अपना तन, मन और धन लगाकर इस सेवानिवृत्त अधिकारी ने बनवा दी 100 से ज्यादा जल संचयन प्रणालियां

24 Jul 2020
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अपना तन, मन और धन लगाकर इस सेवानिवृत्त अधिकारी ने बनवा दी 100 से ज्यादा जल संचयन प्रणालियां
अपना तन, मन और धन लगाकर इस सेवानिवृत्त अधिकारी ने बनवा दी 100 से ज्यादा जल संचयन प्रणालियां

सरकारी सेवा के दौरान जन सेवा लगभग सभी कर्मचारियों अधिकारियों का कर्तव्य होता है। लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद अधिकांश आराम या ध्यान भजन की सोचते हैं अथवा पारिवारिक झमेलों या जीवन में आनंदमग्न रहते हैं। बिरले ही सेवा निवृत्ति के बाद अपना निजी धन लगाकर समाज सेवा हेतु सक्रिय होते हैं। इन्हीं बिरले लोगों में शामिल हैं, दिल्ली निवासी शासकीय सेवानिवृत्त रामचंद वीरवानी, जो अभी तक जल संरक्षण के क्षेत्र में निस्वार्थ भाव से कार्य कर रहे हैं और चाल, खाल, खंतियों और तालाबों सहित 100 से ज्यादा जल संचयन और जल संरक्षण प्रणालियों का निर्माण करवा चुके हैं।

रामचंद वीरवानी बचपन से प्रकृति के प्रति लगाव, नदियों, तालाबों के किनारे टहलने, पर्वतों की चोटियों व ऊँचे पेड़ों और उनमें फुदकते पंछियों को निहारने, जंगलों में फूलों व तितलियों को देखने व पकड़ने का शौक था। अपने शौक को उन्होंने पर्यावरण संरक्षण में बदल दिया। रामचंद वीरवानी ने बताया कि अपने यात्राओं के शौक में वे जहाँ जहाँ जाते थे अक्सर ही बंजर, सूखे व वृक्ष विहीन इलाके देखकर मन अवसाद से भर जाता था। घुमक्कड़ प्रवृत्ति के होने के कारण वे बंजर इलाकों, सूखा प्रभावित क्षेत्रों में अकेले ही निकल जाते हैं एवं निजी संसाधनों से जल पुनर्भरण संरचनाओं के निर्माण व वृक्षारोपण में जुट जाते हैं।

इंडिया वाटर पोर्टल से बात करते हुए रामचंद वीरवानी ने बताया कि उनके अनुसार इससे खाली समय व धन, दोनों का ही सदुपयोग हो जाता है। मैंने महसूस किया कि पूरे देश में पौधारोपण की अत्यंत आवश्यकता है। इसलिए शुरुआत पौधारोपण से की। शीघ्र ही अनुभव किया कि वृक्षों को देखभाल व सिंचन की सतत जरूरत होती है। उनके अभाव में अधिकतर पौधे पनप नहीं पाते। यह भी देखा कि जगह जगह सूखा है। लगभग हर जगह वाटर टेबल बहुत नीचे चला गया है। जल के अभाव में किसानों की खेती अच्छी नहीं होती। कई जगह किसान केवल एक ही फसल ले पाते हैं। खेती में नुकसान के कारण वे अपने इलाके से पलायन करने लगते हैं।

पौधारोपण करवाते हुए।

वीरवानी कहते हैं कि ज्यादातर लोग पौधारोपण में अधिक रूचि लेते हैं। खुरपियों से बहुत छोटे गड्ढे बनाकर छोटा पौधा रोप देते हैं। ऐसे लोग न तो पौधों को पर्याप्त सुरक्षा देते हैं और न ही पौधों के लिए पानी की व्यवस्था करते हैं। ऐसा इसलिए भी किया जाता है क्योंकि यह बहुत सस्ता व आसान होता है। फिर पौधों को भगवान भरोसे छोड़ देते हैं। 

