hauz khas lake
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अभी और कितने ठिकाने बदलेगी राजधानी

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भारत की इस वर्तमान राजधानी के पास यमुना भी है, अरावली की पहाड़ियां भी, पैसा भी और सिर पर बरसने वाली बारिश का पर्याप्त वार्षिक औसत भी। इसने पुरानी पांच दिल्ली के उजड़ने-बसने से कुछ नहीं सीखा। लिहाजा, पानी के मामले में वर्तमान दिल्ली आज परजीवी नगर है; गंगनहर, यमुना, रैनी वैल, टैंकर और जलशोधन संयंत्र और पीपीपी के बूते नागरिकों की जेबों पर कहर ढहाती जलापूर्ति व्यवस्था! बावजूद इसके आज दिल्ली के नलों में अकसर पानी गंदला ही आ रहा है। दिल्ली, 11वीं सदी के बाद से किसी-न-किसी शासक की राजधानी रहा है; बावजूद इसके पानी के कारण इसकी अवस्थिति बदलती ही रही है। सन् 1020 में यह अरावली की पहाड़ियों पर बरसे जल को संजोने वाले कुण्ड से होने वाली जलापूर्ति पर टिका नगर था। तब तोमरवंश के राजा अनंगपाल द्वारा बसे इस नगर का नाम स्थानीय सूर्य मंदिर और उसकी सीढ़ियों से लगे कुण्ड के कारण सूरजकुण्ड था। इसके बाद कई दिल्ली बसीं। बतौर राजधानी भी दिल्ली ने कई दौड़ लगाई; दिल्ली से दौलताबाद और दौलताबाद से दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र इस क्रम में आठवीं कवायद है।

सन् 1052 में यमुना से 18 किलोमीटर दूर महरौली के निकट किला राय पिठौरा मुगलिया सल्तनत का पहली राजधानी थी। 1296 में अलाउद्दीन खिलजी द्वारा बसाई दूसरी दिल्ली का केन्द्र वर्तमान सिरीफोर्ट था और हौजखास, जलापूर्ति का मुख्य स्रोत। आबादी बढ़ने और पानी का संकट गहराने पर गियासुद्दीन तुगलक (1320-25) ने तुगलकाबाद को चुना।

यमुना के नजदीक होने के बावजूद किले की सुरक्षा की दृष्टि से पहाड़ी को चुना। सात तालाब, तीन बावड़ियां और बड़ी संख्या में कुएं बनवाए। जलनिकासी के लिए बनाए नाले को आगरा नहर से जोड़ दिया। मुहम्मद बिन तुगलक ने वर्तमान साकेत के पास 64.97 मीटर ऊंचा सतपुला (फाटक लगे सात पुल) से जलापूर्ति सुनिश्चित कर चौथी दिल्ली बसाई। नाम दिया - जहांपनाह यानी दुनिया का पनहगार।

सन् 1325 में मुहम्मद बिन तुगलक अपनी राजधानी लेकर तत्कालीन मराठवाड़ा में स्थित दौलताबाद (पुराना नाम-देवगीरि) गया। पूर्णतः वर्षा पर आधारित होने के बावजूद दौलताबाद सचमुच पानी की दौलत वाला इलाका था। मजबूत होने पर स्थानीय शासकों ने 1350 में दिल्ली के सूबेदारों को वापस दिल्ली खदेड़ दिया।

जल नियोजन की नायाब मिसाल: शाहजहांनाबाद

जब बादशाहत शाहजहां के हाथ आई तो वह पानी से जूझती दिल्ली को अरावली की पहाड़ियों से उठाकर यमुना के किनारे दिल्ली गेट से कश्मीरी गेट के बीच ले आए। नाम रखा - शाहजहांनाबाद। पूर्व बसी चार दिल्ली की तुलना में शाहजहांनाबाद का जल नियोजन सर्वश्रेष्ठ था। सितारे वाली नहर, नहरे फैज, नहरे बहिशत, पुल बंगश, चद्दरवाला पुल तथा, बाराखंभा के अवशेष आज भी जलनियोजकों के उस शानदार कारनामें को बयां कर रहे हैं।

1639 से 1648 के दौरान लालकिले का निर्माण हुआ। शाहजहांनाबाद बसने के दौरान ही शाहजहां के मातहत अली मर्दन खां ने यमुना से नहर निकाली। उसे वर्तमान नजफगढ़ के निकट स्थित सिरमौर पहाड़ियों से निकलने वाली एक पुरानी नहर में जोड़ दिया। पुरानी नहर अलवर से आने वाली साहिबी नदी के पानी को नई नहर में डालने का काम करने लगी।

