विश्व धरोहर एरिया में अभी भी बसते हैं तीन गाँव

2 Jan 2016
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हिमाचल प्रदेश में कुल्लू जिला के बंजार उपमण्डल में स्थापित ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क को पिछले दिन दोहा कतर में हुई यूनेस्को की एक महत्त्वपूर्ण बैठक में विश्व धरोहर का दर्जा दे दिया गया है। इस पार्क को धरोहर का दर्जा मिलने से देश में विश्व धरोहरों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी हुई है।

माना जा रहा है कि पार्क को विश्व धरोहर का दर्जा मिलने से इस इलाके में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और स्थानीय लोगों को भी रोज़गार उपलब्ध होगा।

ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क को विश्व धरोहर का दर्जा मिलने से वन महकमे के कुछ अधिकारी फूले नहीं समा रहे हैं जबकि हकीक़त यह है कि वन महकमे के कुछ अधिकारियों ने यूनेस्को की टीम को गुमराह करते हुए पार्क को विश्व धरोहर का दर्जा दिलाया है।

यही नहीं बल्कि वन महकमे के अधिकारियों ने स्थानीय लोगों से भी छल करके इसे धरोहर का दर्जा दिलाने का षडयंत्र रचा।

अभी तक नेशनल पार्क प्रबन्धन व वन महकमे ने पार्क प्रभावितों के सदियों पुराने व पारम्परिक अधिकारों को सुरक्षित करने बारे कोई भी ठोस नीति नहीं बनाई है और न ही लोगों को इस सन्दर्भ में विश्वास में लिया गया है।

हाँ, इतना जरूर किया गया कि जब पार्क को विश्व धरोहर का दर्जा मिल गया तो उसके बाद उपायुक्त के दबाव में आकर नेशनल पार्क प्रबन्धन व वन महकमे ने प्रभावितों के साथ उनके अधिकारों की बहाली के लिये औपचारिकता के लिये एक जनसुनवाई का आयोजन किया और कुछ लोगों की एक कमेटी भी गठित की।

लेकिन अभी तक उसके कोई भी सार्थक परिणाम सामने नहीं आये हैं। कमेटी की शुरू में एक दो बैठकें जरूर हुई लेकिन वह भी महज लिपापोती तक ही सीमित रही और उस कमेटी को करना क्या है इस सन्दर्भ में कोई भी चर्चा नहीं हो पाई है। यही वजह है कि पार्क प्रभावितों में अभी भी अपने अधिकारों को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है।

जानकारी के मुताबिक जिस इलाके को विश्व धरोहर घोषित किया जाता है उसमें आबादी नहीं होनी चाहिए। लेकिन ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क को विश्व धरोहर का दर्जा देने से पूर्व पार्क क्षेत्र में स्थित तीन गाँव शुगाड़, शाक्टी व मरौड़ के लोगों को वहाँ से स्थानान्तरित नहीं किया गया है।

इसके साथ ही पार्क क्षेत्र से प्रभावित गाँव के लोगों की जनसुनवाई भी नहीं की गई है और न ही लोगों को इस सन्दर्भ में जागरूक करने का प्रयास किया गया है। हालांकि प्रदेश सरकार के वन एवं पर्यावरण विभाग के प्रधान सचिव तरुण श्रीधर ने यह साफ किया है कि पार्क क्षेत्र में आने वाले सभी लोगों के हर तरह के अधिकार सुरक्षित रहेंगे।

लेकिन हैरत इस बात की है कि वन महकमे के अधिकारियों ने लोगों के अपने अधिकारों की आशंकाओं को लेकर किये गए विरोध का समाधान करने का कोई प्रयास नहीं किया है जबकि जिन लोगों को पार्क को विश्व धरोहर बनाए जाने के बाद होने वाली दिक़्क़तों की जानकारी है वह लगातार पार्क को विश्व धरोहर बनाए जाने का विरोध इस तर्क पर कर रहे हैं कि पार्क को धरोहर बनाए जाने से पहले लोगों के अधिकार सुरक्षित किये जाने के सन्दर्भ में ठोस कार्यवाही हो।

लेकिन महकमे के अधिकारियों ने लोगों के विरोध को नजरअन्दाज करते हुए पार्क को विश्व धरोहर बनाए जाने की प्रक्रिया जारी रखी और अन्तत: लोगों के विरोध के बावजूद भी वन महकमे के अधिकारी पार्क को विश्व धरोहर का दर्जा दिलाने में कामयाब हो गए।

ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क को विश्व धरोहर का दर्जा मिलने से होने वाली परेशानियों को देवता के साथ चर्चा करते हुए स्थानीय लोग इस सन्दर्भ में लोगों का भी कहना है कि पार्क को विश्व धरोहर बनने से उनके पारम्परिक व मौलिक अधिकार खत्म हो जाएँगे इस लिये पार्क को विश्व धरोहर बनाए जाने से पहले स्थानीय लोगों की जनसुनवाई होनी चाहिए थी और उसमें स्थानीय लोगों के अधिकारों को सुरक्षित बनाए जाने के सन्दर्भ में ठोस मसौदा तैयार किया जाना चाहिए था, तभी पार्क को विश्व धरोहर बनाया जाना चाहिए था।

