वृक्षारोपण से जीवित हुए जलस्रोत

पेशे से अध्यापक सच्चिदानंद भारती ने पौड़ी जिले की थलीसेंण और बीरोंखाल विकासखंडों के एक-दो नहीं बल्कि 133 गांवों में पानी के संरक्षण और संवर्द्धन की मुहिम को अंजाम तक पहुंचाया है।

करोड़ों रुपए की सरकारी योजनाएं जो काम नहीं कर पातीं वह काम चिपको आंदोलन के सिपाही सच्चिदानंद भारती ने जनसहभागिता के आधार पर कर दिखाया। जंगल बचाने की मुहिम में तो वे चिपको आंदोलन से शुरुआती दिनों से ही जुटे हुए थे लेकिन जब उन्होंने जंगल बचाने की मुहिम के साथ जल को भी जोड़ दिया तो पौड़ी जिले के कई सीमांत गांवों के सूखे जलस्रोतों में फिर से जलधाराएं फूट पड़ीं। पेशे से अध्यापक सच्चिदानंद भारती ने पौड़ी जिले की थलीसेंण और बीरोंखाल विकासखंडों के एक-दो नहीं बल्कि 133 गांवों में पानी के संरक्षण और संवर्द्धन की मुहिम को अंजाम तक पहुंचाया है। 1990 से 2010 तक बीस साल के अंतराल में इस क्षेत्र में पूरी तरह सूख चुकी 3 धारों और 5 नौलों को पुनर्जीवित किया गया। ग्रामीणों के साथ मिलकर भारती द्वारा गठित ‘दूधातोली लोक विकास संस्थान’ ने इतना काम किया है कि अब यह क्षेत्र देश-दुनिया के जिज्ञासुओं के लिए अध्ययन का केंद्र बन गया है। भारती के अभियान की सबसे बड़ी सफलता यह है कि जिस गाड़ (छोटी नदी) को आजादी से पहले ही सूखा घोषित कर दिया गया था उसे भी इस अभियान ने पुनर्जीवित किया है। पौड़ी जिले की उपरैखाल पहाड़ी से निकलने वाली इस गाड़ को 1944-45 के इर्वसन बंदोबस्त में सूखा रौला लिखा गया था लेकिन इस समय इस गाड़ में गर्मी के दिनों में भी 3 लीटर प्रति मिनट का बहाव रहता है।