ये सब देखकर उन्हें लगा कि पौधारोपण तो आवश्यक है ही, लेकिन शायद उससे पहले जल की कमी दूर करना या जल संरक्षण जरूरी है। जहाँ जल की अधिकता है वहां स्वयंमेव हरियाली है, पेड़ों की बहुतायत है एवं किसान भी अपेक्षाकृत खुशहाल हैं। अतः उन्होंने जल संरक्षण का कार्य करने का निर्णय किया। इन कार्यों को करने के लिए वे किसी पर आश्रित नहीं रहें और अपने खर्च से कुछ चैकडैम, स्टॉप डैम बनाकर तालाब बनवाने में लग गए। 

छोटे, मध्यम या बड़े तालाब बनाना यानि जल संरक्षण या जल रोकने की संरचनाओं का निर्माण काफी खर्चीला होता है। उन्होंने बताया कि उन्हें तो वृक्ष लगाना भी बहुत खर्चीला कार्य लगता है। जहाँ-जहाँ उन्होंने पौधे लगवाये वहां औसत ढाई फीट लंबे चैड़े व गहरे गड्ढे करवाये, उनमें अच्छी मिट्टी, खाद व कीड़े मारने वाली दवाई डलवाई। फिर छोटे नहीं बल्कि बड़े पौधे लगाए। कुल मिलाकर एक पौधे पर लगभग तीन सौ रूपये का खर्च आया, जबकि उसके लिए सुरक्षा व सतत पानी का इंतजाम था। यदि यह न होता तो ट्री गार्ड लगाने के बाद एक पेड़ पर 800 से 900 रूपये का खर्च आता और पानी की व्यवस्था अलग। यदि पानी का अभाव है तो सारा खर्च बेकार। अतः स्पष्ट है कि पेड़ लगाने से पहले पानी का प्रबंध जरूर हो। वैसे यह भी बात है कि जहाँ वृक्षों की बहुतायत होती है वहां पानी की कमी नहीं होती और इसके विपरीत जहाँ पानी की बहुतायत है वहां हरियाली की भी कमी नहीं होती। दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। 

तालाब को पुनर्जीवित करने से पहले और बाद की तस्वीर।

रामचंद वीरवानी ने बताया कि वे इंटरनेट, मैगजीन्स व अखबारों अथवा बंजर व सूखा प्रभावित क्षेत्रों में कार्यरत व्यक्तियों या संस्थाओं के माध्यम से जानकारी जुटाकर देश में जगह जगह भ्रमण कर बंजर व सूखाग्रस्त क्षेत्रों में उपयुक्त स्थान तलाश कर जल संरक्षण हेतु चैकडैम द्वारा तालाब निर्माण हेतु लग जाते हैं। वे क्षेत्र अधिकारियों, स्थानीय निवासियों, ग्राम प्रधानों आदि से मिलकर, सलाह कर ऐसे क्षेत्रों का चयन करते हैं जो हर प्रकार की बाधा से मुक्त हों, जहाँ किसी को किसी भी प्रकार का ऑब्जेक्शन न हो और वह सरकारी या जंगल की जमीन भी न हो तथा जहाँ तालाब बनाने पर लोगों एवं प्रकृति को भरपूर लाभ हो।

इसी कड़ी में उनका परिचय मोहन चंद्र कांडपाल से हुआ, जो स्वयं पर्यावरण सम्बंधित विषयों पर द्वाराहाट क्षेत्र में कई वर्षों से बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं। उनकी स्वयं की सीड सुनाड़ी संस्था है, जिसके माध्यम से वे पर्यावरण से सम्बंधित कार्य करते हैं। वीरवानी को मोहन चंद्र कांडपाल से यह जानकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि पहाड़ों में भी कई इलाकों में पानी का बहुत अभाव है। पहाड़ों के कई इलाके वृक्ष व जल विहीन हो चुके हैं। जल स्रोत सूख गए हैं। उनकी सफाई व वाटर रिचार्जिंग की नितांत आवश्यकता है। पहाड़ के जल संकट के बारे में जानने के बाद उत्तराखंड के भी कई क्षेत्रों में कई चैकडैम, पचासों चालों का निर्माण व जल स्रोत्रों की सफाई आदि करा चुके हैं।  

