चंपावत की श्यामला ताल झील सूखने लगी है

जानिए क्या कारण है कि चंपावत जिले की एकमात्र झील श्यामलाताल आज अपने अस्तित्व को तलाश रही है और तकरीबन 7 मीटर गहरी झील में अब सिर्फ एक से डेढ़ मीटर पानी रह गया है।
28 Apr 2024
0 mins read
चंपावत की श्यामलाताल झील, प्रतीकात्मक
चंपावत की श्यामलाताल झील, प्रतीकात्मक

हिमालय के तलहटी में 1500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित श्यामला ताल एक सुंदर झील है, झील के चारों तरफ भरपूर मात्रा में हरियाली और जंगल हैं। झील के एक किनारे पर एक स्वामी विवेकानंद आश्रम है, जो इस स्थान के मुख्य आकर्षणों में से एक है। झील की लंबाई 250 मीटर और चौड़ाई 100 मीटर से अधिक है। थोड़ा सा व्यवस्थित करके नौका का संचालन भी शुरू कर दिया गया था। श्यामला ताल या श्यामला झील का नाम इसलिए रखा गया कि झील गहरी होने के कारण आकाश अपनी पूरी नीलिमा के साथ झील के पानी में दिखता है, झील नीले-हरे यानी श्याम रंग की हो जाती है, तो लोग इसको श्यामला झील बोलते हैं। इस जगह से सुंदर हिमालय के बर्फबारी शिखर के दर्शन होते हैं। टनकपुर से लगभग 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस ताल किनारे स्वामी विवेकानंद के प्रमुख स्वामी विरजानंद द्वारा स्थापित ‘स्वामी विवेकानंद आश्रम’ भी प्रमुख आकर्षण है। 

सूख रही झील 

चंपावत जिले की एकमात्र झील श्यामलाताल आज अपने अस्तित्व को तलाश रही है. तकरीबन 7 मीटर गहरी झील में और सिर्फ एक से डेढ़ मीटर पानी रह गया है। बारिश नहीं होने से श्यामला ताल झील सूखती जा रही है। झील में पानी लगातार कम होने से झील का आकार सिमट गया है, इससे नौका संचालन में भी दिक्कत आने लगी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि झील में लीकेज हो गई है, जिसकी वजह से झील का पानी तेजी से घट रहा है। 

शासन-प्रशासन की हीलाहवाली के चलते झील का अस्तित्व खत्म होने के कगार में आ गया है, तो वहीं झील की बदहाली इस कदर है कि झील कुमाऊं मंडल विकास निगम के पर्यटन मैप में भी नहीं है। इसके चलते क्षेत्र में पर्यटन का में कोई विकास नहीं हो पा रहा है। स्थानीय लोग कुमाऊं मंडल विकास निगम के कुप्रबंधन को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, तो वहीं मामले में जिला प्रशासन के अधिकारी झील के सौंदर्यीकरण के लिए कोई भी योजना जिले के पास नहीं होने की बात कह रहे हैं।

झील में पानी कैसे आता है

श्यामलाताल में आसपास की बिसोरिया नाले से और पूर्णागिरि मार्ग के बाटनागाड़ से झील में पानी आता है। इन रास्तों में हो रहे भूस्खलन ने नई चुनौती पैदा की है। लंबे अर्से से दरक रही पहाड़ियों की और न तो शासन का ध्यान है और न ही प्रशासन गंभीर है। भू-विज्ञान के लिहाज से कुमाऊं की पहाड़ियां कमजोर हैं और मामूली बारिश में भी पहाड़ी में भूस्खलन का खतरा आम बात है। भू-विज्ञानी यहां की पहाड़ियों पर भूस्खलन के खतरे से पहले भी आगाह कराते रहे हैं। चंपावत जिले में सूखीढांग क्षेत्र की श्यामलाताल की पहाड़ी वर्षों से दरक रही हैं, जिससे कई गांवों में भूमि धंस रही है और कई मकानों में दरार तक आ चुकी है। यहां तक कि पर्यटन स्थल श्यामलाताल तक भूस्खलन का असर दिखाई देने लगा है।

पर्यटक मुंह मोड़ने लगे

दैनिक हिन्दुस्तान में प्रकाशित संतोष जोशी के एक रिपोर्ट के मुताबिक झील में पानी कम होने से नाव का निचला हिस्सा झील किनारे जमीन से टकराने का खतरा मंडरा रहा है। कोरोना काल के बाद टनकपुर से 25 किलोमीटर दूर स्थित इस झील पर सबका ध्यान गया। 2022 के बाद वहां पर पर्यटन विभाग की मदद से नौकायन की शुरुआत हुई। नौका संचालकों के मुताबिक झील की लंबाई ढाई सौ मीटर और चौड़ाई 100 मीटर से अधिक है, लेकिन रख-रखाव और पानी के रिसाव वाली जगह का ट्रीटमेंट नहीं होने से झील में लगातार पानी कम होने लगा है। नौका संचालक विनोद मैथानी ने बताया कि झील में पानी कम होने से पर्यटक वहां से मुंह मोड़ने लगे हैं, अंदरूनी हिस्से में लीकेज और बढ़ रही गर्मी के कारण पानी का लेवल कम होने लगा है। विनोद नैथानी कहते हैं कि बरसात में झील लबालब भरी रहती है, लेकिन सीजन में उन्हें कम पानी होने से घाटा हो रहा है। बताया कि डेढ़-दो महीने पहले तक रोजाना 30-40 पर्यटक यहां आते थे। लेकिन अब 10 भी नहीं पहुंच रहे हैं। व्यवस्था के नाम पर यहां पर पर्यटकों को खाने-पीने के लिए न कैंटीन की व्यवस्था है, न बैठने के लिए बेंच। पानी का स्तर कम होने से झील के बड़े-बड़े पत्थर दिखने लगे हैं। पर्यटक वहां पर आना कम करने लगे हैं। 

 

झील को बचाने को क्या करना होगा

चंपावत को झीलों का जिला बनाने में लगे हुए सरकारी प्रयास के लिए यह खबर एक बड़ा धक्का है। जरूरत इस बात की है कि प्रशासन झीलों के संरक्षण के लिए तुरंत यह कदम उठाए। पहला करने लायक काम यह है कि नौकायन के लिए झील के आउटलेट को जब से नियंत्रित किया गया, तब से इसकी प्राकृतिक उड़ाही बंद हो गई है। इसमें कृत्रिम उड़ाही करने की जरूरत है यानी खुदाई करने की जरूरत है। दूसरा, साथ ही झील के आसपास के इलाकों में ट्यूबवेलों पर नियंत्रण करने की जरूरत है। अनियंत्रित रूप से लोगों द्वारा खोदे जा रहे सबमर्सिबल- ट्यूबवेल से झील का पानी कम होता जा रहा है। तीसरा इसके पानी आने के रास्तों में जो रुकावट हो रही है यानी इसके कैचमेंट प्रोटेक्शन यानी कैचमेंट को सुरक्षित रखने पर ध्यान देना चाहिए, कैचमेंट प्रभावित होगा तो पानी कम आएगा।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading