भारत जल-स्वावलम्बन प्रस्ताव - 2019 
भारत जल-स्वावलम्बन प्रस्ताव - 2019 

भारत जल-स्वावलम्बन प्रस्ताव - 2019 

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प्रस्तावक :

मूल विचार  

भूजल स्तर में आती गिरावट - परावलम्बी जलापूर्ति, पानी के बाज़ार, पलायन तथा अशांति को प्रोत्साहित करती है। सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय दृष्टि से यह प्रतिकूल परिस्थिति होती है। इसे रोकने के लिए ज़रूरी है कि भारत का प्रत्येक गांव, खण्ड, ज़िला व नगर पानी के मामले में स्वावलम्बी हो।

प्राथमिक लक्ष्य

प्रकृति के पर्यावरणीय संवर्द्धन तथा प्रत्येक जीव के जीवन व आजीविका हेतु आवश्यक भूजल-सुरक्षा तथा तद्नुसार गुणवत्ता मानकों को हासिल करना।

लक्ष्य प्राप्ति हेतु राज्यों से अपेक्षित 21 नीतिगत् निर्णय प्रस्ताव

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यह नीति, सिद्धान्ततः अपनी आजीविका अथवा धनार्जन हेतु पानी को अति आवश्यक स्त्रोत के रूप में उपयोग वाले सभी उपभोक्ता वर्गों पर लागू हो। सिंचाई एवम् उद्योग, पानी के क्रमशः सबसे बडे़ दो उपभोक्ता हैं। अतः यह नीति प्राथमिकता के तौर पर सर्वप्रथम इन दो वर्गों के उपभोक्ताओं पर लागू की जाए। इनमें भी सबसे पहले, बोतलबंद पानी, शीतल पेय, शराब आदि बनाने वाली उन कम्पनियों पर, जो स्थानीय समुदाय के हिस्से का सतही/भूजल का अति दोहन कर पानी का ही पैसा बनाते हैं। 

इस नीति का क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए अनुशासन-प्रोत्साहन संबंधी शासनादेश जारी हों।

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बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी ने पेयजल व्यवस्था को वार्ड समिति को सौंपने का निर्णय नवम्बर, 2016 में पहले ही ले लिया था। अब सभी राज्यों को चाहिए कि प्रदेश शासन, गांव स्तर पर ग्राम जल स्वच्छता एवम् स्वावलम्बन की समग्र एवम् समयबद्ध कार्ययोजना बनाने तथा उसे क्रियान्वित करने का सम्पूर्ण दायित्व व आर्थिक-तकनीकी-प्रशासनिक अधिकार संबंधित वार्ड समिति को सौंप दें। वार्ड समिति के कार्य का सुचारु और स्वावलम्बी बनाने के मार्ग में जो भी प्रशासनिक, तकनीकी तथा आर्थिक बाधाएं हों; उन्हे समाप्त करने हेतु सतत् सक्रिय रहें; निर्णय लें। स्थानीय शासन-प्रशासन, स्वयं को सिर्फ प्रेरणा, क्षमता विकास, निगरानी, समीक्षा, समन्वय तथा मांग होने पर अन्य सहयोग की भूमिका में रखें। 
इसी नीति का अनुसरण करते हुए प्रदेश शासन, नगरीय जल स्वच्छता एवम् स्वावलम्बन हेतु नियोजन व समयबद्ध क्रियान्वयन का सम्पूर्ण दायित्व व आर्थिक-तकनीकी-प्रशासनिक अधिकार नगरीय ’अपनी सरकार’ अर्थात नगर पंचायतों/नगर-निगमों को सौंपे तथा स्वयं को तथा स्थानीय प्रशासन को प्रेरणा, क्षमता विकास, निगरानी, समीक्षा, समन्वय तथा मांग होने पर अन्य सहयोगी की भूमिका निभाए।

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6. बाध्यता हो कि प्रदेश की सभी ग्राम पंचायतें आपस में मिलकर अधिकारिक रूप से प्रत्येक न्याय पंचायत क्षेत्रवार भूजल-निकासी की एकसमान अधिकतम गहराई तय करे, जिससे नीचे जाने की अनुमति सिर्फ लगातार पांच साला सूखे से उत्पन्न आपात्स्थिति में ही हो। यह गहराई, ’डार्क ज़ोन’ घोषित किए जाने के लिए तय गहराई से हर हाल में कम से कम 10 फीट कम ही हो। पालना नहीं करने पर संबंधित व्यक्ति के शासकीय योजना लाभ वापस लिए जा सकंे तथा एक ग्रामसभा में 10 से अधिक व्यक्तियों द्वारा ऐसा करने पर ग्राम पंचायतों को वित्तीय आवंटन रोक दिए जाए। 

इसी मौलिक नीति के आधार पर नगर-पंचायतें/नगर निगम/पालिकायें भी अपने-अपने क्षेत्र में भूजल की अधिकतम एकसमान गहराई तय करें।

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इसी तरह क्षेत्र पंचायतें, ग्राम पंचायतों की राय से अपने-अपने विकास खण्ड के अंतर-न्याय पंचायती स्तर के एक-एक जल ढांचे तथा उद्यान/वन को लेकर दर्जा देने, मानक तय करने तथा मानकों की पूर्ति हेतु कार्ययोजना बनायें तथा उसका क्रियान्वयन करें। 