रामचंद वीरवानी द्वारा किए गए कार्य

द्वाराहाट में महिलाओं से चालखाल और खंतियां बनवाते हुए।

  • जून 2014 में बिठौली, द्वाराहाट में एक जल स्रोत, साथ में बने टैंक की सफाई व चाल का निर्माण करवाया। इसी दौरान दूनागिरि द्वाराहाट में दो छोटी चालों का निर्माण व दो जल स्रोत्रों की सफाई करवाई।
  • जुलाई 2014 में रामखाल भाटी वनकोटि, गणाई गंगोली में पत्थरों के ६० फीट लंबे चैकडैम का निर्माण करके न सिर्फ एक छोटे तालाब को बड़ा किया बल्कि उसको गहरा भी कराया। उसमें पर्याप्त पानी आने के लिए जलभराव क्षेत्र में चैनलों का निर्माण कराया। चैनलों के मध्य छोटे छोटे कुंड भी बनवाये ताकि मटमैला पानी पहले वहां अपनी मिट्टी व गंदगी छोड़कर साफ होकर तालाब में जाए।
  • सितंबर 2015 में नागार्जुन, द्वाराहाट में 40 फीट लंबा 4 फीट ऊँचा पत्थरों के बाँध का निर्माण कराया। यहीं नागार्जुन, द्वाराहाट में एक टूटी खाल को ठीक करवाया और सफाई करवाई तथा एक बहुत छोटा बड़े पत्थरों का गली प्लग बनवाया।        
  • ऋषिकेश से 20 किमी दूर दिउली मलेल गाँव में सड़क मार्ग पर वृक्षारोपण किया। वहां शिशु संस्थान के प्रबंधक ऋषि कुमारने कुछ ट्री गार्डों व पेड़ों को बच्चों द्वारा पानी देने की व्यवस्था की । अक्टूबर 2015 में यहीं जल पुनर्भरण हेतु 40 फीट लंबी कन्टूर ट्रेंच का निर्माण कराया।   
  • अप्रेल-मई 2016 में बड़कोट गाँव नई टेहरी में एक तालाब को गहरा करवाया व एक नयी 50 फीट लंबी व १० फीट चौड़ी चाल का निर्माण कराया।
  • जून 2016 में नट्टागुल्ली व कांडे गाँव द्वाराहाट में क्रमशः 6 व 2 चालों का, जल भराव क्षेत्र से पानी लाने के चैनलों समेत निर्माण कराया। इन चालों में कुछ कुछ पानी भरने व रुकने भी लगा है अर्थात इन्होंने जल पुनर्भरण व संरक्षण का काम शुरू कर दिया है।
  • नवंबर 2016 में गनोली, बयेला और द्वाराहाट में न सिर्फ 4 बड़ी नयी चालों का निर्माण कराया बल्कि छिछले दो तालाबों को 3 फीट गहरा करा दिया।          
  • नारसिंग में एक नयी चाल का निर्माण व तीन पुरानी चालों को चैनलों से जोड़ दिया व ठीक करा दिया ताकि ये पानी रोक सकें। 
  • जून 2017 में नट्टागुल्ली में ही एक सरकारी खर्च से बनाये तालाब में सिर्फ एक फीट गहराई तक पानी जमा होता, टिकता नहीं था क्योंकि पानी पत्थर की दीवारों के छेदों से बाहर निकल जाता था। गाँव वासियों ने इसको ठीक कराने व कुछ गहरा करने के लिए कहा। तो लेबर लगाकर दीवारों के छेदों में चिकनी मिटटी का प्लास्टर करवाया ताकि साइड लीकेज रुके। इसको कुछ गहरा भी करवा दिया। एक किनारे की दीवार को कुछ अतिरिक्त लम्बा करवाया ताकि वर्षा जल 3 फीट गहराई तक जमा हो जाये। इसमें वर्षा जल लाने वाले चैनल को भी बहुत लम्बा व गहरा करा दिया, ताकि यह तालाब जल्दी भर जाया करे।                               
