वाटर फार पीस के आईने में केन-बेतवा नदी जोड योजना

वाटर फार पीस के आईने में केन-बेतवा नदी जोड योजना
वाटर फार पीस के आईने में केन-बेतवा नदी जोड योजना

विश्व जल दिवस, 2021 के अवसर पर, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश की सरकारों के बीच केन-बेतवा नदी जोड योजना को जमीन पर उतारने के लिए, कुछ शर्तों के अधीन, अन्तोगत्वा, सहमति बन ही गई। दोनों राज्यों के बीच इस सहमति के वर्चुअल साक्षी बने प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी। गौरतलब है कि इस योजना से पन्ना टाइगर पार्क का जो हिस्सा डूबेगा उससे होने वाली पर्यावरणीय हानि की भरपाई के लिए, अब, मध्यप्रदेश के नौरादेही और दुर्गावती तथा उत्तर प्रदेश के रानीपुर अभयारण्य को नेशनल पार्क बनाया जावेगा। उनके क्षेत्र में विस्तार किया जाएगा। यह शर्त अनुमति का आधार है। उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में स्थित नौरादेही अभ्यारण (सागर, दमोह और नरसिंहपुर जिलों का 1197 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ) और दुर्गावती अभ्यारण्य (दमोह जिले के संग्रामपुर के निकट का 24 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र) तथा उत्तर प्रदेश के रानीपुर अभयारण्य (बांदा जिले का 230 वर्ग किलोमीटर ) को नेशनल पार्क बनाया जावेगा। यह तीनों अभ्यारण्य बुंदेलखंड इलाके में ही स्थित हैं। उन्हें नेशनल टाइगर कॉरिडोर के रुप में विकसित किया जावेगा। केन-बेतवा नदी जोड परियोजना को जमीन पर उतारने के पहले दोनों राज्यों को उपर्युक्त काम करना होगा और मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश की सरकारों को अपने-अपने द्वारा तैयार रोडमैप का दस्तावेज नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी को देना होगा। रोडमेप में पार्क के बढ़ाए जाने वाले एरिया के विवरण के साथ-साथ विस्थापन, डूब, मुआवजा इत्यादि इत्यादि का भी विवरण होगा। उस रोडमेप का परीक्षण किया जाएगा और उपयुक्त पाए जाने के उपरान्त ही, दोनों राज्स सरकारें, केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की सहमति से अधिसूचना जारी करेंगी।

इस परियोजना के अन्तर्गत केन नदी से बेतवा नदी में 1074 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी ट्रांसफर किया जावेगा। उस पानी का संचय करने के लिए मध्यप्रदेश के छतरपुर और पन्ना जिले की सीमा पर स्थित गंगऊ बांध के अपस्ट्रीम में डोढ़न गांव के पास 732 मीटर ऊँचा बांध बनाया जाएगा। परियोजना में लगने वाले धन का 90 प्रतिशत भारत सरकार द्वारा तथा बाकी 10 प्रतिशत राज्य देंगे। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के मीडिया को दिए वक्तव्य के अनुसार योजना की मौजूदा लागत 45 हजार करोड़ है। इस योजना से सिंचाई के अलावा 72 मेगावाट बिजली का भी उत्पादन होगा। परियोजना निर्माण के कारण कमांड को पानी मिलेगा और कैचमेंट के लोग अपने इलाके में बरसे पानी के बडे भाग से हमेशा-हमेशा के लिए महरुम होंगे। भारत सरकार को प्रस्तुत की जाने वाली रिपोर्ट में उन वंचित लोगों के, जो योजना के कैचमेंट में निवास करते है के संविधान प्रदत्त अधिकारों की प्रतिपूर्ति का ब्यौरा अनिवार्य रूप से सम्मिलित करना चाहिए। यह ब्यौरा सम्मिलित करना प्राकृतिक न्याय की दृष्टि से भी न्यायोचित है।  

उल्लेखनीय है कि जहाँ केन-बेतवा नदी जोड योजना से भारत सरकार सहमत है वहीं पर्यावरणविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा भूवैज्ञानिकों का एक बड़ा तबका उससे पूरी तरह असहमत है। यह सहमति या असहमति उस वर्ग की राय है जो परियोजना का वास्तविक हितग्राही नहीं है। वह केवल शुभचिन्तक है। उनके भले के लिए अपनी बात कहने वाला वर्ग। उनमें से एक तबका जल संचय की केन्द्रीकृत तकनीकी के आधार पर और दूसरा तबका प्रभावित क्षेत्र के पर्यावरण को होने वाली हानि की संभावना के कारण आमने सामने है। पहला तबका बांध का पक्षधर है तो दूसरा छोटी छोटी सैकड़ों निस्तार और परकोलेशन तालाबों का। गौरतलब है कि योजना के क्रियान्वयन से उन दोनों पक्षों के निजी जीवन पर कोई असर नहीं पड़ने वाला।