इसी तर्ज पर ग्राम पंचायतें भी अपनी क्षेत्र सीमा के कम से कम एक तालाब को आदर्श तालाब तथा एक-एक आदर्श वन/उद्यान तथा आदर्श चारागाह का विकास करें।

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प्रेरणा, क्षमता विकास, क्रियान्वयन तथा सभी विभागों के बीच समन्वयन की निर्णायक भूमिका, पूरी तरह किसी एक विभाग अथवा संस्थान की हो।

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  • जल एवम् मृदा प्रबंधन संस्थान 
  • ज़िला पंचायतीराज संस्थान
  • लोक प्रशासन एवम् ग्रामीण विकास संस्थान 
  • राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान, हैदराबाद
  • राज्य साक्षरता मिशन
  • जल प्रबंधन हेतु आवश्यकता होगी कि स्थानीय ग्राम पंचायतें तथा नगर निगम व पालिकायें अपने कार्यक्षेत्र के मौजूदा जल का लेखा-जोखा तैयार करें; मांग और उपलब्ध जलानुसार पेयजल, सिंचाई, कृषि उपज, जल संचयन तथा निकासी का नियोजन तैयार करें; तकनीकी तथा आर्थिक समझ के साथ-साथ क्रियान्वयन करने तथा निगरानी, अंकेक्षण व समीक्षा करने का कार्य भी करें।   

(इस संबंध में जागृति, प्रेरणा, प्रशिक्षण, प्रोत्साहन तथा समन्वयन के कार्य अपने आप में पूर्णकालिक तंत्र की मांग करते हैं। अतः उचित हो तो प्रत्येक प्रदेश, विशुद्ध रूप उक्त कार्यों हेतु प्रदेश जल संसाधन एवम् प्रशिक्षण केन्द्र की भी स्थापना की जाने पर विचार करे। इस केन्द्र का कार्य प्रशिक्षण एवम् आवश्यकतानुसार शोध तो करे ही; इस केन्द्र पर प्रत्येक ग्राम पंचायत, नगर निगम क्षेत्र से लेकर राज्य स्तर के जल तथा उससे संबंधित योजना, परियोजनाओं की समस्त जानकारी उपलब्ध रहे। जानकारी प्रसार एवम् दोतरफा संवाद हेतु वेब पोर्टल आदि तकनीक का उपयोग हो। 

विभिन्न विभागों के बीच समन्वयन का भी कार्य विशुद्ध रूप से इस केन्द्र की ज़िम्मेदारी भी हो सकता है। 

राज्य जल संसाधन एवम् प्रशिक्षण केन्द्र के लिए पहले से मौजूदा संगठनों के जल विशेषज्ञों, प्रशिक्षकों तथा ज़मीनी अभियान संचालकों की सेवाएं डेपुटेशन के आधार पर जा सकती हैं।

  • महाविद्यालयों के भूगोल तथा पर्यावरण व सिविल इंजीनियरिंग काॅलेजों के अंतिम वर्ष के छात्र समूहों को उनके क्षेत्र में स्थित एक आवश्यक अपने-अपने ग्राम पंचायत की जल-बजटिंग करने तथा पंचायती क्षेत्र के भूगोल के अनुसार वर्षाजल संचयन के तरीके सुझाने, जल ढांचों का स्थान चयन तथा तकनीकी डिज़ायन तय करने तथा उनकी लागत व जलसंग्रहण क्षमता का आकल करने की परियोजना आवश्यक की जा सकती है। 

छात्रों को प्रशिक्षित करने के लिए उन्ही महाविद्यालयों के भूगोल तथा पर्यावरण व सिविल इंजीनियरिंग प्राध्यापकों हेतु एक अंशकालिक ’ग्राम्य जल प्रबंधन प्रशिक्षक प्रमाणपत्र कोर्स’ तैयार किया जा सकता है। 

इसी तर्ज पर पानी, पंचायत तथा ग्रामीण विकास पर काम कर रहे स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधियों हेतु ’ग्राम्य जल प्रबंधन प्रेक्टिसनर्स कोर्स’ तैयार किया जा सकता है। 

उक्त दोनो कोर्स  उनकी अतिरिक्त सेवाएं लेने के लिए ग्राम पंचायतों को तकनीकी सलाह देने के लिए क्षेत्र पंचायत वार तकनीकी सलाहकारों का क्षेत्र पंचायतवार पैनल तैयार किए जा सकते हैं। 

  • प्रशिक्षण में शामिल किए जाने वाले विषय निम्नलिखित हो सकते हैं: वर्षाजल संचयन-स्थान चयन, डिजायन एवम् निर्माण तकनीक, नमी संरक्षण, नदी संरक्षणए नदी जल ग्रहण क्षमता विकास, हरीतिमा संरक्षण, जल का अनुशासित उपयोग एवम् पुर्नोपयोग - तकनीक, शोधन एवम् सावधानियां, प्रदूषण की रोकथाम - तकनीक एवम् व्यवस्था।

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भू-जल संकट से अधिक दुष्प्रभावित क्षेत्रों की प्राथमिकता सूची बनाई जाए। उन्हे नीति क्रियान्वयन का सघन क्षेत्र मानकर प्रथम दो वर्ष, इन्ही क्षेत्रों पर ध्यान व धन केन्द्रित किया जाए। 

समन्वयन, जन-जागरण, प्रशिक्षण, वित्तीय-तकनीकी सहयोग तथा निगरानी की जवाबदेही सुनिश्चित करने हेतु एकीकृत, निर्णायक एवम् जवाबदेह व्यवस्था विकसित की जाए। 

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