पर्यावरण संरक्षण व लोगों के हकों की लड़ाई लड़ने वाली संस्था सहारा के निदेशक राजेन्द्र चौहान व हिमालय नीति अभियान के राष्ट्रीय संयोजक व प्रमुख पर्यावरणविद गुमान सिंह का कहना है कि पार्क प्रभावित 13 पंचायतों के प्रधानों व प्रमुख लोगों ने पार्क को विश्व धरोहर बनाने का कड़ा विरोध जताते हुए वन महकमे के अधिकारियों पर स्थानीय लोगों को गुमराह करने के आरोप लगाए हैं।

उन्होंने बताया कि नेशनल पार्क वन्य प्राणी सुरक्षा अधिनियम 1972 के तहत बना है और इसी इलाके में सैंज व तिर्थन वन्य प्राणी संरक्षित क्षेत्र (सेंचुरी एरिया) भी स्थापित है।

जोकि नेशनल पार्क से अलग हैं लेकिन वन महकमे ने इन दोनों वन्य प्राणी संरक्षित क्षेत्र को लोगों को जानकारी दिये बगैर पार्क में शामिल कर दिया है, जो कि सरासर स्थानीय लोगों के साथ धोखा है और इस सन्दर्भ में वन महकमे द्वारा कोई भी जनसुनवाई का आयोजन नहीं किया गया है और मसले पर स्थानीय लोगों के अधिकारों को सुरक्षित रखने पर भी आज तक कोई चर्चा नहीं हुई है।

जबकि वहाँ के लोगों का 80 फिसदी जीवन वनों पर आधारित है और लोगों के वहाँ पारम्परिक देव स्थल हैं जिन्हें किसी भी सूरत में वहाँ से स्थानान्तरित नहीं किया जा सकता है। गुमान का कहना है कि वह पार्क को विश्व धरोहर बनाए जाने के विरोध में नहीं है लेकिन लोगों के अधिकार सुरक्षित होने चाहिए।

गुमान सिंह व राजेन्द्र चौहान का कहना है कि जब नेशनल पार्क की अधिसूचना जारी की गई थी उस समय पार्क में जाने का शुल्क 20 रुपए लिया जाता था और आज यह शुल्क बढ़कर 50 रुपए हो गया।

ऐसे में स्थानीय लोगों को सूखी लकड़ी लाने भी जाना हो तो 50 रुपए देने पड़ते हैं और अगर भविष्य की बात करें तो 2030 में पार्क में जाने का शुल्क ही 500 रुपए हो जाएगा, जिसे स्थानीय लोग तो अदा नहीं कर पाएँगे और ऐसे में यह पार्क केवल विदेशी सैलानियों की ही आरामगाह बनेगा।

हिमालय नीति अभियान के संयोजक गुमान सिंह ने कहा कि जब नेशनल पार्क बन रहा था तो उस समय लोगों के साथ जो वायदे किये गए थे वह आज भी पूरे नहीं हुए हैं और लोगों को वैकल्पिक वन व वन अधिकार देने का 1999 के अवार्ड में भी वायदा किया था लेकिन वह भी पूरा नहीं किया गया।

लगभग 20 हजार परिवारों में से केवल 350 परिवारों को 43 हजार के करीब मुआवजा अधिकारों के बदले में मिला है। जो लोगों के साथ सरासर खिलवाड़ हुआ है। ऐसे में यह अवार्ड निरस्त माना जाना चाहिए और लोगों के अधिकार समाप्त नहीं हो सकते हैं।

उन्होंने कहा कि तीर्थन व सैंज सेंचुरी को जीएचएनपी में शामिल करने की एक तरफा प्रक्रिया भी पूरी तरह से ग़ैरक़ानूनी है। इसके अलावा शांघड़ के रोशन लाल व महेन्द्र सिंह, रैला के प्रीतम सिंह, शैंशर के जवाहर लाल, मशियार के बीरबल, नोहांडा के शेर सिंह व डिंगचा के रूपचन्द आदि का यह भी कहना है कि पार्क के अन्दर लोगों की देवआस्थाओं के स्थल हैं जहाँ साल में दो तीन बार देव कारज किये जाते हैं और पार्क को विश्व धरोहर का दर्जा मिलने से लोगों की देव आस्था व देवकारजों का क्या होगा?