  • अप्रेल 2018 में चौखटिया से 25 किमी दूर कूनाखाल में न सिर्फ २ मीटर गहरी 4x5x2 मीटर साइज की एक बड़ी चाल का निर्माण, कराया बल्कि खुदाई से निकली मिट्टी का उपयोग करके पास में ही 20 मीटर लम्बा व १ मीटर ऊंचा स्टॉप डैम भी बनवाया। इन दोनों से लगभग 50 हजार लीटर से ऊपर वर्षा जल जमा हो सकेगा।
  • फिर अक्टूबर, 2018 में उपरोक्त स्थान पर ही कूनाखाल और सोंगरा गाँव में 4 बड़ी व 1 छोटी 4x7x1, 3x8x1, 2x15x1, 3x8x1, 2x3x0.75 मीटर की चालों का निर्माण कराया। सोंगरा में ही गांव की एक जीप योग्य सड़क बड़े बड़े बोल्डर्स के गिरने के कारण कई दिन से बंद पड़ी थी, उसको जेसीबी से बोल्डर हटवाकर खुलवा दिया। एक छोटे जलस्रोत की सफाई भी करवा दी।
  • वर्षा जल संरक्षण व कुछ रोजगार देने के उद्देश्य से मल्लीकहाली, द्वाराहाट गांव की महिलाओं को कुछ चालें बनाने का कार्य दे दिया। उनको स्वतंत्रता थी कि अपने खाली समय में या कभी भी कार्य करें और जितने दिन में चाहें कार्य पूरा करें तथा चालें बनाने के उपरांत एक निश्चित दर पर धन लेती जाएं। मई 2019 में उन्होंने चाल बना ली। इसका महिलाओं को भुगतान भी किया गया।
  • अगस्त २०19 की द्वाराहाट यात्रा में फिर २ बड़ी चालें 12x3x2 मीटर की मल्ली कहाली व कुई गांवों में बनवाई, जिनमें एक बार में लगभग 50 हजार लीटर वर्षा जल जमा हो सकता है।    
  • इसके अलावा पात्र स्कूली बच्चों को ड्रेस, स्वेटर्स, शूज, बस्ते व खेल सामग्री वितरण करते हैं। अल्मोड़ा, द्वाराहाट के चैरा, गनौली व बेढुली गाँवों में 3 बालवाड़ियों के लिए जहां बच्चों को गणित, कला, विज्ञान, खेल कूद आदि में और निष्णांत किया जाता है, 3 स्टूडेंट टीचर्स को 1200 रुपये प्रति माह देते हैं । 
  • ग्रामीण महिलाएं कुछ आय अर्जित कर सकें इस हेतु सिलाई कढ़ाई आदि निशुल्क सिखाने हेतु गांव गाँव में केंद्र खोलते हैं, ताकि महिलाएं घर में ही सिलाई आदि करके कुछ बचत कर सकें या कमा सकें। इस क्रम में अभी सिमलगांव, पैथानी, बनोली व मल्लीकहाली गांवों से लगभग 100 से ज्यादा महिलाएं सिलाई कढ़ाई सीखकर अपने घरों में कार्य कर कुछ न कुछ बचत या आमदनी कर रही हैं। अभी द्वाराहाट के छतीना खाल व बेढुली में तथा छत्तीसगढ़, कोरबा के धनगांव में निशुल्क केंद्र चल रहे हैं, जहां महिला ट्रेनर्स को प्रति केंद्र 3 हजार प्रति माह देते हैं। इस लॉकडाउन पीरियड में उन्होंने अल्मोड़ा, द्वाराहाट के लगभग 150 परिवारों को भोजन सामग्री मुहैया कराई।
  • मध्य प्रदेश के हाथीपावा, कालीघाटी, मनास्या, गामड़ी, रूपापाड़ा, पांचपिपला  वडलीपाड़ा (झाबुआ), सारोला व गजानन पहाड़ी चिंचाला (बुरहानपुर), देड़तलाई (खंडवा), वाकानेर (अलीराजपुर),  आगर जिले के आमला, महारुंडी, सारंगाखेड़ी व उत्तर प्रदेश के महोबा में कुलपहाड़ के इंदौरा गाँव, बांदा के कालिंजर आदि में लगभग 45-50 छोटे व मध्यम आकार के तालाबों का निर्माण कराया, जिनमें 30 फीट से लेकर 150 फीट लंबे बाँध बने। वर्षा में लगभग सभी तालाब भरकर सुरक्षित रूप से जल पुनर्भरण व संरक्षण का कार्य कर रहे हैं। बुरहानपुर की फोपनार पहाड़ी, खंडवा के देड़तलाई, पेटलावद झाबुआ के रूपापाड़ा, मलेल ड्यूली,  ऋषिकेश व बुरहानपुर चिंचाला की गजानन पहाड़ी आदि अन्य स्थानों में उचित तरीके से सैकड़ों पेड़ लगवाए। 
