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ऐतिहासिक तालाब के लिए ऐतिहासिक फैसला
ऐतिहासिक तालाब के लिए ऐतिहासिक फैसला
कीरत सागर तट पर सन् ११८२ ई. में दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान और चंदेलवंश के राजा परमर्दि देव परमाल के मध्य हुये यु़द्ध मे परास्त दिल्ली नरेश पृथ्वी राज चौहान को जान बचाकर वापस दिल्ली भागना पड़ा था। इस विजय युद्ध के गवाह बने कीरत सागर के इतिहास में आल्हा-ऊदल की वीर गाथाओं की स्मृतियां भी समाहित है। जिनका बखान सम्पूर्ण उत्तर भारत में बडे़ ही गौरव के साथ वीर रस भरे गायन आल्हा के रूप में किया जाता है।
उपरोक्त यु़द्ध में विजय की खुशी का प्रतीक बना कजली मेला आज भी हर साल श्रावण मास में कीरत सागर तट पर एक सप्ताह तक चलता है। इसे कजली महोत्सव का भी नाम दिया गया है।
ऐतिहासिक तालाब की निर्मलता,सदा रही-यक्ष प्रश्न
कीरत सागर निर्मल अभियान की साझी पहल
कीरत सागर के नाम अपना बैंक खाता
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