शाक्टी में आयोजित वनाधिकार सम्मेलन में मौजूद लोगक्योंकि पार्क के विश्व धरोहर बनने से पूरे इलाके को ईको सेंसिटिव जोन बना दिया जाएगा। जिसमें पक्की सड़कें व पक्के घर नहीं बना सकते हैं और घास-लकड़ी लाने पर पाबन्दी होगी तथा न ही समूह में गाना बजाना हो सकता है। इससे आने वाली पीढ़ियों पर विपरीत असर पड़ेगा।

उनका कहना है कि एंडरसन की 1884 की रिपोर्ट में भी लोगों के वनाधिकार बताए गए हैं और सबसे अहम बात तो यह है कि अब केन्द्र सरकार ने भी वन अधिकार अधिनियम-2006 को लागू कर दिया है। जिसे प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2008 से लागू किया गया है और इस अधिनियम के तहत तमाम वनाधिकार लोगों को दिये गए हैं।

इसलिये वन महकमा पार्क को विश्व धरोहर बनाए जाने की कवायद अकेले किसी भी सूरत में पूरा करने में सक्षम ही नहीं था, जब तक स्थानीय लोगों व वन कमेटियों से अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं मिल जाते, तब तक वन विभाग की सारी कवायद बेमानी साबित हो सकती है। सभी ने एक सुर में कहा कि लोगों के अधिकारों की सुरक्षा से कमतर पर पार्क को विश्व धरोहर बनाए जाने का भविष्य में भी लगातार विरोध किया जाता रहेगा।

 

 

प्रभावितों को मिलेंगे अधिकार, वहीं रहेंगे तीनों गाँव


ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क को विश्व धरोहर का दर्जा मिलने पर कुल्लू के उपायुक्त राकेश कंवर का कहना है कि इससे जहाँ प्रदेश के अलावा बंजार घाटी के साथ पूरे प्रदेश का नाम विश्व के मानचित्र पर अंकित हो चुका है वहीं बंजार घाटी के विकास व पर्यटन को भी चार चाँद लगेंगे।

कुल्लू के उपायुक्त राकेश कंवर यह भी दावा करते हैं कि लोगों के अधिकारों से खिलवाड़ नहीं होने दिया जाएगा और पार्क एरिया के अन्दर जो तीन गाँव बसे हुए हैं वहाँ के लोग अगर कहीं और स्थान पर नहीं जाना चाहते हैं तो उन्हें भी वहीं ही रहने दिया जाएगा।

वहीं प्रदेश सरकार ने भी भरोसा दिलाया है कि पार्क से प्रभावित होने वाले लोगों के सामूहिक व परम्परागत हक हकूकों का पूरा ध्यान रखा जाएगा।

प्रदेश सरकार में आयुर्वेद व सहकारिता मंत्री व बंजार के विधायक कर्ण सिंह का कहना है कि ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क को विश्व धरोहर का दर्जा मिलने से बंजार घाटी के वे अनछुए पर्यटन स्थल विकसित होंगे जहाँ तक पर्यटक आसानी से पहुँच ही नहीं पाते हैं। जिससे यहाँ के लोगों को रोज़गार भी मिलेगा और आस-पास के क्षेत्र भी विकसित होंगे।

बंजार घाटी पर्यटन की दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण हैं और अब यहाँ के पर्यटन में ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क एक मील पत्थर साबित होगा। इसके अलावा सोझा, जलोड़ी जोत, सरेउलसर, गाड़ागुशैणी, बनोगी देउरी व शांघड़ आदि पर्यटन स्थलों को भी विकसित करने के लिये सरकार प्रयासरत है।

 

 

 

 

देवता ने की स्थान छोड़ने की मनाही


पिछले दिनों ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में स्थित तीन गाँवों के अधिष्ठाता देवता ब्रह्मा ने शाक्टी गाँव में आयोजित देवकारज व वनाधिकार सम्मेलन में देववाणी में स्थानीय लोगों को आदेश दिया कि वह किसी भी सूरत में अपना स्थान न छोड़ें। देवता ने लोगों को यह भी चेताया कि उन पर कई संकट आएँगे लेकिन वह अपने स्थान पर बने रहें।

देवता आदि ब्रहमा ने ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क को विश्व धरोहर बनाए जाने व तीनों गाँवों के लोगों को वहाँ से बाहर निकाले जाने के मसले पर संकेतात्मक लहजे में कहा कि मनुष्य उनके पारम्परिक स्थानों से देवताओं व लोगों को वंचित करना चाह रहे हैं लेकिन उनकी यह चाल कामयाब नहीं होगी।

देवता ने लोगों को इस समस्या से मिलजुल कर निपटने की सलाह देते हुए कहा कि वह देव परम्पराओं का निर्वाहन करने में कोई कोताही न बरतें अन्यथा उनको कई प्रकार के संकटों का सामना करना पड़ेगा। जबकि वनाधिकार सम्मेलन में चर्चा करते हुए सैकड़ों लोगों ने एक स्वर में कहा कि वह देवआज्ञा का पालन करते हुए अपने गाँवों को छोड़कर दूसरे स्थान पर नहीं जाएँगे और यहीं पर बने रहेंगे।

 

 

 

 

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