वन विखण्डन से नष्ट होती जैवविविधता

हालाँकि मनुष्य के लालच एवं मांस भक्षण के तेजी से बढ़ने की वजह से इस बात की पूरी सम्भावना है कि अभी और जंगल नष्ट होंगे। खेती की उपज और उत्पादकता दोनों बढ़ा भी ली जाती हैं तो भी वर्तमान व भविष्य की माँग में अन्तर तो बना ही रहेगा। यह कठिन प्रश्न अभी भी अनुत्तरित है कि यह विस्तार कहाँ पर होगा। छोटे और विखण्डित जंगलों के गिरते स्तर को रोकने से भी इस संकट से निपटने में कुछ सहायता अवश्य मिल सकती है। यह सच है कि विखण्डन की समस्याओं का कोई सरल उत्तर नहीं है। परन्तु जंगलों को वैश्विक प्रबन्धन योजना की तत्काल सख्त आवश्यकता है।

एक समय था जब पृथ्वी उप उत्तर-ध्रुवीय शीतवनों से लेकर अमेजन व कांगो बेसिन तक विशाल जंगलों से पटी पड़ी थी। जैसे-जैसे मानव ने इस ग्रह के कोने-कोने में बसना शुरू किया वैसे-वैसे हमने खेत बनाने और शहर एवं कस्बे निर्मित करने के लिए बड़े क्षेत्रों की लकड़ी काट डाली। जंगलों के नाश का जैवविविधता पर नाटकीय प्रभाव पड़े और आज यह हमारे अस्तित्व के संकट का प्राथमिक कारण बन गया है। मैं बोर्निया में काम करता था वहाँ पाम तेल रोपण हेतु बड़े क्षेत्र के उष्णकटिबन्धीय वन काट डाले गए। तकरीबन 150 जंगली चिड़ियाओं के स्थानापन्न के रूप में खेती से सम्बन्धित कुछ प्रजातियों को वहाँ ले आया गया। अब जंगल सामान्यतया भीतरी हिस्सों में या पाम रोपणी के किनारे ही दिखाई देते हैं। यह प्रक्रिया विश्वभर में दोहराई जा रही है। सांइस एडवांसेस में प्रकाशित नए शोध के अनुसार अब समस्या यह है कि बचे हुए अधिकांश जंगल विखण्डित या टुकड़ों-टुकड़ों में बट गए हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो बचे हुए जंगल रूपान्तरित भूमि के विशाल आकार की वजह से अन्य जंगलों से अलग होते जा रहे हैं और पाया जा रहा है कि उनका आकार लगातार छोटा होता जा रहा है। गौरतलब है कि यह वनविनाश या वन कटाई से भी ज्यादा खतरनाक है।

नार्थ केरोलिना स्टेट विश्वविद्यालय के निक हड्डाड की अगुवाई वाले समूह ने दुनिया के पहले वृक्ष आच्छादन हाई रिज्योलुशन सेटेलाइट नक्शे का इस्तेमाल यह मापने के लिये किया कि बचे हुए जंगल एक गैर वन सीमा से कितने पृथक हैं। यह स्थिति किनारे पर वन कटाई गतिविधियों की भरमार, सड़कों से लेकर पशुओं के चारागाह और तेल के कुओं के साथ ही साथ नदियों से पैदा हुई थी। उन्होंने पाया कि बचे हुए 70 प्रतिशत जंगल किनारों से महज 1 किलोमीटर (0.6 मील) के अन्दर स्थित हैं। इतना ही नहीं किनारे से महज 100 मीटर टहलते हुए आप 20 प्रतिशत वैश्विक जंगल में अपनी आमद दर्ज करा सकते हैं। यदि विभिन्न अंचलों की तुलना करें तो जो स्थिति पाई गई वह और भी अचम्भित कर देने वाली थी। यूरोप और अमेरिका में अधिकांश जंगल किनारे से महज 1 किलोमीटर की दूरी पर हैं। इन क्षेत्रों में सबसे ‘दूरदराज’ स्थित वनों में मानव गतिविधि की बात करें तो अब यह वन पत्थर फेंकने जितनी दूरी पर स्थित हैं। इस सबसे बच पाना इतिहास में इससे पहले कभी भी इतना चुनौती-पूर्ण नहीं था। यदि आप बड़ी मात्रा में दूरदराज या दूरस्थ वनों को देखना चाहते हैं तो आपको अमेजन, कांगो या मध्य एवं सुदूर पूर्वी रूस, मध्य बोर्नियो और पापुआ न्यू गुयाना जाना पड़ेगा।

