर की ओर अलकनंदा पर इस तरह की 29 जल विद्युत परियोजनाओं की योजना हैं इनमें से ज्यादातर अब निर्माणाधीन हैं। इसे रन ऑफ द रिवर परियोजना बताया गया था। रन ऑफ द रिवर प्रोजेक्ट में नदी को रोका नहीं जाता, नदी को सुंरग में बहाकर सीधे टरबाइन पर गिराते हैं। हालाँकि ये एक बड़ा झूठ है जो परियोजनाओं के संबंध में बोला जाता है।

कोई भी बाँध रन आफ द रिवर नहीं हो सकता। विष्णुगाड-पीपलकोटी परियोजना को सुरंग बनाकर नदियों को उसमें डाल दिया गया नतीजन महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल विष्णुप्रयाग का अब अस्तित्व ही नहीं है। एक समय था जब डॉक्टर अपने मरीजों को तबीयत पानी बदलने पहाड़ों पर भेजते थे, आज पीपलकोटी में आश्चर्यजनक रूप से अस्थमा और सांस की तकलीफों जैसी दूसरी बीमारियाँ तेजी से बढ़ी हैं। इसका कारण अलकनंदा- पिंडर घाटी में बाँधों का अंधाधुंध निर्माण ही है। पीपलकोटी क्षेत्र में हुई जनसुनवाई में भी विश्व बैंक का जाँच दल मौजूद था। उस समय उत्तराखण्ड के अखबारों में खबर खूब छपी थी कि जनसुनवाई के लिये लोगों को बाहर से लाया गया था ताकि विश्व बैंक के सामने स्थानीय आम सहमति रखी जा सके।

बहरहाल दूनू राय की राय अपने अन्य साथियों से अलग थी, रिपोर्ट को विश्व बैंक को सौंप दिया गया और आम राय ना होने के कारण इस रिपोर्ट का प्रकाशन भी नहीं किया गया। फिर अचानक जुलाई 2014 को रिपोर्ट को सार्वजनिक किया गया जिसमें दूनू राय के तथ्यों में हेर फेर कर विश्व बैंक को क्लीन चिट दी गई। परियोजना के लिये पैसा जारी कर दिया गया और निर्माण कार्य ने गति पकड़ ली। इस परियोजना को 2019 तक पूरा करने का लक्ष्य है।

विश्व बैंक ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया, यदि परियोजना को लेकर कोई कमी थी उसे दूर करने का दायित्व भी बैंक का ही है लेकिन पर्यावरण संरक्षण को लेकर विश्व बैंक का दिखावा दुनिया के कई देशों में गाहे- बगाहे उजागर होता रहा है। केदारघाटी में हादसे के बाद इन योजनाओं की समीक्षा पर जोर दिया गया था लेकिन विदेशी पैसे के लालच ने हादसों के सबक बदल दिए। हिमालय के इस क्षेत्र में बन रही कई योजनाओं में विश्व बैंक का पैसा लगा है।

दूनू राय ने खुद को पैनल से अलग कर लिया है लेकिन सवाल ये भी है कि 2014 की रिपोर्ट का उन्होंने दो साल तक विरोध क्यों नहीं किया? गंगा हमारी है, हिमालय हमारा है इसे बचाए रखने का दायित्व भी हमारा है। विश्व बैंक जैसी अन्तरराष्ट्रीय संस्था के लिये गंगा का एक अर्थशास्त्र है, गंगा उनके लिये सामाजिक और धार्मिक नदी नहीं हो सकती, माँ तो बिल्कुल नहीं।

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