नदियों के संरक्षण हेतु समग्र योजना की आवश्यकता
छोटी नदियां के पुनर्जीवन को मुद्दा बनाना होगा
पर्यावरण संरक्षण के विषय सामान्यतया चुनावी बिंदु नहीं बनते। परंतु दिल्ली के विगत विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक भाषण में यमुना मैया की स्वच्छता का विषय प्रमुखता से आया। मुझे स्मरण है कि यमुना स्वच्छता को समर्पित नदी कार्यकर्ता अशोक उपाध्याय यह आवाहन करते रहे हैं कि चुनावी समय में जब प्रत्याशी आपके द्वार आए तो यमुना मैया के लिए उनकी क्या योजना है, यह प्रश्न अवश्य करना।
दिल्ली में नई सरकार गठित हुई है और यमुना स्वच्छता पर कुछ गतिविधि अवश्य दिखाई पड़ी है, परंतु एक समग्र योजना के साथ सतत कार्य की आवश्यकता है जिसमें दूषित जल का प्रवाह यमुना मैया में न जाए, यह बिंदु प्रमुख है। सरकार केंद्र की हो अथवा किसी प्रदेश की, पर्यावरणीय विषयों के प्रति गंभीर सोच रखने वाले शासन से अपेक्षा बढ़ जाती है। यह विषय यमुना मात्र का नहीं, देश के प्रत्येक क्षेत्र में प्रवाहमान समस्त नदियों की पीड़ा दूर करने का है। बड़ी संख्या में स्थानीय नदियां पूर्णतया जलशून्य हो गई हैं।
भैंसी के लिए एक कोशिश
भैंसी नदी, उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी ज़िले में बहती है। 42 किलोमीटर लंबी यह नदी गोमती नदी की सहायक नदी है। भैंसी नदी, जो इस क्षेत्र की जल प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, आज गंभीर पर्यावरणीय और प्रशासनिक चुनौतियों का सामना कर रही है। हाल के निरीक्षणों और नागरिक रिपोर्टों के आधार पर यह स्पष्ट हुआ है कि नदी के किनारों और जलग्रहण क्षेत्र पर अवैध अतिक्रमण, अनधिकृत निर्माण, तथा कचरा एवं जल-मल निस्तारण जैसी समस्याएँ तेजी से बढ़ी हैं।
उत्तर प्रदेश में गोमती की सहायक नदी भैंसी की बात करते हैं। यह नदी शाहजहांपुर पीलीभीत की सीमा से निकल कर लगभग 55 किलोमीटर की दूरी तय कर शाहजहांपुर के पुवायां विकासखंड की जेवाँ न्याय पंचायत क्षेत्र में पन्नघाट के निकट गोमती में संगम हो जाती थी और गोमती के प्रवाह को बल देती थी। 15 वर्ष पूर्व इसका जल प्रवाह शून्य हो गया और नदी क्षेत्र अतिक्रमण का शिकार हो गया।
2016 में लोक भारती ने भैंसी के पुनर्जीवन पर एक बड़ा अभियान चलाया, नदी क्षेत्र के ग्रामवासियों का सहयोग प्राप्त हुआ और नदी की पूरी दूरी का प्रवाह क्षेत्र स्वच्छ कर दिया गया।
इस भैंसी नदी पुनर्जीवन अभियान में कुछ कार्य ऐसे थे जो समाज एवं संगठन की कार्यक्षमता से बाहर थे और सरकार के संबंधित विभागों को करने थे। इस कार्य को छह वर्ष होने वाले हैं और वे सभी कार्य अभी तक लंबित हैं। भैंसी उद्गम स्थल गहलुइया में एक छोटे से चेक डैम का निर्माण एवं रामदेवरी नामक स्थान पर पुलिया पुनर्निर्माण जैसे कुछ कार्य हो जाने से विलुप्त होती एक नदी को जीवन मिल सकता है। इसका परिणाम इस क्षेत्र में पर्यावरणीय संतुलन एवं जल समृद्ध क्षेत्र बनाने में सहायक होगा। इस वार्ता में सीतापुर जनपद में समाज और शासन के समन्वय से प्राप्त उत्तम परिणाम की चर्चा करना उपयुक्त होगा।
गोमती की एक अन्य सहायक नदी कठिना में भी कुछ वर्ष पूर्व जल प्रवाह क्षीण हो गया था। लोक भारती की योजना में कठिना नदी पर कार्य प्रारंभ हुआ और दो वर्ष में ही यह परिणाम आया कि जिस स्थान पर दुपहिया वाहन से लोग नदी पार कर लेते थे वहाँ नाव चल रही है। इस जनपद में गोमती की अन्य सहायक नदी मंदाकिनी पर कार्य चल रहा है। इस अभियान के फलस्वरूप क्षेत्र में तालाबों के पुनर्जीवन कार्य से प्राकृतिक जल स्रोत जीवित हो उठे हैं।
छोटी नदियों के समग्र विकास की आवश्यकता
आशय यह कि प्रमुख नदियों की सहायक/उप सहायक नदियों के संरक्षण और पुनर्जीवन पर एक समग्र योजना की आवश्यकता है। इसके अंतर्गत वर्षा जल को तालाबों एवं भूजल रूप में संचित करना, नदी क्षेत्र में प्राकृतिक कृषि को प्रोत्साहन, नदी भूमि का चिन्हांकन एवं इस क्षेत्र में यूकेलिप्टस जैसे वृक्षों को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित करते हुए पर्यावरण अनुकूल हरित पट्टी का विकास आदि पर कार्य की आवश्यकता है। इसके साथ ही नदी पर पूर्व से कार्य कर रहे जागरूक नागरिकों से समन्वय स्थापित कर शासकीय योजनाओं का क्रियान्वयन हो। इस प्रकार से यदि हम स्थानीय नदियों को अविरल प्रवाह दे सकें और छोटी-छोटी संकटग्रस्त नदियों को पुनः स्वच्छ और सजल कर सकें तो अवश्य ही गंगा और यमुना जैसी प्रमुख नदियों का अविरल निर्मल प्रवाह संभव हो सकेगा।