चिपको आंदोलन के सदस्यों के साथ भारतीचिपको आंदोलन के सदस्यों के साथ भारतीहरियाली और पानी के लिए जुटे सच्चिदानंद भारती के सामाजिक जीवन का सफर 1974 में तब शुरू हुआ जब अपने क्षेत्र उपरैखाल से इंटरमीडिएट पास कर वे आगे की पढ़ाई के लिए गोपेश्वर आए। गढ़वाल में चिपको आंदोलन जोर पकड़ रहा था, भारती भी उससे जुड़ गए। युवाओं को इससे जोड़ने के लिए उन्होंने ‘डाल्यों का दग्ड़या’ (डालियों के साथी) नामक संगठन बनाया। ‘डाल्यों का दग्ड़या’ संगठन इतना लोकप्रिय हुआ था कि इसका कार्यक्रम पहाड़ों के 200 से भी अधिक स्कूलों तक पहुंचा। कार्यक्रम के मुताबिक प्रत्येक स्कूल के छात्र को पांच पेड़ों को अपना दोस्त बनाता होता था और उसकी देखभाल की जिम्मेदारी भी लेनी होती थी। इस अभियान के जरिए चिपको के लिए भारती अपने साथियों के साथ पूरे प्रदेश में घूमे। 1979 में गोपेश्वर से एम.ए., बी.एड. करने के बाद वे अपने गांव लौट आए और उपरैखाल इंटर कॉलेज में ही पढ़ाने लगे। इसी दौरान 1979 में ही उत्तर प्रदेश सरकार ने दूधातोली के जंगलों को काटने का ठेका दिया। जिसका सच्चिदानंद भारती ने गांव के लोगों के साथ मिलकर विरोध किया। उनका मानना था कि अगर 45 प्रतिशत ढाल वाले पहाड़ी क्षेत्र के जंगल काटे जाएंगे तो यहां भूस्खलन के साथ ही जलस्रोतों के सूखने की समस्या पैदा हो जाएगी। यूपी सरकार के तत्कालीन वन सचिव जे.सी. पंत ने ग्रामीणों और कन्जर्वेटर फॉरेस्ट को मिलाकर एक कमेटी बनाई जिसने पाया कि यदि दूधातोली के जंगल काटे गए तो जलस्रोत सूखेंगे और भूस्खलन होगा। इस तरह भारती ने ग्रामीणों के साथ मिलकर अपनी पहली लड़ाई जीत ली। भारती कहते हैं, 'उपरैखाल की पहाड़ी में जितने भी पेड़ लगाए गए थे उनके गड्ढों के साथ एक गड्ढा और बनाया गया ताकि वर्षा जल उस गड्ढे में भर जाए और लगाए गए पेड़ को लंबे समय तक पानी मिलता रहे।' पेड़ों को बचाने का प्रयोग पूरी तरह सफल रहा। पेड़ों के साथ ही यह वर्षा जल संग्रहण और प्राकृतिक जलस्रोतों के रिचार्ज का भी प्रयोग था। क्योंकि इन गड्ढों में भरा पानी पेड़ों के काम तो आ ही रहा था पहाड़ी के नीचे स्थित जलस्रोतों को भी यह पानी मिल रहा था। चौड़ी पत्ती वाले वर्षादार वृक्षों के रोपण और पूरे पहाड़ में बनाई गई चालों के कारण ही उपरैखाल पहाड़ी से निकलने वाली जिस गाड़ को 1944-45 के इर्वसन बंदोबस्त में सूखा रौला घोषित किया गया था वह 1999 में फिर से फूट पड़ी जिसे गांव वालों ने गाड़ नाम दिया है।

जल संरक्षण अभियान के तहत बनी एक चालजल संरक्षण अभियान के तहत बनी एक चालइन सालों में महिला मंगल दल बनाने और जल, जंगल का काम करने की मुहिम चलती रही। 1990 में गांधी शांति प्रतिष्ठान में हुए कार्यक्रम में अनुपम मिश्र ने भारती को बुलाया जो कि उन्हें चिपको के दौर से जानते थे। कार्यक्रम में मौजूद सारे जल विशेषज्ञ जिनमें राजस्थान के जलपुरुष राजेंद्र सिंह भी थे इस बात से हैरान थे कि एक ही पहाड़ी में पेड़ों को बचाने और जल संरक्षण के लिए 5000 गड्ढे सामुहिक प्रयासों से खोदे गए हैं। भारती की मुहिम को बहुत सराहा गया और उन्हें जल संरक्षण का काम देखने के लिए देश भर में बुलाया गया यहीं से जल संरक्षण के प्रति उनका भरोसा और पक्का हो गया। 1980 के बाद भारती ने क्षेत्र के अनेक गांवों में 14 नर्सरियां भी बनवाई जहां इस समय प्रतिवर्ष लाखों पौधे तैयार हो रहे हैं। इन नर्सरियों में 100 से अधिक लोगों को रोजगार भी मिल रहा है। भारती के मुताबिक जल के अभियान को जंगल से अलग करके नहीं सोचा जा सकता। उपरैखाल की पहाड़ी के नीचे आजादी के पहले से मृत पड़ी गाड़ को हम इस कारण जीवित कर पाए कि उस पहाड़ में सघन और जलीय पेड़ों का रोपण किया गया। उस पहाड़ी पर धरती को सुखाने वाले चीड़ नहीं बल्कि वर्षादार पेड़ उतीस, बांज, काफल और अखरोट का रोपण किया गया। जिनकी जड़ें वर्ष भर अपने आस-पास नमी बनाए रखती हैं।