  • अप्रैल 2012 में नांदगांव, वारासिवनी, बालाघाट में गायत्री परिवार के लोगों ने मिलकर 1100 पेड़ लगाए थे जिनके लिए पानी की समुचित व्यवस्था नहीं थी तो वहां एक कुआँ बनवा दिया।  
  • दिसंबर 2012 में इसी तरह छायन पश्चिम गाँव, झाबुआ में 3000 पेड़ लगवाये। पानी देने हेतु 1200 फीट लंबे मोटे पीवीसी पाइप की जरूरत थी, तो उनकी इस आवश्यकता की पूर्ति कर दी।        
  • मनास्या गाँव व पांच पिपला पेटलावद, झाबुआ के पठार पर इतनी अच्छी जगहें मिलीं कि एक के बाद एक 19 बहुत छोटे, छोटे व मध्यम आकार के तालाब बनाए। मनास्या में एक तालाब 15 दिसंबर को बनवाया था और 2 माह बाद इसके बांध की ऊंचाई व लम्बाई भी कुछ बढ़ाई। यह सुनकर बहुत अच्छा लगा जब मनास्या गाँववासियों ने बताया कि कुछेक किलोमीटर तक आसपास के क्षेत्र में केवल यही तालाब था, जिसमें लम्बे समय तक पानी रहता है और उनके पशु पानी के लिए यहीं आते हैं। इसलिए फिर फरवरी 2019 में तीसरी बार इसके बांध को कुछ और ऊंचा व लम्बा करवाया ताकि पानी साल भर टिका रहे। 
  • जनवरी 2016 में इसके ठीक विपरीत यहीं पर बनाये एक 100 फीट लम्बे बाँध से निर्मित तालाब का तल काफी झरझरा है अर्थात जमीन जल्दी पानी सोख लेती है। लेकिन इस मायने में बहुत उपयोगी है कि यदि एक वर्षा ऋतु में 5-6 बार भरता है, तो इसका अर्थ है कि यह अपनी क्षमता यानि 10 लाख लीटर का 5-6 गुना अर्थात 50-60 लाख लीटर जल से भूगर्भ रिचार्ज करेगा। यानि कुछ तो वाटर टेबल ऊपर करने में सहयोग करेगा। 
  • 2016 में यहीं मनास्या पर एक सरकारी बाँध के वेस्ट वीयर (अतिरिक्त जलनिकास मार्ग) में गाद भर जाने से बाँध से डेढ़ फीट नीचे तक पानी आ जाता था। उसकी ऊपरी पिचिंग निकल गयी थी और बाँध टूटने के कगार पर था। बांध के वेस्ट वीयर को गाद  मुक्त व कुछ गहरा करा दिया। दो साल बाद पुनः उस पूरे बांध को 2 फीट ऊंचा करा दिया। क्योंकि बीच से कुछ दब गया था जिससे उसके टूटने के सम्भावना लगभग खत्म हो गयी है और अब वह बांध सुरक्षित रूप से साल दर साल करोड़ों लीटर वर्षा जल जमा कर रहा है।         
  • सरकारी फण्ड से बनाये और बाद में टूट गए 4 बांधों को बनवाया। ऐसे टूटे बांधों पर सालों तक किसी का ध्यान नहीं जाता है और वह क्षेत्र पानी के अभाव से पीड़ित रहते हैं। जबकि टूटे बांधों की मरम्मत बहुत कम खर्च करके इनका आसानी से पुनरुद्धार किया जा सकता है। इस प्रकार के कार्यों से उनको इस बात की खुशी मिलती है कि इससे लाखों रूपये के public excheque यानि जनता के टैक्स की बचत होती है।
