यमुना की ‘शुद्धि’ या सियासत

13 Dec 2016
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यमुना मुक्ति को लेकर उत्तर प्रदेश के ब्रजमंडल से शुरू हुए आंदोलन की लहरों ने पिछले दिनों राजधानी दिल्ली में भी खलबली पैदा कर दी। इस बार आंदोलनकारी यमुना को ‘मुक्त’ कराने के लिये आर-पार की लड़ाई की बात कर रहे हैं। यमुना रक्षक दल के संत जयकृष्ण दास के मुताबिक, यमुना को प्रदूषण मुक्त बनाने पर 2000 करोड़ रुपये खर्च होने के बाद भी अब तक एक बूँद यमुना जल ब्रज क्षेत्र में नहीं पहुँच सका है। ‘छोटी नदियाँ बचाओ अभियान’ के अध्यक्ष ब्रजेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं कि छोटी नदियों के पानी के बिना मैदानी हिस्सों में गंगा और यमुना की अविरल धारा की कल्पना करना बेमानी है।

पाण्डु नदी को पुनर्जीवित करने के बाद ब्रजेंद्र सिंह इन दिनों यमुना की सहायक नदी ससुर खदेरी को पुनर्जीवित करने के प्रयास में लगे हैं। उनके अनुसार आगरा के बाद यमुना को अगर चंबल की पाँच नदियों का पानी न मिले तो यमुना तो वृंदावन में ही मरी हुई पहुँचती है। कुछ ऐसी ही बात ‘यमुना जिए’ अभियान के मनोज मिश्र भी कहते हैं। उनके अनुसार, जब यमुना में सीवर का गिरना बंद हो जाएगा तो लोगों का यह भ्रम भी टूट जाएगा कि शहर से एक नदी भी गुजरती है। यमुना को लेकर किए गए इन दावों को यदि सच माना जाए तो हाल ही में संपन्न हुए प्रयाग कुंभ के जिस संगम में लोगों ने डुबकी लगाई उसमें सरस्वती के साथ यमुना भी गायब थी।

इस यात्रा को लेकर केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से यह कोशिश भी चल रही है कि उनकी कुछ माँगें मान कर और कुछ वादों के साथ आंदोलनकारियों को वापस लौटा दिया जाए। आंदोलनकारियों का कहना है कि केंद्र सरकार यदि लिखित आश्वासन दे देती है तो वे वापस लौटने को तैयार हैं।

यमुना मुक्तिकरण अभियानदो साल पहले भी वृंदावन के बाबा रमेश दास की अगुआई में ‘यमुना रक्षकों’ ने इलाहाबाद से दिल्ली तक की यात्रा की थी। उस वक्त भी उन्होंने केंद्र सरकार के सामने मांग रखी थी कि यमुना में पर्याप्त पानी छोड़ा जाए और इसे नालों से बचाने के लिये वजीराबाद से ओखला तक 22 किलोमीटर नहर बनाकर उसमें सारे नाले जोड़ दिए जाएँ। उस समय यूपीए अध्यक्ष सोनिया गाँधी और केंद्रीय मंत्रियों ने उन्हें यमुना की सफाई का भरोसा दिया था, लेकिन वह खोखला साबित हुआ। लेकिन यमुना को लेकर यह कोई पहला आंदोलन नहीं है। इससे पहले यमुना की सेहत सुधारने के लिये श्री श्री रविशंकर जैसे हाई प्रोफाइल संत मैदान में उतर चुके हैं। ‘क्लीन यमुना प्रोजेक्ट’ नामक उनकी संस्था की ओर से दिल्ली के कुछ घाटों पर सफाई अभियान चलाया था, लेकिन यह अभियान भी महज प्रतीकात्मक ही रहा। इससे पहले यमुना को तारने का बीड़ा ‘जल-पुरुष’ राजेंद्र सिंह भी उठा चुके हैं। राजेंद्र सिंह के मुताबिक, आज नदियों को पुनर्जीवित करने का जैसे ही कोई अभियान या आंदोलन खड़ा होता है, सरकारी तंत्र उसे तोड़ने में जुट जाता है।

ब्रजमंडल से शुरू हुए इस आंदोलन को मिल रहे जनसमर्थन को देखकर जहाँ केंद्र सरकार को एक बार फिर अपनी किरकिरी होती नजर आ रही है, वहीं ‘यमुना मुक्तिकरण पदयात्रा’ के बहाने राजनीतिक हित साधने के आरोप भी लग रहे हैं। आंदोलनकारियों की भारतीय जनता पार्टी से नजदीकी तब जगजाहिर हुई, जब साध्वी उमा भारती, ऋतंभरा और आगरा के भाजपा सांसद रामशंकर कठेरिया ने पदयात्रा में शामिल होकर यह स्पष्ट कर दिया है कि वे दिल्ली पहुँचने पर दम दिखाएँगे।