पहाड़ पर सघन और वर्षादार पेड़ों का रोपण किया गयापहाड़ पर सघन और वर्षादार पेड़ों का रोपण किया गयाउपरैखाल के अलावा क्षेत्र के दर्जनों गांवों तक भारती का आंदोलन फैला हुआ है। ठूलमौर गांव में पानी का नौला सूख चुका था और धारे का पानी लगातार कम हो रहा था। जहां 1992 से वृक्षारोपण और खाल-चाल बनाने की मुहिम 2004 तक चलाई गई। इसी दौरान वहां न सिर्फ नौला पुनर्जीवित हो गया बल्कि धारे में भी दशकों पहले जितना पानी लौट आया है। इस गांव में हरियाली भी लौट आई है। इसके अलावा भरारी धार में एक नौला पुनर्जीवित किया गया। जहां सूखे जंगल में सघन वृक्षारोपण किया गया। डोभाल गांव, कुंदनपुर, भैरगांव, मनियार गांव, मनदरिया, चौंठा, सैनी, सुंदरगांव, बैड़ा और कांडेई जैसे क्षेत्र के दर्जनों गांवों के नौले धारों में आज पानी पहले के मुकाबले बढ़ गया। इस मुहिम की एक खास बात यह भी रही कि आज पौड़ी जिले के 133 गांवों में महिला मंगल दल हैं और उन्होंने वृक्षारोपण कर घर के आस-पास ही चारे की व्यवस्था कर ली है अब वे इसके लिए वन नहीं जाती हैं। भारती को इस अभियान के लिए अपने परिवार का पूरा समर्थन मिला है। पत्नी मंजूलता, दो बेटियां स्वेता-सुनंदा और बेटा शिवाशीष भी अक्सर अभियानों में साथ दिखते हैं। वर्तमान में राज्य योजना आयोग के सदस्य बनाए गए भारती इन दिनों राज्य की जलनीति का मसौदा तैयार करने में व्यस्त हैं।

सच्चिदानंद भारतीसच्चिदानंद भारतीयह पूछे जाने पर उत्तराखंड के संरक्षणवादी समाज का रिश्ता जंगलों और जल से कमजोर कैसे हो गया तो वे इसके लिए अंग्रेजों को जिम्मेदार मानते हैं। जिन्होंने लोगों का शासित बनाने के लिए जल, जंगल और जमीन के अधिकार अपने हाथ में ले लिए जहां से धीरे-धीरे लोगों को लगने लगा कि इन चीजों का प्रबंधन तो सरकारों का काम है। जल संरक्षण के सवाल पर वे कहते हैं। कि प्राकृतिक जल संरक्षण एक-दो दिन का काम नहीं है यह एक पूरा विज्ञान है जिसमें शार्टकट नहीं चलता। दूधातोली लोक विकास संस्थान के माध्यम से सघन एवं सजल के अभियान में जुटे सच्चिदानंद भारती को अब तक संस्कृति प्रतिष्ठान नई दिल्ली से संस्कृति पुरस्कार, सर्वोदयी समाजसेवी कामों के लिए भाऊराव देवरस सम्मान, दिल्ली विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग द्वारा स्रोत सम्मान से नवाजा जा चुका है। क्षेत्र में तैयार किया गया जंगल और पानी के स्रोत तो पूरे देश के शोधार्थियों के लिए अध्ययनशाला बन चुके हैं। सघन और सजल को लेकर चलाई जा रही दुधातोली लोक विकास संस्थान और सच्चिदानंद भारती की मुहिम को मध्य प्रदेश सरकार ने भी सम्मानित करने का फैसला किया है। गांधी जयंती के अवसर पर 2 अक्टूबर को मध्य प्रदेश सरकार सच्चिदानंद भारती को राष्ट्रीय महात्मा गांधी पुरस्कार से सम्मानित करेगी। दस लाख वाली इनामी राशि वाले इस पुरस्कार को भारती क्षेत्र की जनता की मेहनत का सम्मान करार देते हैं।

Email:- Mahesh.pandey@naidunia.com

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