  • इस कड़ी में दिसंबर, 2015 में पेटलावद से 25 किमी दूर काली घाटी में टूटे हुए 2 सरकारी बांधों की और उनके वेस्ट वीयर की हजारों रुपये अपनी तरफ से लगाकर मरम्मत करा दी। अब हर वर्षा में वे दोनों सुरक्षित रूप से लबालब भर जाते हैं। इसी तरह से फरवरी, 2017 में गामड़ी और फरवरी, 2020 में सारंगाखेड़ी में एक-एक टूटे हुए तथा मनास्या (जनवरी, 2016 व फरवरी, 2019 में दो बार)) और पांचपिपला (दिसंबर, 2017 व 18 में दो बार) में एक-एक टूटने वाले बांधों को दुरुस्त व ऊंचा करके सालों साल के लिए उनका पुनरुद्धार कर दिया। अब ये सब साल दर साल करोड़ों लीटर पानी जमा करके वातावरण को लाभ पहुंचाते रहते हैं।
  • दिसम्बर 2016 में कालिंजर बाँदा में एक तालाब का चैकडैम 60 फीट की लंबाई में 6 फीट ऊंचा करा दिया। फिर नवंबर, 2017 में दुबारा उसको थोड़ा और ऊंचा करा दिया, जिससे उसमें पहले के केवल 2 फीट की अपेक्षा अब लगभग 5-6 फीट गहराई तक जल जमा हो रहा है।
  • जनवरी 2017 में पेटलावद, झाबुआ के गामड़ी गाँव में एक टूटे बाँध को न सिर्फ ठीक कराया बल्कि वहीं आसपास 3 छोटे तालाबों को गहरा किया व उनके बांध ऊंचे कराये ताकि वे ज्यादा पानी संजो सकें। 
  • यहीं एक तालाब गहरा कराने के दौरान एक जगह कुछ पानी निकलने पर उस स्थान को कुछ और गहरा व चौड़ा करा दिया। क्योंकि गाँव वाले सामूहिक श्रम से अब उस स्थान पर कुआँ बनाने को उत्सुक हो गए थे, जो उन्होंने कर दिया अर्थात यह कार्य वहां कुआँ बनने में निमित हो गया। 
  • इसी तरह रूपापाड़ा में एक व दौलतपुरा पेटलावद, झाबुआ में दो बहुत छोटे dug-out तालाबों का निर्माण कराया।
  • दिसंबर 2017में फिर गामड़ी में ही एक छोटे तालाब को गहरा कराया व इससे निकली मिट्टी से दो छिछले स्थानों के चारों ओर पाल बना दिए, जिससे वे छोटे छोटे तालाब बन गए - एक पंथ तीन काज। यहीं सड़क के दूसरी ओर एक अन्य छिछले क्षेत्र को कुछ गहरा कराकर इसके चारों ओर की मेढ़ को इस तरह दुरुस्त कराया कि यह भी एक छोटा तालाब बन गया और यहां भी अधिक वर्षा जल रुक सकेगा। गामड़ी और दौलतपुरा में 11 छोटी छोटी जल संरक्षण संरचनाओं का गहरीकरण, निर्माण और पुनरुद्धार किया।
  • जुलाई 2017 में रूपापाड़ा गाँव के पास के एक पठार पर लगाने हेतु आम, आंवला, इमली, सिरस, सहजन, सेवन, सीताफल, शीशम, जंगल जलेबी, ओहला, बांस, बहेड़ा आदि के 210 पौधे खरीदे। अपने घरों के आसपास या खेतों में लगाने हेतु आम, आंवला, इमली और बांस आदि का उपयोग देखकर 20-25 पौधे गाँव वालों ने चुपके से निकाल लिए। इससे खुशी ही हुई कि ये इनकी ज्यादा देखभाल करेंगे। इन पौधों को पठार के ऊपरी हिस्से में पहुंचवाकर यह कल्पना कर लगवाया कि पहाड़ी के ऊपर एक बार पेड़ लग गए तो नीचे की तरफ अपने बीजों को गिरा गिराकर नए पेड़ बनाते जाएंगे। यहीं पर कई वर्ष पहले किसी संस्था द्वारा बनाया एक बांध टूट गया था, मजदूर लगाकर उसको भी ठीक करवा दिया। 
