अभी भी सपना है ग्रामीण शुद्ध पेयजल की उपलब्धता

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ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम: अनेक कामों में इस्तेमाल होने वाला जल हमारी दैनिक जिंदगी का महत्वपूर्ण हिस्सा है। शुद्ध पेयजल के महत्व को किसी भी प्रकार से कम नहीं किया जा सकता। जल के शुद्ध न होने पर अनेक बीमारियां हो जाती हैं। पेयजल राज्य विषय है और इसलिये ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल सुविधायें उपलब्ध कराने की योजनाएं राज्य सरकारें अपने संसाधनों से चलाती हैं। भारत सरकार इस कार्य के लिये त्वरित ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम के अंतर्गत राज्य सरकारों को सहायता उपलब्ध कराती है। देश में 31 जनवरी 2001 तक मौजूद 14,22,664 ग्रामीण बसावटों में से निम्न मानदंडों के अनुरूप 12,12,243 में पूरी तरह पेयजल उपलब्ध कराया जा चुका था, 1,87,139 में आंशिक रूप से उपलब्ध कराया गया था जबकि 23,282 में पेयजल सुविधाएं अभी पहुंचनी बाकी हैः-

प्रतिदिन प्रत्येक व्यक्ति को 40 लीटर शुद्ध पेयजल, मरूभूमी विकास कार्यक्रम क्षेत्रों में मवेशियों के लिये प्रतिदिन अतिरिक्त 30 लीटर, 250 व्यक्तियों की आबादी के लिये एक हैंडपंप या स्टैंड पोस्ट, मैदानी इलाकों में बसावटों के बीचों-बीच अथवा 1.6 किमी. के अंदर जल स्रोत ‘पहाड़ी इलाकों में 100 मीटर की उंचाई तक’ होना चाहिए। ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम के अंतर्गत सरकार ने अब तक 35 लाख से भी ज्यादा हैंडपंप लगाये हैं और 1.5 लाख योजनायें पाइप द्वारा जल उपलब्ध कराने की चलाई गई है।

ज्यादा से ज्यादा स्थानों पर जल उपलब्ध कराने के अलावा सरकार जल की गुणवत्ता की समस्याओं के समाधान का प्रयास कर रही है जैसे फ्लोराइड की अधिकता, लवणता की अधिकता, लौह की अधिकता, आर्सेनिक की अधिकता आदि। इसके लिये अलग-अलग उप मिशन चलाये जा रहे हैं जिनके अंतर्गत ग्रामीण लोगों के लिये शुद्ध पेयजल सुनिश्चित करने के वास्ते निरोधक तथा उपचारी उपाय किये जाते हैं। त्वरित ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम के अंतर्गत मिलने वाली राशि के 20 प्रतिशत तक के हिस्से को राज्य सरकारें उप-मिशन कार्यक्रम के अंतर्गत परियोजनाओं के इस्तेमाल कर सकती हैं। गुणवत्ता की समस्या पत्थर/मृदा की विशेषताओं के कारण हो सकती है या फिर मनुष्य द्वारा विभिन्न तरीकों से फैलाये जा रहे जल प्रदूषण के कारण हो सकती है। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम भूजल को दूषित न करें। सभी क्षेत्रों में बसावटों के फैलने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में भूजल पेयजल का मुख्य स्रोत है और लगभग 85 प्रतिशत ग्रामीण पेय जलापूर्ति भूजल पर निर्भर है। इसलिये पेयजल संसाधनों का स्थायित्व बहुत जरूरी है। हमें पानी के संरक्षण के लिये जल के इस्तेमाल, जल एकत्र करने तथा परकोलेशन टैंक, चैक टैंक जैसे उपाय करने चाहिये। स्रोतों और प्रणालियों के दीर्घावधि स्थायित्व को सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने ग्रामीण जलापूर्ति क्षेत्र में सुधार किये हैं। ग्रामीण पेय जलापूर्ति योजनाओं में सामुदायिक हिस्सेदारी को पक्का स्वरूप दिया गया है जिसके अंतर्गत लाभार्थियों को पूंजीगत लागत का कुछ अंश देना होगा और उसके संचालन और रख-रखाव की जिम्मेदारी लेनी होगी। ऐसा प्रस्ताव है कि इस क्षेत्र में सुधार को जब पक्का स्वरूप दे दिया जायेगा तब ग्रामीण जलापूर्ति योजनाओं के अमल का काम धीरे-धीरे पंचायती राज संस्थाओं को दे दिया जायेगा।

यह फैसला किया गया है कि प्रायोगिक तौर पर सुधारों को देशभर में 63 पायलट जिलों में चलाया जाये जिसमें से 57 से ज्यादा जिलों में क्रियान्वयन की स्वीकृति दी जा चुकी है। इन पायलट परियोजनाओं के क्रियान्वयन से प्राप्त अनुभव के बाद इस परिकल्पना को देश के बाकी बचे जिलों में फैलाया जायेगा। सरकार ने वर्ष 2000-2001 से प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना के रूप में एक नई पहल शुरू की है। पीएमजीवाई-ग्रामीण पेयजल के अंतर्गत प्रत्येक राज्य/केंद्रशासित प्रदेश को अपने हिस्से का कम से कम 25 प्रतिशत भाग ऐसी परियोजनाओं/कार्यक्रमों पर खर्च करना होगा जिनसे जल संरक्षण, जल उपयोग, जल एकत्र करने, मरुभूमि विकास कार्यक्रम/सूखा बहुल क्षेत्र कार्यक्रम वाले इलाकों में ज्यादा दोहन हो चुके डार्क/ग्रे ब्लाकों तथा अन्य जल की कमी/सूखा प्रभावित क्षेत्रों में पेयजल स्रोतों के स्थायित्व के लिये किया जायेगा।

आवंटित राशि का बाकी 75 प्रतिशत हिस्सा गुणवत्ता संबंधी समस्याओं के समाधान वाली योजनाओं तथा जलस्रोतों के बिना तथा आंशिक रूप से उपलब्ध स्रोतों के बिना तथा आंशिक रूप से उपलब्ध स्रोतों वाले इलाकों में शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए किया जायेगा।
 

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