केन-बेतवा नदी जोड योजना जैसी योजनाओं के क्रियान्वयन का सीधा असर अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम में निवास करने वाले समाज पर पडता है। योजना के क्रियान्वयन के बाद कछार दो भागों में बंट जाता है। अपस्ट्रीम निवासी जलाभाव झेलते हैं, पानी को तरसते हैं, वहीं कमांड या डाउन स्टीम के लोग पानी के मामले में मालामाल हो जाते हैं। यह बीपीएल और एपीएल की कहानी जैसी है। केन-बेतवा जैसी योजना कछार के लोगों के बीच अमीरी और गरीबी की ही नहीं अपितु संसाधनों की दृष्टि से भेदभाव को जन्म देती है। लेखक को लगता है कि हर योजना में पानी की उपलब्धता का उद्देश्य, पूरे कछार के हर व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और शान्ति उपलब्ध कराने के लिए किया जाना चाहिए। मौजूदा सोच विभाजनकारी है। इस सोच के कारण ही योजनाओं द्वारा अपनाया जल प्रबंधन बेपटरी है। यह अकेले भारत की ही नहीं अपितु वैश्विक समस्या है।  

हर व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और शान्ति के उद्देश्य को ध्यान में रख हमें प्रत्येक प्रस्तावित जल योजना, का परीक्षण करना चाहिए। यदि इस परीक्षण को धरती पर मौजूद सभी जीवधारियों को ध्यान में रखकर किया जाए तो वह ऐसी अवधारणा को जन्म देगा जो हर हाल और हर परिस्थिति में इष्टतम पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करता है। जीवधारियों को स्थायी तौर पर सुकून प्रदान करता है। गौरतलब है कि कुदरत ने इसी अवधारणा के आधार पर हर जीवधारी को जहाँ है, जैसा है, के आधार पर टिकाऊ तरीके से इष्टतम पानी उपलब्ध कराया है। जीवधारियों की आबादी के बढ़ने या घटने से उस व्यवस्था पर कभी प्रतिकूल असर नहीं पडा। इस अवधारणा के आधार पर यदि केन-बेतवा नदी जोड योजना का परीक्षण किया जाए तो उसमें अनेक विसंगतियाँ दिखती हैं। यह बांध कैचमेंट में भूजल की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं करता। नदियों में अविरलता सुनिश्चित नहीं करता। यह योजना बाद जमाव की लाइलाज समस्या से मुक्त नहीं है। इस कारण उसकी आयु तय है। इस कारण उसका अनुपयोगी होना तय है। इस कारण वह सुख, समृद्धि और शान्ति का कारगर बीमा नहीं है। यह अस्थायी इलाज है। इस प्रकार के काम विकल्पहीनता की परिस्थितियों में ही किए जा सकते है। हमेशा नहीं।

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री ने विश्व जल दिवस के अवसर पर जल शक्ति अभियान: केच दी रेन ;जल शक्ति अभियान की शुरुआत की है। उन्होंने कहा है कि जल के प्रभावी संरक्षण के बिना देश का विकास संभव नहीं है। उन्होंने हर गांव में अगले 100 दिन बरसात के पानी के संरक्षण की तैयारियों के लिए समर्पित किए जाने और समाज की सक्रिय भागीदारी को सुनिश्चित करने का आव्हान किया है। इसके अलावा, उन्होंने पानी की जांच से गांव की महिलाओं को जोड़ने की बात कही है। उन्होंने केच दी रेन कार्यक्रम के अंतर्गत नई संरचनाओं का निर्माण, बावड़ी सहित पुराने तालाबों का जीर्णोद्धार, रिचार्ज इत्यादि पर काम करने का सुझाव दिया है। गौरतलब है कि इन कामों को सही तरीके से करने से हर बसाहट में जल संकट को समाप्त किया जा सकता है। इस तरह का प्रयास 2000 और 2001 में मध्यप्रदेश में हुआ है। वह प्रयास पानी रोको अभियान कहलाता था जिसमें जहाँ पानी बरसे उसे वहीं रोको। उसे छोटी-छोटी संरचनाओं में जमा करो।

प्रधानमंत्री का उपयुक्त सुझाव जल स्वराज की दिशा में काम करने की अवधारणा पर आधारित है। यह अवधारणा हर बसाहट में पानी की उस इष्टतम मात्रा की उपलब्धता सुनिश्चित करती है जो कछार के लोगों के बीच अमीरी और गरीबी को ही नहीं अपितु संसाधनों का भेदभाव को खत्म करती है। लेखक को लगता है कि यह सुझाव पूरे कछार के हर व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और शान्ति उपलब्ध कराने का सही रास्ता है। बेपटरी जल प्रबंधन को पटरी पर लाने का तरीका है। यही वाटर फॉर पीस का निरूपण मार्ग है। 

 

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