  • दिसंबर, 2017 में पांचपिपला गांव के पास के पठार पर कई उपयुक्त स्थल ग्राम प्रधान पूनम चंद्र डामर व सम्पर्क संस्था के लक्ष्मण मुनिया ने दिखाए। यहां भी 3 छोटे चैकडैम, 4 मिनी बांध बनाये व एक मनरेगा के अंतर्गत बना बड़ा बाँध जो लगभग टूटने वाला था, उसको 3 फिट ऊंचा करा दिया व उसके अतिरिक्त जल निकास मार्ग को कुछ और चौड़ा व ऊंचा करा दिया ताकि उसके टूटने की सम्भावना लगभग खत्म हो जाये और पानी भी ज्यादा जमा हो। इससे यह तालाब लगभग 5-6 लाख लीटर ज्यादा पानी भी साल दर साल ज्यादा जमा करेगा। एक महीने बाद जनवरी 2018 में फिर इसी पांचपिपला पठार पर 3 और चैकडैम बनवाये व पिछले बनाये वालों को कुछ दुरुस्त किया।
  • दिसंबर 2018 में वडलीपाड़ा के पास पांचपिपला में एक 80 फीट लम्बा व 11 फीट ऊंचा बांध बनाया, जिससे निर्मित तालाब 120x60x7 लम्बे, चौड़ा व गहरे क्षेत्र में लगभग 10 लाख लीटर वर्षा जल जमा कर सकेगा। इस बांध बनाने हेतु 3-4 स्थानों से मिट्टी उठाने से जो छोटे छोटे गड्ढे बन गए थे उनको भी एक किनारे से बांध दिया ताकि वे भी कुछ वर्षा जल रोक कर जमीन में डाल दें।
  • जनवरी 2019 में 200 पौधे बुरहानपुर चिंचाला की गजानन पहाड़ी पर रोपने हेतु जेसीबी से इस तरह गड्ढों को खुदवाया व निकले मलबे को फैलाया कि वे गड्ढों के साथ खंतियां भी बन गई। यानि २०० बहुत छोटे पोखर से बन गए, जिनमें पौधे भी लगेंगे और वे वर्षा जल भी जमा करेंगे - एक पंथ दो काज। गजानन मंदिर पहाड़ी के टॉप पर भी  pits-cum-contour trench बनाकर पौधे लगाये। ताकि वर्षाजल जमा करने के साथ जब ये पौधे पेड़ बन जाएं तो उनके बीज नीचे की ढलानों पर गिरकर प्राकृतिक रूप से वृक्ष बनें। ऊपर हरियाली होगी तो नीचे स्वयंमेव फैलेगी। 11 ट्रेक्टर ट्रालियां काली मिट्टी व तालाब गाद की तथा डेढ़ सौ किलो केंचुआ खाद 6-7 तसले प्रति गड्ढे में डालने हेतु मंगाए ताकि पौधे उचित रूप से बढ़ सकें।
  • 2 छोटे सोख्ता टाइप के तालाब भी छोटे चैकडैमों द्वारा गजानन पहाड़ी पर बनाये। यदि एक वर्षा ऋतु में ये 5 बार भरें तो इसका अर्थ होगा  5x1 लाख x२ तालाब - यानी 10 लाख लीटर वर्षा जल भूगर्भ में डाल देंगे। कुछ हरियाली भी बढ़ाएंगे और कुछ भूजल भी। मई 2019 में यहीं पर एक और तीसरा छोटा तालाब भी बनवा दिया ।
  • फरवरी, 2020 में आगर जिले के आमला व महारुंडी गांवों में 80 फीट लम्बे 2 चैकडैम बनाये। सारंगाखेड़ी में वर्षों से टूटे पड़े एक चैकडैम को न सिर्फ ठीक किया बल्कि उसको कुछ ऊंचा करा दिया व उसके जल निकास मार्ग को कुछ चौड़ा व गहरा करा दिया ताकि उसके टूटने की सम्भावना खत्म हो जाये। महारूंडी गांव में ही एक घन मीटर क्षमता वाली लगभग 100 खंतियां बनवा दीं। एक भराव में ये एक लाख लीटर वर्षा जल भूमि में डाल देंगी। यदि एक वर्षा ऋतु में 15 बार भरें तो 15 लाख लीटर जमीन में डाल देंगी।
  • यहीं पर गांव वालों के अनुरोध पर एक नाले में वर्षों पहले रखे गए पानी निकालने के एक मीटर व्यास के तीन कतारों में रखे 6 पाइपों के ऊपर कच्ची सड़क का निर्माण करा दिया ताकि वर्षा ऋतु में गाँव वालों को नाले में बहते हुए पानी के अंदर न जाना पड़े। यहां सरकार द्वारा एक पक्की पुलिया का निर्माण किया जाना था जो वर्षों से लंबित है।       

