बारिश की फुहार में रोगों की भरमार

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परिवर्तन प्रकृति का नियम है किंतु मानव शरीर को इसके साथ तालमेल बिठाने में थोड़ा वक्त लगता है। वह किसी भी परिवर्तन का पहले विरोध करता है फिर इसके साथ सामंजस्य स्थपित कर लेता है। दो परिवर्तनों के बीच का समय ही संक्रमण काल कहलाता है।

संक्रमण काल में स्वास्थ्य के प्रति अधिक सचेत रहने की आवश्यकता होती है क्योंकि प्रतिरक्षा प्रणाली अपने न्यूनतम स्तर पर व संक्रामक शक्तियां अपने उच्चतम स्तर पर होती हैं। तेज धूप के बाद होने वाली गर्मी फिर बारिश की ठंडी फुहारें, मौसम में नमी, वातावरण में उमस यह सब रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं, कीटाणुओं आदि के पनपने के लिए सबसे अनुकूल माध्यम तैयार कर देते हैं। इसमें होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं में पाचन , त्वचा, श्वसनतंत्र, एवं वातरोग प्रमुख रूप से हो सकते हैं.. मौसम की सभी ऋतुओं का आनंद ले सकते हैं किंतु हमें ऋतुओं के परिवर्तन के बीच के संक्रमण काल में अपने स्वास्थ्य के प्रति अधिक सचेत रहने की आवश्यकता होती है। क्योंकि इस समय हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली अपने न्यूनतम स्तर पर व संक्रामक शक्तियां अपने उच्चतम स्तर पर होती हैं।

तेज धूप के बाद होने वाली गर्मी फिर बारिश की ठंडी फुहारें, मौसम में नमी, वातावरण में उमस यह सब रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं, कीटाणुओं आदि के पनपने के लिए सबसे अनुकूल माध्यम तैयार कर देते हैं।

इस काल में होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं में पाचन, त्वचा, श्वसनतंत्र, एवं वातरोग प्रमुख रूप से हो सकते हैं। इस समय हम अपने खानपान व जीवनशैली के नियमन से ही कई बीमरियों से बच सकते हैं।

पाचन संबंधी रोग

श्वसन संबंधी रोग

वातरोग

त्वचा व सौंदर्य संबंधी रोग

रक्त विकारों के चलते फोड़े, फुंसियां, छोटी-मोटी चोट पर पस बनना, नकसीर फूटना आदि समस्याओं में वृद्धि होना आम बात है। रक्त में मास्ट कोशिकाओं से हिस्टामिन का स्रावण कई पदार्थो के लिए एलर्जिक रिएक्शन प्रदर्शित करता है जिससे पित्ती या त्वचा पर खुजली, जलन व दर्दयुक्त लाल, उभरे सूजन वाले चकत्ते हो सकते हैं। इन्हें अर्टकेरिया कहते हैं।

इन दिनों सारकोप्टस स्कैबाई नामक परजीवी से स्कैबीज की खुजली एक प्रमुख रोग है जो बेहद संक्रामक है व छुआछूत से फैलता हैं। इसकी शुरुआत शरीर में जोड़ों के बीच नमी वाले स्थानों जैसे उंगलियों के बीच, जननांगों के बगल, जांघों, कुहनी, घुटनों, गर्दन, कमर पर व बालों के नजदीक होती है। शुरू में पानी जैसे द्रव भरी छोटी-छोटी फुंसियां या दाने होते हैं जो फूट कर रोग को फैलाते हैं तथा वहां सूखी नालादार पपड़ियां बन जाती हैं। कभी-कभी आठ पैरों वाली जुएं जैसे जीव बालों की जड़ों में चिपके हो सकते हैं।

इसके अतिरिक्त आसपास गंदगी व पानी जमा होने से मक्खी, मच्छर व दूषित जल से तमाम रोगों की संभावना बढ़ जाती हैं जिनमें प्रमुख रूप से मलेरिया, टायफायड, चिकनगुनिया, डेंगू, पीलिया, ज्वर, मधुमेह आदि में वृद्धि हो सकते हैं।

बचाव के उपाय

अपनी व अपने आस-पास की गंदगी तथा दूषित संक्रमित बासी भोजन व फलों के सेवन से बचना ही श्रेयस्कर है। प्रतिदिन नहाएं, सूखे पतले, ढीले व सूती वस्त्र पहने, बिस्तर की चादरें, खोल आदि को धूप दिखाएं। देर में पचने वाले गरिष्ठ भोजन, मांसाहार, अधिक मसालेदार, तैलीय, बासी, खुले, हरी पत्तेदार सब्जियों के सेवन से बचें व शाकाहारी बनें। भोजन में तुलसी, नींबू, अदरक, शहद का प्रयोग करें.. देर में पचने वाले गरिष्ठ भोजन, मांसाहार, अधिक मसालेदार, तैलीय, बासी, खुले, हरी पत्तेदार सब्जियों के सेवन से बचें व शाकाहारी बनें। भोजन में तुलसी, नींबू, अदरक, शहद का प्रयोग करें। स्वच्छ पानी के लिए उसमें फिटकरी का टुकड़ा डालकर साफ कर लें जिससे तमाम जीवाणु व गंदगी नीचे बैठ जाएगी।

उबाल कर ठंडे पानी में नींबू व शहद मिलाकर सुबह पीने से गैस व पेट के अन्य रोगों के साथ ही मधुमेह व वजन में सहायता मिलती है। शाम को जल्दी खाएं व मच्छरदानी में सोएं, सुबह जल्दी उठें।

प्रतिदिन भोजन के बाद सेंधा नमक के साथ कुछ जामुन खाएं किंतु इसके बाद दूध न पिएं। अथवा जामुन को सुखाकर चूर्ण बना लें। प्रतिदिन इसका सेवन करने से मधुमेह के नियंत्रण में भी मदद मिलती हैं।

आसपास गंदा पानी एकत्र न होने दें। नियमित रूप से परजीवीनाशकों का छिड़काव कराएं या गंबूजिया मछली डलवाएं।

होम्योपैथिक उपचार

पाचन रोगों में एण्ड्रोग्रफिस, काडरुअस, नक्स, आर्स, चायना, ब्रायो, एलो, पोडो, मर्कसाल, काबरेवेज, श्वास रोगों में आर्स, इपिकाक, ग्रिंडैलिया, नैट्रम सल्फब्रायो, आदि त्वचा रोगों में रसटाक्स, डल्कामारा, सल्फर, सोरयनम, एंथ्रासिनम, इचिनेशिया, आर्निका, आदि होम्योपैथिक औषधियां बेहद कारगर सिद्ध हुई हैं।

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