सिरनियां के पास बागमती और दरभंगा बागमती का संगम स्थल
सिरनियां के पास बागमती और दरभंगा बागमती का संगम स्थल

बागमती तटबन्ध गैरजरूरी और नुकसानदेह भी

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बिहार की सबसे उपजाऊ इलाके से प्रवाहित नदी है बागमती। इस नदी पर तटबन्ध बनाने का इतिहास जितना पुराना है, उतना ही विवादग्रस्त भी। ताजा विवाद दशकों से बन्द पड़ी परियोजना को अचानक फिर से आरम्भ करने से उत्पन्न हुआ है। इसे लेकर आयोजित जन सुनवाई में तटबन्ध निर्माण पर तत्काल रोक लगाने और परियोजना की समीक्षा के लिये कमेटी का गठन करने की माँग की गई। कहा गया कि अगर एक महीने के भीतर सरकार समीक्षा समिति का गठन नहीं करती है तो जनता की ओर से समीक्षा कमेटी का गठन किया जाएगा और जन महापंचायत का आयोजन किया जाएगा।

चास-वास जीवन बचाओ-बागमती संघर्ष मोर्चा का कहना है कि पिछले पचास-साठ वर्षों में बागमती नदी की संरचना और बहाव में बड़ा परिवर्तन आया है। इससे पुरानी योजना अप्रासंगिक हो गई है। वैसे उस योजना के आधार पर जहाँ तटबन्ध बने हैं, वहाँ उनका विनाशकारी स्वरूप ही सामने आया है।

मुजफ्फरपुर जिले में जिस बागमती पर तटबन्ध बनाए जा रहे हैं, उन प्रस्तावित तटबन्धों के दोनों ओर बागमती की कई छारण धाराएँ बह रही हैं। इस तरह तटबन्ध लाभ पहुँचाने के बजाय अतिरिक्त परेशानी पैदा करेंगे क्योंकि तटबन्ध के भीतर के लोग भी परेशान होंगे और बाहर के भी। तटबन्धों के बाहर छूटने वाली धाराएँ अतिरिक्त बाढ़ का कारण बनेगी। जिन इलाकों में तटबन्ध बन गए हैं, वहाँ के लोग इन्हीं कारणों से परेशान हैं। उन्हें अभी तक पर्याप्त मुआवजा और पुनर्वास तो कतई नहीं मिला है।

मोर्चा के संयोजक जितेन्द्र यादव ने बताया कि तटबन्ध के चलते दरभंगा और मुजफ्फरपुर की सैकड़ों बस्तियाँ उजड़ जाएगी और हजारों लोग विस्थापित होंगे। मोटे आकलन के अनुसार दोनों जिले की 120 गाँव तटबन्धों के भीतर पड़ने से उजड़ जाएँगे। लगभग 12 लाख हेक्टेयर जमीन डूब जाएगी। यही नहीं तटबन्ध टूटने से आने वाले जल प्रलय के अन्देशे में पूरा इलाका रहेगा।

सीतामढ़ी जिले के जिस इलाके में तटबन्ध बन गए हैं, वहाँ जमीन उसर हो गई है और जमीन की उत्पादकता बड़े पैमाने पर प्रभावित हुई है। उपजाऊ इलाके में जंगल उग आये हैं और पूरा इलाका जंगली जानवरों का बसेरा बन गया है। क्योंकि जल निकासी नहीं होने से खेती की जमीन दलदली हो गई है। लोग आबादी करने नहीं जाते।

पहले हर साल बागमती में बाढ़ के साथ उपजाऊ मिट्टी आती थी। दोनों फसलें अच्छी होती थीं। लोग खुशहाल थे। लेकिन जबसे इस नदी को तटबन्ध के माध्यम से तीन किलोमीटर के दायरे में कैद करने का सिलसिला शुरू हुआ, बाढ़ का विनाशकारी रूप दिखाई पड़ने लगा।

अभी मुजफ्फरपुर से दरभंगा को जोड़ने वाला एनएच 57 प्रस्तावित बाँध को बेनीबाद में पार करता है। इस पर बाँध की सीमा के भीतर केवल चार छोटे-छोटे पुल हैं। इस कारण नदी का प्रवाह रुकेगा और तटबन्धों पर दबाव बढ़ेगा। इससे तटबन्धों के टूटने और जानमाल की भीषण क्षति के अन्देशे से इनकार नहीं किया जा सकता।

दरअसल, बागमती के पानी के बहाव को समस्तीपुर जिले के हायाघाट में 300 मीटर में समेट दिया गया है जिसे और आगे कोल्हुआ में 150 मीटर में सीमित कर दिया गया है। इस वजह से जलजमाव होता है, पानी को बहने का रास्ता नहीं मिलता। पानी लम्बे समय तक टिकता है और भीषण तबाही होती है।

अगर हायाघाट और कोल्हुआ में पानी को बहाव का प्रशस्त रास्ता दिया जाये तो उस पूरे इलाके में बाढ़ की भयावहता समाप्त हो जाएगी और लाखों लोगों को विस्थापन का जीवन गुजारने की नौबत नहीं आएगी। इसे करने के लिये बागमती परियोजना की समीक्षा करके उसे नए सिरे से बनाने की जरूरत होगी, पुरानी योजना का आगे बढ़ाना केवल सुनिश्चित आफत को बुलावा देना है।

नदी विशेषज्ञ रणजीव कहते हैं कि प्रस्तावित तटबन्ध अनेक छोटी-छोटी सहायक नदियों के बीच प्राकृतिक सम्पर्क को समाप्त कर देंगे जिससे वे छोटी नदियाँ भी बाढ़ का कारण बनने लगेगी।

बागमती के तटबन्धों का नुकसान और हर साल तटबन्धों के टूटने की नियति को देखकर 80 के दशक में सीतामढ़ी जिले में ही अधूरा छोड़ दिया गया था। उस समय तटबन्ध मुजफ्फरपुर सीतामढ़ी सड़क के करीब सात किलोमीटर ऊपर तक ही बने थे। नीतीश सरकार के आगमन के बाद उसे आगे बढ़ाकर रूनी सैदपुर के पास लाकर हाइवे से जोड़ दिया गया। इसका अधिक विरोध नहीं हुआ क्योंकि तटबन्धों के बीच आई बागमती तटबन्धों के समाप्त होने पर अधिक उत्पात करती थी और तकरीबन हर साल हाइवे टूट जाता था। लेकिन हाइवे के पार तटबन्ध निर्माण का तटवर्ती गाँवों के निवासी 2011 से लगातार विरोध कर रहे हैं। विरोध होने पर कुछ महीनों के लिये निर्माण कार्य रोक दिया जाता है, फिर कार्य आरम्भ हो जाता है। इस साल लगातार आन्दोलन चल रहा है।

फरवरी महीने में ग्रामीणों ने सात दिनों का सत्याग्रह अनशन किया। फिर इस महीने 9 मार्च को नेशनल हाइवे को जामकर अपना विरोध जताया। सड़क जाम कर रहे ग्रामीणों के बीच जिला उपायुक्त ने तटबन्ध निर्माण रोकने के लिये सरकार को लिखने का आश्वासन दिया। हालांकि उसके दो दिनों के बाद फिर ठेकेदार के आदमी निर्माण स्थल पर पहुँच गए। दोनों तरफ से हाथापाई, रोड़ा पत्थर चलने की नौबत आ गई। इलाके के प्रमुख लोगों के हस्तक्षेप से स्थिति बिगड़ी नहीं, परन्तु लगातार तनाव बरकरार है।
 

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