भोलू शाह पुल के बाद नगर और लालकिले को पानी पिलाने के लिए नई नहर से तीन धाराएं निकाली गईं। यह धाराएं क्रमशः वर्तमान ओखला, कुतुब रोड, निजामुद्दीन, फतेहपुरी, नावल्टी, हजारीबाग, कुदसिया बाग, फैज बाजार, दिल्ली गेट के इलाके को पानी देती थी। कुओं, दीघियों और हौजों को पानी से भरने का काम भी नहरें ही करती थी। गौरतलब है कि 1843 के शाहजहांनाबाद में 607 कुएं थे। इनमें से 52 में मीठा पानी था। नगर का गंदा पानी घुसने पर 80 कुएं बंद करा दिए गए।

गजेटियर के मुताबिक दिल्ली देहात के सिंचित खेतों का अनुपात 57 फीसदी था। इसमें 19 फीसदी इलाके कुओं का पानी लेते थे और 18 फीसदी की सिंचाई नहरों से होती थी। शेष 20 फीसदी की सिंचाई नौ बांधों से होती थी। इनमें शादीपुर और महलपुर के बांध प्रमुख थे। अंग्रेज आए तो दिल्ली में 350 तालाब थे।

मुख्य नहर कई बार सूखी, पानीदार हुई। चांदनी से फतेहपुरी तक की नहर कब सूखी, कहीं उल्लेख नहीं; लेकिन यह मालूम है कि अंग्रेजों के आने के बाद 1890 में चारदीवारी वाली दिल्ली में इसका पानी आना बंद हो गया। इसी के साथ तय हो गया कि राजधानी को उठकर कहीं और जाना पड़ेगा। आगे चलकर लुटियन की दिल्ली नई राजधानी के रूप में अस्तित्व आई। आज हम इसे नई दिल्ली के नाम से जानते हैं।

अनुभव भूले का नतीजा नई दिल्ली

गौरतलब है कि भारत की इस वर्तमान राजधानी के पास यमुना भी है, अरावली की पहाड़ियां भी, पैसा भी और सिर पर बरसने वाली बारिश का पर्याप्त वार्षिक औसत भी। इसने पुरानी पांच दिल्ली के उजड़ने-बसने से कुछ नहीं सीखा। लिहाजा, पानी के मामले में वर्तमान दिल्ली आज परजीवी नगर है; गंगनहर, यमुना, रैनी वैल, टैंकर और जलशोधन संयंत्र और पीपीपी के बूते नागरिकों की जेबों पर कहर ढहाती जलापूर्ति व्यवस्था! बावजूद इसके आज दिल्ली के नलों में अकसर पानी गंदला ही आ रहा है। अब पानी के एटीम लगाकर साफ पिलाएगी दिल्ली। ‘टोकन डालो, पानी निकालो’। इस पर वाह कहें कि आहें भरें? आप तय करें।

जल तिजोरी कानी, फिर भी राष्ट्रीय राजधानी

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के रूप में पैर फैलाती दिल्ली.. सातवीं दिल्ली है। लगता है कि इस सातवीं दिल्ली में पानी का नियोजन किया ही नहीं गया। ताज्जुब है कि ‘मिलेनियम सिटी’ गुड़गांव का नियोजन करते वक्त सोचा ही नहीं गया कि इस जगह की जलसंसाधन क्षमता सात लाख से अधिक आबादी झेलने की नहीं है। कल यदि आबादी 25 लाख पहुंच गई, तो पानी कहां से आएगा?

गुड़गांव की आबादी आज 18 लाख है। तालाबों और जोहड़-जोहड़ियों पर कब्जे और उपेक्षा के कारण जलसंसाधन क्षमता बढ़ने की बजाय कम हुई है। नतीजा यह कि धरती का पानी 75 फीट से उतरकर 135 फीट तक पहुंच गया है। कहीं-कहीं यह गहराई 400 फीट को छू रही है।

बिजली की कटौती छह से आठ घंटे हो गई है। लिहाजा, औद्योगिक और होटल परिसरों में 9,000 बड़े तथा कार्यालय परिसरों में 20,000 छोटे नलकूप हैं; हर घर में समर्सिबल हैं; बावजूद इसके पानी के लिए लाइनें हैं; मारामारी है। व्यावसायिक भूजल दोहन पर रोक लगा दी गई है। जिले के 108 गांव भी इस रोक का कष्ट भुगत रहे हैं। टैंकर मालिक 1,000 रुपये में 4,000 लीटर पानी बेच रहे हैं।

आकलनकर्ता कह रहे हैं कि अगले 10 साल में गुड़गांव का भूजल रसातल पर पहुंच जाएगा; तब गुड़गांव बिजली-पानी के लिए दूसरों पर निर्भर एक और परजीवी होगा। हिंडन और यमुना जैसी नदियों के दोआब में स्थित होने के बावजूद जलसंसाधनों के नियोजन में कमी के शिकार दिल्ली से सटे नोएडा, नोएडा एक्सटेंशन, ग्रेटर नोएडा और फरीदाबाद भी हैं। हाल यही रहा तो भविष्य में समूचा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र इस कमी की चपेट में आने वाला है।

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अरुण तिवारी

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