आंदोलनकारी खुद भी इन राजनेताओं के दरबार में हाजिरी लगाने के लिये पहुँचे। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह और लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने भी आंदोलनकारियों को आश्वासन दिया कि वे उनकी बात को संसद में पुरजोर तरीके से उठाएँगे। ऐसा नहीं है कि नदियों को लेकर हो रही सियासत में भाजपा पहली बार कूदी हो। इससे पहले उमा भारती ने जब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान अपनी ‘गंगा समग्र यात्रा’ की थी, तो यह साफ हो गया था कि सत्ता के सिंहासन पर पहुँचने के लिये उनका जोर अब गंगा पर होगा। इस मुद्दे पर वह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी से भी मिली थीं।

गंगा-यमुना के मुद्दे को जहाँ वर्तमान अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने हाल ही के पार्टी अधिवेशन में उठाया था, वहीं 2011 में पूर्व भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने तो बकायदा ऐलान किया था कि यदि पार्टी सत्ता में आती है तो यमुना को राष्ट्रीय नदी का दर्जा दिया जाएगा। भले ही दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार मल्होत्रा कह रहे हों कि यमुना जैसी पवित्र नदी को गंदे नाले में तब्दील करने का काम दिल्ली की शीला सरकार ने किया हो लेकिन भाजपा जब केंद्र और राज्य में रही तब उसने यमुना को बचाने के लिये क्या किया? शीला दीक्षित जब 1998 में मुख्यमंत्री बनीं तो उन्होंने यमुना को लेकर बड़े-बड़े दावे किए थे। लेकिन सत्ता में आते ही यमुना उनके एजेंडे से बाहर हो गई।

दिल्ली में प्रदूषित यमुनाआंदोलन से जुड़ी अन्य संस्थाओं ने जब दबे स्वर से कहना शुरू किया है कि भाजपा ने यमुना आंदोलन को हाइजैक कर लिया है तो इस मुहिम के अगुआ संत रमेश बाबा को आगे आकर स्पष्ट करना पड़ा कि यात्रा किसी राजनीतिक मकसद या किसी के विरोध में नहीं की जा रही है। उनका कहना है कि यमुना को हथिनी कुंड बराज से मुक्त कराने में जो भी सहयोग करेगा, उसका सहयोग लेंगे। माना जा रहा है कि सरकार और आंदोलनकारियों के बीच कोई समझौता न होने की सूरत में इस आंदोलन का हश्र भी बाबा रामदेव के आंदोलन जैसा हो सकता है। वहीं आंदोलनकारियों का कहना है कि जंतर-मंतर में यदि उन्हें पुलिस की लाठियाँ भी खानी पड़ीं तो वे उसे लट्ठमार होली समझ लेंगे लेकिन इस बार आश्वासन नहीं बल्कि यमुना की धारा के साथ ही लौटेंगे।

बहरहाल, सरकारें भले ही गंगा-यमुना जैसी नदियों को न साफ कर पाई हों, लेकिन ब्रिटेन की टेम्स, न्यूयॉर्क की हडसन और गुजरात की साबरमती नदी को साफ करने का चमत्कार दिखाया जा चुका है। ताजा आंकड़े बताते हैं कि भारतीय शहरों का 80 प्रतिशत गंदा पानी सीवेज के जरिए सीधे नदियों में गिराया जाता है। पर्यावरण एवं वन राज्यमंत्री जयंती नटराजन ने हाल ही में राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में कहा कि यमुना के पानी की गुणवत्ता में मांग और जलशोधन क्षमता के बीच अंतर तथा नदी में ताजे पानी की कमी के कारण अपेक्षित सुधार नहीं हुआ है।

सर्वोच्च न्यायालय के तमाम आदेश और फटकार के बाद जब मैली यमुना की हालत में कोई बदलाव नहीं दिखा तो शीर्ष अदालत ने इसके लिये दस सदस्यीय विशेष समिति का गठन कर दिया था। जिस समय दिल्ली में यमुना मुद्दे को लेकर आंदोलनकारी जंतर-मंतर की तरफ बढ़ रहे थे, उस समय समिति ने तमाम केसों की तरह रिपोर्ट पेश करने के लिये एक और तरीख मांग ली थी। जिस गति से गंगा-यमुना प्रदूषित हो रही हैं, उसे देखते हुए यही कहा जा सकता है कि इनकी न तो संतों को चिंता है और न सीकरी को चाह।

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