जितने भी अभी तक तालाब बनाये उनमें वर्षा जल पहुंचाने हेतु जलागम क्षेत्र को अधिकतम घेरते हुए चैनल भी खोदकर तालाबों तक पहुंचाए ताकि अधिकतम वर्षा जल उनमें जाए। क्षेत्रानुसार कईयों के चारो ओर गहरी नालियां और वर्षा जल लाने वाले रास्तों/चैनेलो में उचित दूरी पर कई कई गड्ढे बनवाए ताकि कुछ भूमि क्षरण रुके और वर्षा जल भी अपनी कुछ कुछ गाद इनमें छोड़कर साफ होकर तालाब में जाये।    

वीरवानी इन कार्यो के लिए अधिकतर गाँव निवासियों के घरों में ही पेइंग गेस्ट हो जाते हैं। इससे न सिर्फ कार्य क्षेत्र के नजदीक होते हैं बल्कि किसी पर अपनी आवश्यकताओं व खानपान हेतु बोझ भी नहीं डालते और गाँव वालों को कुछ रोजगार भी मुहैया कराते हैं। गाँव वालों के कार्यक्रमों शादी-सगाई आदि में भी हिस्सा लेते हैं। वीरमानी ने ये सब कार्य अपने स्वयं के धन व सुपरविजन में कराये। 

उनका कहना है कि भगवन की इच्छा से वे आगे भी पर्यावरण और अन्य कार्यों में लगे रहेंगे। इस से मन को बड़ी संतुष्टि व आह्लाद मिलता है। सुदूर गाँवों में लोगों को घर बैठे काम मिलने से अच्छा भी लगता है क्योंकि पहाड़ी व अन्य दुर्गम क्षेत्र के गाँवों से लोगों के पलायन का एक कारण रोजगार का न मिलना भी है। उनका मानना है कि वे गिलहरी की भांति कुछ तो बालू समुद्र में डाल रहे हैं।


हिमांशु भट्ट (8057170025)

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