जैव विविधता में कमी


यह खोजें उतनी चेतावनी भरी नहीं होती यदि वन्य-जीवन और जंगल जो कि कार्बन संग्रहण एवं पानी जैसी सेवाएं मनुष्यों को उपलब्ध कराते हैं वह वनों के खण्डित (छितरा जाने) से संकट में न पड़ी होती। लम्बे समय तक हुए सतत विखण्डनों पर प्रयोग करने के बाद हड्डाड एवं उनके साथी बताते हैं कि इन विखण्डनों से जैव-विविधता में 70 प्रतिशत तक की कमी आई है। इससे ऐसी लाखों-लाख वन प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ता जा रहा है जिनके बारे में हम अभी भी बहुत कम जानते हैं। वन प्रजातियों को किनारे पर रह कर अपना अस्तित्व बचाए रखने में जबरदस्त संघर्ष करना पड़ता है क्योंकि वे जहाँ जंगलों के भीतर रहते थे उसकी बनिस्बत यह क्षेत्र अधिक रोशनी वाले, ज्यादा चौड़े एवं गरम हैं। यह किनारे अनियन्त्रित बेलों से भर गए हैं और वहाँ पर अनेक परजीवी प्रजातियों ने अतिक्रमण कर लिया है जो कि गहरे जंगल में पाई जानी वाली प्रजातियों से बहुत ज्यादा हो गई हैं। उदाहरणार्थ के लिए बोर्निया में वनों के छोटे हिस्से में निवास कर रहे चिड़ियाओं का समुदाय बजाए विशाल जंगलों में रहने वाली चिड़ियाओं के पड़ोस के पॉम वृक्षों में रहने वाले पक्षियों जैसा ज्यादा प्रतीत होता है।

विशाल कार्बन समृद्ध वृक्षों का इस तरह के बनाए गए जंगल ईकोसिस्टम में बचे रहना बहुत कठिन होता जा रहा है। ये छोटे-छोटे पैबन्द इन वृक्षों की व्यवहार्य संख्या बनाए रखने में सफल नहीं हो सकते और यह धीमे-धीमे विलुप्ति की ओर बढ़ते जाएँगे। वैश्विक जंगलों के मनुष्य के अत्यन्त समीप आ जाने से चिंपाजी, गोरिल्ला आदि का शिकार हो रहा है और वे विलुप्ति के कगार पर पहुँच रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप बड़े जानवर उन हिस्सों में जा रहे हैं जो कि छोटी कभी प्रजातियों का रहवास हुआ करता था। इसके अलावा शिकारी भी किनारों से कई किलोमीटर भीतर तक खेल-कूद रहे हैं जिससे कि जंगल अब काफी छोटे नजर आने लगे हैं।

प्रबन्धन हेतु कठिन निर्णय


विखण्डन के कपटपूर्ण प्रभावों का अर्थ है कि अब हमें जंगल के वातावरण को और अधिक बर्बाद होने या वहाँ अतिक्रमण न होने देने के लिए संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी। इसे रोककर ही हम वैश्विक जंगल विखण्डन और जैवविविधता की ओर अधिक हानि को रोक सकेंगे। परन्तु हमें विखण्डित क्षेत्रों की अवहेलना नहीं करना चाहिए। इनमें से कुछ को जैसे ब्राजील का अटलांटिक वन, उष्णकटिबंधीय एंडेम व हिमालय में जैवविविधता की कमी, प्रजातियों पर संकट और भीषण विखण्डन का जहरीला मिश्रण झेलना पड़ रहा है। अनेक विलुप्तप्राय प्रजातियाँ अत्यन्त छोटे क्षेत्र में सिमट कर रह गयी हैं। कई जगह तो यह विखण्डन चारागाहों और सड़कों की वजह से हुआ है। यदि हमें इन्हें विलुप्ति से बचाना है तो आवश्यक है कि विशाल विखण्डित क्षेत्रों के मध्य जुड़ाव स्थापित किया जाए एवं वन आच्छादन को पुनः स्थापित किया जाए। (थर्ड वर्ल्ड नेटवर्क फीचर्स)

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading